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सांविधानिक विधि
चुनाव आयोग की सत्यापन की शक
«22-Jul-2025
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारतीय चुनाव आयोग "निर्वाचन रजिस्ट्रीकरण हेतु नागरिकता का सत्यापन करना भारत निर्वाचन आयोग की सांविधानिक बाध्यता है।" न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची ने राज्य चुनाव से कुछ महीने पहले बिहार की मतदाता सूची में भारत के चुनाव आयोग द्वारा किये गए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर कड़ी आपत्ति जताई और मतदाताओं से अल्प सूचना पर नागरिकता सबूत मांगने के लिये चुनाव आयोग की आलोचना की।
- उच्चतम न्यायालय ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारतीय चुनाव आयोग (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत निर्वाचन आयोग (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- भारत निर्वाचन आयोग द्वारा आयोजित बिहार विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया को चुनौती देते हुए कई याचिकाएँ दायर की गईं ।
- याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि निर्वाचन आयोग मतदाता सूची संशोधन के दौरान व्यक्तियों से अपनी नागरिकता साबित करने का आह्वान करके अपनी अधिकारिता का अतिक्रमण कर रहा है।
- चुनौती देने वालों ने तर्क दिया कि नागरिकता निर्धारण भारत के चुनाव आयोग के अधिकारिता में नहीं है और यह केंद्र सरकार का विशेष विशेषाधिकार है।
- याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि समयसीमा और आवश्यक दस्तावेज़ों सहित संशोधन प्रक्रिया मौलिक अधिकारों और सांविधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती है।
- भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार में मतदाता सूचियों को अद्यतन (update) और सत्यापित करने के लिये विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया शुरू की, जिसके अधीन व्यक्तियों को मतदाता सूची में रजिस्ट्रीकरण या जारी रखने के लिये नागरिकता का सबूत देना आवश्यक हो गया।
- उच्चतम न्यायालय ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि नागरिकता का निर्धारण भारत निर्वाचन आयोग का कार्य नहीं है तथा इस प्रक्रिया में आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड पर विचार करने का आग्रह किया था।
- राज्य तथा याचिकाकर्त्ताओं ने इस संबंध में चिंता व्यक्त की कि नागरिकता की स्थिति स्थापित करने का सबूत का भार नागरिकों पर डाला जा रहा है।
- भारत निर्वाचन आयोग ने यह प्रतिपादित किया कि संविधान के अनुच्छेद 324 उसे निर्वाचन प्रक्रिया पर अधीक्षण का अधिकार प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 326 के अंतर्गत मतदान के अधिकार के लिए नागरिकता एक अनिवार्य पूर्वशर्त है। आयोग ने तर्क दिया कि इन संवैधानिक प्रावधानों को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 16 एवं धारा 19 के साथ मिलाकर पढ़ने पर यह स्पष्ट होता है कि मतदाता की पात्रता, जिसमें नागरिकता की स्थिति का सत्यापन सम्मिलित है, की जांच करना आयोग की संवैधानिक बाध्यता है।
- निर्वाचन आयोग ने दावा किया कि अनुच्छेद 324 उसे निर्वाचन प्रक्रिया पर अधीक्षण का अधिकार प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 326 नागरिकता को मताधिकार के लिये एक पूर्वापेक्षा मानता है। आयोग ने तर्क दिया कि ये प्रावधान, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 16 और 19 के साथ मिलकर, उसे नागरिकता की स्थिति सहित मतदाता पात्रता सत्यापित करने के लिये सांविधानिक रूप से बाध्य करते हैं।
उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- पीठ ने संभावित मताधिकार हनन के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की तथा कहा कि जटिल प्रक्रियाओं के माध्यम से विद्यमान मतदाताओं को नागरिकता साबित करने के लिये मजबूर करने से वे आगामी चुनाव में मतदान के अधिकार से वंचित हो जाएंगे ।
- न्यायालय ने भारत निर्वाचन आयोग की दस्तावेज़ आवश्यकताओं पर प्रश्न उठाया, तथा भारत निर्वाचन आयोग की सूची का हवाला देते हुए कहा कि निर्धारित दस्तावेज़ "स्वयं नागरिकता साबित नहीं करते" ।
- न्यायालय ने अधिकारिता की सीमाओं को स्पष्ट करते हुए कहा कि नागरिकता निर्धारण "एक पृथक् विवाद्यक है और गृह मंत्रालय का विशेषाधिकार है" ।
- उच्चतम न्यायालय ने उन मतदाताओं के समक्ष आ रही व्यावहारिक कठिनाइयों को उजागर किया, जिनसे अचानक ऐसे दस्तावेज़ मांगे गए, जो उनके पास नहीं थे ।
- न्यायालय ने समय-सीमा की व्यवहार्यता पर प्रश्न उठाया, इसकी तुलना जनगणना कार्यों से की तथा पूछा कि इतने बड़े पैमाने पर जनसंख्या सर्वेक्षण के लिये इतनी सीमित समय-सीमा क्यों प्रदान की गई ।
- न्यायालय ने "इस समय-सीमा का पालन करने के बारे में गंभीर संदेह" व्यक्त किया और कहा कि यह दृष्टिकोण "व्यावहारिक नहीं" है ।
- उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को निदेश दिया कि वह विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया में आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार करे ।
निर्वाचन रजिस्ट्रीकरण के लिये सांविधानिक ढाँचा क्या है?
