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सांविधानिक विधि
अनुच्छेद 21 के अधीन विदेश यात्रा का अधिकार
« »01-Aug-2025
"न्यायालय ने कई बार कहा है कि स्पष्ट और विशिष्ट आदेश पारित न होने के कारण पासपोर्ट प्राधिकरण उचित निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है। अतः, सभी अधीनस्थ न्यायालयों से यह अपेक्षा की जाती है कि जब भी अभियुक्त द्वारा विदेश जाने की अनुमति हेतु आवेदन प्रस्तुत किया जाए, तो पासपोर्ट प्राधिकरण के मन में किसी भी प्रकार की उलझन से बचने के लिये वे स्पष्ट और विशिष्ट आदेश पारित करें।" न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड |
स्रोत: राजस्थान उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड ने निर्णय दिया कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 498क के लंबित मामले के कारण धार्मिक उद्देश्यों के लिये विदेश यात्रा की अनुमति देने से इंकार करना भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है; न्यायालयों को पासपोर्ट अधिकारियों को मार्गदर्शन देने के लिये स्पष्ट आदेश पारित करना चाहिये।
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने मोहम्मद मुस्लिम बनाम भारत संघ (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
मोहम्मद मुस्लिम बनाम भारत संघ मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- राजस्थान के कोटा निवासी 61 वर्षीय मोहम्मद मुस्लिम खान ने राजस्थान उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर कर हज यात्रा के लिए विदेश यात्रा हेतु उनके पासपोर्ट आवेदन की नामंजूरी को चुनौती दी।
- याचिकाकर्त्ता पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498-क (पत्नी के प्रति क्रूरता) और 406 (आपराधिक न्यासभंग) के अधीन दण्डनीय अपराधों के लिये न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या 3 (North), कोटा के समक्ष आपराधिक मामला संख्या 164/2021 में विचारण चल रहा था। उसके विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका था और विचारण की कार्यवाही चल रही थी।
- याचिकाकर्त्ता, जिसके पास पासपोर्ट संख्या 25-1001530353 है, हज, उमरा और जियारत जैसे धार्मिक अनुष्ठानों के लिये मक्का-मदीना जाना चाहता था। उसने इस धार्मिक उद्देश्य से विदेश यात्रा की अनुमति के लिये पहली बार 16 अप्रैल 2025 को विचारण न्यायालय का रुख किया था।
- विचारण न्यायालय ने 16 अप्रैल 2025 के आदेश द्वारा उनके आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें उन्हें अपने पासपोर्ट की एक प्रति के साथ पासपोर्ट प्राधिकरण से संपर्क करने का निदेश दिया गया और पासपोर्ट प्राधिकरण को विधि के अनुसार उचित कार्रवाई करने का निदेश दिया गया। यद्यपि, विचारण न्यायालय ने कोई स्पष्ट अनुमति नहीं दी।
- विचारण न्यायालय के निदेश के बाद, याचिकाकर्त्ता ने क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय, कोटा से संपर्क किया। यद्यपि, 7 मई 2025 के पत्र द्वारा, पासपोर्ट प्राधिकरण ने उन्हें सूचित किया कि भारत से उनके प्रस्थान (विदेश यात्रा) के लिये कोई अनुमति नहीं दी गई है।
