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आपराधिक कानून

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35

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 31-Jul-2025

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की, 2023 की धारा 35 के अधीन नोटिस की तामील इस तरह से की जानी चाहिये जिससे इस मूल अधिकार की रक्षा हो सके, क्योंकि नोटिस का अनुपालन न करने से किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर भारी प्रभाव पड़ सकता है।” 

न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेशऔरन्यायमूर्ति एन.के. सिंह नेनिर्णय दिया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35 के अधीन समन व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि ऐसी सेवा की स्पष्ट रूप से अनुमति नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन प्रत्याभूत दैहिक स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकता है। 

  • उच्चतम न्यायालय ने सतिंदर कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (2025)के मामले में यह निर्णय दिया 

सतिंदर कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • वर्तमान मामला हरियाणा राज्य द्वारा दायर एक आवेदन से उत्पन्न हुआ है जिसमें 21 जनवरी 2025 के उच्चतम न्यायालय के आदेश में संशोधन की मांग की गई थी। मूल आदेश में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 41-क और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 35 के अधीन नोटिस की तामील के संबंध में अपने पुलिस तंत्र को स्थायी आदेश जारी करने का निदेश दिया गया था। 
  • उच्चतम न्यायालय नेपहले यह आदेश दिया था कि उपर्युक्त उपबंधों के अधीन नोटिस केवलदण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अधीन मान्यता प्राप्त तामील में विहित रीति से ही दिये जा सकते हैं। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से माना था कि व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक संसूचना प्लेटफार्मों के माध्यम से तामील को सांविधिक रूप से विहित तामील के विकल्प के रूप में नहीं माना जा सकता है।  
  • मूल आदेश में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दो ऐतिहासिक मामलों:राकेश कुमार बनाम विजयंत आर्य (DCP) एवं अन्य (2021)औरअमनदीप सिंह जौहर बनाम राज्य (NCT Delhi) (2018) में निर्धारित दिशानिर्देशों का कठोरता से पालन करने की आवश्यकता थी।इन दिशानिर्देशों को बाद में उच्चतम न्यायालय ने सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सी.बी.आई. एवं अन्य (2022) 10 एस.सी.सी. 51 में बरकरार रखा था। 
  • हरियाणा राज्य ने उच्चतम न्यायालय में यह तर्क देते हुए याचिका दायर की, कि इलेक्ट्रॉनिक तामील पर प्रतिबंध अव्यावहारिक और संसाधन-गहन है। उन्होंने तर्क दिया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 35 के अधीन नोटिस केवल सूचनात्मक हैं, जो व्यक्तियों को बिना किसी तत्काल गिरफ्तारी के अन्वेषण में शामिल होने का निदेश देते हैं। राज्य ने इस बात पर बल दिया कि इलेक्ट्रॉनिक तामील से तामील से बचने की प्रवृत्ति प्र अंकुश लगेगा और राज्य के बहुमूल्य संसाधनों का संरक्षण होगा। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जिसने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 का स्थान लिया, ने इलेक्ट्रॉनिक संसूचना को मान्यता देने वाले कई प्रावधान पेश किये। धारा 64(2) न्यायालय की मुद्रा लगी समन को इलेक्ट्रॉनिक तामील की अनुमति देती है, जबकि धारा 71 साक्षियों के समन की इलेक्ट्रॉनिक तामील की अनुमति देती है। धारा 530 विचारणों, जांच और कार्यवाहियों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से संचालित करने का अधिकार देती है। 
  • न्यायालय के समक्ष मूल विवाद्यक यह था कि क्या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के कुछ प्रावधानों में इलेक्ट्रॉनिक संसूचना की विधायी मान्यता को धारा 35 के अधीनअन्वेषण अभिकरणों द्वारा जारी किये गए नोटिसों तक बढ़ाया जा सकता है, विशेष रूप से अनुपालन न करने के संभावित परिणामों को देखते हुए, जिसमें गिरफ्तारी और स्वतंत्रता से वंचित करना सम्मिलित है। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • विधानमंडल ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 को अधिनियमित करते हुएधारा 530 के अधीन वर्णित इलेक्ट्रॉनिक संसूचना के माध्यम से अनुमेय प्रक्रियाओं के दायरे सेधारा 35 के अधीन नोटिस की तामील को जानबूझकर अपवर्जित किया है, और यह जानबूझकर किये गए लोप विधायी आशय का स्पष्ट प्रकटीकरण है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 35 के अधीन नोटिस की तामील इस तरह से की जानी चाहिये कि स्वतंत्रता के मूल अधिकार की रक्षा हो, क्योंकि नोटिस का अनुपालन न करने से धारा 35(6) के अधीन किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर भारी प्रभाव पड़ सकता है।    
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 63 या 71 के अधीन न्यायालय द्वारा जारी किया गया समन एक न्यायिक कार्य माना जाता है, जबकि धारा 35 के अधीन अन्वेषण अभिकरण द्वारा जारी किया गया नोटिस एक कार्यकारी कार्य माना जाता है, और इसलिये न्यायिक कार्य के लिये विहित प्रक्रिया को कार्यकारी कार्य के लिये विहित प्रक्रिया में नहीं पढ़ा जा सकता है। 
  • विधानमंडल ने विशेष रूप से उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट किया है जिनमें इलेक्ट्रॉनिक संसूचना के साधनों का उपयोग अनुमन्य है, ये ऐसी परिस्थितियाँ हैं जिनका किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रभाव नहीं पड़ता है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन प्रत्याभूत प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा होती है। 
  • जबकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 अन्वेषण आभिकरण द्वाराइलेक्ट्रॉनिक संसूचना के उपयोग को पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं करता है, ऐसे उपयोग को केवल धारा 94(1) और 193(3) के अधीन उपबंधित किया गया है, और इनमें से किसी भी प्रक्रिया का किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। 
  • संविधान के अनुच्छेद 21 का सार भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में समाहित है, जो अपराधों का अन्वेषण और न्यायनिर्णयन को सुगम बनाते हुए व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने के प्रशंसनीय उद्देश्य को दर्शाता है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 35 में ऐसी प्रक्रिया को शामिल करना, जिसकेलिये विधानमंडल द्वाराविशेष रूप से प्रावधान नहीं किया गया है, विधायी आशय का उल्लंघन होगा और सांविधिक योजना की उद्देश्यपूर्ण निर्वचन के विपरीत होगा। 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35 क्या है? 

