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सिविल कानून
परिसीमा अधिनियम की धारा 18
« »28-Jul-2025
मेसर्स ऐरेन एंड एसोसिएट्स बनाम मेसर्स सनमार इंजीनियरिंग सर्विसेज लिमिटेड "आंशिक ऋण की स्वीकृति के कारण धारा 18 के अंतर्गत सम्पूर्ण ऋण के लिये परिसीमा काल नहीं बढ़ेगी।" न्यायमूर्ति संजय कुमार एवं न्यायमूर्ति एस.सी. शर्मा |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यायमूर्ति संजय कुमार एवं न्यायमूर्ति एस.सी. शर्मा ने ऋण वसूली के एक मामले में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के निर्णय को यथावत रखते हुए कहा कि "आंशिक ऋण की अभिस्वीकृति, परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 18 के अंतर्गत सम्पूर्ण ऋण के लिये परिसीमा काल को नहीं बढ़ाएगी"।
- उच्चतम न्यायालय ने मेसर्स ऐरेन एंड एसोसिएट्स बनाम मेसर्स सनमार इंजीनियरिंग सर्विसेज लिमिटेड (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।
मेसर्स ऐरेन एंड एसोसिएट्स बनाम मेसर्स सनमार इंजीनियरिंग सर्विसेज लिमिटेड (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्त्ता ने 18% प्रति वर्ष की दर से ब्याज सहित 3,07,115.85 रुपये (केवल तीन लाख सात हजार एक सौ पंद्रह और अस्सी पैसे) की वसूली के लिये एक वाद संस्थित किया।
- ऋणी (प्रतिवादी) ने दावा की गई कुल राशि में से केवल 27,874.10 रुपये (केवल सत्ताईस हजार आठ सौ चौहत्तर और दस पैसे) के आंशिक ऋण की अभिस्वीकृति दी।
- अपीलकर्त्ता ने ऋणी द्वारा आंशिक अभिस्वीकृति के आधार पर पूरी राशि के लिये परिसीमा काल बढ़ाने की मांग की।
- अधीनस्थ न्यायालय ने यह पाते हुए कि दावा करने की परिसीमा वर्जित थी, इसलिये परिसीमा काल के आधार पर वाद को खारिज कर दिया।
- इसके बाद अपीलकर्त्ता ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में अपील की, जिसने अपीलकर्त्ता के दावे को केवल स्वीकृत राशि के संबंध में ही स्वीकार किया।
- उच्च न्यायालय ने माना कि धारा 18 का लाभ पूरे दावे पर लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि ऋणी द्वारा इसे पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया था।
- प्रतिवादी के उत्तर में अपीलकर्त्ता के पूरे दावे को कभी स्वीकार नहीं किया गया तथा केवल संविदा मूल्य पर ही स्पष्ट रूप से विवाद स्थापित किया गया, जबकि देय राशि को ही कम माना गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति संजय कुमार एवं न्यायमूर्ति एस.सी. शर्मा की पीठ ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के उस निर्णय को यथावत रखा जिसमें अपीलकर्त्ता को संपूर्ण दावे के लिये धारा 18 का लाभ देने से अस्वीकृत कर दिया गया था।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि "1963 के अधिनियम की धारा 18 में निर्धारित आवश्यकता के अनुसार, अपीलकर्त्ता द्वारा दावा की गई पूरी राशि की अभिस्वीकृति नहीं दी गई थी, इसलिये अपीलकर्त्ता के संपूर्ण दावे के लिये परिसीमा काल बढ़ाने का प्रश्न ही नहीं उठता"।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 18 अस्वीकृत शेष राशि के लिये समय वर्जित दावे को पुनर्जीवित नहीं कर सकती क्योंकि केवल आंशिक राशि ही स्वीकार की गई थी।
- न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि परिसीमा काल केवल स्वीकृत राशि के लिये बढ़ाई जाती है, न कि संपूर्ण दावे के लिये, जिससे ऋण स्वीकृति पर स्थापित न्यायशास्त्र को बल मिलता है।
- जे.सी. बुधराजा बनाम अध्यक्ष, उड़ीसा माइनिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड एवं अन्य, (2008) 2 SCC 444 के पूर्ववर्ती मामले का संदर्भ दिया गया, जहाँ न्यायालय ने इसी प्रकार यह माना था कि परिसीमा काल केवल स्वीकृत राशि के लिये बढ़ाई जाती है।
- उच्चतम न्यायालय ने अपील को खारिज कर दिया, यह पुष्टि करते हुए कि आंशिक स्वीकृति धारा 18 के अंतर्गत संपूर्ण दावे को लाभ नहीं पहुँचा सकती।
मामले द्वारा स्थापित विधिक सिद्धांत क्या हैं?
