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सिविल कानून

वयोवृद्ध माता-पिता के अधिकार

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 23-Jun-2025

“बहू दांपत्य विवादों से उत्पन्न निवास अधिकारों का दावा करके वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के अंतर्गत माता-पिता के अधिकारों को पराजित नहीं कर सकती।”

न्यायमूर्ति प्रफुल्ल खुबालकर

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यायमूर्ति प्रफुल्ल खुबालकर ने कहा कि बेटे और बहू को वृद्ध माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध उनके स्वयं अर्जित मकान में रहने का कोई विधिक अधिकार नहीं है, विशेषकर जब संबंध शत्रुतापूर्ण हों।

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने चंडीराम आनंदराम हेमनानी बनाम वरिष्ठ नागरिक अपीलीय अधिकरण (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।

चंडीराम आनंदराम हेमनानी बनाम वरिष्ठ नागरिक अपीलीय अधिकरण, (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • याचिकाकर्त्ता, चंदीराम आनंदराम हेमनानी (67 वर्ष) और सुशीला चंदीराम हेमनानी (66 वर्ष), वरिष्ठ नागरिक हैं, जिनके पास नंदुरबार में एक बंगला संपत्ति है, जिसे उन्होंने 2008 में अपने स्वयं के अर्जित धन से खरीदा था। 
  • उनके बेटे मुकेश चंदीराम हेमनानी और बहू रितु मुकेश हेमनानी ने प्रेम विवाह किया था तथा माता-पिता के घर में रहने की अनुमति मांगी थी, जिसे विवाह के बाद उनकी तत्काल आवश्यकताओं को देखते हुए अनुमति दी गई थी। 
  • हालाँकि, बेटे और बहू के बीच विवाद उत्पन्न हो गया, जिसके कारण बहू ने वयोवृद्ध माता-पिता को परेशान करना आरंभ कर दिया और उनके विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज कराया। 
  • बहू ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के अंतर्गत वैवाहिक विवाद के लिये कार्यवाही, घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अंतर्गत कार्यवाही और अपने पति एवं ससुराल वालों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498A, 323, 504 एवं 506 के अधीन अपराधों के लिये आपराधिक कार्यवाही आरंभ की। 
  • अपनी संपत्ति खरीदने के लिये लिये गए ऋण को चुकाते हुए भी अपनी संपत्ति का उपभोग करने में विवश और वंचित महसूस करते हुए, वरिष्ठ नागरिक माता-पिता ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 5 के साथ 20 के अंतर्गत वरिष्ठ नागरिक अधिकरण में अपील किया तथा अपने बेटे एवं बहू को बेदखल करने की मांग की। 
  • अधिकरण ने आरंभ में 18 फरवरी 2019 को उनके आवेदन को अनुमति दी, तथा बेटे एवं बहू को 30 दिनों के अंदर खाली करने का निर्देश दिया। 
  • बहू ने इस आदेश को वरिष्ठ नागरिक अपीलीय अधिकरण के समक्ष चुनौती दी, जिसमें लंबित दांपत्य कार्यवाही के कारण संपत्ति में रहने के अधिकार का दावा किया गया।
  • अपीलीय अधिकरण ने 7 अगस्त 2020 को उसकी अपील स्वीकार कर ली, मामले को सिविल विवाद मानते हुए माता-पिता को बेदखली के लिये दीवानी न्यायालयों का रुख करने का निर्देश दिया। 