बारे में: 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 35 वह उपबंध है, जो पुलिस अधिकारियों को संज्ञेय अपराधों से संबंधित विशिष्ट परिस्थितियों में मजिस्ट्रेट से वारण्ट प्राप्त किये बिना किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार देता है। 

बिना वारण्ट के गिरफ्तारी के आधार: 

तत्काल गिरफ्तारी की स्थिति: 

  • जब कोई व्यक्ति पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में संज्ञेय अपराध करता है। 
  • जब यह विश्वसनीय सूचना प्राप्त होती है कि किसी व्यक्ति ने ऐसा संज्ञेय अपराध किया है जो सात वर्ष से अधिक के कारावास से, चाहे जुर्माने के साथ अथवा बिना जुर्माने के, या मृत्युदण्ड से दण्डनीय है 
  • जब किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अधीन या राज्य सरकार के आदेश द्वारा अपराधी उद्घोषित किया गया हो। 
  • जब किसी के पास चोरी की संपत्ति पाई जाती है और उस पर उससे संबंधित अपराध करने का उचित संदेह होता है। 
  • जब कोई व्यक्ति पुलिस अधिकारी के कर्त्तव्य पालन में बाधा डालता है या विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा है या भागने का प्रयत्न करता है। 
  • जब पर संघ के सशस्त्र बलों में से किसी से अभित्याजक होने का उचित संदेह हो। 
  • जब कोई व्यक्ति भारत के बाहर किये गए किसी ऐसे कार्य में सम्मिलित होता है जो भारत में किये जाने पर अपराध के रूप में दण्डनीय होता। 
  • जब छोड़ा गया सिद्धदोष होते हुए भी धारा 394(5) के अधीन बनाए गए किसी नियम को भंग करता है। 
  • जब किसी अन्य पुलिस अधिकारी से गिरफ्तारी हेतु अनुरोध प्राप्त होता है। 

सात वर्ष तक के अपराधों के लिये सशर्त गिरफ्तारी: 

  • सात वर्ष से कम या अधिकतम सात वर्ष के कारावास से दण्डनीय संज्ञेय अपराधों के लिये गिरफ्तारी की अनुमति केवल तभी दी जाती है जब विशिष्ट शर्तें पूरी हों: 
    • पुलिस अधिकारी के पास उचित परिवाद, विश्वसनीय सूचना या उचित संदेह के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि व्यक्ति ने अपराध किया है। 
    • पुलिस अधिकारी इस बात से संतुष्ट है कि आगे अपराध रोकने, उचित अन्वेषण करने, साक्ष्यों से छेड़छाड़ रोकने, साक्षियों को प्रलोभन या धमकी देने से रोकने, या न्यायालय में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये गिरफ्तारी आवश्यक है। 
    • पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी करते समय लिखित में कारण अभिलिखित करना होगा। 
  • नोटिस प्रक्रिया (गिरफ्तारी का विकल्प): 
    • जब उपरोक्त उपबंधों के अधीन गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं होती है, तो पुलिस अधिकारी को व्यक्ति को उसके समक्ष या निर्दिष्ट स्थान पर उपस्थित होने का निदेश देते हुए नोटिस जारी करना चाहिये 
    • व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह नोटिस की शर्तों का पालन करे, और जब तक वह इसका पालन करता है, तब तक उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, जब तक कि पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी की आवश्यकता के लिये विशिष्ट कारण अभिलिखित न कर दे। 
  • परिणाम और सुरक्षात्मक उपाय: 
    • यदि कोई व्यक्ति नोटिस का अनुपालन करने में असफल रहता है या अपनी पहचान बताने को तैयार नहीं है, तो पुलिस अधिकारी सक्षम न्यायालय द्वारा पारित किसी भी आदेश के अधीन, नोटिस में उल्लिखित अपराध के लिये उसे गिरफ्तार कर सकता है। 
    • तीन वर्ष से कम कारावास से दण्डनीय अपराधों के लिये, अशक्त व्यक्तियों या साठ वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों को गिरफ्तार करने से पहले पुलिस उपाधीक्षक (DSP) के पद से नीचे के अधिकारी की पूर्व अनुमति आवश्यक है। 
    • इस उपबंध में एक अनिवार्य सुरक्षात्मक उपाय शामिल है जिसके अधीन पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तारी न होने पर लिखित में कारण अभिलिखित करने की आवश्यकता होती है, जिससे जवाबदेही सुनिश्चित होती है और मनमाने ढंग से गिरफ्तारी को रोका जा सकता है, साथ ही विधि प्रवर्तन आवश्यकताओं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के बीच संतुलन भी बनाया जा सकता है।