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आपराधिक कानून

भारतीय न्याय संहिता के अधीन दस्तावेज़ों से संबंधित अपराध

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 30-Jul-2025

परिचय 

भारत की न्याय व्यवस्था निष्पक्ष विचारण और आधिकारिक व्यवहार के लिये दस्तावेज़ों की प्रामाणिकता पर निर्भर करती है। इस विश्वास की रक्षा के लिये, भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) दस्तावेज़ों की कूटरचना और दुरुपयोग से निपटने के लिये पहले की विधियों पर आधारित है। यह विस्तृत नियम और क्रमबद्ध दण्ड प्रदान करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि विधिक अभिलेख विश्वसनीय और छेड़छाड़ रहित बने रहें। 

दस्तावेजों से संबंधित अपराध 

मिथ्या दस्तावेज रचना (धारा 335): 

  • परिभाषा: कोई व्यक्ति तब मिथ्या दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख रचता है जब वह दस्तावेज़ के लेखकत्व या अधिकार के बारे में दूसरों को प्रवंचित करने के आशय से बेईमानी या कपटपूर्वक इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर बनाता, हस्ताक्षर करता, मुद्रांकित, निष्पादित करता, प्रेषित करता या लगाता है। इसमें तीन श्रेणियाँ सम्मिलित हैं: 
    • श्रेणी (अ): दस्तावेज़/अभिलेख रचना और उन्हें मिथ्या तरीके से किसी अन्य व्यक्ति या प्राधिकारी के नाम से प्रस्तुत करना।  
    • श्रेणी (ब): निष्पादन के बाद मौजूदा दस्तावेज़ो में विधिविरुद्ध रूप से परिवर्तन करना।  
    • श्रेणी (स): मानसिक रूप चित्त-विकृति, मत्तता में या प्रवंचना के कारण व्यक्तियों से दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाना।   
  • मुख्य तत्त्व: बेईमानी/कपटपूर्ण आशय, लेखक का मिथ्या अभिप्रेरण, तथा दस्तावेज़ की उत्पत्ति या प्राधिकार के बारे में प्रवंचना करने के आशय से 

कूटरचना - परिभाषा और मूल दण्ड (धारा 336) 

  • परिभाषा:कूटरचना तब की जाती है जब कोई व्यक्ति किसी को नुकसान या क्षति कारित करने, मिथ्या दावों का समर्थन करने, किसी की संपत्ति अलग करने, संविदा करने या कपट करने के विशिष्ट आशय से मिथ्या दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख रचता है। 
  • दण्ड संरचना: 
    • मूल कूटरचना: 2 वर्ष तक का कारावास, जुर्माना, या दोनों   
    • छल के लिये कूटरचना: 7 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना (अनिवार्य) 
    • ख्याति को नुकसान कारित के लिये कूटरचना: 3 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना (अनिवार्य)  
  • आवश्यक तत्त्व:मिथ्या दस्तावेज़ रचना + विशिष्ट कपटपूर्ण आशय + नुकसान या प्रवंचना की संभावना। 

आधिकारिक अभिलेखों की कूटरचना (धारा 337) 

  • दायरा:न्यायालय अभिलेखों, सरकारी पहचान दस्तावेज़ों (मतदाता पहचान पत्र, आधार), जन्म/विवाह/अन्त्येष्टि के रजिस्टरों, लोक सेवक प्रमाण पत्रों, विधिक प्राधिकारियों और पावर ऑफ अटॉर्नी दस्तावेज़ों की काउरचना को इसमें सम्मिलित किया गया है। 
  • दण्ड: 7 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना (सभी मामलों के लिये अनिवार्य)। 
  • महत्त्व:यह उच्च दण्ड लोक विश्वास के गंभीर उल्लंघन तथा विधिक और प्रशासनिक प्रणालियों पर संभावित व्यापक प्रभाव को दर्शाता है। 

मूल्यवान प्रतिभूतियों और विल की कूटरचना (धारा 338) 

