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सांविधानिक विधि
ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम 2025 की वैधता
« »19-Sep-2025
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
परिचय
उच्चतम न्यायालय ने ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को एक साथ मिलाकर दिल्ली, कर्नाटक और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों के मामलों को अपने हाथ में ले लिया है। यह ऐतिहासिक विधायन सभी "ऑनलाइन मनी गेम्स" पर प्रतिबंध लगाता है, चाहे उनमें कौशल या संयोग सम्मिलित हो, जिससे मौलिक अधिकारों और विधायी शक्तियों पर एक सांविधानिक युद्ध का मैदान बन गया है। गेमिंग कंपनियाँ अब भारत के उच्चतम न्यायालय में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
मामले की पृष्ठभूमि और न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र के एकीकरण के अनुरोध को स्वीकार कर लिया और कहा कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में एक जैसे विवाद्यक उठाए जा रहे हैं। केंद्र ने तर्क दिया कि विभिन्न न्यायालयों के परस्पर विरोधी निर्णय विधिक भ्रम उत्पन्न करेंगे।
- ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम 2025 को संसद द्वारा पारित किया गया था जिससे सरकार द्वारा ऑनलाइन गेमिंग से बढ़ते सामाजिक नुकसान, जैसे लत, वित्तीय बर्बादी, धन शोधन और आतंकवाद के वित्तपोषण, को संबोधित किया जा सके। यह विधि ई-स्पोर्ट्स और सामाजिक खेलों को बढ़ावा देता है, किंतु "ऑनलाइन मनी गेम्स" पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है - जिसे दांव पर लगाए गए किसी भी ऑनलाइन गेम के रूप में परिभाषित किया गया है, चाहे वह कौशल, संयोग या दोनों पर आधारित हो।
- गेमिंग प्लेटफ़ॉर्म हेड डिजिटल वर्क्स, बघीरा कैरम और क्लबबूम 11 स्पोर्ट्स एंड एंटरटेनमेंट मुख्य याचिकाकर्त्ता हैं। ये कंपनियाँ क्रमशः ऑनलाइन रम्मी, पोकर और कैरम प्लेटफ़ॉर्म संचालित करती हैं, और उनका तर्क है कि यह अधिनियम रातोंरात उनकी वैध व्यावसायिक गतिविधियों को अनुचित रूप से आपराधिक बना देता है।
याचिका के अधीन किन विधिक प्रावधानों को चुनौती दी गई है?
- अनुच्छेद 19 का उल्लंघन :
- याचिकाकर्त्ताओं का तर्क है कि यह अधिनियम अनुच्छेद 19(1)(छ) का उल्लंघन करता है, जो किसी भी वृत्ति या कोई उपजीविका या कारबार करने के मौलिक अधिकार को प्रत्याभूत करता है।
- उनका तर्क है कि यद्यपि संयोग के खेल को सांविधानिक संरक्षण से बाहर रखा जा सकता है, लेकिन कौशल के खेल वैध कारबार की गतिविधियाँ बनी रहेंगी, भले ही वे दांव पर लगे हों।
- धारा 2(1)(छ) के अधीन अधिनियम की परिभाषा मौद्रिक दांव से जुड़े सभी खेलों पर प्रतिबंध लगाकर इस महत्त्वपूर्ण अंतर को समाप्त कर देती है।
- अनुच्छेद 14 का उल्लंघन :
- मनमाने वर्गीकरण के ज़रिए कथित तौर पर समान सुरक्षा के प्रावधान का उल्लंघन किया गया है। याचिकाकर्त्ताओं का तर्क है कि कौशल के खेलों को संयोग के खेलों के साथ मिला देने से एक अनुचित भ्रम उत्पन्न होता है।
- विधि कौशल-आधारित रम्मी को शुद्ध जुए के समान मानता है, तथा उन गतिविधियों के बीच मूलभूत अंतर को पहचानने में असफल रहता है, जहाँ परिणाम खिलाड़ी की विशेषज्ञता बनाम केवल संयोग पर निर्भर होते हैं।
- अनुच्छेद 21 का उल्लंघन :
- प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार, जिसमें गरिमा और निर्णयात्मक स्वायत्तता भी सम्मिलित है, का उल्लंघन होने का दावा किया गया है।
- याचिकाकर्त्ताओं ने इस अधिनियम को पितृसत्तात्मक विधि बताया है जो धन और अवकाश के समय को कैसे खर्च करना है, यह तय करने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को छीन लेता है। इसकी अस्पष्ट भाषा विधिक अनिश्चितता उत्पन्न करती है और उचित प्रक्रिया के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है।
- विधायी क्षमता :
- संविधान की सातवीं अनुसूची "सट्टेबाजी और जुआ" को राज्य सूची की प्रविष्टि 34 के अंतर्गत रखती है, जिससे यह राज्य का विषय बन जाता है। याचिकाकर्त्ताओं का तर्क है कि संसद के पास इस विधि को पारित करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह राज्य विधानमंडल के क्षेत्राधिकार में दखल देता है। वे केंद्र द्वारा संघ सूची की प्रविष्टि 31 (दूरसंचार) और प्रविष्टि 52 (जनहित उद्योग) पर निर्भरता को अस्वीकार करते हैं।
कौन से मामले संदर्भित किये जा रहे हैं?
