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आपराधिक कानून

स्वीकृति का साक्ष्यिक महत्त्व

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 16-May-2024

परिचय:

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 31 स्वीकृति के प्रभाव से संबंधित है तथा स्वीकृतियों  के साक्ष्यिक मूल्य को निर्धारित करती है। यह धारा केवल यह कहती है कि एक स्वीकृति, जब तक एक विबंध के रूप में कार्य नहीं करती, निर्णायक नहीं है।

 IEA की धारा 31:

  • इस धारा में कहा गया है कि स्वीकृति, स्वीकार किये गए मामलों में निर्णायक साक्ष्य नहीं है, परंतु वे इस अधिनियम के अंतर्गत, विबंध के रूप में काम कर सकती हैं।
  • स्वीकृति, स्वीकार किये गए मामले में निर्णायक नहीं है, हालाँकि स्वीकृति, स्वीकार करने वाले पक्ष या उनके हित में प्रतिनिधि बनने वाले पक्ष के विरुद्ध अच्छे साक्ष्य हैं, परंतु वह पक्ष इस स्वीकारोक्ति से बाध्य नहीं है तथा यह सिद्ध करने के लिये स्वतंत्र है कि यह स्वीकृति विधि अथवा तथ्य की गलती के अधीन बनाई गई थी, या झूठी थी अथवा धमकी, प्रलोभन या धोखाधड़ी से बनाई गई थी, जब तक कि यह स्वीकृति, विबंध के रूप में काम नहीं करती।

स्वीकृति ठोस साक्ष्य है:

  • IEA की धारा 31 कहती है कि स्वीकृति निर्णायक साक्ष्य नहीं है, परंतु यह भी कहती है कि बिना पुष्टि के कोई स्वीकृति पर्याप्त साक्ष्य नहीं है।
  • स्वीकृति, स्वीकार करने वाले पक्ष के विरुद्ध ठोस साक्ष्य है, जब तक कि यह स्वीकृति असत्य सिद्ध न हो जाए।
  • इस प्रकार, यदि स्वीकृति को उस स्वीकारोक्ति करने वाले व्यक्ति द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया है, तो यह उस व्यक्ति के विरुद्ध एक बहुत ठोस साक्ष्य है।

IEA की धारा 31 के अंतर्निहित सिद्धांत:

  • IEA की धारा 31 के अधीन स्वीकृति के साक्ष्यिक महत्त्व में अंतर्निहित सिद्धांतों को संक्षेप में प्रस्तुत किया जा सकता है:
    • एक स्वीकृति, साक्ष्य का एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है क्योंकि इसमें सम्मिलित तथ्यों की सत्यता को सिद्ध करने के लिये इस पर विश्वास किया जा सकता है।
    • किसी स्वीकृति का प्रभाव यह होता है कि इस स्वीकृति के विपरीत तथ्य सिद्ध करने का दायित्व उस पक्ष पर डाल दिया जाता है जिसके विरुद्ध यह स्वीकृति की गई है, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे पक्ष पर इसे स्पष्ट करने का अनिवार्य कर्त्तव्य आ जाता है। संतोषजनक स्पष्टीकरण के अभाव में इसे सत्य मान लिया जाता है।
    • सक्षमता तथा उल्लिखित महत्त्व एवं प्रभाव के लिये एक स्वीकृति स्पष्ट एवं निश्चित होनी चाहिये तथा अस्पष्ट या भ्रमित नहीं होनी चाहिये।

विबंध के रूप में स्वीकृति:  

  • जहाँ कोई स्वीकृति विबंधन के रूप में कार्य करती है, वहाँ तथ्य स्वीकार करने वाले पक्ष को स्वीकृत तथ्यों के विरुद्ध जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
  • जिन स्वीकृतियों पर दूसरे पक्षों द्वारा कार्रवाई की गई है, वे स्वीकृतियाँ इसे करने वाले पक्षों के विरुद्ध निर्णायक हैं।
  • विबंध एक निर्णायक स्वीकृति है।

स्वीकृति तथा विबंध के बीच अंतर:

                         स्वीकृति

                         विबंध

  • यह एक लिखित अथवा मौखिक बयान है जो पक्षों के अधिकारों एवं दायित्वों का अनुमान देता है।
  • यह साक्ष्य का नियम है जो किसी व्यक्ति को पूर्व में किये गए प्रतिनिधित्व का प्रयोग करने से रोकता है।
  • यह निर्णायक साक्ष्य नहीं है। इसका खंडन सकारात्मक प्रमाण द्वारा किया जा सकता है।
  • विबंध निर्णायक है।
  • कुछ परिस्थितियों में, किसी तीसरे व्यक्ति की स्वीकृति, पक्षों को मुकदमे में संलग्न कर देती है।
  • यह केवल प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति तथा उसके विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध कार्य करता है।
  • स्वीकृति एक कमज़ोर प्रकृति का साक्ष्य है।
  • इसे उच्च स्तर का निर्णायक प्रमाण माना जाता है।
  • यह आवश्यक नहीं है कि किसी पक्ष ने अपना रुख ,स्वीकृति करने वाले व्यक्ति के अभिप्रेरण पर, बदला हो।
  • इस मामले में, जिस व्यक्ति को प्रतिनिधित्व दिया गया है, उसने अपनी   स्थिति बदलकर अपनी हानि की है।
  • स्वीकृति से संबंधित नियम IEA की धारा 17 से 23 एवं 31 के अधीन निर्धारित किये गए हैं।
  • IEA की धारा 115 के अधीन विबंध के संबंध में नियम निर्धारित किये गए हैं।