  • शामिल दस्तावेज: मूल्यवान प्रतिभूतियाँ, विल, दत्तकग्रहण प्राधिकरण, संपत्ति अंतरण को अधिकृत करने वाले दस्तावेज़, धन/संपत्ति की रसीदें, और निस्तारणपत्र 
  • दण्ड : आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक का कारावास, साथ ही जुर्माना (अनिवार्य)। 
  • आधार: यह उच्चतम श्रेणी का दण्ड इस कारण से निर्धारित है कि ऐसे कृत्य महत्त्वपूर्ण वित्तीय कपट और संपत्ति विवादों की संभावना को जन्म दे सकते है 

कूटरचित दस्तावेज़ों का कब्ज़ा (धारा 339) 

  • अपराध तत्त्व: 
    • कूटरचित दस्तावेज़ों का कब्ज़ा जानते हुए भी करना  
    • कपटपूर्वक असली के रूप में उपयोग करने का आशय 
    • दस्तावेज़ धारा 337 या 338 श्रेणियों के अंतर्गत आना चाहिये 
  • दण्ड: 
    • धारा 337 दस्तावेज़: 7 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना 
    • धारा 338 दस्तावेज़: आजीवन कारावास या 7 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना 
  • विधिक सिद्धांत : कपटपूर्ण आशय से कब्जे को वास्तविक कूटरचना के समान ही गंभीरता से लिया जाता है। 

कूटरचित दस्तावेज़ों को उपयोग में लाना (धारा 340) 

  • परिभाषा: कूटरचित दस्तावेज़ वह दस्तावेज़ है जो पूर्णतः या आंशिक रूप से कूटरचना द्वारा रचा गया हो। यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ये दस्तावेज़ कूटरचित हैं, ऐसे दस्तावेज़ों का कपटपूर्वक उपयोग करना इस अपराध की श्रेणी में आता है। 
  • दण्ड: वैसा ही जैसे यदि व्यक्ति ने मूल कूटरचना की हो। 
  • मुख्य सिद्धांत: कूटरचना के बारे में ज्ञान या उचित विश्वास पर्याप्त है; वास्तविक ज्ञान सदैव आवश्यक नहीं होता। 

कूटकृत मुद्रा और उपकरणों की कूटरचना (धारा 341) 

  • चार स्तरीय संरचना : 
    • उपधारा (1): धारा 338 कूटकृत मुद्रा बनाना/रखना - आजीवन कारावास या 7 वर्ष तक का दण्ड और जुर्माना 
    • उपधारा (2): अन्य कूटकृत मुद्रा रखना - 7 वर्ष तक का दण्ड और जुर्माना 
    • उपधारा (3): कूटकृत मुद्रा का साधारण कब्ज़ा - 3 वर्ष तक का दण्ड और जुर्माना 
    • उपधारा (4) : कूटकृत मुद्रा को असली के रूप में उपयोग करना - उन्हें बनाने के समान ही दण्ड 
  • निवारक दृष्टिकोण: कूटरचना को घटित होने से पहले ही रोकने के लिये प्रारंभिक कार्यों को आपराधिक बनाता है। 

अधिप्रमाणीकरण के लिये उपयोग में लाई जाने  वाली युक्ति या चिन्ह की कूटकृति बनाना  (धारा 342) 

  • दो श्रेणियाँ: 
    • उपधारा (1) : धारा 338 दस्तावेज़ों के लिये कूटकृत युक्ति - आजीवन कारावास या 7 वर्ष तक का दण्ड और जुर्माना 
    • उपधारा (2): अन्य दस्तावेज़ों के लिये कूटकृत युक्ति - 7 वर्ष तक का दण्ड और जुर्माना 
  • आधुनिक प्रासंगिकता: मूल्यवान दस्तावेज़ों में प्रयुक्त सुरक्षा सुविधाओं और अन्य प्रमाणीकरण प्रौद्योगिकियों को संबोधित करता है। 

दस्तावेज़ नष्ट और कपट (धारा 343) 

