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आपराधिक कानून

महिलाओं पर साइबर उत्पीड़न

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 17-Jul-2025

परिचय  

हाल ही में एक ऐतिहासिक मामला असहमति वाली अंतरंग तस्वीरों (non-consensual intimate imagery (NCII)) के बढ़ते खतरे को संबोधित करता है, जहाँ निजी तस्वीरें और वीडियो बिना सम्मति के ऑनलाइन साझा किये जाते हैं। मद्रास उच्च न्यायालय ने पीड़ितों की गरिमा और निजता की रक्षा के लिये एक प्रगतिशील रुख अपनाया है और अधिकारियों को व्यवस्थित समाधान निकालने का निदेश दिया है।एक्स बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025)का मामला महिलाओं के विरुद्ध साइबर उत्पीड़न से निपटने के लिये व्यापक विधिक और तकनीकी ढाँचे स्थापित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। 

फैक्ट ऑफ द एक्स बनाम भारत संघ एवं अन्य (WP 25017/2025) 

  • एक युवा महिला अधिवक्ता ने अपनी अंतरंग तस्वीरों और वीडियो को हटाने के लिये सहायता मांगने हेतुयाचिका दायर की, जो उसके पूर्व साथी द्वारा उसकी सम्मति के बिना ऑनलाइन अपलोड किये गए थे। 
  • पीड़िता की अंतरंग तस्वीरें और वीडियो उसके पूर्व साथी द्वारा उसकी अनुमति के बिना ऑनलाइन साझा कर दिये गए थे।  
  • प्रारंभिक हटाने के प्रयत्नों के बाद भी यह सामग्री कई वेबसाइटों पर पुनः दिखाई देती रही।  
  • पीड़िता ने अपनी निजता की सुरक्षा तथा उक्त सामग्री को हटवाने हेतु मद्रास उच्च न्यायालय की शरण ली।  
  • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) को 48 घंटे के भीतर ऐसी सभी सामग्री हटाने का निदेश दिया गया। 
  • मंत्रालय ने न्यायालय को सूचित किया कि जब तक पूरी वेबसाइट को ब्लॉक नहीं कर दिया जाता, तब तक प्रसार को नियंत्रित करना संभव नहीं है। 
  • इसके पश्चात्, न्यायालय ने उन सभी वेबसाइटों को ब्लॉक करने का आदेश दिया, जो इस प्रकार की आपत्तिजनक सामग्री का प्रसारण कर रही थीं 
  • अवरोधन के प्रयासों के बावजूद, सामग्री 39 नई वेबसाइटों पर पुनः प्रदर्शित हो गई। 
  • यह मामला गैर-सहमति वाली अंतरंग तस्वीरों (NCII) के व्यापक मुद्दे को उजागर करता है, जो भारत भर में कई महिलाओं को प्रभावित कर रहा है। 

न्यायालय के निर्देश और आदेश 

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) को: 

  • असहमति वाली अंतरंग तस्वीरों (NCII) मामलों निवारण हेतु अब तक उठाए गए कदमों का विस्तृत शपथपत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया जाए। 
  • पीड़ित बालिकाओं/महिलाओं को इस प्रकार की परिस्थितियों से निपटने हेतु स्पष्ट प्रारूप/दिशानिर्देश प्रदान किए जाएं 
  • यह सुनिश्चित किया जाए कि हटाई गई आपत्तिजनक सामग्री किसी भी वेबसाइट पर पुनः प्रकट न हो।  
  • Hash Matching तकनीक एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित कंटेंट पहचान उपकरणों जैसी तकनीकी समाधानों को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाए।  
  • जब आवश्यक हो तो ऐसी सामग्री होस्ट करने वाली संपूर्ण वेबसाइटों को ब्लॉक किया जाए 

राज्य पुलिस विभाग को: 

