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सांविधानिक विधि
अवशिष्ट विधायी शक्तियां
«01-Oct-2025
परिचय
अवशिष्ट विधायी शक्तियों का सिद्धांत भारतीय संविधान के अंतर्गत विधायी क्षमता के वितरण में एक मूलभूत सिद्धांत है। अनुच्छेद 248 संसद को उन विषयों पर विधि बनाने का अनन्य अधिकार प्रदान करता है जो सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची (सूची 3) या राज्य सूची (सूची 2) में सूचीबद्ध नहीं हैं। यह सांविधानिक उपबंध व्यापक विधायी परिधि सुनिश्चित करता है और तीनों सूचियों में विशिष्ट विषयों की गणना से उत्पन्न होने वाली किसी भी विधायी शून्यता को रोकता है। अवशिष्ट शक्ति एक सुरक्षा तंत्र के रूप में कार्य करती है, जो संघ को उन उभरते विषयों और समसामयिक मुद्दों पर विचार करने में सक्षम बनाती है जिनकी संविधान निर्माताओं ने कल्पना नहीं की थी।
सांविधानिक ढाँचा: अनुच्छेद 248
- संविधान का अनुच्छेद 248 संसद की अवशिष्ट विधायी शक्तियों को दो अलग-अलग खण्डों में स्थापित करता है। संविधान (एक सौ एकवाँ संशोधन) अधिनियम, 2016 द्वारा संशोधित खण्ड (1) में उपबंध है कि अनुच्छेद 246क के अधीन रहते हुए, संसद को समवर्ती सूची या राज्य सूची में सूचीबद्ध न किये गए किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने की अनन्य शक्ति है।
- यह विशिष्टता सुनिश्चित करती है कि केवल संघीय विधानमंडल के पास ही अवशिष्ट विषयों पर अधिकार होगा, जिससे राज्य विधानमंडलों के साथ किसी भी प्रकार का टकराव या ओवरलैप नहीं होगा।
- खण्ड (2) इस शक्ति का विस्तार करते हुए इसमें समवर्ती या राज्य सूची में उल्लिखित न किये गए करों को भी सम्मिलित करता है, इस प्रकार संसद को कराधान के नए रूपों पर पूर्ण राजकोषीय अधिकार प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 246क का स्पष्ट संदर्भ, जो माल एवं सेवा कर से संबंधित है, सामान्य अवशिष्ट ढाँचे को संरक्षित रखते हुए विशिष्ट संशोधनों को सम्मिलित करने की संविधान की अनुकूलनशीलता को दर्शाता है।
दायरा और न्यायिक निर्वचन
- अनुच्छेद 248 द्वारा प्रदत्त अवशिष्ट शक्ति, इसके दायरे और सीमाओं को रेखांकित करने के लिये व्यापक न्यायिक जांच के अधीन रही है।
- उच्चतम न्यायालय ने निरंतर यह माना है कि अवशिष्ट शक्ति संसद के पास अनन्य है और राज्य विधानमंडल किसी भी परिस्थिति में इसका प्रयोग नहीं कर सकते। यह विशिष्टता, प्रगणित सूचियों से बाहर के विषयों पर राज्य के अतिक्रमण के विरुद्ध एक सांविधानिक प्रतिबंध के रूप में कार्य करती है।
- न्यायालयों ने एक उद्देश्यपूर्ण निर्वचन अपनाया है, जिसमें यह माना गया है कि अवशिष्ट शक्ति में न केवल वे विषय सम्मिलित हैं जो संविधान के लागू होने के समय अज्ञात या अप्रत्याशित थे, अपितु वे मामले भी सम्मिलित हैं जो अपनी प्रकृति के कारण राज्य की सीमाओं से परे हैं या जिनके लिये एक समान राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त, न्यायपालिका ने इस बात पर बल दिया है कि यह निर्धारित करने के लिये कि क्या कोई विशेष विषय अवशिष्ट अधिकारिता के अंतर्गत आता है, तीनों सूचियों की प्रविष्टियों की सावधानीपूर्वक जांच की आवश्यकता होती है, और केवल तभी जब कोई मामला किसी भी प्रगणित प्रविष्टि के अंतर्गत उचित रूप से नहीं लाया जा सकता है, अवशिष्ट शक्ति प्रभावी होती है।