  • कार्यवाही के दौरान पता चला कि बहू ने अगस्त 2021 में अपना स्वयं का घर खरीदा था, लेकिन माता-पिता की संपत्ति पर कब्जा करना जारी रखा। 
  • माता-पिता को अंततः अपीलीय अधिकरण के आदेश को चुनौती देने के लिये उच्च न्यायालय में अपील करने के लिये बाध्य होना पड़ा।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने पाया कि अपीलीय अधिकरण ने एक विकृत दृष्टिकोण अपनाया, जिसने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 के उद्देश्य और प्रयोजन को पराजित किया, जो वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। 
  • न्यायालय ने पाया कि बहू वाद में उल्लिखित संपत्ति में निवास करने के लिये कोई विधिक अधिकार स्थापित करने में विफल रही, क्योंकि उसके भरण-पोषण या निवास के अधिकार प्रदान करने वाला कोई न्यायालय आदेश या डिक्री नहीं थी, तथा माता-पिता के विरुद्ध आपराधिक मामले के परिणामस्वरूप उसे दोषमुक्त कर दिया गया था। 
  • न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि केवल बेटे और बहू को घर में रहने की अनुमति देने से उनके पक्ष में कोई विधिक अधिकार नहीं मिल सकता है, विशेषकर जब संबंध शत्रुतापूर्ण हो गए हों, तथा वे माता-पिता को उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें निवास की अनुमति देने के लिये विवश नहीं कर सकते। 
  • न्यायालय ने पाया कि बहू के प्रतिस्पर्धी अधिकारों को वरिष्ठ नागरिकों के स्वतंत्र रूप से अपनी संपत्ति का उपभोग करने के अधिकारों की कीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता है, तथा उसके पास जो भी दांपत्य अधिकार हो सकते हैं, उन्हें माता-पिता के संरक्षित अधिकारों को पराजित किये बिना स्वतंत्र रूप से लागू किया जा सकता है।
  • न्यायालय ने पाया कि वरिष्ठ नागरिकों के स्वतंत्र रूप से अपनी संपत्ति का उपभोग करने के अधिकार की कीमत पर बहू के प्रतिस्पर्धी अधिकारों से समझौता नहीं किया जा सकता है, तथा उसके पास जो भी दांपत्य अधिकार हो सकते हैं, उन्हें माता-पिता के संरक्षित अधिकारों को पराजित किये बिना स्वतंत्र रूप से लागू किया जा सकता है।
  • न्यायालय ने पाया कि अपीलीय अधिकरण का यह अनुमान कि बेदखली केवल एक नागरिक अधिकार है जिसके लिये सिविल न्यायालयों में जाने की आवश्यकता है, दोषपूर्ण है तथा अधिनियम की धारा 22 के साथ धारा 4, 5 के उद्देश्य को पराजित करता है। 
  • न्यायालय ने अपीलीय अधिकरण द्वारा स्थापित विधिक पूर्वनिर्णयों पर विचार करने में विफलता एवं अनुचित रूप से अति-तकनीकी दृष्टिकोण को अपनाने पर ध्यान दिया, जो लाभकारी विधान के अंतर्गत सांविधिक शक्तियों के साथ निहित होने के बावजूद वरिष्ठ नागरिकों के मुद्दों के प्रति उदासीनता प्रदर्शित करता है। 
  • न्यायालय ने बिना किसी विधिक अधिकार के संपत्ति पर कब्जा जारी रखने तथा याचिका के लंबित रहने के दौरान 20,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करने के निर्देश सहित न्यायालयी आदेशों की अनदेखी करने में बहू के आचरण की निंदा की।

