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सांविधानिक विधि

विपक्ष ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने की मांग की

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 19-Aug-2025

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय 

भारत निर्वाचन आयोग (ECI), जिसे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने का सांविधानिक दायित्त्व सौंपा गया है, वर्तमान में एक सांविधानिक संकट के केंद्र में आ खड़ा हुआ है। चुनावी कपट तथा मतदाता सूची में हेरफेर के आरोपों के पश्चात् विपक्षी गठबंधन ने वर्तमान संसदीय सत्र के दौरान मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पद से हटाने के लिये प्रस्ताव पर विचार करने के अपने आशय की घोषणा की है। यह घटनाक्रम भारत की सर्वोच्च निर्वाचन संस्था की स्वतंत्रता तथा उसे राजनीतिक हस्तक्षेप से संरक्षित रखने हेतु प्रदत्त सांविधानिक सुरक्षा-उपबंधों पर गंभीर प्रश्नचिह्न उत्पन्न करता है 

क्या विपक्ष नकली मतदाता विवाद को लेकर मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने की ओर अग्रसर है 

  • यह विवाद उस समय उत्पन्न हुआ जब विपक्ष के नेता राहुल गाँधी ने आरोप लगाया कि 2024 के आम चुनाव के दौरान बैंगलोर सेंट्रल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र की महादेवपुरा विधानसभा खंड की मतदाता सूची में लगभग एक लाख "नकली मतदाता" पाए गए। गाँधी का कहना था कि इसी प्रकार के फर्जी पते और दोहरे नामांकनों का प्रयोग व्यवस्थित रूप से पूरे देश में चुनाव परिणामों को प्रभावित करने हेतु किया गया।  
  • मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन आरोपों को "निराधार और अमान्य" बताते हुए खारिज कर दिया और मांग की कि गाँधी अपने दावों की पुष्टि के लिये एक शपथपत्र पेश करें या राष्ट्र से सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगें। इस जवाब से असंतुष्ट विपक्ष ने चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया को "मतदाता धोखाधड़ी की सार्थक जांच के किसी भी प्रयत्न को भटकाने और विफल करने" का प्रयत्न बताया।  भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन  
  • इस बातचीत के बाद, भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (INDIA bloc) ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त के विरुद्ध निष्कासन कार्यवाही शुरू करने पर विचार करने की घोषणा की। जैसा कि कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने कहा, "हमने मुख्य निर्वाचन आयुक्त के विरुद्ध विधिक और सांविधानिक, दोनों तरह की कार्रवाई पर चर्चा की है। हम सही समय पर उचित कदम उठाएंगे।" 

भारत निर्वाचन आयोग कौन है? 

  • भारत निर्वाचन आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी। इसे संसद, राज्य विधानमंडलों तथा राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन के पर्यवेक्ष, निर्देशन एवं नियंत्रण का दायित्त्व सौंपा गया है। प्रारंभ में इसमें केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त सम्मिलित था, किंतु निर्वाचन आयुक्त (संशोधन) अधिनियम, 1989 के पश्चात् इसमें दो अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्त जोड़े गए 
  • आयोग एक स्वायत्त संस्था के रूप में कार्य करता है जिसके पास मतदाता सूची तैयार करने, राजनीतिक दलों को मान्यता देने, चुनाव चिह्न आवंटित करने, आदर्श आचार संहिता लागू करने और राजनीतिक दलों के विभाजन व विलय से संबंधित विवादों के निपटारे सहित व्यापक अधिकार हैं। राज्य स्तर पर, आयोग मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के माध्यम से कार्य करता है, जबकि जिला और निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर, यह जिला निर्वाचन अधिकारियों और रिटर्निंग अधिकारियों के माध्यम से कार्य करता है। 

भारत निर्वाचन आयोग का सांविधानिक ढाँचा क्या था? 

अनुच्छेद 324: आधारशिला 

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 देश के निर्वाचन तंत्र की आधारशिला के रूप में स्थापित है। यह अनुच्छेद निर्वाचन आयोग को निर्वाचन प्रक्रिया पर व्यापक अधिकार प्रदान करता है। यह अनुच्छेद स्थापित करता है कि "संसद और प्रत्येक राज्य के विधानमंडल के सभी निर्वाचन के लिये मतदाता सूची तैयार करने और उनके संचालन का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण" निर्वाचन आयोग में निहित होगा।  

नियुक्ति प्रक्रिया 

  • मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें एवं पदावधि) अधिनियम, 2023 के अंतर्गत, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक सदस्य वाली तीन सदस्यीय चयन समिति की सिफारिश पर की जाती है। नियुक्त व्यक्ति सचिव स्तर के पदों पर रहे हों और चुनाव प्रबंधन में ज्ञान एवं अनुभव के साथ-साथ निष्ठावान भी हों।   
  • कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, निर्धारित है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के समान दर्जा, वेतन और सुविधाएँ प्राप्त हैं, जो इस पद के सांविधानिक महत्त्व पर बल देता है। 