विधायी शक्तियों के वितरण के साथ संबंध
- अनुच्छेद 248 के अधीन अवशिष्ट शक्ति, अनुच्छेद 246 द्वारा स्थापित विधायी क्षमता के त्रिपक्षीय वितरण के साथ मिलकर कार्य करती है। जहाँ अनुच्छेद 246 संसद की अनन्य शक्तियों (संघ सूची), संसद और राज्य विधानमंडलों की समवर्ती शक्तियों (समवर्ती सूची), और राज्य विधानमंडलों की अनन्य शक्तियों (राज्य सूची) का वर्णन करता है, वहीं अनुच्छेद 248 इस सूची से बाहर के विषयों पर विधायी प्राधिकार को संबोधित करता है।
- यह पूरक संबंध यह सुनिश्चित करता है कि संघीय ढाँचा अधिकारिता संबंधी कमियों उत्पन्न किये बिना निर्दिष्ट और अनिर्दिष्ट दोनों विषयों को समायोजित करता है।
- अवशिष्ट क्षेत्र में संसदीय विधान की सर्वोच्चता राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों और उभरती चुनौतियों में एक सशक्त केंद्र की ओर संविधान के झुकाव को दर्शाती है। यद्यपि, यह अवशिष्ट शक्ति पूर्ण नहीं है और मौलिक अधिकारों और सांविधानिक सीमाओं सहित अन्य सांविधानिक प्रावधानों के अधीन रहती है।
- अनुच्छेद 246, 246क और 248 के बीच परस्पर संबंध संघीय स्वायत्तता को राष्ट्रीय एकता के साथ संतुलित करने के लिये संविधान के परिष्कृत दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है, तथा यह सुनिश्चित करता है कि सभी संभावित मामलों पर विधायी क्षमता संघ और राज्यों के बीच निश्चित रूप से आवंटित की जाए।
अनुच्छेद 248 के अधीन अवशिष्ट शक्तियों का महत्त्व
- अनुच्छेद 248 के अंतर्गत अवशिष्ट शक्तियां आज के शासन में, विशेष रूप से नई प्रौद्योगिकियों, इंटरनेट विनियमन और आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक विवाद्यकों से निपटने के लिये, तेजी से महत्त्वपूर्ण हो गई हैं।
- सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष कार्यक्रम और ऑनलाइन कारोबार जैसे विषयों को संसद द्वारा अपने अवशिष्ट प्राधिकार का उपयोग करके विनियमित किया जाता रहा है, क्योंकि 1950 में संविधान के निर्माण के समय ये विषय सातवीं अनुसूची में सूचीबद्ध नहीं थे। इस लचीलेपन ने केंद्र सरकार को सूचियों में नए विषयों को जोड़ने के लिये संविधान में बार-बार संशोधन किये बिना, हमारे देश की बदलती आवश्यकतों के अनुसार प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने की अनुमति दी है।
- अवशिष्ट शक्ति एक सुरक्षा तंत्र के रूप में कार्य करती है, जो यह सुनिश्चित करती है कि संसद केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए नए मामलों पर विधि बना सके।
- इसके अतिरिक्त, सूचियों में उल्लिखित नहीं किये गए नए प्रकार के करों को लागू करने की शक्ति ने संसद को आधुनिक कर प्रणाली बनाने और परिवर्तित आर्थिक स्थितियों के अनुकूल होने में सक्षम बनाया है, जिससे राष्ट्रीय विकास और कल्याण कार्यक्रमों के लिये धन जुटाने की संघ की क्षमता मजबूत हुई है।