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सिविल कानून
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) और सूचना का अधिकार अधिनियम
«14-Aug-2025
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
परिचय
विश्व के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने नवीनतम राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक, 2025 के माध्यम से सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के अधीन पारदर्शिता दायित्त्वों से सफलतापूर्वक बच निकला है। वर्षों की न्यायिक सिफारिशों और विधिक लड़ाइयों के होते हुए भी, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड सूचना के अधिकार प्रावधानों के अधीन अनिवार्य लोक जवाबदेही के बिना काम कर रहा है। नवीन विधान ने पारदर्शिता संबंधी दायित्वों को प्रत्यक्ष सरकारी वित्तपोषण तक ही सीमित कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप यह समृद्ध क्रिकेट बोर्ड (BCCI) को सूचना का अधिकार अधिनियम की निगरानी से प्रभावी रूप से संरक्षण प्रदान करता है। यह कदम, पारदर्शिता संबंधी विधियों के विरुद्ध BCCI के दीर्घकालिक संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण जीत है।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) और सूचना का अधिकार के बीच क्या लड़ाई चल रही है?
BCCI की स्थिति:
- BCCI का निरंतर यह तर्क रहा है कि वह एक "निजी, स्वायत्त निकाय" है और “लोक प्राधिकरण” नहीं है।
- इसका कहना है कि "राज्य से वित्तीय और संगठनात्मक रूप से स्वतंत्र" होने के कारण यह लोक निकायों के लिये सरकारी नियामक ढाँचे से बाहर है।
- बोर्ड इस बात पर बल देते हुए कहता है कि वह सरकार से प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता नहीं लेता है।
- विधिक तौर पर, यह तमिलनाडु सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1975 के अधीन रजिस्ट्रीकृत एक स्वायत्त धर्मार्थ सोसायटी के रूप में कार्य करती है।
न्यायिक और आयोग संबंधी चुनौतियाँ:
- BCCI बनाम बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (2015) मामले में कहा गया कि BCCI राज्य निकाय के समान "लोक कार्य" करता है, जिसमें राष्ट्रीय टीमों का चयन और राष्ट्रीय प्रतीकों का उपयोग करना सम्मिलित है।
- विधि आयोग (2018) ने तर्क दिया कि जब अप्रत्यक्ष लाभों पर विचार किया जाता है तो BCCI के वित्तीय स्वतंत्रता के दावे सही नहीं ठहरते।
- 1997-2007 के बीच, BCCI ने अपनी धर्मार्थ स्थिति के कारण 2,100 करोड़ रुपए से अधिक की कर छूट का लाभ उठाया।
- राज्य सरकारों ने क्रिकेट संघों को अत्यधिक रियायती दरों पर भूमि उपलब्ध कराई है (उदाहरण: हिमाचल प्रदेश ने स्टेडियम की भूमि 1 रुपए प्रति माह पट्टे पर दी है)
- केंद्रीय सूचना आयोग (2018) ने BCCI को एक "लोक प्राधिकरण" घोषित किया और उसे RTI प्रश्नों को संभालने का निदेश दिया।
नई विधि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के लिये अपवाद कैसे बनती है?
मूल विधेयक के प्रावधान:
- प्रारंभिक राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक (23 जुलाई) से प्रत्येक मान्यता प्राप्त खेल निकाय को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत लाया जा सकेगा।
- धारा 15(2) में मूलतः कहा गया था कि "मान्यता प्राप्त खेल संगठन को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अधीन लोक प्राधिकरण माना जाएगा।"
- इस व्यापक परिभाषा में BCCI को भी सम्मिलित किया गया होता, जिससे इसकी पूरी कार्यप्रणाली लोक जांच के लिये खुली होती।
संशोधित विधेयक अपवाद:
- संशोधित संस्करण में RTI की प्रयोज्यता केवल उन संगठनों तक सीमित कर दी गई है जो सरकार से "अनुदान या कोई अन्य वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं"।
- ऐसे संगठनों को केवल "ऐसे अनुदानों या किसी अन्य वित्तीय सहायता के उपयोग के संबंध में" लोक प्राधिकरण माना जाता है।
- यह परिवर्तन प्रत्यक्ष सरकारी वित्तपोषण को RTI प्रयोज्यता के लिये एकमात्र मानदंड बनाता है।
- संशोधन से नकदी संपन्न BCCI को RTI जांच से प्रभावी रूप से बाहर रखा गया है क्योंकि इसे सीधे सरकारी धन प्राप्त नहीं होता है।
पिछली सिफारिशों को क्यों लागू नहीं किया गया?
न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा समिति (2015):
- BCCI की कार्यप्रणाली को "बंद दरवाजे और पीछे के कमरे का मामला" बताया।
- पाया गया कि संविधान और वित्तीय विवरण सहित महत्त्वपूर्ण जानकारी आसानी से उपलब्ध नहीं थी।
- सिफारिश की गई कि "विधानमंडल को BCCI को सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के दायरे में लाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिये।"
- BCCI की गतिविधियों के बारे में जानने के जनता के अधिकार पर बल दिया।
उच्चतम न्यायालय का हस्तक्षेप:
- 2016 में लोढ़ा सुधार मामले की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने सूचना के अधिकार (RTI) मुद्दे को विधि आयोग को भेज दिया था।
- न्यायालय ने कहा कि चूँकि BCCI लोक कार्य करता है, इसलिये पारदर्शिता की स्पष्ट आवश्यकता है।
- 2015 में, न्यायालय ने BCCI को अनुच्छेद 226 के अधीन रिट अधिकारिता के लिये उत्तरदायी माना क्योंकि यह लोक कार्य करता है।
विधि आयोग की रिपोर्ट (2018):
- निष्कर्ष निकाला गया कि BCCI को ने सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के अधीन "लोक प्राधिकरण" के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये।
- लोक कार्यों और प्राप्त अप्रत्यक्ष सरकारी धन दोनों पर आधारित सिफारिश।
- कर छूट और सब्सिडी वाली भूमि के माध्यम से पर्याप्त अप्रत्यक्ष लाभों पर प्रकाश डाला गया।
केंद्रीय सूचना आयोग आदेश (2018):
- सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के अधीन BCCI को "लोक प्राधिकरण" घोषित किया गया।
- BCCI को सूचना के अधिकार (RTI) प्रश्नों से निपटने के लिये तंत्र स्थापित करने का निदेश दिया गया।
- यद्यपि, BCCI ने इस आदेश को मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने इसके कार्यान्वयन पर रोक लगा दी।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक, 2025 केवल सीधे सरकारी धन प्राप्त करने वाले खेल निकायों को ही सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में आने की अनुमति देता है। इससे BCCI, विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड होने और लोक कार्य करने के बावजूद, सूचना के अधिकार (RTI) दायित्त्वों से बच जाता है। न्यायलयों और आयोगों ने अधिक जवाबदेही के लिये BCCI को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने की बार-बार सिफारिश की थी, किंतु नवीन विधि विधिक रूप से इसे जांच से बचाती है। इस कदम को पारदर्शिता का विरोध करने में BCCI की एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है, और यह अन्य शक्तिशाली खेल निकायों के लिये ऐसी विधियों को दरकिनार करने का एक उदाहरण स्थापित कर सकता है।