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आपराधिक कानून

मुंबई शिक्षक लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण मामला

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 01-Aug-2025

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय 

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) 18 वर्ष से कम आयु के बालकों को लैंगिक अपराधों से बचाने के लिये बनाया गया था। यद्यपि, हाल के न्यायलय के निर्णयों ने इन मामलों में ज़मानत तय करते समय न्यायाधीशों के सामने आने वाली जटिल चुनौतियों को उजागर किया है। लैंगिक उत्पीड़न के अभियुक्त 40 वर्षीय शिक्षक को ज़मानत देने के मुंबई के एक न्यायालय के हालिया निर्णय ने इस बात पर फिर से ध्यान आकर्षित किया है कि न्यायालय ऐसे संवेदनशील मामलों को कैसे संभालती हैं। 

मुंबई शिक्षक मामला (2025) क्या था? 

  • मुंबई के एक प्रमुख स्कूल के 40 वर्षीय अंग्रेजी शिक्षक को 16 वर्षीय 12वीं कक्षा की छात्रा के साथ लैंगिक उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार किया गया। 
  • पुलिस अभिरक्षा समाप्त होने के पश्चात् शिक्षक को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया, तथा रिमांड 16 जुलाई 2025 तक बढ़ा दी गई। 
  • न्यायालय ने पुलिस की अभिरक्षा बढ़ाने की मांग को अस्वीकार कर दिया क्योंकि अन्वेषण अधिकारी उचित आधार नहीं बता सके। 
  • यह मामला दिसंबर 2023 से शुरू होने वाले कथित ग्रूमिंग से संबंधित है, जिसमें अलग-अलग स्थानों और पाँच सितारा होटलों में घटनाएँ शामिल हैं। 

युवा अभियुक्तों और सहमति से बने संबंधों से जुड़े मामलों में न्यायालयों ने पिछले कुछ वर्षों में क्या अवलोकन किया है? 

दिल्ली उच्च न्यायालय के निष्कर्ष (धर्मेंद्र सिंह, 2020): 

  • दिल्ली न्यायालय ने निम्नलिखित कारकों को सूचीबद्ध किया: 
  • पीड़ित और अभियुक्त दोनों की आयु। 
  • दोनों पक्षकारों के बीच आयु का अंतर मायने रखता है। 
  • उनके रिश्ते की प्रकृति महत्त्वपूर्ण है। 
  • क्या इसमें कोई बल या दबाव सम्मिलित था। 
  • कथित घटना के पश्चात् अभियुक्त का व्यवहार कैसा था। 
  • ये कारक कठोर नियमों के बजाय दिशा-निर्देशों के रूप में काम करते हैं। 

उच्चतम न्यायालय का निर्णय (देशराज उर्फ मूसा बनाम राजस्थान राज्य, 2024): 

  • एक 18 वर्षीय लड़के को पाँच महीने जेल में बिताने के बाद जमानत दे दी गई। 
  • यह मामला एक 16 वर्षीय लड़की से संबंधित था, जो सहमति से संबंध में थी। 
  • न्यायालय ने आयु के छोटे अंतर और अभिरक्षा में बिताए गए समय पर विचार किया। 
  • मुकदमे की धीमी गति भी जमानत देने में एक कारक थी। 

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) क्या है? 

  • लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO), 18 वर्ष से कम आयु के बालकों को लैंगिक शोषण, उत्पीड़न और शोषण से बचाने के लिये बनाई गई एक विशेष विधि है। यह ऐसे अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये एक व्यापक विधिक ढाँचा प्रदान करती है। 
  • यह अधिनियम लैंगिक रूप से तटस्थ है और लड़के-लड़कियों दोनों को संरक्षण प्रदान करता है। यह कई तरह के कृत्यों को अपराध मानता है, जिनमें प्रवेशन और गैर-प्रवेशन लैंगिक उत्पीड़न, लैंगिक उत्पीड़न और बाल पोर्नोग्राफ़ी सम्मिलित हैं।
  • विधि में त्वरित विचारण सुनिश्चित करने के लिये बाल-अनुकूल विशेष न्यायालयों की स्थापना का आदेश दिया गया है तथा अन्वेषण, चिकित्सा परीक्षा और न्यायालय कार्यवाही के दौरान बाल-संवेदनशील प्रक्रियाओं पर बल दिया गया है। 
  • यह विधि व्यक्तियों पर बाल लैंगिक शोषण की घटनाओं की रिपोर्ट करने का विधिक दायित्व अधिरोपित करती है तथा आगे और अधिक आघात से बचने के लिये पीड़ित की पहचान की गोपनीयता बनाए रखती है। 
  • अनोखी बात यह है कि यह अधिनियम निर्दोषता की सामान्य उपधारणा को उलट देती है तथा साक्ष्य का भार अभियुक्त पर डाल देती है। 
  • इसके अतिरिक्त, यह विधिक प्रक्रिया के दौरान बाल पीड़ितों को सहायता, देखभाल और पुनर्वास प्रदान करता है। 

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) के अंतर्गत विधिक सिद्धांत क्या हैं? 

