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आपराधिक कानून

BSA के अंतर्गत विशेषाधिकार प्राप्त संचार

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 10-Jul-2024

परिचय:

विशेषाधिकार प्राप्त संचार से तात्पर्य उन संवादों से है जिन्हें न्यायालयी कार्यवाही में प्रकट होने से बचाया जाता है। पति-पत्नी, सरकारी अधिकारियों, न्यायाधीशों एवं मजिस्ट्रेटों, पेशेवरों और उनके ग्राहकों के मध्य संचार को कुछ परिस्थितियों में विशेषाधिकार प्राप्त के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

  • विशेषाधिकार प्राप्त संचार दो प्रकार के होते हैं, अर्थात् वे जो प्रकटीकरण से विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं तथा वे जो प्रकटीकरण से निषिद्ध होते हैं।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 128 से धारा 134 सामान्य नियम के लिये कुछ अपवाद घोषित करके विशेषाधिकार प्राप्त संचार से निपटती है।

विवाह के दौरान संचार: धारा 128

  • BSA की धारा 128 विवाह के दौरान पति-पत्नी के मध्य संचार की रक्षा करती है।
  • यह किसी भी ऐसे व्यक्ति को, जो विवाहित है या विवाहित रह चुका है, विवाह के दौरान अपने जीवनसाथी द्वारा किये गए किसी भी संचार का प्रकटन करने के लिये बाध्य करने से रोकती है।
  • यह विशेषाधिकार पति-पत्नी के विवाह की तिथि से शुरू होता है।
  • विवाह विच्छेद के बाद किये गए संचार को इस धारा के अधीन संरक्षित नहीं किया जाता है।

सुरक्षा उपलब्ध न होने की स्थिति में: धारा 128 के अपवाद

  • सहमति (विशेषाधिकार का त्याग):
    • विशेषाधिकार प्राप्त संचार का साक्ष्य पति या पत्नी द्वारा संचार कार्य करने वाले पक्ष की स्पष्ट सहमति से या उसके हित में प्रतिनिधि की सहमति से दिया जा सकता है। इसे विशेषाधिकार का त्याग कहा जाता है।
  • विवाह से पूर्व या विवाह विच्छेद के उपरांत किया गया संचार:
    • विवाह से पूर्व या विवाह विच्छेद के उपरांत पति-पत्नी द्वारा किया गया कोई भी संचार कार्य इस धारा के अंतर्गत संरक्षित नहीं है।
  • अंतर-पक्ष कार्यवाही (दोनों पति-पत्नी के मध्य वाद या आपराधिक कार्यवाही):
    • धारा 128 का उद्देश्य दोनों पति-पत्नी के मध्य आपसी विश्वास को बनाए रखना है, लेकिन जब पति-पत्नी स्वयं एक-दूसरे के विरुद्ध वाद में वादी-प्रतिवादी हों तो यह धारा लागू नहीं होती।
  • संचार के अतिरिक्त आचरण/कार्य:
    • धारा 128 का प्रतिबंध केवल "संचार" तक ही सीमित है।
    • केवल संचार को प्रकटीकरण से संरक्षित किया गया है, लेकिन कृत्यों/आचरण को नहीं।
  • तृतीय व्यक्ति द्वारा संचार का प्रमाण:
    • इस धारा के अधीन विशेषाधिकार केवल पति या पत्नी के विरुद्ध लागू होता है, तीसरे व्यक्ति के विरुद्ध नहीं।
    • न तो पति एवं न ही पत्नी को वैवाहिक संचार के विषय में साक्ष्य देने के लिये विवश किया जा सकता है, लेकिन कोई भी तीसरे व्यक्ति को उनके मध्य ऐसे संचार का साक्ष्य देने से नहीं रोकता है।

राज्य के मामलों में विशेषाधिकार: धारा 129

  • धारा 129 राज्य के मामलों से संबंधित अप्रकाशित आधिकारिक अभिलेखों की सुरक्षा करती है।
  • यह व्यक्तियों को संबंधित विभाग के प्रमुख की अनुमति के बिना ऐसे अभिलेखों से प्राप्त साक्ष्य देने से रोकती है।

आधिकारिक संचार के संबंध में विशेषाधिकार: धारा 130

  • धारा 129 के सिद्धांत के विस्तार के रूप में, यह धारा सार्वजनिक अधिकारियों के मध्य आधिकारिक संचार की गोपनीयता के संरक्षण का विशेषाधिकार प्रदान करती है।
  • इसमें कहा गया है कि किसी भी सार्वजनिक अधिकारी को ऐसे संचार का प्रकटन करने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा, यदि उन्हें लगता है कि प्रकटन करने से सार्वजनिक हितों को क्षति पहुँचेगी।
  • यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक अधिकारी संवेदनशील सूचना के उजागर होने के भय के बिना अपने कर्त्तव्यों का पालन कर सकें।

अपराध के विषय में सूचना का विशेषाधिकार: धारा 131

  • धारा 131 में कहा गया है कि किसी भी मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को किसी अपराध के विषय में सूचना के स्रोत का प्रकटन करने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा, यदि प्रकटन करने से सूचना प्रदाता या अन्य व्यक्तियों को हानि पहुँचेगी।
  • इस धारा का उद्देश्य सूचना प्रदाता की सुरक्षा करना और प्रतिशोध के भय के बिना अपराधों की रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करना है।

