73वाँ और 74वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम
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सांविधानिक विधि

73वाँ और 74वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम

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 31-Oct-2023

परिचय  

  • 73वें और 74वें संशोधन अधिनियम को पेश करने का उद्देश्य शासन व्यवस्था को अधिक लोकतांत्रिक बनाना था।
  • केंद्र तथा राज्य सरकारों से स्थानीय निकायों को शक्ति हस्तांतरित करके भारत में शक्ति के विकेंद्रीकरण में इन संशोधन अधिनियमों ने प्रमुख भूमिका निभाई।
  • 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम क्रमशः 24 अप्रैल 1993 और 1 जून 1993 को लागू हुए।

73वाँ संशोधन अधिनियम, 1992

  • इस संशोधन के बाद राज्य सरकारों के लिये पंचायती राज की नई प्रणाली को अपनाना संवैधानिक रूप से बाध्यकारी हो गया।
  • इस संशोधन के माध्यम से 11वीं अनुसूची को भारत के संविधान, 1950 (COI) में जोड़ा गया जिसमें पंचायती राज के 29 विषय शामिल थे।
    • इस अधिनियम द्वारा भारत के संविधान में भाग IX भी जोड़ा गया जिसमें अनुच्छेद 243 से 243 (O) तक के प्रावधान शामिल थे।
  • यह अधिनियम नगालैंड, मेघालय और मिज़ोरम के साथ-साथ कुछ अन्य क्षेत्रों पर लागू नहीं होता है। इन क्षेत्रों में शामिल हैं:
    • राज्यों के अनुसूचित क्षेत्र और जनजातीय क्षेत्र।
    • ज़िला परिषदों वाले मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्र।
    • दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल के साथ पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग ज़िला।
    • हालाँकि, संसद द्वारा निर्दिष्ट अपवादों और संशोधनों के अधीन, इस भाग के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों तथा जनजातीय क्षेत्रों तक विस्तारित किया जा सकता है।

73वें संशोधन अधिनियम, 1992 की मुख्य विशेषताएँ

  • ग्राम सभा
    • ग्राम सभाएँ लोकतांत्रिक व्यवस्था की बुनियादी इकाइयाँ हैं जिनमें पंचायत क्षेत्र के भीतर गाँव की मतदाता सूची में पंजीकृत लोग शामिल होते हैं।
  • त्रिस्तरीय प्रणाली
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243B के अनुसार, प्रत्येक राज्य में ग्राम, मध्यवर्ती और ज़िला स्तर पर पंचायतों के गठन का प्रावधान है। हालाँकि, बीस लाख से अधिक आबादी वाले राज्य में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों का गठन नहीं किया जा सकता है।
  • सदस्यों और अध्यक्षों का चुनाव
    • ग्राम, मध्यवर्ती और ज़िला स्तर पर पंचायतों के सदस्यों को प्रत्यक्ष रूप से लोगों द्वारा चुना जाएगा।
    • मध्यवर्ती और ज़िला स्तर पर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से उसके निर्वाचित सदस्यों में से किया जाएगा।
    • पंचायतों के चुनाव के संचालन का कार्य राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाएगा।
  • सीटों का आरक्षण
    • सभी स्तरों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तथा पंचायतों के अध्यक्षों के लिये सीटों का आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात में की जाएँगी।
    • सभी पंचायत संस्थाओं में एक तिहाई पद महिलाओं के लिये आरक्षित होंगी।
  • पंचायत की अवधि
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243E के अनुसार, प्रत्येक पंचायत, यदि तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिये नियत तारीख से पाँच वर्ष तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं।
  • पंचायतों की शक्तियाँ एवं कार्य
    • राज्य विधायिका पंचायतों को उनके अधिकार और कार्यों का आवंटन करती है।
    • पंचायतें अपने लोगों के लिये आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय योजना तैयार करती हैं।
    • यह जन कल्याण के लिये केंद्र तथा राज्य सरकार की योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लागू करता है।
    • पंचायतों के पास रोज़गार के अवसर प्रदान करने और संबद्ध क्षेत्र में विकास संबंधी गतिविधियाँ शुरू करने की शक्ति है।
  • चुनावी मामलों में न्यायालयों द्वारा हस्तक्षेप पर रोक
    • यह अधिनियम पंचायत चुनावों में न्यायालयों के हस्तक्षेप पर प्रतिबंधित लगाता है।
    • इसमें यह भी वर्णित है कि किसी पंचायत के चुनाव को तब तक चुनौती नहीं दी जा सकती जब तक कि चुनाव के लिये याचिका उचित निकाय तथा राज्य विधायिका द्वारा निर्दिष्ट तरीके से दर्ज़ न की गई हो।

74वाँ संशोधन अधिनियम, 1992

  • इस अधिनियम द्वारा नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्ज़ा प्रदान कर उन्हें संविधान के न्यायसंगत प्रावधानों के दायरे के अंतर्गत लाया गया।
  • इस अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान में भाग IX-A जोड़ा गया जिसमें अनुच्छेद 243P से 243ZG तक प्रावधान शामिल थे।
  • इस अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान में 12वीं अनुसूची को भी जोड़ा गया जिसमें नगरपालिकाओं के दायरे में शामिल किये जाने वाले 18 कार्यात्मक विषय शामिल हैं।

