होम / भारतीय न्याय संहिता एवं भारतीय दण्ड संहिता

आपराधिक कानून

भारतीय दण्ड संहिता की तुलना में भारतीय न्याय संहिता में वर्धित दण्ड वाले प्रमुख अपराध

    «
 05-Aug-2025

परिचय  

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करती है, जो औपनिवेशिक काल की भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) का स्थान लेगी। यह व्यापक विधिक सुधार विभिन्न आपराधिक अपराधों में दण्ड संरचनाओं, दण्ड संबंधी दिशानिर्देशों और दण्ड ढाँचों में व्यापक परिवर्तन लाता है। नई विधि आपराधिक न्याय के प्रति एक अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण प्रदर्शित करती है, जिसमें दुर्व्यापार, हत्या और बालकों के विरुद्ध अपराधों जैसे गंभीर अपराधों के लिये दण्ड में वृद्धि के साथ-साथ उपेक्षा से संबंधित अपराधों के लिये स्पष्ट प्रावधान भी सम्मिलित हैं। 

भारतीय दण्ड संहिता से भारतीय न्याय संहिता तक दण्ड में वृद्धि 

अपराध 

नई धारा और दण्ड (BNS) 

पुरानी धारा और दण्ड (IPC) 

जुर्माना राशि और व्यतिक्रम की स्थिति में दायित्त्व 

धारा 8(5)(): किसी अन्य दशा में 1 वर्ष तक का कारावास। 

धारा 67: किसी अन्य दशा में 6 मास तक का कारावास। 

लोक साधारण या 10+ व्यक्तियों द्वारा दुष्प्रेरण 

धारा 57: 7 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना।  

धारा 117: 3 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों। 

वेश्यावृत्ति के लिये बालक को खरीदना, आदि। 

धारा 99: न्यूनतम 7 वर्ष, जिसे 14 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, तथा जुर्माना। 

धारा  373: 10 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना। 

आजीवन सिद्धदोष  द्वारा हत्या के लिये दण्ड 

धारा 104: मृत्युदण्ड या शेष प्राकृत जीवनकाल के लिये आजीवन कारावास। 

धारा 303: मृत्यु दण्ड 

आपराधिक मानव वध जो हत्या की कोटि का न हो 

धारा 105: 10 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना। 

धारा 304: 10 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों। 

उपेक्षा द्वारा मृत्यु कारित करना   

धारा 106(1): चिकित्सकों के लिये 2 वर्ष तक का दण्ड; अन्य के लिये 5 वर्ष तक का दण्ड और जुर्माना। 

धारा 106(2): 10 वर्ष तक का दण्ड और जुर्माना। 

धारा 304: अधिकतम 2 वर्ष या जुर्माना या दोनों। 

हत्या का प्रयत्न  

धारा 109(2): मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास (शेष प्राकृत जीवनकाल)। 

धारा 307(2): मृत्यु दण्ड 

लैंगिक प्रयोजनों के लिये दुर्व्यापार किये गए बालक  का शोषण 

धारा 144(1): कारावास जो कम से कम 5 वर्ष, किंतु जो 10 वर्ष तक हो सकेगा, और जुर्माना। 

धारा 370 कारावास जो कम से कम 5 वर्ष, किंतु जो 7 वर्ष तक हो सकेगा, और जुर्माना। 

लोक आदेश की अवज्ञा से जीवन को संकट 

धारा 223(): एक वर्ष तक का कारावास या 5,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों। 

धारा 188(): 6 मास तक का कारावास या ₹1,000 तक का जुर्माना या दोनों। 

आपराधिक न्यासभंग  

धारा 316(2): 5 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों। 

धारा 406: 3 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों। 

संपत्ति को कपपूर्वक हटाना या छिपाना 

धारा 323: 3 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों। 

धारा 424: 2 वर्ष तक का कारावास, या जुर्माना, या दोनों। 

निष्कर्ष 

भारतीय दण्ड संहिता से भारतीय न्याय संहिता में परिवर्तन भारतीय न्यायशास्त्र में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ है, जो पीड़ितों के संरक्षण, बालकों के संरक्षण और संगठित अपराध के विरुद्ध मज़बूत निरोध पर बल देता है, साथ ही दण्ड में आनुपातिकता भी बनाए रखता है। ये सुधार समकालीन विधिक सिद्धांतों और न्याय प्रदान करने में सुधार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप हैं। नए विधिक ढाँचे के प्रभावी कार्यान्वयन और अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये विधिक पेशेवरों और नागरिकों को इन परिवर्तनों से परिचित होना चाहिये