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सांविधानिक विधि
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025: चयनात्मक स्थगन और सांविधानिक संतुलन
« »15-Sep-2025
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
परिचय
उच्चतम न्यायालय ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की सांविधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर अपना व्यापक निर्णय सुनाया। भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने अपने 128 पृष्ठों के निर्णय में सीमित अंतरिम अनुतोष प्रदान करते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया, साथ ही यह भी कहा कि चुनौती दिये गए कई प्रावधान प्रथम दृष्टया मनमाने नहीं लगते। न्यायालय का चयनात्मक स्थगन धार्मिक अधिकारों और सांविधानिक शासन सिद्धांतों के बीच संतुलन बनाने में न्यायिक संयम को दर्शाता है।
पृष्ठभूमि और न्यायालय का दृष्टिकोण क्या था?
- याचिकाओं में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की सांविधानिक वैधता पर अंतिम निर्णय होने तक उसके क्रियान्वयन पर पूर्ण रोक लगाने की मांग की गई थी। पूर्ण रोक लगाने के बजाय, उच्चतम न्यायालय ने प्रावधान-दर-प्रावधान विश्लेषण किया और केवल उन्हीं धाराओं पर रोक लगाई जो तत्काल सांविधानिक चिंताएँ उत्पन्न करती थीं, जबकि अन्य धाराओं को व्यावहारिक विचारों और विधायी तर्कों के आधार पर लागू रहने दिया।
मुख्य प्रावधान: उच्चतम न्यायालय ने क्या रोक लगाई और क्या बरकरार रखा
1. वक्फ निर्माण के लिये व्यावहारिक मुस्लिम आवश्यकता - सीमित रोक:
- न्यायालय का निर्णय: नियम बनाये जाने तक धारा 3(द) पर रोक रहेगी।
- न्यायालय ने वक्फ बोर्ड के सदस्यों के लिये कम से कम पाँच वर्षों तक इस्लाम का पालन करने का प्रमाण प्रस्तुत करने की अनिवार्यता के पीछे के विधायी आशय को स्वीकार किया, और विधिक दायित्त्वों से बचने के लिये कपटपूर्ण धर्मांतरण की संभावना को भी स्वीकार किया। यद्यपि, सत्यापन के लिये प्रक्रियात्मक तंत्र के अभाव के कारण इस प्रावधान पर रोक लगा दी गई।
- न्यायालय ने कहा: "मुस्लिम समुदाय से न जुड़े किसी व्यक्ति द्वारा केवल वक्फ अधिनियम के संरक्षण का लाभ लेने, लेनदारों को हराने और एक विश्वसनीय समर्पण की आड़ में विधि से बचने के लिये इस्लाम धर्म अपनाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।"
- तर्क: यद्यपि मूलभूत आवश्यकता को उचित माना गया, किंतु कार्यान्वयन ढाँचे की कमी के कारण अंतरिम निलंबन आवश्यक हो गया।
2. 'उपयोगकर्त्ता द्वारा वक्फ' अवधारणा का विलोपन - कोई रोक नहीं:
- न्यायालय का निर्णय: नाम हटाने को सांविधानिक रूप से वैध माना गया।
- न्यायालय ने सरकार के इस तर्क को स्वीकार कर लिया कि सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण रोकने के लिये "उपयोगकर्त्ता द्वारा वक्फ" हटाना आवश्यक था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का यह तर्क कि यह विलोपन भविष्य में लागू होता है, न्यायालय के तर्क में महत्त्वपूर्ण था।
- सांविधानिक संतुलन: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विद्यमान वक्फ संपत्तियां, जिनमें उपयोगकर्त्ता द्वारा वक्फ के माध्यम से बनाई गई संपत्तियां भी सम्मिलित हैं, वक्फ अधिकरणों या उच्च न्यायालयों द्वारा न्यायिक निर्धारण होने तक संरक्षित रहेंगी।
3. स्वतःमान्यता समाप्ति प्रावधान - स्थगित:
- न्यायालय का निर्णय: धारा 3ग पर पूर्णतः रोक लगा दी गई।
- यह प्रावधान, जो सरकारी अधिकारियों को जांच लंबित रहने तक विद्यमान वक्फों की मान्यता रद्द करने की अनुमति देता था, शक्तियों के पृथक्करण सिद्धांत का उल्लंघन करने के कारण रद्द कर दिया गया। न्यायालय ने कहा कि संपत्ति के स्वामित्व का निर्धारण न्यायिक या अर्ध-न्यायिक क्षेत्राधिकार में ही रहना चाहिये।
- सांविधानिक सिद्धांत: "किसी राजस्व अधिकारी को सौंपी गई संपत्ति के स्वामित्व के निर्धारण से संबंधित प्रश्न हमारे संविधान में निहित शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के अनुरूप नहीं होगा।"
4. ए.एस.आई. स्मारक प्रतिबंध - कोई रोक नहीं:
- न्यायालय का निर्णय: धारा 3घ को बरकरार रखा गया।
- प्राचीन स्मारकों के रूप में अधिसूचित संपत्तियों पर वक्फ को शून्य करने वाले प्रावधान को बरकरार रखा गया, तथा न्यायालय ने पाया कि इसमें धार्मिक अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं है, क्योंकि प्रचलित प्रथाएँ विद्यमान पुरातात्विक विधायन के अधीन जारी रह सकती हैं।
5. जनजातीय भूमि संरक्षण - कोई रोक नहीं:
- न्यायालय का निर्णय: धारा 3ङ को बरकरार रखा गया।
- जनजातीय भूमि को वक्फ घोषित करने पर रोक को हाशिये पर स्थित समुदायों की सुरक्षा के रूप में न्यायसंगत माना गया। न्यायालय ने अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा हेतु सांविधानिक अनिवार्यता पर बल दिया।
- सामाजिक न्याय पर विचार: इस प्रावधान को मनमाने प्रतिबंध के बजाय कमजोर आबादी की सुरक्षा के साथ स्पष्ट संबंध के रूप में देखा गया।
प्रशासनिक और संरचनात्मक परिवर्तन क्या हैं?
