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आपराधिक कानून

शादी का झूठा वादा

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 13-Sep-2023

Source: The Hindu

परिचय:

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) भारत के लिये एक प्रस्तावित नई आपराधिक संहिता है जिसका उद्देश्य मौजूदा भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) को प्रतिस्थापित करना है।

BNS की धारा 69 के तहत प्रस्तावित परिवर्तनों में से एक, सहमति से ऐसे यौन संबंध को अपराध बनाना है जिसमें कोई पुरुष किसी महिला से शादी करने का वादा करता है लेकिन ऐसा करने का उसका कोई इरादा नहीं है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई पुरुष ऐसी परिस्थितियों में किसी महिला के साथ यौन गतिविधि में संलग्न होता है, तो इसे एक अपराध माना जाएगा।

  • आपराधिक संहिता के अन्य विधेयक जो BNS के साथ पेश किये गए थे, उसमें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के स्थान पर) और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 (भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872) शामिल हैं।

BNS की धारा 69:

  • BNS के तहत इस अपराध को 'महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध' शीर्षक वाले BNS के अध्याय 5 के अंतर्गत जोड़ना प्रस्तावित है।
  • इस प्रावधान के तहत दो मापदंडों को शामिल किया गया है:
    • धोखेबाज़ी का सहारा: इसमें रोज़गार या पदोन्नति का झूठा वादा, प्रलोभन या पहचान छिपाकर शादी करना शामिल है।
    • शादी का झूठा वादा: इसके तहत किसी पुरुष द्वारा महिला से शादी करने का वादा करके सहमति से उसका यौन शोषण करना शामिल है।

वर्तमान कानून के तहत प्रावधान:

  • भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) में कहीं भी इस तरह के अपराध को परिभाषित नहीं किया गया है (यानी धोखे से यौन संबंध बनाना) बल्कि इसे दो प्रावधानों द्वारा निपटाया जाता है जिसमें धारा 375 और धारा 90 शामिल हैं।
  • धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है जबकि धारा 90 डर या गलतफहमी के तहत दी गई सहमति से संबंधित है।
  • धारा 375 में उल्लेख है कि सहमति प्राप्त होने के बाद भी निम्नलिखित स्थितियों में यौन संबंध को बलात्कार माना जाएगा:
    • पहला— इच्छा के विरुद्ध।
    • दूसरा— सहमति के विरुद्ध।
    • तीसरा—उस स्त्री की सहमति से जबकि उसकी सहमति, उसे या ऐसे किसी व्यक्ति, जिससे वह हितबद्ध है, को मॄत्यु या चोट के भय में डालकर प्राप्त की गई है।
    • चौथा: उस स्त्री की सहमति से, जबकि वह पुरुष यह जानता है कि वह उस स्त्री का पति नहीं है और उस स्त्री ने सहमति इसलिये दी है कि वह विश्वास करती है कि वह ऐसा पुरुष है, जिससे वह विधिपूर्वक विवाहित है या भविष्य में विवाहित होने का विश्वास करती है।
    • पाँचवाँ: उस स्त्री की सहमति के साथ, जब वह ऐसी सहमति देने के समय, किसी कारणवश मन से अस्वस्थ या नशे में हो या उस व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत रूप से प्रबंधित या किसी और के माध्यम से या किसी भी बदतर या हानिकारक पदार्थ के माध्यम से, जिसकी प्रकृति व परिणामों को समझने में वह स्त्री असमर्थ है।
    • छठा: उस स्त्री की सहमति या बिना सहमति के जबकि वह 18 वर्ष से कम आयु की है।
    • सातवाँ: उस स्त्री की सहमति, जब वह सहमति व्यक्त करने में असमर्थ है।

नोट:

  • वर्ष 2016 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के तहत बलात्कार के 10,068 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 7655 मामले ज्ञात व्यक्तियों द्वारा शादी के बहाना करने के द्वारा घटित हुए थे।
  • दिल्ली पुलिस के आँकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016 में शहर में दर्ज कुल बलात्कार के मामलों में से एक-चौथाई शादी के झूठे वादे के तहत यौन संबंध बनाने से संबंधित थे।