उल्लिखित विधिक प्रावधान क्या हैं?

  • परिभाषा एवं सीमा: धारा 2(a) और 2(b) के अंतर्गत, अधिनियम "बच्चों" को बेटा, बेटी, पोता और पोती को शामिल करने के लिये परिभाषित करता है, लेकिन अप्राप्तवयों को बाहर करता है, जबकि "भरण-पोषण" में भोजन, कपड़े, निवास और चिकित्सा देखभाल और उपचार के प्रावधान शामिल हैं। 
  • भरण-पोषण का अधिकार: धारा 4(1) में प्रावधान है कि माता-पिता सहित एक वरिष्ठ नागरिक जो अपनी कमाई से या अपने स्वामित्व वाली संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, धारा 5 के अंतर्गत आवेदन करने का अधिकारी होगा, जिसमें माता-पिता या दादा-दादी को एक या अधिक बच्चों के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार होगा जो अप्राप्तवय नहीं हैं। 
  • बच्चों और रिश्तेदारों का दायित्व: धारा 4(2) और 4(3) यह स्थापित करती है कि बच्चों या रिश्तेदारों का वरिष्ठ नागरिक का भरण-पोषण करने का दायित्व ऐसे नागरिक की आवश्यकताओं को पूरा करने तक विस्तारित होता है ताकि वरिष्ठ नागरिक सामान्य जीवन जी सके, इस दायित्व के साथ विशेष रूप से पिता एवं माता दोनों को शामिल किया जा सकता है। 
  • संपत्ति आधारित भरण-पोषण दायित्व: धारा 4(4) में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी वरिष्ठ नागरिक का रिश्तेदार है तथा उसके पास पर्याप्त साधन हैं, वह ऐसे वरिष्ठ नागरिक का भरण-पोषण करेगा, हालाँकि वह ऐसे नागरिक की संपत्ति पर कब्जा रखता हो या ऐसे वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति का उत्तराधिकारी हो, जहाँ एक से अधिक रिश्तेदार अधिकारी हैं, वहां उत्तराधिकार अधिकारों के अनुपात में भरण-पोषण देय होगा।
  • आवेदन प्रक्रिया एवं प्राधिकरण: धारा 5(1) में प्रावधान है कि भरण-पोषण के लिये आवेदन वरिष्ठ नागरिक या माता-पिता द्वारा स्वयं किया जा सकता है, या यदि असमर्थ हैं, तो किसी प्राधिकृत व्यक्ति या संगठन द्वारा किया जा सकता है, और अधिकरण स्वप्रेरणा से (स्वयं की प्रेरणा से) भी संज्ञान ले सकता है। 
  • अंतरिम अनुतोष की शक्तियाँ: धारा 5(2) अधिकरण को भरण-पोषण के लिये मासिक भत्ते से संबंधित कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान बच्चों या रिश्तेदारों को अंतरिम भरण-पोषण के लिये मासिक भत्ता देने और अधिकरण के निर्देशानुसार वरिष्ठ नागरिक को भुगतान करने का आदेश देने का अधिकार देती है। 
  • समयबद्ध निपटान: धारा 5(4) में यह अनिवार्य किया गया है कि भरण-पोषण और व्यय के लिये मासिक भत्ते के लिये आवेदनों का निपटान नोटिस की तामील की तिथि से नब्बे दिनों के अंदर किया जाना चाहिये, अधिकरण के पास दर्ज कारणों के साथ असाधारण परिस्थितियों में इस अवधि को एक बार अधिकतम तीस दिनों के लिये बढ़ाने की शक्ति है। 
  • प्रवर्तन तंत्र: धारा 5(8) में प्रावधान है कि यदि बच्चे या रिश्तेदार बिना पर्याप्त कारण के भरण-पोषण के आदेशों का पालन करने में विफल रहते हैं, तो अधिकरण बकाया राशि वसूलने के लिये वारंट जारी कर सकता है तथा ऐसे व्यक्तियों को एक महीने तक या भुगतान किये जाने तक, जो भी पहले हो, कारावास की सजा सुना सकता है। 
  • संयुक्त देयता प्रावधान: धारा 5(5) एवं 5(6) यह स्थापित करते हैं कि जहाँ कई व्यक्तियों के विरुद्ध भरण-पोषण के आदेश दिये जाते हैं, उनमें से किसी एक की मृत्यु से भरण-पोषण का भुगतान जारी रखने के लिये दूसरों के दायित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, तथा बच्चे या रिश्तेदार भरण-पोषण के आवेदन में अन्य उत्तरदायी व्यक्तियों को पक्षकार बना सकते हैं।
  • भुगतान समय-सीमा एवं वसूली: धारा 5(7) एवं 5(8) में प्रावधान है कि भरण-पोषण एवं व्यय के लिये भत्ते आदेश की तिथि से या भरण-पोषण के लिये आवेदन की तिथि से देय हैं, वारंट वसूली आवेदन धारा 5(8) के प्रावधान के अंतर्गत राशि के देय होने के तीन महीने के अंदर आवश्यक हैं।