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बीएनएसएस की धारा 144

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 21-Jul-2025

टुम्पा बसाक बनाम तुफ़ान बसाक 

"आधुनिक समय में, परिवर्तित वैवाहिक भूमिकाओं की पृष्ठभूमि में एक नवीन न्यायिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है - अब भरण-पोषण का उद्देश्य केवल जीवन निर्वाह नहीं, अपितु जीवन शैली की स्थिरता सुनिश्चित करना है; इस प्रकार, पति-पत्नी का परस्पर समर्थन केवल प्रतिकर के रूप में नहीं, अपितु जीवन निर्वाह की निरंतरता के रूप में देखा जाना चाहिये।" 

न्यायमूर्ति बिभास रंजन डे 

स्रोत:कलकत्ता उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही मेंन्यायमूर्ति बिभास रंजन डे नेयह निर्णय दिया कि भरण-पोषण केवल न्यूनतम जीविका हेतु नहीं दिया जाता, अपितु इसका उद्देश्य विच्छेद के उपरांत जीवन शैली की निरंतरता एवं सुनिश्चित करना है 

  • कलकत्ताउच्च न्यायालय नेटुम्पा बसाक बनाम तूफान बसाक (2025)मामले में यह निर्णय दिया 

टुम्पा बसाक बनाम तुफान बसाक मामलेकी पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • टुम्पा बसाक (पत्नी/याचिकाकर्त्ता) और तुफान बसाक (पति/विपरीत पक्ष) का विवाह वैध रूप से हुआ था और उनके विवाह से एक पुत्र का जन्म हुआ था। 
  • इसके बाद, दोनों पक्षकारों को वैवाहिक कलह का सामना करना पड़ा, जिसके कारण वे पृथक् हो गए और वैवाहिक संबंध टूट गया। 
  • वैवाहिक जीवन टूटने के बाद, पत्नी ने अपने लिये भरण-पोषण की मांग करते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के अधीन कार्यवाही शुरू की। 
  • न्यायालय ने परिस्थितियों पर विचार करने के पश्चात् पत्नी के पक्ष में 30,000 रुपए  प्रति माह का भरण-पोषण देने का आदेश दिया। 
  • बाद में पति उच्च स्तरीय बैंकिंग अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हो गए, जिससे परिस्थितियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ और उनकी वित्तीय क्षमता प्रभावित हुई। 
  • अपनी सेवानिवृत्ति को ध्यान में रखते हुए, पति ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 127 के अधीन एक आवेदन दायर किया, जिसमें भरण-पोषण राशि को 30,000 रुपए से कम करने की मांग की गई। 
  • न्यायिक मजिस्ट्रेट, 5वीं न्यायालय, बैरकपुर, उत्तर 24 परगना ने दिनांक 30.12.2023 के आदेश के अधीन भरण-पोषण की राशि को 30,000/- रुपए से घटाकर 20,000/- रुपए प्रति माह कर इस आवेदन का निपटारा किया। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि आयकर रिटर्न को किसी व्यक्ति की वास्तविक आय का निश्चायक सबूत नहीं माना जा सकता, क्योंकि ऐसे रिटर्न मुख्यतः करदाता द्वारा स्वयं दी गई जानकारी पर आधारित होते हैं। 
  • कर रिटर्न में बताए गए आंकड़े करदाता की समझ और व्याख्या के अधीन हैं, जो सदैव सटीक, व्यापक या वास्तविक वित्तीय क्षमता को प्रतिबिंबित करने वाले नहीं हो सकते हैं। 
  • कर रिटर्न में कम जानकारी देने की संभावना सदैव बनी रहती है, जिससे किसी व्यक्ति की वास्तविक आय उसमें दर्शाए गए आंकड़ों से काफी भिन्न हो जाती है। 
  • न्यायालयों को भरण-पोषण कार्यवाही में आय का निर्धारण करते समय आयकर रिटर्न से परे देखना चाहिये तथा भरण-पोषण दाता की संभावित आय, पिछली आय और परिसंपत्तियों की जांच करनी चाहिये 
  • न्यायालय ने वर्तमान समय में वैवाहिक दायित्त्वों के संबंध में समाज में भारी परिवर्तन देखा, तथा भरण-पोषण अनुदान के प्रति न्यायिक दृष्टिकोण में भी इसी प्रकार के परिवर्तन की मांग की। 
  • भरण-पोषण अब केवल जीविका चलाने के लिये दी जाने वाली सहायता मात्र नहीं रह गया है, अपितु यह जीवनशैली की स्थिरता को बनाए रखने का साधन बन गया है तथा यह पृथक् होने के लिये प्रतिकर के बजाय जीवन की निरंतरता को दर्शाता है। 
  • पृथक् होने के पश्चात् भरण-पोषण, विवाहित जीवन के दौरान पत्नी की जीवनशैली के अनुरूप होना चाहिये, तथा जिन महिलाओं ने घरेलू उत्तरदायित्त्वों को निभाने में वर्षों लगा दिये हैं, उन्हें पृथक् होने के बाद भी तुलनीय जीवन जीने का अधिकार है। 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144 क्या है ? 

