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आपराधिक कानून
CrPC की धारा 239
« »28-May-2025
पुलिस निरीक्षक, CBI, ACB, विशाखापत्तनम द्वारा राज्य का प्रतिनिधित्व बनाम एलुरी श्रीनिवास चक्रवर्ती एवं अन्य "आरोपी के विरुद्ध लगाए गए आरोपों की पृष्ठभूमि में सामग्री, अर्थात आरोपपत्र एवं दस्तावेजों की सूची पर विचार करना, विशेष न्यायालय एवं उच्च न्यायालय द्वारा आरोप मुक्त करने का प्रावधानित मार्ग है।" न्यायमूर्ति पंकज मित्तल एवं न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भाटी |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति डॉ. स्वर्णकांता शर्मा की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत आरोपपत्र एवं दस्तावेजों की सूची पर विश्वास करने के बजाय बचाव पक्ष द्वारा प्रस्तुत सामग्री पर विश्वास करके किसी आरोपी को CrPC की धारा 239 के अंतर्गत दोषमुक्त नहीं किया जा सकता।
- उच्चतम न्यायालय ने पुलिस निरीक्षक, CBI, ACB, विशाखापत्तनम द्वारा राज्य का प्रतिनिधित्व बनाम एलुरी श्रीनिवास चक्रवर्ती एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
पुलिस निरीक्षक, CBI, ACB, विशाखापत्तनम द्वारा राज्य का प्रतिनिधित्व बनाम एलुरी श्रीनिवास चक्रवर्ती एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- नवंबर 1994 से मई 2006 के बीच, रायपति सुब्बा राव (A-1) ने कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCI), गुंटूर शाखा में कॉटन परचेज ऑफिसर के रूप में कार्य किया।
- CBI ने वर्ष 2006 में एक FIR दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि A-1 और उसके बेटे A-3 ने सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा से पहले किसानों से कम बाजार मूल्य पर कपास खरीदा।
- आरोपियों ने कथित तौर पर कपास की जमाखोरी की और बाद में बेनामी किसानों (A-4 से A-47) के सहयोग इसे CCI को उच्च MSP दरों पर बेच दिया।
- कई कथित किसानों के पास इतनी कृषि भूमि नहीं थी कि वे बड़ी मात्रा में कपास का उत्पादन कर सकें, जिसे उन्होंने कथित तौर पर CCI को बेचा।
- इन किसानों के नाम पर बैंक खाते खोले गए, जिन्हें अक्सर A-3 या उसके कर्मचारियों द्वारा प्रस्तुत किया जाता था, तथा कथित तौर पर कूटरचित हस्ताक्षरों के माध्यम से भुगतान डायवर्ट किया जाता था।
- अभियोजन पक्ष ने CCI को 21,19,35,646/- रुपए का दोषपूर्ण नुकसान और आरोपी व्यक्तियों को इसी प्रकार का दोषपूर्ण लाभ होने का दावा किया।
- CCI ने 2007 में CBI की जाँच का प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया, कोई नुकसान नहीं हुआ, कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई तथा सभी खरीद MSP दिशानिर्देशों के अनुसार की गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- विशेष न्यायालय एवं उच्च न्यायालय ने मुख्य रूप से CCI के 31 जनवरी 2007 के पत्र के आधार पर अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया, जिसमें अभियोजन पक्ष के नुकसान और नियमों के उल्लंघन के आरोपों का खंडन किया गया था।
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि अधीनस्थ न्यायालयों ने डिस्चार्ज चरण में बचाव पक्ष द्वारा बुलाए गए दस्तावेजों पर विचार करके एक मूलभूत विधिक त्रुटि की है।
- दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 239 के अंतर्गत, न्यायालयें केवल धारा 173 के अंतर्गत अभियोजन पक्ष द्वारा दायर आरोपपत्र एवं दस्तावेजों पर विचार कर सकती हैं, अभियुक्त द्वारा लाई गई अतिरिक्त सामग्री पर नहीं।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि अभियुक्तों को डिस्चार्ज चरण में अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने की अनुमति देना "मिनी-ट्रायल" के बराबर होगा तथा उन्हें समय से पहले अपना बचाव प्रस्तुत करने की अनुमति देगा।
- उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि धारा 239 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट की भूमिका केवल अभियोजन पक्ष की सामग्री की जाँच करके यह निर्धारित करना है कि आरोप निराधार हैं या नहीं, बचाव पक्ष के साक्ष्य की विस्तृत जाँच करना नहीं है।
- डिस्चार्ज के आदेशों को रद्द कर दिया गया क्योंकि वे CrPC की धारा 239 के अंतर्गत विवेकाधीन अधिकारिता की सांविधिक सीमाओं को पार कर गए थे।
- मामले को विशेष न्यायालय को वापस भेज दिया गया ताकि वह केवल आरोपपत्र एवं अभियोजन पक्ष के दस्तावेजों के आधार पर डिस्चार्ज/आरोपों को तय करने का निर्णय करे, बिना पहले से निर्भर CCI पत्राचार पर विचार किये।
CrPC की धारा 239 क्या है?
- CrPC की धारा 239 पुलिस रिपोर्ट पर आरंभ किये गए वारंट मामलों में डिस्चार्ज का प्रावधान करती है।
- CrPC की धारा 239 के मुख्य घटक:
- विचारणीय आवश्यकता: मजिस्ट्रेट को पुलिस रिपोर्ट और उसके साथ भेजे गए दस्तावेजों पर CrPC की धारा 173 के अंतर्गत विचार करना चाहिये।
- परीक्षण शक्ति: मजिस्ट्रेट के पास अभियुक्त की ऐसी परीक्षा करने का विवेकाधीन अधिकार है, जिसे वह आवश्यक समझे।
- सुनवाई का अवसर: किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले अभियोजन पक्ष और अभियुक्त दोनों को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिये।
- डिस्चार्ज के लिये मानक: यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि अभियुक्त के विरुद्ध आरोप निराधार है, तो वह अभियुक्त को मुक्त कर देगा।
- अनिवार्य रिकॉर्डिंग: मजिस्ट्रेट को अभियुक्त को दोषमुक्त करने का आदेश देने के लिये अपने कारणों को रिकॉर्ड करना होगा।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 262 में डिस्चार्ज का प्रावधान है।
- BNSS की धारा 262 (1) में डिस्चार्ज के लिये आवेदन दाखिल करने की समय सीमा का प्रावधान है।
- इस प्रावधान में यह प्रावधान है कि अभियुक्त BNSS की धारा 230 के अंतर्गत दस्तावेज़ की प्रतियों की आपूर्ति की तिथि से 60 दिनों की अवधि के अंदर डिस्चार्ज के लिये आवेदन कर सकता है।