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सांविधानिक विधि

उत्तराखण्ड की कठोरतर धर्मांतरण विरोधी विधि

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 26-Aug-2025

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय 

उत्तराखण्ड ने अपने धर्म-परिवर्तन संबंधी विधियों को और कठोर बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है, जहाँ मंत्रिमंडल ने धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2025 को अनुमोदित किया है। यह संशोधन धार्मिक परिवर्तन के विनियमन के प्रति राज्य के दृष्टिकोण में एक मौलिक परिवर्तन को दर्शाता है, जिसमें अवैध धर्म-परिवर्तन की परिभाषा का विस्तार किया गया है तथा इसके लिये और अधिक कठोर दण्ड का प्रावधान किया गया है। यह क़दम अंतर-धार्मिक संबंधों (interfaith relationships) एवं जनसांख्यिकीय परिवर्तनों (demographic changes) को लेकर चल रही राजनीतिक बहसों के परिप्रेक्ष्य में उठाया गया है। शासन करने वाला दल यह दावा करता है कि यह विधेयक धार्मिक स्वतंत्रताओं की “सुरक्षा” हेतु लाया गया है, जबकि आलोचकों का मत है कि यह प्रावधान सांविधानिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है।  

उत्तराखण्ड विधेयक वास्तव में क्या कहता है? 

  • धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2025 में व्यापक परिवर्तन किये गए हैं, जो धार्मिक रूपांतरणों को विनियमित करने की राज्य की शक्ति का महत्त्वपूर्ण विस्तार करते हैं।  
  • इस विधेयक में "प्रलोभन" की परिभाषा अत्यन्त व्यापक रखते हुए इसमें किसी भी प्रकार का उपहार, पारिश्रमिक, सहज धन, भौतिक लाभ, रोजगार के अवसर, अथवा दिव्य अप्रसन्नता का भय दिखाकर धर्म-परिवर्तन हेतु प्रभावित करना सम्मिलित किया गया है।  
  • नए प्रावधान के अधीन, कपटपूर्वक से धर्मांतरण करने पर तीन से दस वर्ष तक के कारावास के साथ-साथ न्यूनतम ₹50,000 का जुर्माना होगा। 
  • दण्ड की कठोरता तब और बढ़ जाती है जब पीड़ित संवेदनशील वर्ग से संबंधित हों - जैसे कि अवयस्क, स्त्री, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य अथवा दिव्यांगजन। ऐसे मामलों में पाँच वर्ष से लेकर चौदह वर्ष तक के कारावास तथा न्यूनतम ₹1,00,000 के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। 
  • विधेयक में डिजिटल धर्मांतरण की नई अवधारणा प्रस्तुत की गई है, जिसके अधीन ई-मेल, त्वरित संदेश और सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म सहित इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से धर्मांतरण के लिये उकसाना या षड्यंत्र करना अवैध बना दिया गया है। 
    • यह प्रावधान ऑनलाइन प्रभाव और समुदाय निर्माण की आधुनिक वास्तविकता को स्वीकार करता है। 
  • सामूहिक धर्मांतरण, जिसमें दो या दो से अधिक लोग सम्मिलित होते हैं, के लिये अब सात से चौदह वर्ष तक के कारावास और न्यूनतम जुर्माना ₹1 लाख है। 
  • इस विधेयक में विदेशी फंडिंग संबंधी चिंताओं का उल्लेख किया गया है, जिसमें विदेशी या प्रतिबंधित फंडिंग स्रोतों से धर्मांतरण के लिये सात से चौदह वर्ष के कठोर कारावास और कम से कम 10 लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। 
  • शायद सबसे विवादास्पद बात यह है कि विधेयक में विवाह के आशय से अपना धर्म छिपाने को अपराध घोषित किया गया है, जिसके लिये तीन से दस वर्ष तक के कारावास और 3 लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान है। 
    • यह प्रावधान प्रत्यक्ष रूप से अंतरधार्मिक रिश्तों को लक्षित करता है, विशेष रूप से उन रिश्तों को जिन्हें विवादास्पद शब्द "लव जिहाद" के अंतर्गत चिह्नित किया जाता है।   
  • सबसे कठोर दण्ड - बीस वर्ष से आजीवन कारावास - धमकी, हमला, मानव दुर्व्यापार, या "छल-कपट" के रूप में विवाह से जुड़े धर्मांतरण के लिये आरक्षित है, जिसमें पीड़ितों की चिकित्सीय लागत और पुनर्वास खर्च की बात करने के लिये अतिरिक्त प्रावधान हैं।   

पूर्ववर्ती विधि कैसी थी? 