- पासपोर्ट प्राधिकरण से नामंजूरी पत्र प्राप्त होने के बाद, याचिकाकर्त्ता ने 12 मई 2025 को विचारण न्यायालय में एक और आवेदन प्रस्तुत किया, जिसमें हज के लिये विदेश यात्रा की अनुमति मांगी गई। विचारण न्यायालय ने 15 मई 2025 के आदेश द्वारा इस आवेदन को तकनीकी आधार पर यह कहते हुए खारिज कर दिया कि 16 अप्रैल 2025 के पिछले आदेश में भी इसी तरह की अनुमति दी जा चुकी है।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि दो अलग-अलग आवेदन प्रस्तुत करने के बाद भी, किसी भी आवेदन पर गुण-दोष के आधार पर निर्णय नहीं लिया गया और न ही स्पष्ट अनुमति दी गई। उन्होंने तर्क दिया कि धार्मिक उद्देश्यों के लिये विदेश यात्रा की अनुमति न देना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन दैहिक स्वतंत्रता के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि विदेश यात्रा की अनुमति न देना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। भारत के प्रत्येक नागरिक को विदेश यात्रा का अधिकार है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने मेनका गाँधी बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक निर्णय में स्थापित किया है।
- न्यायालय ने कहा कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498-क और 406 के अधीन लंबित आपराधिक मामले हज, उमरा और जियारत जैसे धार्मिक उद्देश्यों के लिये विदेश यात्रा की अनुमति देने से इंकार करने का आधार नहीं हो सकते। ऐसा इंकार अनुच्छेद 21 के अधीन प्रदत्त दैहिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
- न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता के विदेश यात्रा के अधिकार और अभियोजन पक्ष के विचारण को आगे बढ़ाने के अधिकार के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। विदेश यात्रा की अनुमति प्राप्त व्यक्तियों पर अधिरोपित की गई शर्तों पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वे विचारण से भाग न सकें।
- न्यायालय ने कहा कि विदेश मंत्रालय द्वारा जारी 25 अगस्त 1993 की अधिसूचना में भी एक ऐसी प्रक्रिया का प्रावधान है जिसके अधीन किसी भी व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध आपराधिक मामला लंबित है, भारत से बाहर जाने की अनुमति दी जा सकती है, बशर्ते कि सक्षम न्यायालय द्वारा अनुमति प्रदान की गई हो।
- न्यायालय ने कहा कि कई बार, विचारण न्यायालयों द्वारा स्पष्ट और विशिष्ट आदेश पारित न किये जाने के कारण, पासपोर्ट प्राधिकरण उचित निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होता है। न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि जब अभियुक्त व्यक्ति विदेश यात्रा की अनुमति के लिये आवेदन प्रस्तुत करते हैं, तो अधीनस्थ न्यायालयों को स्पष्ट और विशिष्ट आदेश पारित करने चाहिये, जिससे पासपोर्ट प्राधिकरण के मन में भ्रम की स्थिति न रहे।
- न्यायालय ने कहा कि तकनीकी आधार पर दूसरे आवेदन को खारिज करना विचारण न्यायालय द्वारा अनुचित था, क्योंकि 16 अप्रैल 2025 के पहले के आदेश में वास्तव में कोई स्पष्ट अनुमति नहीं दी गई थी। इससे पासपोर्ट प्राधिकरण को अपना निर्णय लेने में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई।
- न्यायालय ने कहा कि विचारण न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्त्ता की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये उचित शर्तें अधिरोपित की जा सकती हैं, और यदि ऐसी शर्तों का उल्लंघन किया जाता है, तो न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने के लिये उचित बलपूर्वक कार्रवाई की जा सकती है।
विदेश यात्रा का अधिकार अनुच्छेद 21 के अंतर्गत कैसे आता है?
