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सिविल कानून

संविदाओं का पालन

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 13-Nov-2023

परिचय  

'पालन' शब्द का शाब्दिक अर्थ किसी कार्य या वचन का पालन है। इसके विधिक अर्थ में "पालन" का अर्थ उन प्रतिबध्ताओं को पूरा करना है जो उनके द्वारा किये गए संविदा के आधार पर दूसरे पक्ष के प्रति हैं।

  • उदाहरण के लिये, 'A' और 'B' एक संविदा करते हैं, संविदा की शर्तों में कहा गया है कि A को पाँच सौ रुपए के भुगतान पर B को एक किताब देनी होगी। यहाँ, B, A को पाँच सौ रुपए का भुगतान करता है और संविदा में निर्धारित शर्त के अनुसार, A उसे किताब देता है

परिभाषा  

  • भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 37 के अनुसार “संविदा के पक्षकारों को या तो अपने -अपने वचन का पालन करना होगा या करने की प्रस्थापना करनी होगी जब तक कि ऐसे पालन से इस अधिनियम के या किसी अन्य विधि के उपबन्धों के अधीन अभिमुक्ति या माफी न दे दी गई हो
  • वचन, उनके पालन के पूर्व वचनदाताओं की मृत्यु हो जाने की दशा में, ऐसे वचनदाताओं के प्रतिनिधियों को आबद्ध करते हैं, जब तक कि तत्प्रतिकूल कारण संविदा से प्रतीत न हो।
  • इस प्रकार, संविदा के प्रत्येक पक्षकारों का प्राथमिक कर्तव्य है कि वह अपना वचन पूरा करे या पूरा करने का पालन करे।

पालन के प्रकार

  • वास्तविक पालन
    • जब एक वचनदाता ने वचनगृहीता को पालन का प्रस्ताव किया है और प्रस्ताव को वचनगृहीता द्वारा स्वीकार कर लिया गया है, तो इसे वास्तविक वचनदाता कहा जाता है। संविदात्मक दायित्व वास्तव में निभाए जाते हैं जिससे संविदा के तहत एक पक्ष का दायित्व समाप्त हो जाता है।
  • पालन का प्रयास या पालन की निविदा
    • जहाँ वचनदाता ने वचनगृहीता को पालन का प्रस्ताव किया है और प्रस्ताव वचनगृहीता द्वारा स्वीकार नहीं किया गया है, इसे पालन का प्रयास कहा जाता है [धारा 38]। वचनदाता द्वारा पालन की पेशकश को स्वीकार करने से इनकार करने पर पक्षकार अपने दायित्व और पालन से मुक्त हो जाता है।

निविदाओं के प्रकार

  • वस्तुओं और सेवाओं की निविदा: वस्तुओं और सेवाओं को वितरित करने के संविदा का निर्वहन तब पूरा हो जाता है जब वस्तु संविदा की शर्तों के अनुसार स्वीकृति के लिये प्रस्तुत की जाती है। यदि इस प्रकार प्रस्तुत की गई वस्तुएँ और सेवाएँ स्वीकार नहीं की जाती हैं, तो उन्हें प्रस्तावकर्ता द्वारा वापस ले लिया जाता है और वह अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।
  • मुद्रा की निविदा: जहाँ देनदार मुद्रा की निविदा करता है, जिसे ऋणदाता को भुगतान करना होता है, लेकिन ऋणदाता मुद्रा स्वीकार करने से इंकार कर देता है। यहाँ देनदार को मुद्राएँ वापस करने के दायित्व से मुक्त नहीं किया गया है। अतः मुद्रा की निविदा से कभी भी ऋण की मुक्ति नहीं हो सकती।

पालन/निविदा की प्रस्तावना

  • पालन की वैध प्रस्तावना की अनिवार्यताएँ भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 38 के तहत निर्धारित हैं:
    • प्रस्तावना अशर्त होना चाहिये।
    • उसे उचित समय और स्थान पर ऐसी परिस्थितियों के अधीन करना होगा कि उस व्यक्ति को, जिससे वह की जाए, यह अभिनिश्चित करने का युक्तियुक्त अवसर मिल जाए कि वह व्यक्ति, जिसके द्वारा वह की गई है, वह समस्त, जिसे करने को वह अपने वचन द्वारा आबद्ध है, वहीं और उसी समय करने के लिये योग्य और रजामन्द है।
    • यदि वह प्रस्थापना वचनग्रहीता को कोई चीज परिदत्त करने के लिये हो तो वचनग्रहीता को यह देखने का युक्तियुक्त अवसर मिलना ही चाहिये कि प्रस्थापित चीज वही चीज है जिसे परिदत्त करने के लिये वचनदाता अपने वचन द्वारा आबद्ध है।।