  • निषिद्ध कार्य: विल, दत्तक ग्रहण प्राधिकरण या मूल्यवान प्रतिभूतियों के विरुद्ध कपटपूर्वक रद्द, नष्ट, विरूपित, छिपाएगा या रिष्टि करेगा 
  • मानसिक तत्त्व: कपटपूर्वक /बेईमानी का आशय या जनता या किसी व्यक्ति को नुकसान/क्षति कारित करने का आशय 
  • दण्ड : आजीवन कारावास या 7 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना। 
  • दायरा : दस्तावेज़ों को नष्ट करने के प्रयत्न और पूर्ण किये गए दोनों कार्यों को सम्मिलित करता है। 

लेखा का मिथ्याकरण (धारा 344) 

  • लागू व्यक्ति: लिपिक, अधिकारी, कर्मचारी, या ऐसे सेवक के नाते नियोजित कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति। 
  • निषिद्ध कार्य : 
    • नियोजक की पुस्तकों/अभिलेखों को नष्ट करना, परिवर्तित, विकृत करना या मिथ्याकृत करना 
    • मिथ्या प्रविष्टियाँ करना या महत्त्वपूर्ण विवरण छोड़ना 
    • दूसरों द्वारा ऐसे कृत्यों को बढ़ावा देना 
  • मुख्य आवश्यकताएँ : जानबूझकर किया गया कार्य + कपट करने का आशय (सामान्य आशय पर्याप्त है - किसी विशेष पीड़ित या राशि को निर्दिष्ट करने की आवश्यकता नहीं है)। 
  • दण्ड: 7 वर्ष तक का कारावास, जुर्माना, या दोनों। 

महत्त्वपूर्ण निर्णय विधि 

  • इब्राहिम एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (2009): उच्चतम न्यायालय ने स्थापित किया कि कूटरचना में बिना प्राधिकरण के किसी अन्य के नाम पर दस्तावेज़ रचना, अनधिकृत परिवर्तन करना, या पीड़ितों से दस्तावेज़ प्राप्त करने के लिये कपटपूर्ण रणनीति का उपयोग करना सम्मिलित है, जैसा कि तब प्रदर्शित हुआ जब अभियुक्तों ने कपटपूर्वक दस्तावेज़ों का उपयोग करके संपत्ति विक्रय करारों को कपटपूर्वक से निष्पादित किया।  
  • ए.एस. कृष्णन बनाम केरल राज्य (2004): न्यायालय ने निर्णय दिया कि व्यक्तिगत प्रेरणा दस्तावेज़ कपट को क्षमा नहीं करता है, जब एक पिता ने अपने पुत्र के मेडिकल प्रवेश के लिये फर्जी मार्कशीट बनाई, न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि जानबूझकर आधिकारिक उद्देश्यों के लिये फर्जी दस्तावेज़ों का उपयोग करना धारा भारतीय दण्ड संहिता की 471 के अधीन गंभीर अपराध है, चाहे पारिवारिक संबंध कुछ भी हों। 
  • स्टाम्प पेपर घोटाला (2003) जिसमें अब्दुल करीम तेलगी का कूटकृत स्टाम्प पेपर नेटवर्क शामिल था, जो 75 शहरों में 300 डीलरों तक फैला हुआ था, ने बड़े पैमाने पर व्यवस्थित दस्तावेज़ कपट और कूटकृत कार्यों से निपटने के लिये उपलब्ध व्यापक विधिक ढाँचे को प्रदर्शित किया।  

निष्कर्ष 

भारतीय न्याय संहिता, 2023 ने दस्तावेज़ संबंधी अपराधों से संबंधित भारतीय विधियों को डिजिटल अभिलेख और इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों को सम्मिलित करते हुए अद्यतन किया है। यह अपराध की गंभीरता के आधार पर कठोर दण्ड सुनिश्चित करता है, जिसमें जुर्माने से लेकर आजीवन कारावास तक का दण्ड सम्मिलित है, जिसमें नकली दस्तावेज़ बनाने से लेकर उनका उपयोग या उन्हें रखने तक, सब कुछ सम्मिलित है। इससे आधिकारिक कागजी कार्रवाई और प्रणालियों में विश्वास बनाए रखने में सहायता मिलती है।