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आपराधिक कानून

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग अधिसूचना पर हड़ताल

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 02-Sep-2025

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय 

दिल्ली के विचारण न्यायालय के अधिवक्ताओं ने पुलिस आयुक्त से इस आश्वासन प्राप्त होने के उपरांत अपनी छह-दिवसीय हड़ताल समाप्त की कि संघ के गृह मंत्री विवादित अधिसूचना से संबंधित बार प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श करेंगे। यह हड़ताल, जो 13 अगस्त को उपराज्यपाल श्री वी.के. सक्सेना द्वारा जारी उस अधिसूचना के पश्चात् प्रारंभ हुई थी जिसमें पुलिस कर्मियों को पुलिस थानों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति प्रदान की गई थी, विधिक समुदाय और विधि प्रवर्तन प्राधिकारियों के मध्य नवनिर्धारित डिजिटल न्यायिक प्रक्रियाओं के क्रियान्वयन को लेकर उत्पन्न गंभीर तनाव को रेखांकित करती है।  

विवादास्पद अधिसूचना और विधिक चिंताएँ क्या थीं? 

  • दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा 13 अगस्त को जारी अधिसूचना में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सभी पुलिस स्टेशनों को ऐसे स्थान के रूप में नामित किया गया है, जहाँ अधिकारी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से न्यायालयों के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत कर सकते हैं और परिसाक्ष्य दे सकते हैं।
    • यह स्थापित प्रथा में एक मौलिक परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है, जिसके अधीन न्यायालय की कार्यवाही के दौरान, विशेष रूप से साक्षियों की परीक्षा और साक्ष्य प्रस्तुतीकरण के दौरान पुलिस कर्मियों की भौतिक उपस्थिति अनिवार्य होती थी। 
  • विधिक समुदाय का विरोध न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता को लेकर गंभीर चिंताओं से उपजा था। अधिवक्ताओं का तर्क था कि पुलिस थानों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए अधिकारियों को पेश होने की अनुमति देने से परिसाक्ष्य की प्रामाणिकता से समझौता हो सकता है और हेरफेर के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं। 
  • वे विशेष रूप से इस बात से चिंतित थे कि पुलिस के कथनों में विरोधाभासों को आसानी से ठीक किया जा सकता है, जब अधिकारी न्यायालय की प्रत्यक्ष निगरानी के बजाय अपने संस्थागत परिसर से परिसाक्ष्य देंगे। 
  • दिल्ली के विचारण न्यायालयों के अधिवक्तओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी जिला न्यायालय बार एसोसिएशनों की समन्वय समिति ने सर्वसम्मति से काम से दूर रहने का निर्णय लिया, जिससे न्यायालय की कार्यवाही प्रभावी रूप से ठप्प हो गई। 
  • इस हड़ताल ने न्यायिक पारदर्शिता और प्रतिकूल प्रणाली के आधारभूत सिद्धांतों के लिये खतरा माने जाने वाले मुद्दे के विरुद्ध विधिक समुदाय के एकजुट रुख को प्रदर्शित किया। 

विधिक ढाँचा और कार्यान्वयन चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • यह अधिसूचना भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) से प्राधिकार प्राप्त करती है, जो सभी न्यायिक कार्यवाहियों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के उपयोग को सशक्त बनाती है। 
  • नव-प्रवर्तित न्याय श्रुति नियम, 2025, साक्ष्य रिकॉर्डिंग और साक्षियों की प्रतिपरीक्षा में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को लागू करने के लिये विस्तृत दिशानिर्देश प्रदान करते हैं, जो न्याय प्रणाली के व्यापक डिजिटलीकरण प्रयासों को दर्शाते हैं। 
  • यद्यपि, अधिवक्ताओं की चिंताओं ने न्यायिक कार्यवाहियों में तकनीक-संचालित समाधानों को लागू करने की व्यावहारिक चुनौतियों को उजागर किया। विधि व्यवसाय की चिंताएँ प्रतिपरीक्षा की पवित्रता बनाए रखने, साक्षियों की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने और साक्ष्य प्रस्तुतीकरण पर न्यायालय की प्रत्यक्ष पर्यवेक्षणात्मक भूमिका को बनाए रखने पर केंद्रित थीं। ये चिंताएँ न्याय प्रणाली में तकनीकी दक्षता और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के बीच संतुलन बनाने के बारे में व्यापक बहस को दर्शाती हैं। 
  • हड़ताल ने महत्त्वपूर्ण प्रक्रियागत परिवर्तनों को लागू करने में हितधारकों के परामर्श के महत्त्व को भी रेखांकित किया। मौखिक प्रतिबद्धताओं के बजाय लिखित आश्वासनों की विधिक समुदाय की मांग ने न्यायिक अखंडता पर अधिसूचना के संभावित प्रभाव के बारे में अपनी चिंताओं को दूर करते हुए औपचारिक जवाबदेही तंत्र पर उनके आग्रह को प्रदर्शित किया। 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 530 क्या है? 