  • मूलउत्तराखण्ड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2018 नेराज्य में धार्मिक रूपांतरणों को विनियमित करने के लिये आधारभूत संरचना की स्थापना की। 
  • इस प्रारंभिक विधेयक के अंतर्गत बलपूर्वक अथवा कपटपूर्वक धर्मांतरण (जैसे – प्रपीड़न, उत्तेजना या प्रलोभन के माध्यम से) करने वाले किसी भी व्यक्ति को अधिकतम पाँच वर्ष के कारावास का प्रावधान किया गया था। 
  • 2022 के संशोधन ने इन प्रावधानों का पहला महत्त्वपूर्ण विस्तार किया, जिसमें सामान्य धर्मांतरण अपराधों के लिये न्यूनतम दण्ड को कम से कम दो वर्ष और अधिकतम अवधि को सात वर्ष तक बढ़ा दिया गया। 
    • अवयस्कों, महिलाओं या अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों के धर्मांतरण के लिये दण्ड दो से दस वर्ष तक थी और न्यूनतम जुर्माना 25,000 रुपए था। 
  • 2022 के संस्करण में दो या दो से अधिक लोगों पर लागू होने वाले "सामूहिक धर्मांतरण" की विवादास्पद अवधारणा को भी पेश किया गया, जिसके लिये न्यूनतम 50,000 रुपए के जुर्माने के साथ तीन से दस वर्ष तक के कारावास के दण्ड का प्रावधान है। 
    • इसमें परिवाद दर्ज कराने वालों की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें माता-पिता, भाई-बहन तथा रक्त, विवाह या दत्तक से संबंधित कोई भी व्यक्ति सम्मिलित्त किया गया है। 
  • 2022 के सबसे विवादास्पद प्रावधानों में से एक के अधीन धर्मांतरित व्यक्तियों को 60 दिनों के भीतर जिला मजिस्ट्रेट को विस्तृत घोषणापत्र प्रस्तुत करना आवश्यक है, जिसमें व्यक्तिगत जानकारी, धर्मांतरण विवरण और कारण सम्मिलित होंगे। 
    • इन घोषणाओं को आपत्तियों के लिये सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया गया, जिससे वैध धर्मांतरण के लिये नौकरशाही और संभावित रूप से डराने वाली प्रक्रिया का निर्माण हुआ। 
  • 2022 के संशोधन ने अधिनियम के अधीन सभी अपराधों कोसंज्ञेय (बिना वारण्ट के गिरफ्तारी की अनुमति) औरअजमानतीय बना दिया, जिससे विधि की प्रवर्तन क्षमता और अभियुक्त व्यक्तियों की भेद्यता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। 

2025 में प्रमुख परिवर्तन क्या हैं? 

  • 2025 में हुए परिवर्तनों से उत्तराखण्ड का धर्मांतरण विरोधी विधि पहले से कहीं अधिक कठोर हो गई है। राज्य ने 2024 में पारित उत्तर प्रदेश के इसी प्रकार की विधि से कई विचार उधार लिये हैं। सबसे बड़ा परिवर्तन यह है कि अब सभी प्रकार के धर्मांतरण अपराधों के लिये दण्ड कहीं अधिक कठोर कर दिया गया हैं। 
  • अब इस विधि के दायरे में ऑनलाइन गतिविधियाँ भी आएँगी। यदि कोई व्हाट्सएप, फेसबुक, -मेल या किसी अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म के ज़रिए लोगों को धर्म परिवर्तन के लिये मनाने की कोशिश करता है, तो उसे गिरफ़्तार किया जा सकता है। 
    • यद्यपि यह आधुनिक समय के अनुरूप है, किंतु इसका अर्थ यह भी है कि सरकार लोगों की ऑनलाइन बातचीत पर अधिक बारीकी से नजर रख सकेगी। 
  • नए विधि के अधीन किसी एक धर्म की तारीफ़ करते हुए दूसरे धर्म के बारे में बुरा बोलना गैरकानूनी है। इसके अलावा, किसी भी धर्म के रीति-रिवाज़ों या रीति-रिवाजों को दूसरे धर्मों की तुलना में कमतर दिखाने पर भी प्रतिबंध है। 
    • यद्यपि, ये नियम काफी अस्पष्ट हैं और इनका दुरुपयोग लोगों को धर्म के बारे में ईमानदारी से चर्चा करने से रोकने के लिये किया जा सकता है। 
  • एक बड़ा परिवर्तन यह है कि जिला मजिस्ट्रेट अब किसी की संपत्ति जब्त कर सकते हैं यदि उन्हें लगता है कि यह अवैध धर्मांतरण गतिविधियों के माध्यम से अर्जित की गई है। 
    • अभियुक्त व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि उसकी संपत्ति वैध है, जो कि आपराधिक मामलों में सामान्यत: काम करने के तरीके के विपरीत है, जहाँ सरकार को किसी को दोषी साबित करना होता है। 
  • सकारात्मक बात यह है कि अब विधि पीड़ितों को बेहतर सहायता प्रदान करती है। उन्हें नि:शुल्क अधिवक्ता, आवास, चिकित्सीय सेवा मिलती है और उनके नाम गुप्त रखे जाते हैं। एक विशेष सरकारी कार्यक्रम यह सुनिश्चित करता है कि पीड़ितों को तुरंत सहायता मिले।  
  • ज़मानत पाना अब बहुत मुश्किल हो गया है। यदि कोई ज़मानत चाहता भी है, तो उसे रिहा करने से पहले न्यायालय को यह विश्वास दिलाना आवश्यक है कि वह व्यक्ति निर्दोष है और दोबारा ऐसा अपराध नहीं करेगा। 

निष्कर्ष 

उत्तराखण्डधार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2025, धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिये भारत के सबसे व्यापक और कठोर उपायों में से एक है। जहाँ इसके समर्थकों का तर्क है कि यह कमजोर आबादी को शोषण से बचाता है और धार्मिक सद्भाव को बनाए रखता है, वहीं आलोचकों का तर्क है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता और पसंद के सांविधानिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है। इस विधेयक की व्यापक परिभाषाओं, कठोर दण्डों और प्रक्रियात्मक नवाचारों को न्यायिक जांच और सांविधानिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। उत्तराखण्ड इन परिवर्तनों को लागू करने की तैयारी कर रहा है, वहीं भारत के जटिल धार्मिक और राजनीतिक परिदृश्य में व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा और सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के बीच संतुलन एक महत्त्वपूर्ण विचार बना हुआ है।