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आपराधिक कानून
असली होने की उपधारणा
« »23-Jul-2025
मेटपल्ली लासुम बाई (मृत) और अन्य बनाम मेटापल्ली मुथैह (मृत) "रजिस्ट्रीकृत वसीयत एवं पारिवारिक मौखिक समझौता परस्पर संगत थे, और चूंकि वसीयत के निष्पादन को स्वीकार कर लिया गया था और उसे संदिग्ध नहीं दिखाया गया था, इसलिये अन्यथा साबित करने का भार आपत्तिकर्त्ता पर था, जिसे उन्मोचित नहीं किया गया।" न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता कि खंडपीठ ने यह निर्णय दिया कि रजिस्ट्रीकृत वसीयत अपने आप में उचित निष्पादन तथा असली होने की उपधारणा को संलग्न करती है और यह उपधारणा तब और मजबूत हो जाती है जब हस्ताक्षर स्वीकार कर लिया जाता है, और वसीयत से सभी संबंधित पक्षकारों को लाभ होता है। इसमें कहा गया है कि वसीयत की वैधता को गलत साबित करने का दायित्त्व अपत्तिकर्त्ता व्यक्ति पर ही है । उच्च न्यायालय ने इस उपधारणा को नज़रअंदाज़ करके और सबूत के भार का गलत प्रयोग करके गलती की।
- उच्चतम न्यायालय ने मेटपल्ली लासुम बाई (मृत) एवं अन्य बनाम मेटापल्ली मुथैह (मृत) (2025) के मामले में यह निर्णय दिया ।
मेटपल्ली लासुम बाई (मृत) एवं अन्य बनाम मेटापल्ली मुथैह (द्वारा विधिक प्रतिनिधियों)) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- 4 एकड़ और 16 गुंटा की विवादित कृषि भूमि मूल रूप से मेटपल्ली रमन्ना के स्वामित्व में थी, जिनकी 1949 से पहले बिना वसीयत के मृत्यु हो गई थी।
- मेटपल्ली रमन्ना के स्वामित्व वाली कुल भू-संपत्ति 18 एकड़ और 6 गुंटा थी, जो दासनापुर, मावला और सावरगांव सहित विभिन्न गांवों में विभिन्न सर्वेक्षण संख्याओं में फैली हुई थी।
- रमन्ना की मृत्यु के बाद, संपत्ति उनके विधिक उत्तराधिकारी मेटपल्ली राजन्ना को सौंप दी गई, जिनकी बाद में 1983 में मृत्यु हो गई।
- मेटपल्ली राजन्ना ने दो विवाह किये थे: पहला नरसम्मा से, जिससे दो बच्चे पैदा हुए - मुथैया (प्रतिवादी) और राजम्मा (पुत्री); दूसरा लासुम बाई (वादी) से, जिससे कोई संतान नहीं हुई।
- नरसम्मा की मृत्यु राजन्ना से पहले हो गई थी, और राजम्मा की भी बिना वसीयत के मृत्यु हो गई, जिससे मुथैया पहले विवाह से जीवित पुरुष सहदायिक के रूप में रह गए।
- अपनी दूसरी पत्नी लासुम बाई और पहले विवाह से उत्पन्न अपने पुत्र मुथैया के बीच संभावित विवादों की आशंका में, मेटपल्ली राजन्ना ने 24 जुलाई 1974 को एक रजिस्ट्रीकृत वसीयत निष्पादित की।
- इसके साथ ही, कथित तौर पर एक मौखिक पारिवारिक समझौता किया गया, जिसके अधीन विधिक उत्तराधिकारियों के बीच संपत्तियों को विशिष्ट अनुपात में वितरित किया गया।
- कथित व्यवस्था के अधीन, लासुम बाई को दसनापुर गांव में सर्वेक्षण संख्या 28 के उत्तरी भाग पर अधिकार दिया गया, जबकि मुथैया को दक्षिणी भाग आवंटित किया गया।
- लासुम बाई ने रजिस्ट्रीकृत वसीयत और मौखिक पारिवारिक समझौते के अधीन स्वामित्व का दावा करते हुए, 27 अगस्त, 1987 को रजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेख के अधीन अपने कथित अंश की 2 एकड़ जमीन संजीव रेड्डी नामक व्यक्ति को बेच दी।
- इसके बाद, उन्होंने 15 जुलाई, 1987 को एक समझौता किया, जिसके अधीन शेष 4 एकड़ और 16 गुंटा जमीन जनार्दन रेड्डी नामक व्यक्ति को बेच दी गई।
- इस प्रस्तावित अलगाव ने विवाद को जन्म दिया, जिसके बाद मुथैया ने विक्रय पर रोक लगाने के लिये व्यादेश वाद (मूल वाद संख्या 101, 1987) दायर किया।
- मुथैया का मामला इस तर्क पर आधारित था कि संपत्तियाँ पैतृक संयुक्त परिवार की संपत्तियाँ थीं, और एकमात्र जीवित सहदायिक होने के नाते, वह संपूर्ण संपत्ति के हकदार थे।
- उन्होंने रजिस्ट्रीकृत वसीयत की प्रामाणिकता और विधिक प्रभावकारिता को चुनौती दी तथा इसे एक मनगढ़ंत दस्तावेज़ बताया।
- जवाब में लासुम बाई ने मूल वाद संख्या 2/1991 दायर किया, जिसमें रजिस्ट्रीकृत वसीयत और मौखिक पारिवारिक करार के आधार पर वाद सूची की संपत्तियों पर स्वामित्व की घोषणा की मांग की गई।
