होम / करेंट अफेयर्स
आपराधिक कानून
BNS की धारा 79
«29-Jul-2025
X बनाम पश्चिम बंगाल राज्य "कार्यस्थल पर उत्पीड़न या दुर्व्यवहार के मात्र आरोप, बिना विशिष्ट विवरण या आवश्यक तत्त्वों की पूर्ति किये, IPC की धारा 509 के अधीन अपराध का गठन नहीं करते हैं"। न्यायमूर्ति डॉ अजॉय कुमार मुखर्जी |
स्रोत: कलकत्ता उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यायमूर्ति डॉ. अजॉय कुमार मुखर्जी की पीठ ने कहा है कि कार्यस्थल पर केवल उत्पीड़न एवं दुर्व्यवहार भारतीय दण्ड संहिता की धारा 509 के अधीन महिला की लज्जा भंग कारित करने का अपराध नहीं माना जाएगा।
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने X बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।
X बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- विपक्षी पक्ष ने याचिकाकर्त्ता सहित चार आरोपियों के विरुद्ध IPC की धारा 354/114 के अधीन दण्डनीय अपराध का आरोप लगाते हुए एक प्राथमिकी दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि आरोपियों ने शिकायतकर्त्ता को उसके कार्यस्थल पर उत्पीड़न किया।
- शिकायतकर्त्ता ने 2015 में मेसर्स बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड के दिल्ली कार्यालय में प्रशिक्षु रिपोर्टर के रूप में नौकरी आरंभ की थी, बाद में दिसंबर 2015 में कोलकाता स्थानांतरित हो गई और जुलाई 2017 के अंत में प्रतिष्ठान छोड़ दिया।
- 13 अक्टूबर, 2018 को, संस्थान से त्यागपत्र देने के लगभग 1 वर्ष और 2 महीने बाद, उसने याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई कि उसे कार्यस्थल पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और उसे गंभीर रूप से धमकाया गया।
- अंवेषण पूरी होने के बाद, जाँच एजेंसी ने मूल रूप से आरोपित धारा 354 के बजाय IPC की धारा 509 के अंतर्गत आरोप पत्र प्रस्तुत किया।
- शिकायतकर्त्ता ने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 के अधीन यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए अपने पूर्व नियोक्ता की आंतरिक शिकायत समिति में भी शिकायत दर्ज कराई। यद्यपि आंतरिक समिति के समक्ष शिकायत की समय सीमा समाप्त हो चुकी थी, समिति ने विस्तृत जाँच की तथा याचिकाकर्त्ता को उसके विरुद्ध लगाए गए सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि पेशेवर प्रतिद्वंद्विता और व्यक्तिगत द्वेष के कारण दुर्भावनापूर्ण आशय से FIR दर्ज की गई थी।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि शिकायत में उन शब्दों, ध्वनियों या संकेतों का विशिष्ट विवरण नहीं था जिनसे कथित तौर पर शिकायतकर्त्ता की लज्जा भंग हुई थी, जो कि IPC की धारा 509 के अधीन अपराध का गठन करने के लिये आवश्यक तत्त्व हैं।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि IPC की धारा 509 के अधीन अपराध के गठन के लिये, यह स्पष्ट आरोप होना चाहिये कि जिस कृत्य की शिकायत की गई है, उससे किसी विशेष महिला की लज्जा भंग हुई है, न कि केवल महिलाओं के किसी वर्ग या समुदाय का।
- न्यायालय ने कहा कि न तो FIR में और न ही अंवेषण के दौरान एकत्र की गई सामग्री में, जिसमें CrPC की धारा 161 के अधीन दर्ज अभिकथन भी शामिल हैं, किसी भी तरह की विशेष विशेष उच्चारण करने, संकेत करने या कोई वस्तु प्रदर्शित करने का कोई आरोप नहीं था।
- न्यायालय ने पाया कि CrPC की धारा 161 के अधीन परीक्षण किये गए कुछ साक्षियों ने कहा कि हालाँकि याचिकाकर्त्ता अधिक कार्य के लिये दबाव बनाता था, लेकिन उन्होंने उसे कभी भी शिकायतकर्त्ता या अन्य कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार करते नहीं पाया।
- न्यायालय ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि शिकायतकर्त्ता की लज्जा भंग करने का याचिकाकर्त्ता के आशय एवं ज्ञान को स्थापित करने के लिये कोई ठोस साक्ष्य नहीं है, न ही ऐसा कोई कार्य वर्णित है जिससे यह स्थापित हो सके कि याचिकाकर्त्ता का शिकायतकर्त्ता की लज्जा भंग करने का आशय था।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि केवल "उत्पीड़ित" या "दुर्व्यवहार" शब्दों का प्रयोग अपेक्षित आशय या ज्ञान को प्रदर्शित नहीं करता है जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि कोई भी कथित कृत्य शिकायतकर्त्ता की लज्जा भंग करता है।
- न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि कार्यस्थल पर केवल उत्पीड़न या दुर्व्यवहार अपने आप में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 509 के अंतर्गत अपराध नहीं माना जा सकता, जब तक कि आवश्यक तत्त्व पूरे न हों।
- न्यायालय ने यह भी माना कि आंतरिक शिकायत समिति ने याचिकाकर्त्ता को गुण-दोष के आधार पर दोषमुक्त कर दिया था और विशिष्ट साक्ष्य के अभाव में यौन उत्पीड़न के आरोपों को निराधार पाया था।
- न्यायालय ने कहा कि चूँकि आपराधिक मामलों में अपेक्षित साक्ष्य का मानक विभागीय कार्यवाही की तुलना में बहुत अधिक है, तथा याचिकाकर्त्ता को विभागीय जाँच में पहले ही दोषमुक्त कर दिया गया है, इसलिये आपराधिक अभियोजन जारी रखना न्यायालयी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 79 क्या है?
- नए आपराधिक विधान के लागू होने से पहले यह प्रावधान भारतीय दण्ड संहिता की धारा 509 के अंतर्गत आता था।
- भारतीय न्याय संहिता की धारा 79 में कहा गया है कि जो कोई किसी महिला की लज्जा भंग करने के आशय से कोई शब्द उच्चारित करेगा, कोई ध्वनि या संकेत करेगा, या किसी भी रूप में कोई वस्तु प्रदर्शित करेगा, जिसका आशय यह हो कि ऐसा शब्द या ध्वनि उस महिला द्वारा सुनी जाए, या ऐसा संकेत या वस्तु उस महिला द्वारा देखी जाए, या ऐसी महिला की निजता में दखलंदाजी करेगा, उसे तीन वर्ष तक की अवधि के साधारण कारावास और जुर्माने से दण्डित किया जाएगा।
- इस अपराध के लिये शब्दों, ध्वनियों, संकेतों, वस्तुओं या निजता में दखलंदाजी के माध्यम से किसी महिला की लज्जा भंग का विशिष्ट आशय आवश्यक है, जिसमें आवश्यक तत्त्व यह है कि अभियुक्त का आशय यह होना चाहिये कि ऐसे कार्यों को संबंधित महिला द्वारा देखा जाए।