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सांविधानिक विधि
एसोसिएशन ऑफ ओल्ड सेटलर्स ऑफ सिक्किम एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (2023)
«31-Jul-2025
परिचय
इस मामले में आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 10(26ककक) को चुनौती दी गई थी, जो "सिक्किमी" व्यक्तियों को आयकर में छूट प्रदान करती है। सिक्किम के पुराने निवासीयों के संघ सहित याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि "सिक्किमी" की परिभाषा में उन भारतीयों को अनुचित रूप से सम्मिलित नहीं किया गया है जो 1975 में भारत में विलय से पहले सिक्किम में बस गए थे। इसमें उन सिक्किमी महिलाओं को भी सम्मिलित नहीं किया गया है जिन्होंने 1 अप्रैल 2008 के बाद गैर-सिक्किमी पुरुषों से विवाह किया था। उन्होंने दावा किया कि ये अपवर्जन भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 14 के अधीन समता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
तथ्य
- सिक्किम 26 अप्रैल 1975 तक एक स्वतंत्र राज्य था, जब इसका आधिकारिक रूप से भारत में विलय हो गया और 36वें संविधान संशोधन के माध्यम से यह 22वाँ राज्य बना। इस विलय से पहले, कई भारतीय नागरिक (पुराने भारतीय बसने वाले) व्यापार, कारबार और सरकारी सेवा के लिये सिक्किम आकर स्थायी रूप से बस गए थे।
- इन प्रवासियों ने दशकों तक सिक्किम के निवासी होते हुए भी अपनी भारतीय नागरिकता का त्याग नहीं किया और इसलिये उन्हें 1961 के सिक्किम विषय रजिस्टर में सूचीबद्ध नहीं किया गया, जिसे राजशाही (चोग्याल) द्वारा स्थानीय सिक्किमी पहचान को परिभाषित करने के लिये बनाए रखा गया था।
- सिक्किम के विलय के बाद, 1975 के नागरिकता आदेश द्वारा "सिक्किम विषय" के रूप में सूचीबद्ध लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई।
- कई भारतीय मूल के परिवारों को स्थायी निवासी होते हुए भी, आयकर अधिनियम से अपवर्जित किया गया था। बाद में, 2008 के वित्त अधिनियम द्वारा आयकर अधिनियम में धारा 10(26ककक) जोड़ी गई , जिसके अधीन "सिक्किमी" व्यक्तियों को आयकर से छूट दी गई, बशर्ते वे (या उनके निकटतम पुरुष रिश्तेदार) सिक्किम विषय रजिस्टर में सूचीबद्ध हों या 1990 और 1991 के भारत सरकार के आदेशों के अधीन नागरिकता प्राप्त कर चुके हों।
- इस परिभाषा में पुराने भारतीय निवासियों के लगभग 500 परिवारों को सम्मिलित नहीं किया गया था, जो 1975 से पहले यहाँ के निवासी थे, किंतु भारतीय नागरिकता बनाए रखने के कारण रजिस्टर में सूचीबद्ध नहीं थे। इसके अतिरिक्त, धारा 10(26ककक) के उपबंध के अधीन, 1 अप्रैल, 2008 के बाद किसी गैर-सिक्किमी पुरुष से विवाह करने वाली सिक्किमी महिला को कर से छूट नहीं दी गई थी, जबकि गैर -सिक्किमी महिलाओं से विवाह करने वाले सिक्किमी पुरुषों के लिये ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं था।
- याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि ये दोनों प्रावधान विभेदक, मनमाने हैं और संविधान के अनुच्छेद 14 (समता), 15 (लिंग विभेद का निषेध) और 21 (गरिमा और स्वतंत्रता) का उल्लंघन करते हैं।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- उच्चतम न्यायालय ने 1975 के विलय से पहले और बाद में सिक्किम के निवासियों की स्थिति से संबंधित ऐतिहासिक, विधिक और सांविधानिक घटनाक्रमों की सावधानीपूर्वक जांच की।
