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पारिवारिक कानून
कुष्ठ रोग का समावेशन
« »31-Jul-2025
फेडरेशन ऑफ लेप्रोसी ऑर्गनाइजेशन (FOLO) और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य “उच्चतम न्यायालय ने भारत संघ और राज्यों/संघ शासित प्रदेशों से आग्रह किया कि वे कुष्ठ रोग से प्रभावित या ठीक हो चुके व्यक्तियों को लक्षित करने वाली भेदभावपूर्ण विधियों के विरुद्ध तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई करें।” न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
फेडरेशन ऑफ लेप्रोसी ऑर्गनाइजेशन (FOLO) और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (2025) के मामले में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने भारत संघ और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से आग्रह किया कि वे कुष्ठ रोग से प्रभावित या ठीक हो चुके व्यक्तियों को लक्षित करने वाली भेदभावपूर्ण विधियों के विरुद्ध तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई करें।
फेडरेशन ऑफ लेप्रोसी ऑर्गेनाइजेशन (FOLO) और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह याचिका फेडरेशन ऑफ लेप्रोसी ऑर्गेनाइजेशन (FOLO) द्वारा 2010 में एक जनहित याचिका के रूप में दायर की गई थी।
- प्रारंभ में, कुष्ठ रोग को एक भयानक, लाइलाज, अत्यधिक संक्रामक एवं संक्रमणकारी रोग माना जाता था।
- भारतीय कुष्ठ रोगी अधिनियम, 1898 को कुष्ठ रोगियों को समाज से अलग करने के लिये अधिनियमित किया गया था, जिसमें बिना वारण्ट के गिरफ्तारी, कुष्ठ रोगियों के आश्रय गृहों में नजरबंद करना, तथा संपत्ति और मतदान के अधिकार पर प्रतिबंध जैसे कठोर प्रावधान शामिल थे।
- 1979 में, किसी भी अवस्था में कुष्ठ रोग के पूर्ण उपचार के रूप में मल्टी-ड्रग थेरेपी (MDT) विकसित की गई थी।
- 1981 के पश्चात् भारत में कुष्ठ रोग को पूरी तरह से ठीक करने के लिये मल्टी-ड्रग थेरेपी (MDT) का व्यापक रूप से उपयोग किया जाने लगा।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुष्ठ रोग को पूर्णतः उपचार योग्य तथा संक्रामक नहीं घोषित किया, जिसके परिणामस्वरूप 1898 के अधिनियम को निरस्त कर दिया गया।
- वर्ष 2004 में याचिकाकर्त्ता ने राज्य सरकारों को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि उनकी विधियों, आदेशों आदि से कुष्ठ रोग से प्रभावित या ठीक हो चुके व्यक्तियों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण प्रावधानों को हटाया जाए, किंतु वे अब भी मौजूद हैं।
- याचिकाकर्त्ता ने बताया कि 2019 में 4 केंद्रीय अधिनियमों में संशोधन किया गया, लेकिन 100 से अधिक केंद्रीय विधियों में अभी भी भेदभावपूर्ण प्रावधान विद्यमान हैं।
- राज्यों में कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों के प्रति भेदभावपूर्ण प्रावधानों वाले 145 विधान पाए गए।
- 2019 में, केंद्र सरकार ने विवाह-विच्छेद के आधार के रूप में कुष्ठ रोग को हटाने के लिये पर्सनल लॉ (संशोधन) अधिनियम 2019 को अधिसूचित किया, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 सहित पाँच अधिनियमों में संशोधन किया गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- पीठ ने कुष्ठ रोग को तलाक का आधार बनाने की शर्मनाक प्रकृति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, "सबसे गंभीर बात... हम इस शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहते, किंतु यह कितना शर्मनाक है... आपने विवाह-विच्छेद का आधार बना दिया है।"
- न्यायालय ने राज्यों को सलाह दी कि उन्हें अपनी विधियों में आवश्यक परिवर्तन करने के लिये विशेष विधानसभा सत्रों की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है और कहा कि कुछ राज्यों ने समितियों के गठन के संबंध में अनुपालन शपथपत्र दायर किये हैं, जबकि अन्य ने अनुपालन नहीं किया है।
- न्यायालय ने अनुपालन न करने वाले राज्यों को न्यायालय के पूर्व निदेश का अनुपालन करने के लिये 2 सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया तथा राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों को आदेश दिया कि वे अपनी-अपनी समितियों की सिफारिशों के अनुसरण में की गई अनुवर्ती कार्रवाई पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करें।
- निदेश दिया गया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के सचिव राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) अध्यक्ष से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद न्यायालय को विवरण प्रस्तुत करेंगे, यह देखते हुए कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने स्वतंत्र रूप से इस मुद्दे की जांच की है।
- न्यायालय ने कुष्ठ रोग से प्रभावित या ठीक हो चुके व्यक्तियों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण प्रावधानों को समाप्त करने के सांविधानिक दायित्त्व पर बल दिया।
कुष्ठ रोग क्या है?