  • पर्याप्त साधन संपन्न कोई भी व्यक्ति जो अपनी पत्नी, जो स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, अपने धर्मज या अधर्मज संतानों, जो स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, या अपने पिता या माता, जो स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, का भरण-पोषण करने में उपेक्षा करता है या इंकार करता है, उसे भरण-पोषण प्रदान करने के लिये बाध्य किया जा सकता है। 
  • प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इंकार के साबित होने पर, ऐसी दर पर मासिक भरण-पोषण भत्ता देने का आदेश दे सकता है, जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे, तथा ऐसे व्यक्ति को उचित रूप से संदाय करने का निदेश दे सकता है। 
  • भरण-पोषण उन धर्मज या अधर्मज संतानों पर लागू होता है जो वयस्क हो गए हैं, किंतु शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, इसमें विवाहित पुत्रियाँ सम्मिलित नहीं हैं।  
  • कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, मजिस्ट्रेट कार्यवाही के व्यय के साथ पत्नी, संतान, पिता या माता के लिये अंतरिम भरण-पोषण का आदेश दे सकता है, तथा आवेदन का निपटारा साठ दिनों के भीतर किया जाना होगा। 
  • इस अध्याय के प्रयोजनों के लिये, "पत्नी" में वह महिला सम्मिलित है जिसके पति ने उससे विवाह-विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह-विच्छेद कर लिया है और उसने पुनर्विवाह नहीं किया है। 
  • भरण-पोषण भत्ता आदेश की तिथि से या यदि आदेश दिया गया हो तो आवेदन की तिथि से देय होगा, तथा इसका पालन न करने पर उद्गृहीत किया जाने के लिये वारण्ट  तथा एक माह तक का कारावास हो सकता है। 
  • कोई भी पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं होगी यदि वह जारता की दशा में रह रही है, पर्याप्त कारण के बिना पति के साथ रहने से इंकार करती है, या वे आपसी सहमति से पृथक् रह रहे हैं। 
  • यदि पति ने किसी अन्य महिला से विवाह कर लिया है या रखेल रखता है, तो यह पत्नी द्वारा उसके साथ रहने से इंकार करने का न्यायसंगत आधार है, और मजिस्ट्रेट पति के साथ रहने के प्रस्ताव के बावजूद भरण-पोषण प्रदान कर सकता है। 

संदर्भित मामला  

  • कुसुम शर्मा बनाम महिंदर कुमार शर्मा, 2015 
    • यह स्थापित किया गया कि भरण-पोषण में उस गरिमा और जीवन स्तर को प्रतिबिंबित किया जाना चाहिये जिसकी पत्नी विवाह के दौरान आदी थी। 
  • शमीमा फारूकी बनाम शाहिद खान , (2015) 
    • भरण-पोषण निर्धारण में समता स्थिति के सिद्धांत का समर्थन करें।  
  • अवनीश पवार बनाम डॉ. सुनीता पवार , II (2000) 
    • यह स्थापित किया गया कि भरण-पोषण युक्तियुक्त होना चाहिये तथा पति की वास्तविक आय के अनुपात में होना चाहिये