होम / करेंट अफेयर्स
सिविल कानून
सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 37
« »07-Oct-2025
एग्जीक्यूटिव ट्रेडिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड बनाम ग्रो वेल मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड "हमारा विचार है कि आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि यदि न्यायालय की अनुमति के बिना संक्षिप्त वाद में उत्तर या प्रतिरक्षा को अभिलिखित किये जाने की अनुमति दी जाती है, तो सामान्य रूप से संस्थित वाद और सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 37 के अधीन संक्षिप्त वाद के बीच बनाए रखने का प्रयास किया गया अंतर मिट जाता है।" न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और एस.वी.एन. भट्टी |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और एस.वी.एन. भट्टी की न्यायपीठ ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश 37 के अधीन एक संक्षिप्त वाद में, न्यायालय की अनुमति के बिना कोई प्रतिरक्षा दायर नहीं की जा सकती है, बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश को पलट दिया जिसने प्रतिवादी को ऐसी अनुमति के बिना उत्तर दाखिल करने की अनुमति दी थी – संक्षिप्त वादों के त्वरित निपटान के लिये विशिष्ट प्रक्रिया को स्पष्ट किया।
- उच्चतम न्यायालय ने एग्जीक्यूटिव ट्रेडिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड बनाम ग्रो वेल मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड (2025) के मामले में यह निर्णय दिया ।
एग्जीक्यूटिव ट्रेडिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड बनाम ग्रो वेल मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- अपीलकर्त्ता, एग्जीक्यूटिव ट्रेडिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड, और प्रत्यर्थी, ग्रो वेल मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड, के बीच काफी समय से कारबार का संव्यवहार चल रहा था।
- अपीलकर्त्ता ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष 2020 का वाणिज्यिक संक्षिप्त वाद संख्या 19 दायर किया, जिसमें कथित रूप से स्वीकार की गई और पुष्टि की गई कुल देयता 2,15,54,383.50/- रुपए के साथ-साथ 24% प्रति वर्ष ब्याज के साथ 2,38,50,845.00/- रुपए की वसूली की मांग की गई।
- यह वाद 15 अक्टूबर 2019 को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 37 के अधीन दायर किया गया था।
- 15 जनवरी 2020 को वादपत्र और अनुलग्नकों के साथ समन जारी किया गया, जो 18 जनवरी 2020 को प्रतिवादी को दिया गया।
- 28 जनवरी 2020 को प्रतिवादी ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 37 के नियम 3 के उप-नियम (3) के अनुसार उपस्थिति दर्ज कराई।
- वादी ने वाणिज्यिक संक्षिप्त वाद संख्या 19/2020 में निर्णय संख्या 75/2021 के लिये समन दायर किया, जो 11 जनवरी 2022 को प्रतिवादी को दिया गया।
- वाद से प्रतिरक्षा करने की अनुमति मांगने के लिये आवेदन दायर करने के बजाय, प्रतिवादी ने 2022 का I.A. (L) No.7771 दायर किया, जिसमें वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 की धारा 12क का अनुपालन न करने के कारण वाद को खारिज करने की प्रार्थना की गई, जो पूर्व-संस्थित मध्यस्थता को अनिवार्य बनाती है।
- 8 अप्रैल 2022 को उक्त आवेदन को स्वीकार कर लिया गया, पक्षकारों को मध्यस्थता के लिये भेज दिया गया और संक्षिप्त वाद को स्थगित रखा गया।
- मध्यस्थ द्वारा 9 फरवरी 2023 को एक मध्यस्थता रिपोर्ट दायर की गई, जिसमें यह दर्शाया गया कि मध्यस्थता विवाद को हल करने में असफल रही।
- वादी ने 2023 में I.A. संख्या 1353 दायर की, जिसमें वादपत्र में संशोधन करने और संलग्न अनुसूची के अनुसार निर्णय के लिये समन जारी करने की अनुमति मांगी गई।
- उक्त आवेदन को 29 अगस्त 2023 के आदेश द्वारा स्वीकार कर लिया गया तथा वादी को निदेश दिया गया कि वह वादपत्र में संशोधन करे तथा दो सप्ताह के भीतर निर्णय के लिये समन जारी करे तथा उसके बाद एक सप्ताह के भीतर उसे दूसरे पक्षकार को भी तामील करे।
- 5 दिसंबर 2023 को उच्च न्यायालय ने एक आदेश पारित किया जिसमें प्रतिवादी को 20 दिसंबर 2023 तक निर्णय के लिये समन का उत्तर दाखिल करने का निदेश दिया गया, जिसकी एक प्रति दूसरे पक्षकार को भी दी जाए तथा यदि कोई प्रत्युत्तर हो तो उसे 9 जनवरी 2024 तक दाखिल किया जाए।