  • बारे में: 
    • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 530 एक परिवर्तनकारी उपबंध है जो भारत में आपराधिक कार्यवाही के इलेक्ट्रॉनिक संचालन को सक्षम बनाता है। 
    • यह धारा न्यायालयों को डिजिटल माध्यम से विचारण, जांच और कार्यवाही करने की अनुमति देती है, जो पारंपरिक भौतिक न्यायालय की आवश्यकताओं से एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन है। 
  • विधिक ढाँचा और दायरा: 
    • उपबंध में कहा गया है कि सभी विचारणों और कार्यवाहियाँ इलेक्ट्रॉनिक रूप से आयोजित की जा सकती हैं, जिनमें समन जारी करना और तामील करना, साक्षियों की परीक्षा, साक्ष्य अभिलेखित करना और अपीलीय कार्यवाही सम्मिलित हैं। "किया जा सकता है" (may be held) जैसे अनुमेय शब्दों का प्रयोग न्यायालयों को यह विवेकाधिकार प्रदान करता है कि वे किन प्रकरणों में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से कार्यवाही संपन्न करना उपयुक्त समझते हैं, जिससे क्रियान्वयन में न्यायिक लचीलापन सुनिश्चित होता है।   
  • प्रमुख अनुप्रयोग 
    • इलेक्ट्रॉनिक कार्यवाही से मामले की प्रक्रिया तेज़ होती है, भौगोलिक बाधाएँ कम होती हैं और कमज़ोर साक्षियों की सुरक्षा होती है। डिजिटल समन की तामील विलंब को कम करती है, जबकि दूरस्थ साक्षी की परीक्षा सुरक्षा और पहुँच सुनिश्चित करती है। इलेक्ट्रॉनिक साधनों से साक्ष्य अभिलेखन करने से भविष्य में संदर्भ और अपीलीय समीक्षा के लिये सटीक और संरक्षित अभिलेख तैयार होते हैं। 
  • प्रौद्योगिकी और न्याय में संतुलन 
    • धारा 530 जहाँ कार्यकुशलता और सुगमता को बढ़ाती है, वहीं न्यायालयों को तकनीकी सुविधा और उचित प्रक्रिया अधिकारों के बीच संतुलन बनाना होगा। यह उपबंध न्यायिक विवेकाधिकार को सुरक्षित रखते हुए प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों को बनाए रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि इलेक्ट्रॉनिक कार्यवाही से विचारण की निष्पक्षता या विधिक प्रतिनिधित्व की गुणवत्ता से समझौता न करे।  
    • धारा 530 मौलिक न्यायिक सिद्धांतों की रक्षा करते हुए भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को डिजिटल परिवर्तन के लिये तैयार करती है। 

निष्कर्ष 

दिल्ली के अधिवक्ताओं की हड़ताल का समाधान भारत की न्यायिक प्रणाली को डिजिटल बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसने दिखाया कि जब डिजिटल साक्ष्य और ऑनलाइन साक्षियों की परीक्षा जैसे बड़े परिवर्तन लागू होते हैं, तो प्रभावित लोगों, जैसे अधिवक्ताओं, से परामर्श करना बेहद आवश्यक होता है। हड़ताल के कारण गृह मंत्री के साथ सार्थक बातचीत हुई, जिससे यह साबित हुआ कि संगठित विधिक पेशेवर सुधारों को प्रभावित कर सकते हैं। जैसे-जैसे न्यायालय आवश्यक तकनीक अपना रही हैं, यह घटना हमें याद दिलाती है कि न्याय प्रणाली में विश्वास बनाए रखने के लिये प्रगति में स्पष्ट नियम और सभी पक्षों की राय सम्मिलित होनी चाहिये