- सांविधानिक मान्यता और न्यायिक विकास: विदेश यात्रा के अधिकार को न्यायिक रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन प्रत्याभूत दैहिक स्वतंत्रता के एक अभिन्न अंग के रूप में मान्यता दी गई है, जिसमें उपबंध है कि किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं। यह अधिकार ऐतिहासिक न्यायिक निर्वचन के माध्यम से विकसित हुआ, जो एक मात्र विशेषाधिकार से सांविधानिक रूप से संरक्षित मौलिक अधिकार में परिवर्तित हो गया।
- उच्चतम न्यायालय का उदाहरण: मेनका गाँधी बनाम भारत संघ (1978) के ऐतिहासिक मामले में, उच्चतम न्यायालय ने आधारभूत सिद्धांत स्थापित किया कि विदेश जाने का अधिकार अनुच्छेद 21 के अधीन दैहिक स्वतंत्रता का भाग है, जिसमें कहा गया कि दैहिक स्वतंत्रता में स्वतंत्र रूप से घूमने और देश के बाहर यात्रा करने का अधिकार सम्मिलित है, और इस अधिकार पर किसी भी प्रतिबंध को तर्कसंगतता और उचित प्रक्रिया की कसौटी पर खरा उतरना चाहिये।
- यात्रा अधिकारों का दायरा: विदेश यात्रा का अधिकार स्वाभाविक रूप से दैहिक स्वतंत्रता और मानव गरिमा की अवधारणा से निकलता है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार आवागमन की स्वतंत्रता, विदेश में शिक्षा, रोजगार या कारबार के अवसर तलाशने का अधिकार, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परिवार के सदस्यों के साथ सामाजिक संबंध बनाए रखने और धार्मिक तीर्थयात्राएँ और आध्यात्मिक यात्राएँ करने का अधिकार सम्मिलित है।
- युक्तियुक्त प्रतिबंध: यद्यपि विदेश यात्रा का अधिकार मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है, किंतु यह पूर्ण नहीं है और राष्ट्रीय सुरक्षा और लोक व्यवस्था, अपराध की रोकथाम और विधिक दायित्त्वों के अनुपालन को सुनिश्चित करने, स्वास्थ्य और नैतिकता की सुरक्षा, तथा राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने के हित में युक्तियुक्त प्रतिबंधों के अधीन हो सकता है।
- प्रक्रियागत सुरक्षा उपाय और उचित प्रक्रिया: उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि यात्रा अधिकारों को प्रतिबंधित करने के लिये विधि द्वारा स्थापित कोई भी प्रक्रिया निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित होनी चाहिये न कि मनमानी, तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि इस मौलिक अधिकार को सीमित करने में सरकारी कार्रवाई उचित प्रक्रिया और आनुपातिकता के सांविधानिक सिद्धांतों का पालन करे।
भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत पूर्व विधिक ढाँचा क्या हैं?
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498-क (अब प्रतिस्थापित): भारतीय न्याय संहिता के अधिनियमन से पूर्व, पति या पति के नातेदार द्वारा क्रूरता को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 498-क के अधीन संबोधित किया जाता था।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के अधीन धारा 85 क्या है?
- धारा 85 - पति या पति के नातेदार द्वारा क्रूरता भारतीय न्याय संहिता, 2023, जो भारतीय दण्ड संहिता का प्रतिस्थापन है, विवाहित महिलाओं के विरुद्ध की गई क्रूरता से संबंधित अपराध को धारा 85 के अंतर्गत अधिनियमित करती है। जिसमें धारा 86 के अधीन "क्रूरता" की परिभाषा दी गई है।
- धारा 86 - क्रूरता की परिभाषा भारतीय न्याय संहिता ढाँचे के अधीन, "क्रूरता" को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है जिसमें आचरण की दो भिन्न-भिन्न श्रेणियाँ सम्मिलित हैं:
- श्रेणी (क) - जानबूझकर किया गया आचरण: जो ऐसी प्रकृति का है, जिससे उस महिला को आत्महत्या करने के लिये प्रेरित करने की या उस महिला के जीवन, अंग या स्वास्थ्य की (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने के लिये उसे करने की संभावना है। इसमें मनोवैज्ञानिक यातना, भावनात्मक दुर्व्यवहार और व्यवस्थित उत्पीड़न सम्मिलित है, जो पीड़ित के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है।
- श्रेणी (ख) – विधिविरुद्ध मांगों के लिये उत्पीड़न: किसी महिला को तंग करना, जहाँ उसे या उससे संबंधित किसी व्यक्ति को किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिये किसी विधिविरुद्ध मांग को पूरी करने के लिये प्रपीड़ित करने की दृष्टि से या उसके या उससे संबंधित किसी व्यक्ति के ऐसी मांग पूरी करने में असफल रहने के कारण इस प्रकार तंग किया जा रहा है। यह विशेष रूप से दहेज संबंधी उत्पीड़न और संपत्ति-आधारित शोषण को लक्षित करता है।