वक्फ निकायों में गैर-मुस्लिम सहभागिता:
- न्यायालय का स्पष्टीकरण: गैर-मुस्लिम सदस्यता की सीमा तय की गई।
- गैर-मुस्लिम सहभागिता की अनुमति देने वाले प्रावधानों पर रोक न लगाते हुए, न्यायालय ने सरकारी उपक्रमों के आधार पर, केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या अधिकतम चार और राज्य बोर्डों में तीन तक सीमित करने के विशिष्ट निदेश जारी किये।
- संतुलित दृष्टिकोण: इस निर्णय ने वक्फ निकायों में मुस्लिम बहुमत सुनिश्चित किया, जबकि सीमित समावेशी सहभागिता की अनुमति दी।
रजिस्ट्रीकरण आवश्यकताएँ और प्रक्रियागत परिवर्तन क्या हैं?
बरकरार प्रावधान:
- धारा 36 के अंतर्गत सभी वक्फों का रजिस्ट्रीकरण अनिवार्य।
- वक्फ विवादों पर सीमा अधिनियम, 1963 का अनुप्रयोग।
- गैर-मुस्लिम वक्फ निर्माण की अनुमति देने वाले प्रावधानों को हटाया जाना।
- सी.ई.ओ. के रूप में पदेन सरकारी नियुक्ति (मुस्लिम उम्मीदवारों को प्राथमिकता के साथ)।
वक्फ प्रशासन के लिये इसके क्या निहितार्थ हैं?
तत्काल व्यावहारिक प्रभाव:
संरक्षित तत्त्व:
- विद्यमान वक्फ संपत्तियां न्यायिक निर्णय तक सुरक्षित रहती हैं।
- रजिस्ट्रीकरण प्रक्रिया जारी रह सकती है।
- ए.एस.आई. स्मारक प्रतिबंध तत्काल प्रभाव से लागू होंगे।
- जनजातीय भूमि संरक्षण क्रियाशील।
निलंबित तत्त्व:
- नियम निर्माण लंबित रहने तक मुस्लिम सत्यापन का अभ्यास करना।
- प्रशासनिक मान्यता रद्द करने की शक्तियों पर रोक।
दीर्घकालिक संरचनात्मक परिवर्तन
- यह निर्णय मूल धार्मिक स्वायत्तता को संरक्षित रखते हुए आधुनिक वक्फ प्रशासन के लिये रूपरेखा निर्धारित करता है।
- संपत्ति विवादों के न्यायिक निर्धारण पर बल देने से विधि का शासन मजबूत होता है, जबकि रजिस्ट्रीकरण आवश्यकताएँ पारदर्शिता बढ़ाती हैं।
निष्कर्ष
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के प्रति उच्चतम न्यायालय का सूक्ष्म दृष्टिकोण परिष्कृत सांविधानिक न्यायनिर्णय को दर्शाता है जो धार्मिक स्वायत्तता और सांविधानिक शासन सिद्धांतों, दोनों का सम्मान करता है। समस्याग्रस्त प्रावधानों पर रोक लगाते हुए उचित सुधारों को बरकरार रखते हुए, न्यायालय ने मौलिक अधिकारों से समझौता किये बिना वक्फ प्रशासन के आधुनिकीकरण हेतु एक रूपरेखा प्रदान की है। संपत्ति विवादों के न्यायिक निर्धारण और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों पर निर्णय का बल विधि के शासन के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जबकि अतिक्रमण-विरोधी उपायों की स्वीकृति वैध राज्य हितों की मान्यता को दर्शाती है।