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सिविल कानून
सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 21
« »13-Oct-2025
संतोष पात्रा बनाम ओडिशा राज्य एवं अन्य "सिविल विधि में यह अत्यंत मौलिक है कि, पूर्व-न्याय का सिद्धांत निष्पादन कार्यवाही पर लागू नहीं होते... क्योंकि, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का आदेश-21, जिसमें डिक्री और आदेशों के निष्पादन हेतु कुल 106 नियम सम्मिलित हैं, एक स्व-निहित और स्वतंत्र आदेश है। इसलिये, सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 11 में उपलब्ध पूर्व-न्याय का सिद्धांत निष्पादन कार्यवाही पर लागू नहीं होते।" न्यायमूर्ति आनंद चंद्र बेहरा |
स्रोत: उड़ीसा उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति आनंद चंद्र बेहरा ने यह निर्णय दिया कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 11 के अधीन पूर्व-न्याय का सिद्धांत आदेश 21 के अधीन निष्पादन कार्यवाही पर लागू नहीं होता है, क्योंकि यह एक आत्मनिर्भर और स्वतंत्र संहिता है, जो तकनीकी दोषों के होते हुए भी डिक्रीदारों को नए निष्पादन आवेदन दायर करने की अनुमति देता है।
- उड़ीसा उच्च न्यायालय ने संतोष पात्रा बनाम उड़ीसा राज्य एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
संतोष पात्रा बनाम ओडिशा राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- याचिकाकर्त्ता, संतोष पात्रा, 1987 के मनी सूट संख्या 76 में मूल डिक्रीदार (DHR) थे, जिसके परिणामस्वरूप उनके पक्ष में निर्णय और डिक्री हुई थी।
- उक्त डिक्री के अनुसरण में, याचिकाकर्त्ता ने सिविल न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन), सोनपुर के समक्ष निष्पादन वाद संख्या 04/1991 स्थापित किया, जिसमें मनी सूट संख्या 76/1987 में पारित डिक्री को निष्पादित करने की मांग की गई।
- याचिकाकर्त्ता द्वारा दायर की गई निष्पादन याचिका में निर्णीतऋणी (JDR) से कुछ राशि और संपत्तियों की वसूली की मांग की गई थी, जिसमें दो सरकारी वाहनों के रूप में चल संपत्तियाँ और निष्पादन आवेदन से संबंधित अनुसूची में उल्लिखित अचल संपत्तियाँ सम्मिलित थीं।
- विद्वान सिविल न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन), सोनपुर ने दिनांक 27.09.2024 के आदेश के अधीन तकनीकी आधार पर निष्पादन वाद संख्या 04/1991 को खारिज कर दिया।
- निष्पादन याचिका को इस आधार पर नामंजूर कर दिया गया कि यह कई कमियों के कारण निष्पादन योग्य नहीं थी, अर्थात् डिक्रीदार निर्णीतऋणीओं से वसूल की जाने वाली धनराशि की सही राशि को इंगित करने में असफल रहा था; दो सरकारी वाहनों का कोई मूल्यांकन प्रदान नहीं किया गया था; और अनुसूची में उल्लिखित अचल संपत्तियों का कोई मूल्यांकन प्रस्तुत नहीं किया गया था।
- दिनांक 27.09.2024 के विवादित आदेश से व्यथित होकर, याचिकाकर्त्ता ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 115 के अधीन उड़ीसा उच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसमें निष्पादन मामले को रद्द करने के आदेश को चुनौती दी गई।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि तकनीकी त्रुटियों को सुधारने और विधि के अधीन अपेक्षित विवरण प्रदान करने का अवसर दिये बिना निष्पादन मामले को समाप्त नहीं किया जाना चाहिये था।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि यह सिविल विधि का एक मौलिक सिद्धांत है कि पूर्व-न्याय' का सिद्धांत सिविल प्रक्रिया संहिता के अधीन निष्पादन कार्यवाही पर लागू नहीं होता है।
- न्यायालय ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का आदेश 21, जिसमें डिक्री और आदेशों के निष्पादन के लिये कुल 106 नियम हैं, एक आत्मनिर्भर और स्वतंत्र आदेश है।
- आदेश 21 एक स्व-निहित संहिता होने के कारण, न्यायालय ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 11 में निहित पूर्व-न्याय के सिद्धांत निष्पादन कार्यवाही पर लागू नहीं होते हैं।
- न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में जहाँ किसी तकनीकी आधार पर निष्पादन कार्यवाही को समाप्त करने का आदेश पारित किया जाता है, वहाँ निर्णीतऋणी को निष्पादन याचिका को निष्पादन योग्य बनाने के लिये सही विवरण प्रदान करके निष्पादन के लिये नया आवेदन दायर करने से विधि के अधीन रोका नहीं जाता है।