व्यावसायिक संचार के लिये विशेषाधिकार: धारा 132 से 134

व्यावसायिक संचार: धारा 132

  • धारा 132 अधिवक्ता एवं उनके मुवक्किल के मध्य संचार की सुरक्षा करती है।
  • यह अधिवक्ताओं को उनके मुवक्किल द्वारा या उनकी ओर से उनके रोज़गार के दौरान किये गए किसी भी संचार का प्रकटन करने से रोकती है।

धारा 132 के अधीन विशेषाधिकार का अपवाद:

  • अवैध उद्देश्य (प्रावधान 1): अवैध उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिये किये गए संचार संरक्षित नहीं हैं।
  • नौकरी शुरू होने के बाद से अपराध/छल (प्रावधान 2): यदि कोई अधिवक्ता अपने रोज़गार के दौरान पाता है कि रोज़गार प्रारंभ होने के उपरांत कोई अपराध/छल किया गया है, तो वह ऐसी सूचना का प्रकटन कर सकता है।
  • ग्राहक की सहमति से प्रकटन: ऐसे संचार का प्रकटन ग्राहक की स्पष्ट सहमति से किया जा सकता है।
  • अधिवक्ता द्वारा मुवक्किल के विरुद्ध वाद: यदि अधिवक्ता स्वयं मुवक्किल पर उसकी व्यावसायिक सेवाओं के लिये वाद दायर करता है, तो वह मामले से संबंधित उतनी ही सूचना का प्रकटन कर सकता है।
  • तीसरे व्यक्ति के पास सूचना का संचार: यह निषेध अधिवक्ता के विरुद्ध है, लेकिन किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध नहीं।
  • पहले से रिकॉर्ड में रखे गए दस्तावेज़: ऐसे दस्तावेज़ों के संबंध में कोई विशेषाधिकार उपलब्ध नहीं है।
  • संयुक्त हित: संचार के विषय-वस्तु में ग्राहक के साथ संयुक्त हित रखने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध अधिवक्ता एवं मुवक्किल के मध्य संचार को कोई विशेषाधिकार नहीं मिलता है।

स्वैच्छिक साक्ष्य द्वारा विशेषाधिकार का परित्याग नहीं किया जा सकता: धारा 133

  • धारा 133 में स्पष्ट किया गया है कि धारा 132 में दिये गए विशेषाधिकार को ग्राहक द्वारा स्वैच्छिक साक्ष्य प्रस्तुत करके नहीं छोड़ा जा सकता। विशेषाधिकार ग्राहक का है तथा इसलिये केवल वही इसे त्याग कर सकता है।
  • अधिवक्ता को साक्षी के रूप में बुलाने से वह विशेषाधिकार समाप्त नहीं होता, जब तक कि विशेषाधिकार प्राप्त पक्षकार गोपनीय मामलों से संबंधित उससे प्रश्न न करे।
  • धारा 133 का उद्देश्य मुवक्किल की रक्षा करना तथा विधिक व्यवसाय की अखंडता को बचाना है।

विधिक सलाहकारों के साथ गोपनीय संचार: धारा 134

  • धारा 134 व्यक्तियों एवं उनके विधिक सलाहकारों के मध्य गोपनीय संचार की रक्षा करती है।
  • इसमें प्रावधान है कि किसी को भी अपने विधिक सलाहकार के साथ किसी भी गोपनीय संचार को न्यायालय में प्रकट करने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा, जब तक कि वे स्वयं को साक्षी के रूप में प्रस्तुत न करें।
  • विशेषाधिकार का उद्देश्य ग्राहकों एवं उनके विधिक सलाहकारों के मध्य पूर्ण व स्पष्ट संचार को प्रोत्साहित करना है, जो प्रभावी विधिक प्रतिनिधित्व के लिये आवश्यक है।

निर्णयज विधियाँ:

  • राम भरोसे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1954):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि व्यवसाय से संबंधित सामान्य वार्तालाप या पत्रों को विशेषाधिकार नहीं माना जाना चाहिये।
  • एम .सी. वर्गीस बनाम टी. जे. पोन्नम (1970):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भले ही पति या पत्नी को ऐसे पत्राचार की विषय-वस्तु के बारे में गवाही देने से रोक दिया गया हो, फिर भी इसे किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा सिद्ध किया जा सकता है।
  • उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राज नारायण (1975):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायालय स्वप्रेरणा से ऐसे साक्ष्य को बहिष्कृत कर देगा जो जनहित के विपरीत हो।
  • नागराज बनाम कर्नाटक राज्य (1996):
    • न्यायालय ने कहा कि यदि किसी अभियुक्त एवं उसके/उसकी जीवनसाथी के मध्य टेलीफोन पर वार्तालाप पुलिस द्वारा सुनी जाती है, तो पुलिस को ऐसे संचार को सिद्ध करने की अनुमति दी जा सकती है।

निष्कर्ष:

विशेषाधिकार प्राप्त संचार BSA का एक मूलभूत पहलू है, जो विधिक कार्यवाही में साक्ष्य की आवश्यकता एवं विशिष्ट संबंधों में गोपनीय संचार की सुरक्षा के मध्य संतुलन को दर्शाता है। अधिनियम के प्रावधानों में न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं संवेदनशील वार्तालाप की गोपनीयता दोनों को बनाए रखने के लिये इन विशेषाधिकारों के दायरे व सीमाओं को सावधानीपूर्वक चित्रित किया गया है।