74वें संशोधन अधिनियम, 1992 की मुख्य विशेषताएँ

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 243Q नगरपालिकाओं अर्थात् नगर पंचायत, नगर परिषद और नगर निगम की स्थापना से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 243R नगरपालिकाओं की संरचना से संबंधित है; इसमें वर्णित है कि इसके सभी सदस्य प्रत्यक्ष तौर पर नगरपालिका क्षेत्र के लोगों द्वारा चुने जाते हैं जो क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित होते हैं जिन्हें वार्ड के रूप में जाना जाता है।
  • अनुच्छेद 243S वार्ड समितियों के गठन और संरचना से संबंधित है जिसमें वार्ड तथा वार्ड के सदस्य शामिल होते हैं जो नगरपालिका में उस वार्ड का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।
    • अनुच्छेद 243T प्रत्येक नगरपालिका में सीटों के आरक्षण से संबंधित है। इसके अनुसार-
    • प्रत्येक नगरपालिका में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों का आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात में किया जाता है।
    • इसके तहत महिलाओं के लिये कुल सीटों में से एक तिहाई आरक्षण का प्रावधान है।
    • राज्य विधानमंडल के पास निम्न वर्गों के कल्याण हेतु किसी भी स्तर पर आरक्षण नीति लागू करने का अधिकार है।
  • अनुच्छेद 243U नगरपालिकाओं की अवधि से संबंधित है। इसके अनुसार-
    • नगरपालिकाओं को हर स्तर पर पाँच वर्ष का कार्यकाल प्रदान किया गया है। हालाँकि इसे इसकी अवधि पूरी होने से पहले भी विघटित किया जा सकता है।
    • एक नगरपालिका, यदि नगरपालिका के विघटन के बाद चुनी जाती है, तो शेष अवधि के लिये बनी रहेगी, जितने समय तक विघटित नगरपालिका अस्तित्त्व में रहती, यदि वह भंग न हुई होती
  • अनुच्छेद 243V नगरपालिका के सदस्यों को अयोग्य घोषित करने के आधार से संबंधित है। इसमें अनुसार किसी व्यक्ति को निम्नलिखित आधारों पर अयोग्य घोषित किया जाएगा:
  • यदि वह संबंधित राज्य की विधायिका के चुनावी प्रयोजनों के लिये उस समय लागू किसी कानून के तहत अयोग्य घोषित किया गया हो; अथवा
  • यदि वह राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए किसी कानून के तहत अयोग्य घोषित किया गया है।
  • हालाँकि, किसी भी व्यक्ति को इस उसकी आयु, अर्थात् यदि उसकी आयु 21 वर्ष है, तब उसे आयु के आधार पर यह कहकर अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता कि उनकी आयु 25 वर्ष से कम है।
    • अनुच्छेद 243W नगरपालिकाओं की शक्तियों, प्राधिकरणों और ज़िम्मेदारियों से संबंधित है जिसमें शहरी नियोजन, वित्तीय तथा सामाजिक विकास इत्यादि शामिल हैं।
    • अनुच्छेद 243X में वर्णित है कि भारतीय संविधान राज्य के विधानमंडल के पास कर निर्धारण संबंधी मामलों पर कानून स्थापित करने का अधिकार है।
    • अनुच्छेद 243Y वित्त आयोग के गठन का प्रावधान करता है जो राज्य तथा नगरपालिका के बीच वित्त के वितरण पर अपनी राय प्रस्तुत करेगा और सहायता सब्सिडी का निर्धारण करेगा।
    • अनुच्छेद 243ZA भारत के निर्वाचन आयोग से स्वतंत्र एक राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना का प्रावधान करता है, जो 5 पाँच वर्ष की अवधि के लिये प्रत्येक नगर निगम के लिये चुनाव आयोजित करता है।
    • अनुच्छेद 243ZC के अनुसार भारतीय संविधान के भाग IXA के प्रावधान अनुच्छेद 244 में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू नहीं होते हैं।
    • इनमें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम शामिल हैं। यह दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र पर भी लागू नहीं होता है।
  • अनुच्छेद 243ZE के अनुसार, संपूर्ण महानगर क्षेत्र के लिये एक मसौदा सुधार योजना तैयार के लिये प्रत्येक महानगरीय क्षेत्र एक महानगर योजना समिति की स्थापना करेगा।
    • महानगर क्षेत्र का आशय एक अथवा एक से अधिक ज़िलों में 10 लाख अथवा उससे अधिक की आबादी वाले क्षेत्र से है, और इसमें दो या दो से अधिक नगरपालिकाएँ या पंचायतें या अन्य सन्निहित क्षेत्र शामिल होते हैं।
  • चुनावी मामलों में न्यायालयों द्वारा हस्तक्षेप पर रोक
    • यह अधिनियम नगरपालिका चुनावों में न्यायालयों के हस्तक्षेप पर प्रतिबंध लगाता है।
    • इसमें यह भी कहा गया है कि नगरपालिका के चुनाव को चुनौती देने के लिये एक चुनाव याचिका उचित प्राधिकारी के साथ और राज्य विधायिका द्वारा उल्लिखित तरीके से दायर की जानी चाहिये।