- न्यायालय ने कहा कि किसी डिक्रीदार (DHR) को केवल निष्पादन के लिये आवेदन में तकनीकी त्रुटियों, जैसे चल और अचल संपत्तियों का विवरण प्रस्तुत न करने के कारण डिक्री का फल प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जाएगा।
- न्यायालय ने कहा कि विधि के अनुसार, न्यायालय द्वारा डिक्रीदार को निष्पादन के लिये आवेदन में आवश्यक विवरण देने का अवसर दिया जाना आवश्यक है जिससे उसमें विद्यमान दोषों को दूर किया जा सके।
- न्यायालय ने पाया कि विद्वान सिविल न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन), सोनपुर ने निष्पादन आवेदन में दर्शाई गई संपत्तियों के अपेक्षित विवरण प्रस्तुत करने के लिये याचिकाकर्त्ता को कोई अवसर प्रदान किये बिना ही निष्पादन वाद संख्या 04/1991 को निरस्त करने का आदेश पारित कर दिया था।
- न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्त्ता को सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21, नियम 11, उपखण्ड (2) और परिशिष्ट (E) संख्या 6 के उपबंधों का पालन करने का अवसर नहीं दिया गया था, जो निष्पादन के लिये विशिष्ट विवरण प्रस्तुत करने का आदेश देते हैं।
- न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता को ऐसा अवसर प्रदान न किये जाने के कारण, 27.09.2024 का आदेश विधि के अधीन कायम नहीं रह सकता।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्त्ता द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को अस्वीकार करना, विधि के अधीन कोई औचित्य नहीं है।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का आदेश 21 क्या है?
- आदेश 21 का शीर्षक "डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन" है और यह न्यायालय के आदेशों और डिक्रियों के निष्पादन को नियंत्रित करने वाली एक व्यापक संहिता है।
- आदेश 21 में कुल 106 नियम हैं, जो इसे सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत एक आत्मनिर्भर और स्वतंत्र आदेश बनाता है।
- आदेश में डिक्री के अधीन धन संदाय की विभिन्न रीतियों का उपबंध है, जिसमें न्यायालय के अंदर और बाहर संदाय भी सम्मिलित है।
- यह डिक्री निष्पादित करने वाले न्यायालयों की अधिकारिता को विहित करता है, जिसमें अन्य अधिकारिता वाले न्यायालयों और लघु वाद न्यायालयों को निष्पादन अंतरित करने के उपबंध भी सम्मिलित हैं।
- आदेश में मौखिक और लिखित आवेदनों सहित निष्पादन के लिये आवेदन दाखिल करने की प्रक्रिया का विवरण दिया गया है, तथा गिरफ्तारी, चल संपत्ति की कुर्की और अचल संपत्ति की कुर्की की मांग करने वाले आवेदनों के लिये आवश्यकताओं को निर्दिष्ट किया गया है।
- इसमें निष्पादन के लिये प्रक्रिया जारी करने तथा उन परिस्थितियों का उपबंध है जिनके अधीन न्यायालय डिक्री के निष्पादन पर रोक लगा सकते हैं।
- आदेश 21 में डिक्री की प्रकृति के आधार पर निष्पादन की विभिन्न रीतियों को निर्दिष्ट किया गया है, जिसमें धन के संदाय, विशिष्ट चल या अचल संपत्ति का परिदान, विनिर्दिष्ट पालन, वैवाहिक अधिकारों का प्रत्यास्थापन, व्यादेश और दस्तावेज़ों के निष्पादन के लिये डिक्री सम्मिलित हैं।
- आदेश में विभिन्न प्रकार की संपत्तियों की कुर्की के संबंध में विस्तृत उपबंध हैं, जिनमें चल संपत्ति, कृषि उपज, ऋण, अंश, वेतन और भत्ते, भागीदारी संपत्ति, परक्राम्य लिखत और अचल संपत्ति सम्मिलित हैं।
- इसमें पर-पक्षकार द्वारा संपत्ति की कुर्की के दावों और आपत्तियों के न्यायनिर्णयन का उपबंध है।
- आदेश 21 में कुर्क की गई चल और अचल दोनों प्रकार की संपत्ति के विक्रय से संबंधित व्यापक उपबंध सम्मिलित हैं, जिनमें उद्घोषणा की आवश्यकताएँ, विक्रय का संचालन, क्रेता के अधिकार और विभिन्न आधारों पर विक्रय को अपास्त करना सम्मिलित है।
- आदेश में डिक्रीदारों या क्रेताओं को संपत्ति के कब्जे की सुपर्दगी तथा प्रतिरोध, अवरोध या बेदखली के मामलों में उपचार का उपबंध है।
- इसमें प्रक्रियागत मामलों के लिये उपबंध सम्मिलित हैं, जैसे विक्रय का स्थगन या रोक, कुछ व्यक्तियों द्वारा बोली लगाने पर प्रतिबंध, तथा कुछ नियमों के अधीन पारित आदेशों को डिक्री के रूप में मानना।