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सांविधानिक विधि

भारत में लाउडस्पीकर विधि

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 29-Sep-2025

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय 

दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा सांस्कृतिक उत्सवों के लिये लाउडस्पीकर बजाने की समय-सीमा आधी रात तक बढ़ाने की हालिया घोषणा ने भारत में ध्वनि प्रदूषण विधियों पर चर्चा को फिर से हवा दे दी है। यद्यपि धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव हमारे विविध समाज का अभिन्न अंग हैंयह विधि इन परंपराओं को प्रत्येक नागरिक के शांतिपूर्ण वातावरण के अधिकार के साथ संतुलित करने का प्रयास करता है। यह नाजुक संतुलन दो दशकों में विकसित हुए विशिष्ट नियमों और न्यायिक निर्वचनों के माध्यम से बनाए रखा जाता है। 

लाउडस्पीकर के उपयोग के लिये विधिक ढाँचा क्या है? 

  • लाउडस्पीकरों को विनियमित करने के लिये भारत का दृष्टिकोण मुख्य रूप सेध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000द्वारा नियंत्रित होता हैजो पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अधीन स्थापित किया गया था। ये नियम विभिन्न स्रोतों से शोर के प्रबंधन के लिये एक व्यापक प्रणाली बनाते हैं। 
  • मुख्य आवश्यकताएँ हैं: 
    • जो कोई भी लाउडस्पीकर या लोक संबोधन प्रणाली का उपयोग करना चाहता हैउसे निर्दिष्ट प्राधिकारी से लिखित अनुमति लेनी होगी। 
    • रात 10 बजे से सुबह बजे तक लोक स्थानों पर लाउडस्पीकर के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध है। 
    • रात्रिकालीन यह प्रतिबंध सभी स्थानों पर लागू हैकेवल एक अपवाद के साथ - लाउडस्पीकर का उपयोग इन घंटों के दौरान सभागारोंसम्मेलन कक्षों और भोज हॉल जैसे बंद स्थानों में किया जा सकता हैकिंतु केवल आंतरिक संसूचना उद्देश्यों के लिये 
  • नियम विभिन्न क्षेत्रों के लिये विशिष्ट ध्वनि सीमाएँ भी निर्धारित करते हैं। 
  • आवासीय क्षेत्रों मेंदिन के समय (सुबह बजे से रात 10 बजे तक) ध्वनि का स्वीकार्य स्तर 55 डेसिबल है तथा रात में यह 45 डेसिबल तक गिर जाता है। 
    • सामान्य बातचीत में ध्वनि लगभग 60 डेसिबल होती हैजबकि फुसफुसाहट में ध्वनि लगभग 30 डेसिबल होती है। 

 15-दिवसीय अपवाद क्या है और यह कैसे काम करता है? 

  • राज्य सरकारों को सांस्कृतिक या धार्मिक उत्सवों के लिये रात्रि 10 बजे से मध्य रात्रि तक लाउडस्पीकर के उपयोग की अनुमति देने का अधिकार हैलेकिन यह छूट पूरे वर्ष में कुल मिलाकर 15 दिनों से अधिक नहीं हो सकती। 
  • यह वह प्रावधान है जो दिल्ली जैसी सरकारों को रामलीलादुर्गा पूजा और अन्य उत्सवों के दौरान समय सीमा बढ़ाने की अनुमति देता है। 
  • यद्यपिइस अधिकार के साथ कुछ महत्त्वपूर्ण प्रतिबंध भी जुड़े हैं। यह छूट पूरे राज्य में एक समान होनी चाहिये—अलग-अलग ज़िलों में अलग-अलग तारीखें नहीं हो सकतीं। 
  • इसके अतिरिक्तयह छूट निर्दिष्ट "शांति क्षेत्रों" पर लागू नहीं होती हैजिसमें अस्पतालोंशैक्षणिक संस्थानों और न्यायालयों के 100 मीटर के भीतर के क्षेत्र सम्मिलित हैं। 

न्यायालयों ने क्या निर्णय दिया है (पूर्व निर्णय मामले)? 