बालक की परिभाषा (धारा 2()): 

  • 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बालक माना जाता है। 
  • परिपक्वता, सम्मति या परिस्थितियों के आधार पर कोई अपवाद नहीं। 

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (POCSO) के अंतर्गत लैंगिक अपराधों के प्रकार: 

  • प्रवेशन लैंगिक हमला (धारा 3 और 4): 
    • किसी भी प्रकार का लैंगिक न जिसमें बालक सम्मिलित हो। 
    • दण्ड: न्यूनतम 7 वर्ष का कारावास, जो आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। 
    • इसमें लिंग, वस्तु या शरीर के अंगों द्वारा प्रवेशन सम्मिलित है। 
  • गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला (धारा 5 और 6): 
    • अधिक गंभीर रूप जिसमें विशिष्ट परिस्थितियाँ सम्मिलित हैं जैसे: 
    • पुलिस अधिकारियों, सशस्त्र बलों, लोक सेवकों द्वारा किया गया अपराध। 
    • शिक्षकों, अस्पताल कर्मचारियों, नातेदार द्वारा प्रतिबद्ध। 
    • हथियारों का प्रयोग, क्षति कारित करना, बार-बार अपराध करना। 
    • सामूहिक हमला, 12 वर्ष से कम आयु के बालक पर हमला। 
    • दण्ड: न्यूनतम 10 वर्ष का कारावास, जो आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। 
  • लैंगिक उत्पीड़न (धारा 7 और 8): 
    • बिना प्रवेशन के यौन स्पर्श।  
    • दण्ड: 3 से 5 वर्ष का कारावास। 
  • गुरुतर लैंगिक हमला (धारा 9 और 10): 
    • गुरुतर परिस्थितियों में लैंगिक उत्पीड़न (धारा 5 के समान)। 
    • दण्ड: 5 से 7 वर्ष का कारावास। 
  • लैंगिक उत्पीड़न (धारा 11 और 12): 
    • गैर-संपर्क लैंगिक अपराध जैसे अनुचित शब्द, इशारे, पीछा करना। 
    • दण्ड: 3 वर्ष तक का कारावास।  

प्रमुख विधिक सिद्धांत: 

दोष की उपधारणा (धारा 29): 

  • दोष की उपधारणा: जब अभियोजन पक्ष धारा 3, 5, 7 और 9 के अधीन अपराधों के लिये बुनियादी तथ्य साबित कर देता है, तो विशेष न्यायालय यह उपधारणा करता है कि अभियुक्त ने अपराध किया है। 
  • भार परिवर्तन: अभियुक्त को अपनी निर्दोषता साबित करनी होगी, न कि अभियोजन पक्ष को उचित संदेह से परे अपराध साबित करना होगा। 
  • आपराधिक विधि का अपवाद: यह विशेष रूप से लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (POCSO) के अधीन बाल लैंगिक शोषण मामलों के लिये मौलिक "दोषी साबित होने तक निर्दोष" सिद्धांत को उलट देता है। 

आपराधिक विधि में साधारण नियम (धारा 101, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872): 

  • सामान्य आपराधिक मामलों में, सबूत का भार अभियोजन पक्ष पर होता है, और अभियुक्त को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उसे उचित संदेह से परे दोषी साबित नहीं कर दिया जाता। 

धारा 31 - विशेष न्यायालयों में दण्ड प्रक्रिया संहिता का लागू होना: 

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के अंतर्गत विशेष न्यायालय नियमित आपराधिक न्यायालयों के समान प्रक्रियाओं का पालन करते हैं, जिसमें दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के प्रावधान लागू होते हैं, जब तक कि लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) द्वारा विशेष रूप से अधिरोहित न किया जाए। 

प्रभाव: 

  • न्यायालय की स्थिति: प्रक्रियात्मक उद्देश्यों के लियेविशेष न्यायालय कोसेशन न्यायालय के रूप में माना जाता है।  
  • अभियोजक का दर्जा: अभियोजन चलाने वाले व्यक्ति कोलोक अभियोजक माना जाता है।  
  • जमानत उपबंध: सभी दण्ड प्रक्रिया संहिता जमानत और बंधपत्र प्रावधान लागू होते हैं (नियमित, अग्रिम जमानत नियमों सहित) 
  • सामान्य प्रक्रियाएँ : साक्ष्य, साक्षी, अपील आदि के लिये सभी दण्ड प्रक्रिया संहिता प्रक्रियाएँ लागू होती हैं जब तक कि लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) विशेष रूप से अन्यथा उपबंधित न करे।  

यह सुनिश्चित करता है कि लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के मामले स्थापित आपराधिक प्रक्रिया का पालन करें, साथ ही अधिनियम के विशेष प्रावधानों (जैसे धारा 29 के भार प्रतिवर्तन) को जहाँ निर्दिष्ट किया गया हो, वहाँ प्राथमिकता दी जाए। यह लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के बाल-सुरक्षात्मक ढाँचे को बनाए रखते हुए प्रक्रियागत स्थिरता प्रदान करता है। 

निष्कर्ष 

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) बालकों को लैंगिक अपराधों से बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, किंतु इसके कठोर प्रावधान न्यायलयों के लिये जटिल परिस्थितियाँ उत्पन्न करते हैं। यद्यपि अवयस्कों की सुरक्षा के लिये विधि का उद्देश्य स्पष्ट है, किंतु न्यायाधीशों को इस सुरक्षा को व्यक्तिगत अधिकारों और परिस्थितियों के साथ सावधानीपूर्वक संतुलित करना होगा। सम्मति की आयु और ज़मानत प्रक्रियाओं पर चल रही बहस दर्शाती है कि बाल संरक्षण और विधिक निष्पक्षता के बीच सही संतुलन बनाना भारत की न्याय व्यवस्था के लिये एक चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ है।