आंशिक बनाम पूर्ण अभिस्वीकृति:
- ऋण की आंशिक स्वीकृति पूरे दावे के लिये परिसीमा काल का विस्तार नहीं करती, बल्कि केवल आंशिक अभिस्वीकृति के लिये ही परिसीमा काल का विस्तार करती है।
- धारा 18 को पूरे ऋण पर लागू करने के लिये, ऋणी को लेनदार द्वारा दावा की गई पूरी देयता को स्वीकार करना होगा।
- दावे के विवादित अंश मूल परिसीमा काल के अधीन रहते हैं तथा निर्विवाद राशियों की अभिस्वीकृति का लाभ नहीं ले सकते हैं।
परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 18 क्या है?
परिचय:
- परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 18 "लिखित अभिस्वीकृति के प्रभाव" से संबंधित है तथा उन मामलों में परिसीमा काल के विस्तार का प्रावधान करती है, जहाँ ऋण की अभिस्वीकृति दी जाती है।
- इस धारा में कहा गया है कि जहाँ, निर्धारित अवधि की समाप्ति से पहले, किसी ऋण या विरासत के लिये उत्तरदायी व्यक्ति, ऐसे ऋण या विरासत के संबंध में अपने दायित्व को अपने द्वारा हस्ताक्षरित और उसके हकदार व्यक्ति या उसके प्रतिनिधि को संबोधित किसी लिखित पत्र द्वारा स्वीकार करता है, वहाँ परिसीमा की एक नई अवधि की गणना उस समय से की जाएगी जब ऐसी अभिस्वीकृति पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- ऋणी के दायित्व के संबंध में अभिस्वीकृति सुस्पष्ट और असंदिग्ध होनी चाहिये।
- अभिस्वीकृति निर्धारित परिसीमा काल की समाप्ति से पहले दी जानी चाहिये।
- अभिस्वीकृति लिखित रूप में होनी चाहिये तथा ऋण के लिये उत्तरदायी व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित होनी चाहिये।
अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत वैध अभिस्वीकृति के लिये आवश्यक तत्त्व:
- अभिस्वीकृति में दायित्व की परिसीमा के विषय में स्पष्ट और असंदिग्ध सूचना होनी चाहिये।
- यह लिखित रूप में होनी चाहिये और उत्तरदायी व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित होनी चाहिये।
- अभिस्वीकृति परिसीमा काल समाप्त होने से पहले दिया जाना चाहिये।
- सशर्त या योग्य अभिस्वीकृति धारा 18 की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकती हैं।
परिसीमा काल पर प्रभाव:
- एक वैध अभिस्वीकृति, अभिस्वीकृति की तिथि से एक नई परिसीमा काल आरंभ करती है।
- यह नई अवधि केवल स्वीकृत ऋण पर लागू होती है, किसी अतिरिक्त या विवादित राशि पर नहीं।
- अस्वीकृत अंशों के लिये समय-परिसीमा समाप्त दावों को आंशिक अभिस्वीकृति के माध्यम से पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता।