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सिविल कानून
प्रस्थापना
« »02-Feb-2024
परिचय:
संविदा बनाने के लिये पहली चीज़ एक मान्य प्रस्थापना या प्रस्ताव होता है। प्रस्ताव शब्द का उपयोग अंग्रेज़ी कानून में किया गया है और प्रस्थापना शब्द का उपयोग भारतीय कानून में किया गया है।
- भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA) की धारा 2(a) प्रस्थापना को परिभाषित करती है।
ICA की धारा 2(a):
- इस धारा में कहा गया है कि जब कि एक व्यक्ति किसी बात को करने या करने से प्रविरत रहने की अपनी रज़ामंदी किसी अन्य को इस दृष्टि से संज्ञापित करता है कि ऐसे कार्य या प्रविरति के प्रति उस अन्य की अनुमति अभिप्राप्त करे, तब वह प्रस्थापना करता है, यह कहा जाता है।
- प्रस्थापना देने वाले व्यक्ति को वचनदाता कहा जाता है और प्रस्थापना को स्वीकार करने वाले व्यक्ति को वचनगृहीता कहा जाता है।
मान्य प्रस्थापना की आवश्यक शर्तें:
- कम-से-कम दो पक्ष होने चाहिये, एक प्रस्थापना देने वाला और दूसरा उस पर सहमत होने वाला।
- दूसरे की सहमति प्राप्त करने के लिये कुछ करने से प्रविरत रहना या न करने की इच्छा की अभिव्यक्ति।
- एक प्रस्थापना में निम्नलिखित संघटक होते हैं:
- एक व्यक्ति दूसरे को सूचित करता है।
- कुछ भी करने या करने से प्रविरत रहने की उसकी इच्छा।
- उस दूसरे की सहमति प्राप्त करने की दृष्टि से।
- अनौपचारिक पूछताछ कोई प्रस्थापना नहीं होता है।
- एक प्रस्थापना में निम्नलिखित संघटक होते हैं:
- संविदा करने का आशय:
- एक प्रस्ताव ऐसा होना चाहिये कि स्वीकार किये जाने पर इसका परिणाम एक मान्य संविदा हो। मात्र सामाजिक निमंत्रण को एक प्रस्ताव नहीं माना जा सकता, क्योंकि यदि ऐसा निमंत्रण स्वीकार कर लिया जाता है तो इससे कोई कानूनी संबंध स्थापित नहीं होगा।
- अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा:
- ICA की धारा 9 में प्रावधान है कि एक मान्य प्रस्थापना शब्दों (अभिव्यक्त प्रस्ताव) या सञ्चालन (विवक्षित प्रस्ताव) द्वारा की जा सकती है।
- प्रस्ताव की निश्चितता:
- प्रस्ताव की शर्तें अस्पष्ट नहीं बलिक, निश्चित होनी चाहिये।
- प्रस्ताव का संचार:
- प्रस्थापना को दूसरे पक्ष को संचारित किया जाना चाहिये।
- यदि प्रस्थापना अभी तक संचारित नहीं किया गया है, भले ही कोई व्यक्ति प्रस्थापना की शर्तों के अनुसार कार्य करता हो, उसे उस प्रस्थापना का स्वीकर्ता नहीं माना जा सकता है।
- चाहे प्रस्ताव सामान्य हो या विशिष्ट, संचार आवश्यक है।
प्रस्थापना के प्रकार:
- सामान्य प्रस्थापना: यह प्रस्थापना जनता या विश्व भर के लिये की जाती है लेकिन संविदा केवल उसी व्यक्ति के साथ की जाती है जो आगे आकर प्रस्थापना की शर्तों का पालन करता है।
- विशिष्ट प्रस्थापना: यह प्रस्थापना किसी विशिष्ट या सुनिश्चित व्यक्ति को दी जाती है।
- क्रॉस प्रस्थापना: जब दो पक्ष एक-दूसरे के प्रस्थापना से अनभिज्ञ होकर एक-दूसरे के सामने समरूप प्रस्थापना रखते हैं, तो प्रस्थापना को क्रॉस प्रस्थापना माना जाता है। ऐसे मामलों में पूर्ण सहमति नहीं बन पाती।
- प्रति प्रस्थापना: यह प्रस्थापना एक प्रारंभिक प्रस्ताव का उत्तर होता है। प्रति प्रस्थापना का अर्थ है कि मूल प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया है और उसके स्थान पर दूसरे प्रस्ताव को लाया गया है। यह तीन विकल्प प्रदान करता है अर्थात् इसे स्वीकार करना, अस्वीकार करना या संबंधित कोई अन्य प्रस्ताव देना।
प्रस्थापना/प्रस्ताव हेतु आमंत्रण:
- जहाँ एक पक्ष, अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त किये बिना, कुछ शर्तों को प्रस्थापित करता है जिन पर वह बातचीत करने को तैयार है, वह कोई प्रस्थापना नहीं करता है बल्कि केवल दूसरे पक्ष को उन शर्तों पर प्रस्थापना बनाने के लिये आमंत्रित करता है।
निर्णयज विधि:
- फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट्स ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम ग्वालियर केमिकल वर्क्स लिमिटेड (1960) मामले में, यह माना गया था कि मूल्य सूची कोई प्रस्ताव या प्रस्थापना नहीं बल्कि, प्रस्ताव के लिये एक निमंत्रण है। न्यायालय ने कहा कि एक संविदा तभी बनती है जब एक पक्ष द्वारा प्रस्ताव दिया जाता है और दूसरे पक्ष द्वारा स्वीकार किया जाता है।
- फिशर बनाम बेल (1961) मामले में, यह माना गया कि दुकान की खिड़की या शेल्फ पर वस्तुओं का प्रदर्शन आमतौर पर प्रस्ताव का निमंत्रण होता है, न कि कोई प्रस्ताव। एक निश्चित कीमत पर वस्तु खरीदने की ग्राहक का प्रस्ताव एक प्रस्थापना का गठन करेगा, और दुकान के मालिक की प्रस्थापना की स्वीकृति एक बाध्यकारी संविदा बन जाएगी।
- बाल्फोर बनाम बाल्फोर (1919) मामले में, अंग्रेज़ी अपील न्यायालय ने माना कि कानूनी संबंध बनाने के किसी आशय के बिना किया गया एक सामाजिक या घरेलू समझौता एक बाध्यकारी संविदा नहीं बनती है।
- लालमन शुक्ला बनाम गौरी दत्त (1913) मामले में, यह माना गया कि एक संविदा बनाने के लिये, एक प्रस्थापना की स्वीकृति होनी चाहिये, जब तक प्रस्थापना का ज्ञान न हो तब तक कोई स्वीकृति नहीं हो सकती है।