- इसमें कहा गया है कि धारा 10 (26ककक) के अधीन सिक्किम की 95% आबादी को कर से छूट दी गई है, किंतु एक छोटे से अल्पसंख्यक (लगभग 1% - पुराने भारतीय बसने वालों) को अनुचित रूप से अपवर्जित किया गया है, क्योंकि उनका नाम उस रजिस्टर में नहीं था, जिसमें भारतीय नागरिकता त्यागने की आवश्यकता थी - ऐसा करने का उन्हें भारतीय नागरिक होने के नाते कोई दायित्त्व नहीं था।
- न्यायालय ने कहा कि धारा 10(26ककक) का उद्देश्य सिक्किम के वास्तविक निवासियों को कर छूट प्रदान करना था - न कि केवल उन लोगों को जिनके पास किसी विशिष्ट रजिस्टर में कागज़ात हैं। न्यायालय ने कहा कि "सिक्किमी" की परिभाषा बहुत संकीर्ण है, इसमें कोई स्पष्ट अंतर नहीं है, और यह अनुच्छेद 14 के अधीन वर्गीकरण के दोहरे परीक्षण में असफल रही :
- इसने समूहों के बीच उचित रूप से भेद नहीं किया (क्योंकि दोनों ही निवासी थे), और
- इसका विधि के उद्देश्य (सिक्किम के निवासियों को लाभ पहुँचाना) से कोई तर्कसंगत संबंध नहीं था।
- इसके अतिरिक्त, 1 अप्रैल, 2008 के बाद गैर-सिक्किमी पुरुषों से विवाह करने वाली सिक्किमी महिलाओं को अपवर्जन करने वाले प्रावधान को स्पष्ट रूप से विभेदक घोषित किया गया । न्यायालय ने इस लिंग-आधारित अपवर्जन की कड़ी निंदा की, खासकर इसलिये क्योंकि एक सिक्किमी पुरुष द्वारा गैर-सिक्किमी महिला से विवाह करने पर ऐसी अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ता।
- इससे विशुद्ध रूप से लिंग और वैवाहिक स्थिति पर आधारित एक अन्यायपूर्ण दोहरा मापदंड निर्मित हुआ, जो अनुच्छेद 14, 15 और 21 के अधीन संरक्षित लैंगिक समता, स्वायत्तता और गरिमा के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है ।
- न्यायालय ने एस. नाकारा बनाम भारत संघ और शायरा बानो बनाम भारत संघ सहित अपने स्वयं के पूर्व निर्णयों का भी हवाला दिया, जिससे इस बात पर बल दिया जा सके कि मनमाने और तर्कहीन वर्गीकरणों को रद्द किया जाना चाहिये, भले ही वे विधायिका द्वारा किये गए हों। अंततः, न्यायालय ने कहा:
- "सिक्किमी" की परिभाषा में वे सभी भारतीय नागरिक शामिल होने चाहिये जो 26.04.1975 से पहले सिक्किम में स्थायी रूप से बस गए थे, भले ही उनके नाम 1961 के रजिस्टर में हों या नहीं।
- समूह से बाहर विवाह करने वाली सिक्किमी महिलाओं को बाहर रखने का प्रावधान असांविधानिक है और इसे रद्द किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि 1975 में सिक्किम के विलय से पहले वहाँ स्थायी रूप से बसे सभी भारतीयों को कर छूट का लाभ मिलना चाहिये, भले ही उनके नाम पुराने रजिस्टर में न हों। न्यायालय ने विधि के उस भाग को भी रद्द कर दिया जो 2008 के पश्चात् गैर-सिक्किमी पुरुषों से विवाह करने वाली सिक्किमी महिलाओं को लाभ से वंचित करता था, और इसे असांविधानिक करार दिया। यह निर्णय सिक्किम में लंबे समय से रह रहे सभी निवासियों के लिये समान व्यवहार सुनिश्चित करता है और लैंगिक समता को बरकरार रखता है।