हटाने की प्रक्रिया  

  • अनुच्छेद 324(5) मुख्य निर्वाचन आयुक्त को महत्त्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान करता है, यह निर्धारित करते हुए कि उन्हें केवल "उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान तरीके से और समान आधारों पर ही हटाया जा सकता है।" यह उपबंध, जिसे 2023 के अधिनियम की धारा 11(2) द्वारा सुदृढ़ किया गया है, हटाने के लिये एक असाधारण रूप से उच्च सीमा निर्धारित करता है। 
  • अनुच्छेद 124(4) के अनुसार, जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने का नियमन करता है, मुख्य निर्वाचन आयुक्त को केवल "साबित कदाचार या असमर्थता" के आधार पर ही हटाया जा सकता है। कदाचार में भ्रष्ट आचरण, पद का दुरुपयोग, या पद के अनुरूप कार्य सम्मिलित हैं, जबकि असमर्थता का अर्थ आधिकारिक कर्त्तव्यों का पालन करने में असमर्थता है।   

हटाने की सांविधानिक प्रक्रिया  

  • प्रस्ताव की सूचना: संसद के दोनों सदनों के सदस्य, मुख्य निर्वाचन आयुक्त के विरुद्ध कदाचार अथवा असमर्थता के आरोप स्पष्ट रूप से अंकित करते हुए प्रस्ताव की सूचना प्रस्तुत करते हैं।  
  • स्वीकृति और जांच: स्वीकृति के पश्चात्, आरोपों की वैधता की जांच के लिये एक समिति के माध्यम से जांच की जाती है।  
  • संसदीय मतदान: प्रस्ताव को दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना चाहिये।  
  • राष्ट्रपति की कार्रवाई: सफल पारित होने पर, राष्ट्रपति हटाने का आदेश देते हैं, सांविधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद उनके पास कोई विवेकाधीन शक्ति नहीं होती।  

अन्य निर्वाचन आयुक्तों का संरक्षण 

  • अनुच्छेद 324(5) में आगे उपबंध है कि "किसी अन्य निर्वाचन आयुक्त या क्षेत्रीय आयुक्त को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश के बिना पद से नहीं हटाया जाएगा," जिससे मनमाने ढंग से हटाए जाने के विरुद्ध अतिरिक्त सुरक्षा सुनिश्चित होगी।  

अतिरिक्त सांविधानिक उपबंध 

  • अनुच्छेद 325: भेदभाव-निषेध का सिद्धांत  
    • यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी नागरिक को धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर निर्वाचक सूची से वंचित नहीं किया जाएगा। यह निर्वाचन समानता के मूलभूत सिद्धांत को स्थापित करता है।  
  • अनुच्छेद 326: सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार 
    • इस अनुच्छेद के अनुसार, लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर संपन्न होंगे। इस प्रकार यह प्रावधान निर्वाचन प्रक्रिया के लोकतंत्रीकरण को सुदृढ़ करता है। 
  • अनुच्छेद 327: संसदीय शक्तियां 
    • इस अनुच्छेद द्वारा संसद को विधायिकाओं के निर्वाचन से संबंधित विधियाँ बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है, जिससे निर्वाचन आचरण हेतु विधायी ढाँचा स्थापित होता है। 
  • अनुच्छेद 328: राज्य विधायी शक्तियां 
    • इस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य विधानमंडलों को अपनी-अपनी विधानसभाओं के निर्वाचन के संबंध में प्रावधान बनाने की शक्ति प्रदान की गई है, किंतु यह शक्ति संसद द्वारा निर्मित विधियों के अधीन है। 
  • अनुच्छेद 329: न्यायिक अहस्तक्षेप 
    • यह अनुच्छेद न्यायालयों को निर्वाचन प्रक्रिया आरंभ हो जाने के पश्चात् उसमें हस्तक्षेप करने से निषिद्ध करता है। तथापि, निर्वाचन संपन्न होने के उपरांत, चुनाव याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी जा सकती हैं। 

निष्कर्ष 

मुख्य निर्वाचन आयुक्त के विरुद्ध पद से हटाने की कार्यवाही पर विचार एक अत्यंत महत्वपूर्ण सांविधानिक क्षण का प्रतिनिधित्व करता है, जो निर्वाचन स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक जवाबदेही के मध्य संतुलन की परीक्षा लेता है। यद्यपि संविधान, कठोर हटाने की प्रक्रिया के माध्यम से मुख्य निर्वाचन आयुक्त को सुदृढ़ संरक्षण प्रदान करता है, तथापि वर्तमान विवाद यह रेखांकित करता है कि भारत की निर्वाचन संस्थाओं में जन-विश्वास बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। इस विवाद का समाधान राजनीतिक दलों और निर्वाचन आयोग के मध्य संबंधों को प्रभावित कर सकता है तथा भविष्य के निर्वाचन प्रशासन के लिये पूर्व निर्णय स्थापित कर सकता है।