शादी का झूठा वादा बनाम वादा का उल्लंघन:

  • मंदार दीपक पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य (2022) में उच्चतम न्यायालय (SC) ने कहा कि शादी के झूठे वादे और वादे के उल्लंघन के बीच अंतर है:
    • झूठा वादा: यह समझकर किया गया वादा कि इसे तोड़ दिया जाएगा।
    • वादे का उल्लंघन: अच्छे विश्वास से किया गया ऐसा वादा जो पूरा नहीं किया गया है, यानी यदि कोई पुरुष यह साबित कर सकता है कि उसने महिला के साथ यौन संबंध बनाने से पहले उससे शादी करने का इरादा किया था, लेकिन बाद में किसी ऐसे कारण से उससे शादी करने में असमर्थ रहा, जो कानूनी रूप से दंडनीय नहीं है।

 विवाह करने के इरादे का प्रमाण:

मामले  की सहमति पर कानून (Case Laws on Consent):

  • न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि विवाह करने का निश्चय कब किया गया है और कब नहीं? जिससे यह मूल्यांकन किया जा सके कि आरोपी किसी अपराध का दोषी है या नहीं। इस बिंदु पर कुछ महत्त्वपूर्ण मामले इस प्रकार हैं:
    • उदय बनाम कर्नाटक राज्य (वर्ष 2003): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले ने यह स्थापित कर दिया है, कि विवाह के झूठे वादे के आधार पर दी गई सहमति का आई.पी.सी. की धारा 375 के तहत प्रयोज्यता का निर्धारण करते समय मामले-दर-मामले के आधार पर मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
      • फैसले में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि सहमत होने की परिस्थितियों का आकलन करते समय पीड़िता की उम्र, सामाजिक और शैक्षिक पृष्ठभूमि के साथ ही उसकी सामाजिक स्थिति जैसे कारकों पर विचार किया जाएगा।
    • रोहित तिवारी बनाम राज्य (वर्ष 2016): दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि यदि एक पूर्ण वयस्क महिला शादी के वादे पर यौन संबंधों पर सहमति देती है और लंबे समय तक ऐसी गतिविधि में शामिल रहती है, तो यह उसकी ओर से संकीर्णता का कार्य है, न कि तथ्य की गलत धारणा से प्रेरित कार्य।
    • नईम अहमद बनाम राज्य (NCT दिल्ली) (वर्ष 2023): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि शादी के वादे के उल्लंघन को झूठा वादा मानना और किसी व्यक्ति पर आई.पी.सी. की धारा 376 के तहत बलात्कार के अपराध के लिये मुकदमा चलाना मूर्खता होगी।
      • जस्टिस अजय रस्तोगी और बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने इस पर यह टिप्पणी की, "इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आरोपी ने पूरी गंभीरता के साथ उससे शादी करने का वादा किया होगा, जिसके परिणामस्वरूप बाद में उसे कुछ अप्रत्याशित परिस्थितियों या उसके नियंत्रण से परे परिस्थितियों का सामना करना पड़ा होगा, जिसने उन्हें अपना वादा पूरा करने से रोका था”।
      • इसके अतिरिक्त, वर्ष 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि शादी के 'वास्तविक' वादे पर सहमति से बनाए गए यौन संबंधों को बलात्कार नहीं कहा जा सकता है।

निष्कर्ष:

स्पष्ट और उचित नियति के अभाव में ध्यान देने योग्य बात यह है, कि यह विधेयक संभावित रूप से ऐसी स्थिति उत्पन्न कर सकता है, जिसमें अपराध के कानूनी परिणामों को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया जाएगा तथा महिलाओं द्वारा सहन किये जाने वाले अपराध के परिणामों एवं क्षति को नज़रअंदाज कर दिया जाएगा। हालाँकि इसमें यह विचार भी किया गया है, कि सहमतिपूर्वक बनाए गए यौन संबंध कानूनी परिणामों के अधीन हों, जिसमें झूठे वादे और केवल वादे के उल्लंघन के बीच स्पष्ट अंतर बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है।