बारे में:
- कुष्ठ रोग को शुरू में एक भयावह रोग माना जाता था क्योंकि यह लाइलाज, अत्यधिक संक्रामक और संक्रमणकारी था।
- ऐतिहासिक रूप से, कुष्ठ रोग को अत्यधिक कलंकित माना जाता था, तथा इससे प्रभावित लोगों को अक्सर सामाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था।
- 1979 में, मल्टी-ड्रग थैरेपी (Multi-Drug Therapy - MDT) का विकास हुआ, जो कुष्ठ रोग को किसी भी अवस्था में पूर्णतः ठीक करने में सक्षम है।
- 1981 के बाद भारत में कुष्ठ रोग के पूर्ण उपचार के लिये मल्टी-ड्रग थैरेपी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाने लगा।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुष्ठ रोग को पूर्णतः उपचार योग्य घोषित किया है तथा कहा है कि यह बिल्कुल भी संक्रामक नहीं है।
- चिकित्सा विज्ञान में प्रगति के साथ, कुष्ठ रोग अब उपचार योग्य है, तथा इस रोग से होने वाली स्थायी विकलांगता के मामलों में काफी कमी आई है।
हिंदू विधि के अधीन कुष्ठ रोग विवाह विच्छेद का आधार:
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) के अधीन, कुष्ठ रोग को मूल रूप से धारा 13(1)(iv) में तलाक के आधार के रूप में मान्यता दी गई थी।
- इस धारा के अनुसार, यदि पति-पत्नी "किसी अव्यवहित उग्र और असाध्य कुष्ठ रोग" से पीड़ित हों तो वे तलाक के लिये आवेदन कर सकते हैं ।
- यह उपबंध इस विश्वास से उपजा है कि कुष्ठ रोग, एक दीर्घकालिक और संक्रामक रोग है, जो अप्रभावित पति/पत्नी और परिवार के लिये स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न कर सकते है।
- इस विधि का उद्देश्य स्वस्थ पति/पत्नी को विधिक रूप से पृथक् होने का विकल्प देकर चिंताओं का समाधान करना था।
- केवल ऐसे मामले जिनमें कुष्ठ रोग को " अव्यवहित उग्र " (अत्यधिक संक्रामक) और "असाध्य" माना जाता था, तलाक के लिये आधार माने जाते थे।
- कुष्ठ रोग का उल्लेख तलाक की याचिकाओं के साथ-साथ न्यायिक पृथक्करण की याचिकाओं में भी किया जा सकता है, जहाँ पति-पत्नी विवाह को समाप्त किये बिना पृथक् रहते हैं।
- यह उपबंध उस समय कुष्ठ रोग से जुड़े सामाजिक कलंक और भय को दर्शाता था, क्योंकि भारतीय समाज में इस रोग को अक्सर गलत समझा जाता था और इसे बहुत कलंकित माना जाता था।
तलाक के लिये कुष्ठ रोग को आधार से हटाना:
- कुष्ठ रोग को उपचार योग्य बनाने वाले चिकित्सा परिवर्तनों को मान्यता देते हुए, भारतीय संसद ने 2019 में पर्सनल लॉ (संशोधन) अधिनियम पारित किया।
- इस संशोधन ने कुष्ठ रोग को तलाक के वैध आधार के रूप में हटा दिया।
- यह संशोधन समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों के अनुरूप है।
- इसने स्वीकार किया कि पूर्व विधि ने कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्तियों के प्रति सामाजिक कलंक को और मजबूत किया, जबकि यह एक उपचार योग्य रोग है।
पर्सनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2019
भारतीय संसद द्वारा पर्सनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2019 को विभिन्न व्यक्तिगत विधियों से कुष्ठ रोग को तलाक के आधार के रूप में हटाने के लिये अधिनियमित किया गया था। यह कुष्ठ रोग को एक उपचार योग्य और गैर-संक्रामक रोग के रूप में समझने की बदलती समझ को दर्शाता है, बशर्ते इसका उचित प्रबंधन किया जाए।
- संशोधित अधिनियम : 2019 अधिनियम ने निम्नलिखित में तलाक के आधार के रूप में कुष्ठ रोग को हटा दिया:
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
- मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम, 1939
- विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1869 (ईसाइयों के लिये)
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954
- हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956
- संशोधन का उद्देश्य : संशोधन का उद्देश्य कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों के लिये गरिमा, समता और समावेशन को बढ़ावा देना है।