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सिविल कानून
राइलैंड्स बनाम फ्लेचर (1868) L.R. 3 H.L. 330
« »06-Aug-2024
परिचय
इस मामले ने कठोर दायित्व के सिद्धांत को स्थापित किया, जिसके अनुसार किसी व्यक्ति का उत्तरदायित्व, कठोर होता है, भले ही उसके द्वारा कोई लापरवाही न हुई हो।
- इस मामले में स्थापित कठोर दायित्व के सिद्धांत को अपकृत्य विधि में सामान्य लापरवाही मानक से विचलन के रूप में देखा गया, जिससे संभावित हानिप्रद गतिविधियों के लिये सावधानी का एक उच्च मानक तैयार हुआ।
तथ्य
- वादी एक खदान का स्वामी था और एक भूमिखण्ड के निकट उसका खनन कार्य होता था।
- प्रतिवादियों की एक मिल, वादी की खदान के निकट स्थित थी।
- प्रतिवादियों ने अपनी मिल में उपयोग करने हेतु पानी जमा करने के लिये अपनी ज़मीन पर एक जलाशय बनाने का निर्णय किया। यह ज़मीन वादी की खदान के निकट स्थित थी, परंतु उस खदान से बिल्कुल सटी हुई नहीं थी।
- प्रतिवादियों की भूमि के नीचे, जहाँ उन्होंने जलाशय बनाने की योजना बनाई थी, वहाँ कुछ पुराने, अप्रयुक्त खनन मार्ग तथा शाफ्ट (खनिज निकालने के लिये बनाये गये गड्ढे) थे। इनमें पाँच ऊर्ध्वाधर शाफ्ट और उन्हें जोड़ने वाली कुछ क्षैतिज शाफ्ट शामिल थीं।
- ये पुराने खनन मार्ग और शाफ्ट, मिट्टी एवं कचरे से भर गए थे। उस समय इनके अस्तित्व के विषय में किसी को पता नहीं था।
- वादी अपनी खदान में खनन कार्य कर रहा था, तो उसने धीरे-धीरे अपनी भूमि के नीचे कोयला निकालने का काम किया और प्रतिवादियों की भूमि के नीचे इन पुरानी, अप्रयुक्त खदानों तक पहुँच गया।
- प्रतिवादियों ने अपने जलाशय का निर्माण कार्य जारी रखा। उन्होंने इसे डिज़ाइन करने और बनाने के लिये एक इंजीनियर तथा एक ठेकेदार को नियुक्त किया।
- प्रतिवादियों ने स्वयं इस कार्य में कोई व्यक्तिगत भाग नहीं लिया तथा उन्हें किसी भी संभावित सुरक्षा मुद्दे की जानकारी नहीं थी।
- जब जलाशय पानी से भर जाता था या आंशिक रूप से भर जाता था, तो पानी का भार, मिट्टी और पत्थर से भरे गए ऊर्ध्वाधर शाफ्टों पर दबाव डालता था।
- पानी इन शाफ्टों को तोड़ते हुये क्षैतिज खदानों में फैल गया तथा फिर वहाँ से रिस कर वादी की खदान में भर गया।
- इस जलभराव से वादी की खदान को काफी हानि पहुँची।
- इस क्षति के परिणामस्वरूप, वादी ने प्रतिवादियों के विरुद्ध विधिक वाद दायर किया।
- इस मामले की पहली सुनवाई राजकोषीय न्यायालय में हुई।
- इस न्यायालय ने प्रतिवादियों के पक्ष में निर्णय दिया, जिसमें पाया गया कि वादी, विधिक कार्यवाही करने का कोई कारण स्थापित नहीं कर पाया था।
- वादी ने इस निर्णय के विरुद्ध राजकोषीय चैंबर न्यायालय में अपील की।
- राजकोषीय चैंबर न्यायालय ने राजकोषीय न्यायालय के निर्णय को पलट दिया तथा सर्वसम्मति से पाया कि वादी के पास विधिक कार्यवाही का कारण था एवं वादी क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है।
- इसके उपरांत प्रतिवादी ने इस निर्णय के विरुद्ध हाउस ऑफ लार्ड्स में अपील की, जिसके परिणामस्वरूप मामले में अंतिम निर्णय किया गया।
शामिल मुद्दे
- क्या प्रतिवादियों के कृत्यों के कारण क्षति हुई है?
टिप्पणियाँ
- हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने राजकोषीय चैंबर न्यायालय के निर्णय की पुष्टि करते हुए वादी के पक्ष में निर्णय दिया।
- न्यायालय ने राइलैंड्स बनाम फ्लेचर मामले में एक नियम स्थापित किया- “जो व्यक्ति अपनी भूमि पर कोई ऐसी वस्तु लाता है और उसे इकट्ठा करके रखता है जिस वस्तु के निकास होने पर हानि होने की संभावना हो, तो उस व्यक्ति को ऐसी वस्तु अपने जोखिम पर रखनी चाहिये। यदि वह वस्तु उस व्यक्ति के अधिकार से निकल जाती है, तो वह व्यक्ति प्रथम दृष्टया उन सभी हानियों के लिये उत्तरदायी हैं जो उस वस्तु के निकास का स्वाभाविक परिणाम हैं।”
- इस निर्णय ने कुछ गतिविधियों के लिये कठोर दायित्व के सिद्धांत को प्रभावी ढंग से स्थापित किया।
- कठोर दायित्व का अर्थ है कि किसी भी पक्ष को उसकी गलती या आशय की परवाह किये बिना क्षति के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
- इस सिद्धांत के अंतर्गत, प्रतिवादियों को उनके जलाशय से पानी के रिसाव के कारण हुई क्षति के लिये उत्तरदायी ठहराया गया, भले ही उन्होंने इसके निर्माण या संचालन में कोई लापरवाही नहीं बरती थी।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसे मामलों में प्रश्न यह नहीं है कि प्रतिवादी ने उचित सावधानी बरती या नहीं, बल्कि यह है कि क्या उनके कृत्यों के कारण हानि हुई। यह कठोर दायित्व की एक प्रमुख विशेषता है।
- न्यायालय ने तर्क दिया कि जब एक व्यक्ति अपने मामलों का प्रबंधन करते हुए किसी अन्य को हानि पहुँचाता है तथा इस हानि को कारित करने में भले ही वह निर्दोष हो, तो यह उचित है कि उसे ही परिणाम भुगतने चाहिये।
- इस मामले ने कुछ गतिविधियों के लिये कठोर दायित्व का एक रूप स्थापित किया। जिन्हें उस क्षेत्र, जिसमें वे घटित होती हैं, के लिये विशेष रूप से हानिकारक या अनुपयुक्त माना जाता है तथा अपकृत्य विधि में एक उदाहरण स्थापित किया, जो वर्तमान समय में भी प्रभावी है।
निष्कर्ष:
अत: यह माना गया कि प्रतिवादी, वादी को हुई हानि की भरपाई करने के लिये उत्तरदायी है।