  • प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) और सभी अन्वेषण दस्तावेज़ों से पीड़ित का नाम तुरंत हटाया जाए 
  • इस प्रकार के मामलों को केवल महिला पुलिस अधिकारियों द्वारा संभाला जाए, और प्राथमिकता उन अधिकारियों को दी जाए जो साइबर अपराध से संबंधित प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं।  
  • 13 जुलाई, 2025 को जारी परिपत्र के माध्यम से असहमति वाली अंतरंग तस्वीरों (NCII) परिवादों के निस्तारण हेतु स्थापित नई कार्यप्रणाली का पालन अनिवार्य रूप से किया जाए 
  • ऐसे अपराधों के पीड़ितों के प्रति अधिक संवेदनशीलता प्रदर्शित की जाए।  

पुलिस द्वारा जारी प्रमुख दिशानिर्देश: 

  • पीड़ितों को संबंधित होस्टिंग प्लेटफ़ॉर्म्स पर सीधे परिवाद दर्ज करने के लिये मार्गदर्शन प्रदान किया जाए। 
  • पीड़ितों को निष्कासन अनुरोध तंत्र (DMCA, गोपनीयता नीति, दुरुपयोग की रिपोर्ट) का उपयोग करने में सहायता प्रदान की जाए 
  • Google सर्च परिणामों से संबंधित सामग्री हटवाने हेतु अनुरोधों में पीड़ित की सहायता की जाए।  
  • StopNCII.org जैसे प्लेटफॉर्म्स का उपयोग कर सामग्री के प्रसार को रोकने के प्रयास किए जाएं 
  • प्रत्येक मामले को राज्य नोडल अधिकारी के पास औपचारिक टेकडाउन अनुरोध हेतु अग्रेषित किया जाए 

महिलाओं के साइबर उत्पीड़न से संबंधित विधिक उपबंध  

भारतीय दण्ड संहिता (IPC, 1860) - धारा 354 के उपबंध  

धारा 354लैंगिक उत्पीड़न: 

  • किसी महिला से लैंगिक स्वीकृति के लिये मांग या अनुरोध करना विधि के अधीन दण्डनीय है। 
  • किसी महिला की सम्मति के बिना आपत्तिजनक चित्र प्रदर्शित करना एक आपराधिक अपराध है। 
  • महिलाओं के प्रति अश्लील टिप्पणी करना लैंगिक उत्पीड़न माना जाता है। 
  • दण्ड में जुर्माने के साथ 3 वर्ष तक का कारावास सम्मिलित है। 

धारा 354दृश्यरतिकता: 

  • किसी स्त्री की उसकी सम्मति के बिना उसके निजी क्रियाकलापों के दौरान फोटो लेना या वीडियो बनाना विधि विरुद्ध है 
  • ऐसी स्त्री की निजी परिस्थितियों में ली गई तस्वीरों या वीडियो को बिना उसकी सम्मति के प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है।  
  • इस अपराध के लिये 3 वर्ष से 7 वर्ष तक का कारावास निर्धारित है।  
  • अपराधियों को कारावास के साथ जुर्माना भी देना होगा। 

धारा 354डी - पीछा करना: 

  • किसी स्त्री से ऑनलाइन संपर्क स्थापित करना, जब वह स्पष्ट रूप से उसमें रुचि न दिखा रही हो, पीछा करने की श्रेणी में आता है।  
  • स्त्रियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध निरर्थक ईमेल या संदेश भेजना दण्डनीय है।   
  • लगातार अवांछित डिजिटल संसूचना साइबर स्टॉकिंग (Cyber Stalking) माना जाता हैं।    
  • दण्ड में 3 से 5 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना सम्मिलित है। 

भारतीय न्याय संहिता (BNS, 2023) 

समतुल्य उपबंध: 

