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सांविधानिक विधि
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 239कक
«08-Oct-2025
परिचय
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 239कक एक ऐतिहासिक उपबंध है जो दिल्ली को विशेष दर्जा प्रदान करता है और इसे एक मात्र केंद्र शासित प्रदेश से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) दिल्ली में परिवर्तित करता है। संविधान (69वाँ संशोधन) अधिनियम, 1991 के माध्यम से सम्मिलित और 1 फरवरी 1992 से प्रभावी, इस अनुच्छेद ने दिल्ली के लिये एक अद्वितीय अर्ध-संघीय संरचना स्थापित की, जो राष्ट्रीय राजधानी और एक निर्वाचित सरकार वाले क्षेत्र, दोनों के रूप में इसकी दोहरी भूमिका को संतुलित करता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और नामकरण
- धारा 239कक (1) के अधीन, केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली का आधिकारिक तौर पर "राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली" के रूप में नामकरण किया गया। इस सांविधानिक संशोधन ने दिल्ली की विशिष्ट सांविधानिक स्थिति को मान्यता देते हुए, प्रशासक का पद भी "प्रशासक" से परिवर्तित कर "उपराज्यपाल" कर दिया।
- यह नामकरण परिवर्तन अनुच्छेद 239 के प्रशासनिक ढाँचे के अधीन केंद्र शासित प्रदेश के रूप में इसके चरित्र को बनाए रखते हुए दिल्ली की उन्नत स्थिति का प्रतीक है।
विधान सभा और निर्वाचन ढाँचा
- धारा 239कक (2) के अधीन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिये एक विधानसभा की स्थापना का उपबंध किया गया है, जिसके सदस्य क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने जाते हैं।
- इस धारा के अनुसार, संसद को विधि के माध्यम से महत्त्वपूर्ण पहलुओं का निर्धारण करना होगा, जिसमें सीटों की कुल संख्या, अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित सीटें, निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन और विधानसभा के कामकाज से संबंधित अन्य मामले सम्मिलित हैं। इस उपबंध ने दिल्ली के शासन को लोकतांत्रिक बनाया और अंतिम विधायी नियंत्रण संसद के पास रखा।
- इसके अतिरिक्त, धारा 239कक(2)(ग) के अनुसार अनुच्छेद 324 से 327 तथा अनुच्छेद 329 तक के प्रावधानों को दिल्ली के निर्वाचन प्रक्रिया पर लागू किया गया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि राज्यों के निर्वाचन पर लागू सांविधानिक सिद्धांत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पर भी समान रूप से लागू हों। तथापि, यहाँ “उचित विधानमंडल” के रूप में संसद को माना गया है, न कि किसी राज्य की विधानमंडल को।
विधायी शक्तियां और परिसीमाएँ
- अनुच्छेद 239कक का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू धारा 239कक (3) में निहित है, जो दिल्ली विधानसभा की विधायी क्षमता को परिभाषित करता है। धारा 239कक (3)(क) के अधीन, विधानसभा राज्य सूची और समवर्ती सूची में सूचीबद्ध विषयों पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिये विधि बना सकती है, जो केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होती हैं।
- यद्यपि, महत्त्वपूर्ण अपवाद भी हैं - विधानसभा राज्य सूची की प्रविष्टि 1 (लोक व्यवस्था), 2 (पुलिस) और 18 (भूमि) पर विधि नहीं बना सकती है, न ही प्रविष्टि 64, 65 और 66 पर, जहाँ तक वे इन तीन प्रविष्टियों से संबंधित हैं।
- यह प्रतिबंध काफी सांविधानिक बहस का विषय रहा है, क्योंकि यह महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक मामलों में निर्वाचित सरकार के अधिकार को सीमित करता है। धारा 239कक (3)(ख) स्पष्ट रूप से दिल्ली के लिये किसी भी मामले पर विधि बनाने की संसद की सर्वोपरि शक्ति को सुरक्षित रखती है, जिससे केंद्र की सर्वोच्चता सुनिश्चित होती है।
प्रतिकूलता और राष्ट्रपति की स्वीकृति
- धारा 239कक (3)(ग) उन स्थितियों से संबंधित है जहाँ दिल्ली विधानसभा की विधि संसदीय विधि के साथ टकराव में हों। यह स्थापित करता है कि विरोध के मामलों में संसदीय विधियाँ लागू होंगी, और विधानसभा की विधि असंगतता की सीमा तक शून्य हो जाएगी।
- यद्यपि, पहला परंतुक एक अपवाद बनाता है: यदि विधानसभा की विधि को विचार के लिये आरक्षित रखने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाती है, तो वह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) में मान्य होगी।
- दूसरा परंतुक स्पष्ट करता है कि संसद को उसी विषय पर विधि बनाने की शक्ति प्राप्त है, जिसमें राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद भी विधानसभा द्वारा बनाई गई विधियों को संशोधित या निरस्त करना सम्मिलित है।
कार्यकारी संरचना
- धारा 239कक (4) एक मंत्रि-परिषद् की स्थापना करती है, जो विधानसभा की कुल सदस्यता के दस प्रतिशत तक सीमित होगी और जिसका अध्यक्ष एक मुख्यमंत्री होगा। ये मंत्री विधानसभा की विधायी क्षमता के अंतर्गत आने वाले मामलों में उपराज्यपाल को सहायता और सलाह देते हैं, सिवाय उन मामलों के जहाँ उपराज्यपाल को अपने विवेक से कार्य करना आवश्यक हो।
- धारा 239कक (4) का महत्त्वपूर्ण परंतुक विशेष रूप से विवादास्पद रहा है: उपराज्यपाल और मंत्रियों के बीच मतभेद की स्थिति में, मामले को निर्णय के लिये राष्ट्रपति के पास भेजा जाना चाहिये। राष्ट्रपति के निर्णय तक, उपराज्यपाल मामले को अत्यावश्यक समझकर तत्काल कार्रवाई कर सकते हैं। दिल्ली के शासन में शक्ति संतुलन के संबंध में यह उपबंध महत्त्वपूर्ण न्यायिक निर्वचन का विषय रहा है।
- धारा 239कक(5) के अनुसार, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर करता है, और मंत्री राष्ट्रपति की इच्छा पर ही पद धारण करते हैं। धारा 239कक (6) संसदीय लोकतंत्र के एक प्रमुख सिद्धांत को समाहित करते हुए, विधान सभा के प्रति मंत्रि-परिषद् का सामूहिक उत्तरदायित्त्व स्थापित करती है।
अनुपूरक उपबंध
- धारा 239कक (7) संसद को इन उपबंधों के अनुपूरक विधि बनाने का अधिकार देती है, और ऐसी विधियों को अनुच्छेद 368 के अधीन सांविधानिक संशोधन नहीं माना जाता है, भले ही उनका संविधान में संशोधन करने का प्रभाव हो।
- धारा 239कक (8) दिल्ली पर अनुच्छेद 239ख के प्रावधानों को उसी प्रकार लागू करती है, जिस प्रकार वे पुडुचेरी पर लागू होते हैं।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 239कक एक सांविधानिक व्यवस्था है जो दिल्ली को महत्त्वपूर्ण स्वायत्तता प्रदान करती है, जबकि केंद्र सरकार को राष्ट्रीय राजधानी पर अंतिम अधिकार रखती है। यह संतुलन भारत की संघीय व्यवस्था में दिल्ली के विशेष दर्जे को परिभाषित करता है।