  • उच्चतम न्यायालय के निर्णय 
    • चर्च ऑफ गॉड (फुल गॉस्पेल) इन इंडिया बनाम के.के.आर. मैजेस्टिक कॉलोनी वेलफेयर एसोसिएशन (2000): 
      • उच्चतम न्यायालय ने ने यह अभिमत व्यक्त किया कि लाउडस्पीकर का प्रयोग अनुच्छेद 25 के अंतर्गत प्रदत्त मौलिक अधिकार का अंग नहीं हैतथा किसी धर्म में यह आवश्यक नहीं है कि प्रार्थना या धार्मिक अनुष्ठान लोक शांति भंग करते हुए किये जाएं 
    • ध्वनि प्रदूषण (V) के संबंध मेंस्वप्रेरणा से रिट याचिका (C) संख्या 100/2003 (2005): 
      • उच्चतम न्यायालय ने घोषणा की कि ध्वनि-मुक्त वातावरण का अधिकार अनुच्छेद 21 के अधीन एक मौलिक अधिकार है और "श्रवण आक्रामकता" की अवधारणा को प्रस्तुत कियाजिसमें कहा गया कि कोई भी अनिच्छुक श्रोताओं को प्रवर्धित ध्वनि सुनने के लिये विवश नहीं कर सकता।       
    • 15 दिन की छूट पर उच्चतम न्यायालय (2005): 
      • उच्चतम न्यायालय ने 15 दिन की छूट के प्रावधान को बरकरार रखाकिंतु यह अनिवार्य कर दिया कि केवल राज्य सरकारें ही छूट दे सकती हैंजो पूरे राज्य में एक समान होनी चाहियेतथा छूट की अवधि के दौरान भी शांत क्षेत्र संरक्षित रहेंगे। 
  • उच्च न्यायालय के निर्णय 
    • बॉम्बे उच्च न्यायालय (2016): 
      • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि लाउडस्पीकर किसी भी धर्म के लिये आवश्यक नहीं हैं तथा अपर्याप्त प्रवर्तन तंत्र और पुलिस के लिये डेसिबल मीटर की कमी के लिये राज्य सरकारों की आलोचना की। 
    • कर्नाटक उच्च न्यायालय (2018): 
      • कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक बंद बैंक्वेट हॉल में प्रतिबंधित समय के दौरान लाउडस्पीकर के उपयोग की अनुमति दे दीबशर्ते आयोजन स्थल की सीमा पर शोर का स्तर विहित सीमा के भीतर रहे। 
    • पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (2019): 
      • पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने धार्मिक संस्थाओं द्वारा लाउडस्पीकरों के उपयोग के लिये लिखित अनुमति लेना अनिवार्य कर दियाएक केंद्रीकृत परिवाद हेल्पलाइन की स्थापना करने का निदेश दियातथा परिवादकर्त्ताओं की पहचान की सुरक्षा का आदेश दिया। 
    • अफ़ज़ल अंसारी और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2020): 
      • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अज़ान (azaan) को एक आवश्यक धार्मिक प्रथा और इसके प्रवर्धन के बीच अंतर करते हुए कहा कि लाउडस्पीकर आधुनिक उपकरण हैं और धार्मिक रूप से आवश्यक नहीं हैं। 
    • जागो नेहरू नगर रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन बनाम पुलिस आयुक्त, (2025) 
      • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एकश्रेणीबद्ध दण्ड प्रणाली (चेतावनी  जुर्माना  जब्तीशुरू कीजब आस-पास कई धार्मिक स्थल संचालित होते हैं तो संचयी ध्वनि आकलन को अनिवार्य कर दियातथा प्रवर्तन के लिये मोबाइल ऐप और स्वतः सीमित प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का सुझाव दिया। 

निष्कर्ष 

भारत की लाउडस्पीकर विधि दो महत्त्वपूर्ण अधिकारों—धार्मिक स्वतंत्रता और लोगों के शांतिपूर्ण जीवन जीने के अधिकार—के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करती हैं। न्यायालयों ने कहा है कि धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव महत्त्वपूर्ण तो हैंकिंतु वे दूसरों के स्वास्थ्य और शांति को भंग नहीं कर सकते। विधि त्योहारों के दौरान 15 दिनों की छूट देती हैकिंतु इसका दुरुपयोग बार-बार उल्लंघन के लिये नहीं किया जा सकता। जैसे-जैसे शहरों में भीड़ बढ़ती जा रही हैजन स्वास्थ्य की रक्षा और सद्भाव बनाए रखने के लिये इन नियमों का कठोरता से पालन आवश्यक है।