  • भारतीय न्याय संहिता की धारा 75, 77 और 78 में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के समान उपबंध हैं। 
  • इन धाराओं में लैंगिक उत्पीड़न, दृश्यरतिकता और पीछा करने के लिये समान दण्ड का उपबंध है। 
  • भारतीय न्याय संहिता, भारतीय दण्ड संहिता के उपबंधों के स्थान पर अद्यतन विधिक ढाँचे के रूप में कार्य करता है। 
  • महिलाओं के विरुद्ध साइबर उत्पीड़न से संबंधित सभी अपराध नवीन संहिता के अंतर्गत दण्डनीय बने हुए हैं 

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 - प्रमुख उपबंध 

धारा 66ग - पहचान की चोरी: 

  • साइबर हैकिंग और पहचान की चोरी दण्डनीय अपराध हैं। 
  • किसी अन्य व्यक्ति की डिजिटल पहचान का कपटपूर्वक उपयोग अवैध है। 
  • दण्ड में 3 वर्ष तक का कारावास सम्मिलित है। 
  • अपराधियों को 1 लाख रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। 

धारा 66 - एकांतता के अतिक्रमण के लिये दण्ड: 

  • बिना सहमति के महिलाओं की तस्वीरें लेना एकांतता विधियों का अतिक्रमण है। 
  • आपत्तिजनक परिस्थितियों में महिलाओं की निजी तस्वीरें प्रकाशित करना अवैध है। 
  • बिना अनुमति के ऐसे चित्र भेजना या प्रसारित करना दण्डनीय है। 
  • इस अपराध के लिये 3 वर्ष तक के कारावास का दण्ड हो सकता है। 

धारा 67 - कामुकता व्यक्त करने वाले कार्य आदि वाली सामग्री: 

  • ऑनलाइन कामुकता व्यक्त करने वाले कार्य आदि वाली सामग्री प्रकाशित करना अवैध है। 
  • इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री प्रसारित करना दण्डनीय है। 
  • यह अपराध विशेष रूप से महिलाओं को अपमानित करने वाली सामग्री को लक्षित करता है। 
  • दण्ड के लिये 5 से 7 वर्ष तक कारावास का उपबंध है। 

अतिरिक्त विधिक ढाँचे 

  • साइबर अपराध रोकथाम अधिनियम, 2012: 
  • महिलाओं के विरुद्ध साइबर अपराधों को रोकने पर ध्यान केंद्रित किया गया। 
  • गरिमा के उल्लंघन में से संबंधित अपराधों में लिप्त अपराधियों के अभियोजन हेतु तंत्र प्रदान करता है।  
  • सूचना की गोपनीयता और अखंडता को प्रभावित करने वाले अपराधों से संबंधित है 
  • महिलाओं को लक्षित करने वाली कंप्यूटर से संबंधित आपराधिक गतिविधियों को शामिल करता है। 

स्त्री अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986: 

  • मीडिया के माध्यम से महिलाओं के अशिष्ट रूपण को विनियमित एवं प्रतिबंधित करता है। 
  • दृश्य-श्रव्य मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक सामग्री को सम्मिलित करता है। 
  • इंटरनेट पर वितरित सामग्री पर लागू होता है। 
  • वेब प्लेटफॉर्म पर महिलाओं के अपमानजनक चित्रण पर प्रतिबंध। 
  • यह सभी प्रकार के प्रकाशनों और डिजिटल सामग्री तक विस्तारित है। 

निष्कर्ष 

यह मामला महिलाओं के विरुद्ध डिजिटल माध्यम से की जाने वाली हिंसा, विशेषतः उनकी सहमति के बिना अंतरंग सामग्री के प्रसार से निपटने हेतु एक महत्त्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप का प्रतीक है। विधिक उपचारों, तकनीकी समाधानों और प्रणालीगत सुधारों को मिलाकर न्यायालय का व्यापक दृष्टिकोण समस्या की समग्र समझ को दर्शाता है। पीड़ित-संवेदनशील प्रक्रियाओं और गुमनाम रिपोर्टिंग तंत्रों पर बल, डिजिटल युग में न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करते हुए महिलाओं की गरिमा की रक्षा के प्रति न्यायालय की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।