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 324:
- अनुच्छेद 324 सभी चुनावों (संसद, राज्य विधानमंडल, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति) के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का अधिकार निर्वाचन आयोग को प्रदान करता है, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त अन्य चुनाव आयुक्त सम्मिलित होते हैं।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के समान कार्यकाल की सुरक्षा प्राप्त है तथा उन्हें केवल समान आधार पर ही हटाया जा सकता है, जबकि अन्य चुनाव आयुक्तों को केवल मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर ही हटाया जा सकता है।
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 326:
- अनुच्छेद 326 वयस्क मताधिकार को लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के चुनावों के आधार के रूप में स्थापित करता है।
- अठारह वर्ष या उससे अधिक आयु का प्रत्येक भारतीय नागरिक मतदाता के रूप में रजिस्ट्रीकृत होने का हकदार है, जब तक कि उसे अनिवास, चित्तविकृति, अपराध या भ्रष्ट/अवैध आचरण के आधार पर अयोग्य घोषित न कर दिया जाए।
- संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 समता और प्रक्रियात्मक निष्पक्षता के मौलिक अधिकार प्रदान करते हैं, जो अनुचित दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं के माध्यम से वैध मतदाताओं को मनमाने ढंग से मताधिकार से वंचित करने को अपवर्जित करता है ।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की सुसंगत धाराएँ क्या हैं?
- धारा 21(3):
- यह प्रावधान उन विशेष परिस्थितियों में निर्वाचक नामावली के पुनरीक्षण हेतु व्यवस्था करता है जब निर्वाचन की तैयारी हेतु ऐसा आवश्यक हो।
- यह धारा निर्वाचन आयोग को यह अधिकार प्रदान करती है कि वह परिस्थितियों की गंभीरता को देखते हुए गहन पुनरीक्षण का आदेश दे सके।
- धारा 16:
- इसमें निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी द्वारा मतदाता सूची तैयार करने का उपबंध है ।
- यह भी निर्धारित करती है कि जिस किसी व्यक्ति का नाम निर्वाचक नामावली में सम्मिलित है, वह मतदान का पात्र होगा।
- धारा 19:
- यह धारा निर्वाचक नामावली में पंजीकरण हेतु पात्रता की शर्तें निर्धारित करती है।
- अन्य शर्तों के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति "भारत का नागरिक हो"।
- निर्वाचन रजिस्ट्रीकरण अधिकारी को समावेशन से पहले पात्रता सत्यापित करने का अधिकार दिया गया है।
- निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण नियम, 1960:
- फॉर्म 6 में आवेदकों को आवश्यक दस्तावेज़ उपलब्ध कराने तथा मतदाता रजिस्ट्रीकरण के लिये पात्रता स्थापित करने की आवश्यकता होती है।
- यह प्रक्रिया आवेदनकर्त्ता पर प्रारंभिक सबूत का भार आरोपित करती है कि वह निर्वाचक नामावली में सम्मिलन हेतु योग्य है।