- ऐतिहासिक एम.डी. चमारबागवाला बनाम भारत संघ (1957) मामले ने स्थापित किया कि जुए को सांविधानिक संरक्षण से बाहर रखा जा सकता है, किंतु कौशल के खेल वैध कारबार की गतिविधियाँ बनी रहती हैं, जिन्हें विनियमित किया जा सकता है, लेकिन पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।
- ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2022) में कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय का याचिकाकर्त्ताओं द्वारा खूब हवाला दिया गया है। इस मामले ने इसी तरह के राज्य विधान को खारिज कर दिया और कहा कि रम्मी, पोकर और फैंटेसी स्पोर्ट्स जैसे कौशल-आधारित खेल जुए से मौलिक रूप से भिन्न हैं और ऑनलाइन दांव पर खेले जाने पर भी अनुच्छेद 19(1)(छ) के अधीन संरक्षित रहते हैं। न्यायालय ने कहा कि खेल खेलना अभिव्यक्ति का एक रूप हो सकता है।
ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम 2025 की वैधता क्या है?
- इस अधिनियम को अनुच्छेद 19(1)(छ) के अधीन गंभीर सांविधानिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि यह कौशल के खेल और भाग्य के खेल के बीच स्थापित विधिक अंतर को समाप्त कर देता है, जिससे वैध कारबार की गतिविधियों को संभवतः आपराधिक बना दिया जाता है, जिन्हें न्यायालयों ने पहले संरक्षित किया है।
- संसद की विधायी क्षमता संदिग्ध है, क्योंकि "सट्टेबाजी और जुआ" राज्य सूची की प्रविष्टि 34 के अंतर्गत आता है, जिससे यह केंद्रीय विधान का विषय न होकर मुख्य रूप से राज्य का विषय बन जाता है।
- पूर्ण प्रतिबंध का दृष्टिकोण अनुच्छेद 21 के अधीन आनुपातिकता सिद्धांत का उल्लंघन करता है, क्योंकि इसमें हानिकारक जुआ और कौशल-आधारित गेमिंग के बीच अंतर किये बिना गंभीर आपराधिक दण्ड अधिरोपित किया जाता है, जिसके लिये केवल विनियमन की आवश्यकता हो सकती है, निषेध की नहीं।
- अनुच्छेद 14 के समान संरक्षण खण्ड का मनमाने वर्गीकरण के माध्यम से उल्लंघन किया गया है, जो मौलिक रूप से अलग-अलग गतिविधियों - कौशल-आधारित खेल और विशुद्ध रूप से संयोग-आधारित जुआ - को विधि के तहत समान मानता है।
- यह अधिनियम आर.एम.डी. चमारबागवाला बनाम भारत संघ (1957) के उच्चतम न्यायालय के स्थापित पूर्व निर्णय का खंडन करता है, जिसमें कहा गया था कि जुए पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, लेकिन कौशल के खेल सांविधानिक रूप से संरक्षित कारबार की गतिविधियाँ बने रहते है, भले ही वे दांव पर ही क्यों न लगाए गए हों।
निष्कर्ष
उच्चतम न्यायालय को अब चार महत्त्वपूर्ण विवाद्यकों का समाधान करना होगा: अधिनियम पारित करने के लिये संसद की विधायी क्षमता, क्या कौशल-अवसर के भेद को समाप्त करना अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन करता है, क्या पूर्ण प्रतिबंध अनुच्छेद 21 के अधीन आनुपातिकता मानकों को पूरा करता है, और क्या ऑनलाइन मनी गेम्स की परिभाषा सांविधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती है। इसका परिणाम भारत के ऑनलाइन गेमिंग उद्योग का भविष्य तय करेगा, जिससे हज़ारों नौकरियाँ और अरबों का निवेश प्रभावित होगा और साथ ही डिजिटल अर्थव्यवस्था के नियमन के लिये महत्त्वपूर्ण पूर्व निर्णय स्थापित होंगे।