- रमन्ना की मृत्यु के पश्चात् राजस्व प्रविष्टियाँ (खसरा पहुनी) राजन्ना के नाम पर दर्ज की गईं, जो आंध्र प्रदेश में प्रचलित राजस्व विधियों के अधीन स्वामित्व का प्रथम दृष्टया साक्ष्य स्थापित करती हैं।
- लासुम बाई विवादित भूमि के उत्तरी भाग पर वास्तविक भौतिक कब्जा रखती थीं और काफी समय से उस पर खेती करती आ रही थीं।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि रजिस्ट्रीकृत वसीयत में उचित निष्पादन और असली होने की प्रबल उपधारणा होती है, तथा अनुचित निष्पादन या संदिग्ध परिस्थितियों को साबित करने के लिये वसीयत को चुनौती देने वाले पक्षकार पर ही सबूत पेश करने का भार होता है।
- न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी मुथैया द्वारा प्रतिपरीक्षा में की गई महत्त्वपूर्ण स्वीकृति, जिसमें उसने रजिस्ट्रीकृत वसीयत पर अपने पिता के हस्ताक्षर तथा पक्षकारों के बीच भूमि के विभाजन को स्वीकार किया, वसीयत तथा मौखिक पारिवारिक समझौते दोनों के अस्तित्व की पुष्टि करती है।
- वसीयत को असली होने के संदेह से परे माना गया, क्योंकि इससे न केवल लासुम बाई को लाभ मिला, अपितु मुथैया और उसकी बहन राजम्मा को भी पर्याप्त अधिकार प्राप्त हुए, जो कि बनावटीपन के बजाय निष्पक्ष वितरण का संकेत था।
- न्यायालय ने माना कि मौखिक पारिवारिक समझौते को मजबूत साक्ष्यों द्वारा समर्थन प्राप्त था, जिसमें संबंधित पक्षकारों द्वारा अपने आवंटित हिस्से पर विशेष कब्जा भी सम्मिलित था, जिसने औपचारिक दस्तावेज़ीकरण के अभाव के होते हुए भी विधिक वैधता प्राप्त कर ली थी।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने सुविचारित विचारण न्यायालय के निर्णय में हस्तक्षेप करके स्पष्ट रूप से गलती की है, क्योंकि लासुम बाई के अंश को घटाकर 1/4 करने का उसका निर्णय अभिलेख में विद्यमान साक्ष्यों द्वारा समर्थित नहीं था।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि लासुम बाई द्वारा निष्पादित पूर्व विक्रय विलेख को चुनौती न देने का मुथैया का आचरण उसके स्वामित्व अधिकारों के प्रति मौन स्वीकृति का प्रतीक है तथा यह उसके अनन्य स्वामित्व के दावे के विरुद्ध एक बाधा के रूप में कार्य करता है।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि विधिवत् रजिस्ट्रीकृत वसीयत वैध वसीयती निपटान का गठन करती है, और संपत्तियों का पैतृक चरित्र वसीयत के माध्यम से उन्हें निपटाने के लिये वसीयतकर्त्ता के अधिकार को अमान्य नहीं करता है, बशर्ते कि यह हिंदू विधि के स्थापित सिद्धांतों का उल्लंघन न करता हो।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA), 2023 की धारा 78 क्या है?
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 78 प्रमाणित प्रतियों के असली होने के बारे में उपधारणा से संबंधित है।
- पहले यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 78 के अंतर्गत आता था।
- धारा 78(1) में कहा गया है कि न्यायालय प्रत्येक ऐसी दस्तावेज़ का असली होना उपधारित करेगा, जब:
- ऐसा प्रमाणपत्र, प्रमाणित प्रति या अन्य दस्तावेज़ होना तात्पर्थित है।
- किसी विशिष्ट तथ्य के साक्ष्य के रूप में ग्राह्य हैं।
- केंद्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के किसी अधिकारी द्वारा, सम्यक् रूप से प्रमाणित हों।
- सारतः उस प्ररूप में हो तथा ऐसी रीति से निष्पादित हुआ तात्पर्यिंत हो जो विधि द्वारा उस निमित्त निदेशित हैं।
- धारा 78 (2) में कहा गया है कि आधिकारिक प्राधिकार की उपधारणा के अधीन न्यायालय यह भी उपधारित करेगा कि कोई अधिकारी, जिसके द्वारा ऐसी दस्तावेज़ का हस्ताक्षरित या प्रमाणित होना तात्पर्यित है, वह पदीय हैसियत, जिसका वह ऐसे कागज में दावा करता है, उस समय रखता था, जब उसने उसे हस्ताक्षरित किया था।
संदर्भित मामला
- मीना प्रधान एवं अन्य बनाम कमला प्रधान एवं अन्य. (2014) :
- न्यायालय ने वसीयत की वैधता साबित करने और उसके निष्पादन के लिये व्यापक सिद्धांत स्थापित किये।