- प्रतिवादी ने 23 जनवरी 2024 को बचाव पक्ष की अनुमति के लिये आवेदन करने में हुई देरी को माफ करने के लिए आवेदन दायर किया, जो उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित रहा।
- वादी ने उच्च न्यायालय के 5 दिसंबर 2023 के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी, जिसमें तर्क दिया गया कि प्रतिरक्षा की अनुमति मांगे बिना निर्णय के लिये समन का उत्तर दाखिल करने का निदेश प्रक्रियात्मक रूप से गलत था और सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 37 की अनिवार्य आवश्यकताओं के विपरीत था।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि यदि न्यायालय की अनुमति के बिना संक्षिप्त वाद में उत्तर या प्रतिरक्षा को अभिलिखित किये जाने की अनुमति दी जाती है, तो सामान्य रूप से संस्थित वाद और सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 37 के अधीन संक्षिप्त वाद के बीच का अंतर मिट जाता है।
- न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा किया गया प्रक्रियागत विचलन मामले की जड़ तक जाता है और विवादित आदेश को बरकरार नहीं रखा जा सकता।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 37 के अधीन, प्रतिवादी को एक वास्तविक और पर्याप्त प्रतिरक्षा का प्रकटन करते हुए शपथपत्र दायर करके प्रतिरक्षा की अनुमति के लिये आवेदन करना होगा।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रतिरक्षा की अनुमति तब तक अस्वीकार नहीं की जाएगी जब तक कि प्रतिरक्षा तुच्छ या परेशान करने वाली न हो, और यदि प्रतिवादी यह स्वीकार करता है कि उस पर राशि का कुछ भाग बकाया है, तो प्रतिरक्षा की अनुमति प्राप्त करने के लिये वह राशि न्यायालय में जमा करनी होगी।
- न्यायालय ने कहा कि यदि प्रतिवादी अनुमति के लिये आवेदन नहीं करता है या आवेदन अस्वीकार कर दिया जाता है, तो वादी तत्काल निर्णय का हकदार है।
- न्यायालय ने स्वीकार किया कि यदि प्रतिवादी के पास पर्याप्त हेतुक है तो न्यायालय के पास प्रतिरक्षा के लिये अनुमति हेतु आवेदन करने में किसी भी विलंब को क्षमा करने का विवेकाधिकार है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विवादित आदेश को अपास्त करने से प्रतिवादी को पहले से जारी किये गए निर्णय समन में उपलब्ध विकल्प समाप्त नहीं होंगे, तथा टिप्पणियों से किसी भी पक्ष के मामले पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- न्यायालय ने अपील को स्वीकार कर लिया तथा पक्षकारों को सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 37 के नियम 3 में उल्लिखित कदमों के अनुसार उपचार का विकल्प छोड़ दिया।
आदेश 37 के अधीन संक्षिप्त वाद दायर करने के लिये चरणों का क्रम क्या है?
- संक्षिप्त वाद दायर करने पर, वादी को प्रतिवादी को वादपत्र और अनुलग्नक के साथ-साथ समन भी भेजना होगा।
- प्रतिवादी के पास व्यक्तिगत रूप से या अधिवक्ता के माध्यम से उपस्थित होने तथा तामील का पता उपलब्ध कराने के लिये दस दिन का समय होता है।
- उपस्थिति दर्ज करने के उसी दिन, प्रतिवादी को वादी या उसके अधिवक्ता को अपनी उपस्थिति की सूचना देनी होगी।
- तत्पश्चात् वादी, न्यायालय द्वारा विहित प्रारूप में प्रतिवादी को निर्णय के लिये समन भेजता है, जिसके साथ एक शपथपत्र भी होता है, जिसमें वाद-हेतुक, दवाकृत अनुतोष, तथा यह विश्वास होता है कि प्रतिवादी के पास कोई प्रतिरक्षा नहीं है।
- तत्पश्चात्, प्रतिवादी के पास वास्तविक और पर्याप्त प्रतिरक्षा का प्रकटन करते हुए शपथपत्र दायर करके प्रतिरक्षा की अनुमति के लिये आवेदन करने हेतु दस दिन का समय होता है।
- न्यायालय बिना शर्त या ऐसी शर्तों पर प्रतिरक्षा की अनुमति दे सकता है जो न्यायोचित प्रतीत हों।
- न्यायालय तब तक अनुमति देने से इंकार नहीं करेगा जब तक कि प्रतिरक्षा पक्ष तुच्छ या परेशान करने वाला न हो।
- यदि प्रतिवादी यह स्वीकार करता है कि उस पर राशि का कुछ भाग बकाया है, तो उसे प्रतिरक्षा की अनुमति प्राप्त करने के लिये वह राशि न्यायालय में जमा करनी होगी।
- यदि प्रतिवादी अनुमति के लिये आवेदन नहीं करता है या उसकी अनुमति मांगने वाली अर्जी अस्वीकार कर दी जाती है, तो वादी तत्काल निर्णय का हकदार है।
- यदि न्यायालय प्रतिरक्षा की अनुमति देता है, किंतु प्रतिवादी किसी शर्त या अन्य निदेशों का पालन करने में असफल रहता है, तो वादी भी तत्काल निर्णय का हकदार है।
- यदि प्रतिवादी पर्याप्त हेतुक बताता है तो न्यायालय को उपस्थिति दर्ज कराने या प्रतिरक्षा के लिये अनुमति हेतु आवेदन करने में किसी भी प्रकार के विलंब को क्षमा करने का विवेकाधिकार है।