संविदा के पालन के लिये समय और स्थान के संबंध में नियम Rules Regard

  • वचन पालन के लिये समय जहाँ कि पालन के लिये आवेदन न किया जाना हो और कोई समय विनिर्दिष्ट न हो–: (भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 46): 
    • जहाँ कि संविदा के अनुसार वचनदाता को अपने वचन का पालन वचनग्रहीता द्वारा आवेदन किये जाने के बिना करना हो और पालन के लिये कोई समय विनिर्दिष्ट न हो वहाँ वचनबन्ध का पालन युक्तियुक्त समय के भीतर करना होगा।
  • वचन पालन के लिये समय और स्थान जहाँ कि पालन के लिये समय विनिर्दिष्ट हो और आवेदन न किया जाना हो (धारा 47):
    • जब किसी वचन का पालन अमुक दिन किया जाना हो और वचनदाता ने वचनग्रहीता द्वारा आवेदन कियेजाने के बिना उसका पालन करने का वचन दिया हो तब कारबार के प्रायिक घण्टों के दौरान किसी भी समय ऐसे दिन और स्थान पर, जिस पर उस वचन का पालन किया जाना चाहिये, वचनदाता उसका पालन कर सकेगा।
  • अमुक दिन पर पालन के लिये आवेदन उचित समय और स्थान पर किया जाएगा (धारा 48):
    • जब किसी वचन का पालन अमुक दिन किया जाना हो और वचनदाता ने यह भार अपने ऊपर न ले लिया हो कि वह वचनग्रहीता के आवेदन के बिना उसका पालन करेगा तब वचनग्रहीता का यह कर्तव्य है कि पालन के लिये आवेदन उचित स्थान पर और कारबार के प्रायिक घण्टों के भीतर करे।
  • वचन के पालन के लिये स्थान, जहाँ कि पालन के लिये, आवेदन न किया जाना हो और कोई स्थान नियत न हो (धारा  49):
    • जबकि किसी वचन का पालन वचनग्रहीता के आवेदन के बिना किया जाना हो और उसके पालन के लिये कोई स्थान नियत न हो तब वचनदाता का कर्तव्य है कि वह वचन के पालन के लिये युक्तियुक्त स्थान नियत करने के लिये वचनग्रहीता से आवेदन करे और ऐसे स्थान में उसका पालन करे। |
  • वचनग्रहीता द्वारा विहित या मंजूर किए गए प्रकार से या समय पर पालन (धारा 50):
    • अधिनियम की धारा 50 के अनुसार किसी भी वचन का पालन उस प्रकार से और उस समय पर किया जा सकेगा, जिसे वचनग्रहीता विहित या मंजूर करे

संविदाओं का पालन किसके द्वारा किया जाना चाहिये?

  • संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 40 में संविदाओं के पालन के संबंध में प्रावधान शामिल हैं। यदि मामले की प्रकृति से यह प्रतीत होता है कि किसी संविदा के पक्षकारों का यह आशय था कि उसमें अन्तर्विष्ट किसी वचन का पालन स्वयं वचनदाता द्वारा किया जाना चाहिये तो ऐसे वचन का पालन वचनदाता को ही करना होगा
  • अन्य दशाओं में वचनदाता या उसके प्रतिनिधि उसका पालन करने के लिये किसी सक्षम व्यक्ति को नियोजित कर सकेंगे।

वचन का पूर्णतः पालन करने से पक्षकार के इंकार का प्रभाव  

जब किसी संविदा के एक पक्षकार ने अपने वचन को पूर्णतः पालन करने से इंकार कर दिया हो या ऐसा पालन करने के लिये अपने को निर्योग्य बना लिया हो तब वचनग्रहीता संविदा का अन्त कर सकेगा, यदि उसने उसको चालू रखने की शब्दों द्वारा या आचरण द्वारा अपनी उपमति संज्ञापित न कर दी हो।

  • वचनदाता- अजनबी संविदा के पालन की मांग नहीं कर सकता
  • वैध प्रतिनिधि- वचनदाता की मृत्यु के मामले में, वैध प्रतिनिधि पालन की मांग कर सकता है जब तक कि संविदा से कोई विपरीत इरादा प्रकट न हो, या संविदा व्यक्तिगत प्रकृति का न हो।
  • अन्य व्यक्ति – कोई अन्य व्यक्ति भी कुछ असाधारण मामलों में संविदा के पालन की मांग कर सकता है, जैसे ट्रस्ट के मामले में लाभार्थी, वह व्यक्ति जिसके लाभ के लिये पारिवारिक व्यवस्था में प्रावधान किया गया है। यह इस सिद्धांत का अपवाद है कि किसी संविदा से अनजान व्यक्ति किसी संविदा को लागू नहीं कर सकता है।
  • संयुक्त वचनदाता- कई वचनों के मामले में, जब तक कि संविदा से कोई विपरीत इरादा प्रकट न हो, निम्नलिखित व्यक्तियों को वचन पूरा करना होगा-
    • यदि सभी वचनदाता जीवित हैं - तो सभी वचनदाता संयुक्त रूप से पालन की मांग कर सकते हैं।
    • किसी भी संयुक्त वचनदाता की मृत्यु की स्थिति में - मृत वचनगृहीता के प्रतिनिधि जीवित वचनदाता के साथ संयुक्त रूप से वचन के निष्पादन की मांग कर सकते हैं।
    • सभी संयुक्त वचनदाताओं की मृत्यु की स्थिति में- उन सभी के प्रतिनिधि संयुक्त रूप से वचन पालन की मांग कर सकते हैं।

संबंधित वाद

  • बसंती बाई बनाम श्री प्रफुल्ल कुमार राउतराय (2006):
    • उड़ीसा उच्च न्यायालय ने माना कि यदि कोई वैध प्रतिनिधि नहीं है, तो उस स्थिति में, उसकी ओर से वचन पूरा करने का दायित्व उस व्यक्ति पर आ जाएगा जो उस मृत पक्ष के माध्यम से संविदा के विषय मामलों पर अधिकार प्राप्त करता है।
  • एम/एस ग्रेट ईस्टर्न एनर्जी बनाम एम/एस जैन इरिगेशन (2010):
    • संविदा में वैधता अवधि चार महीने निर्दिष्ट की गई थी। बॉम्बे उच्च नयायालय ने माना कि संविदा की अवधि समाप्त होने के बाद कोई स्वीकृति नहीं दी जा सकती। वैधता अवधि समाप्त होने के बाद संविदा स्वीकार करने तथा संविदाकर्त्ता द्वारा कार्य न करने पर सुरक्षा जमा राशि जब्त करना अनुचित नहीं था।