एडमिशन ओपन: UP APO प्रिलिम्स + मेंस कोर्स 2025, बैच 6th October से   |   ज्यूडिशियरी फाउंडेशन कोर्स (प्रयागराज)   |   अपनी सीट आज ही कन्फर्म करें - UP APO प्रिलिम्स कोर्स 2025, बैच 6th October से










होम / भारतीय न्याय संहिता एवं भारतीय दण्ड संहिता

आपराधिक कानून

भारतीय न्याय संहिता, 2023 में मुख्य परिवर्तन

    «
 16-Oct-2025

परिचय 

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) भारत की आपराधिक विधि प्रणाली में एक व्यापक परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करती हैजिसने औपनिवेशिक कालीन भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) का प्रतिस्थापन किया है। यह ऐतिहासिक विधान मौजूदा ढाँचे को पुनर्संरचित करते हुए भारतीय दण्ड संहिता की 511 धाराओं को संक्षिप्त कर 358 धाराओं में समाहित करता है तथा समकालीन आपराधिक चुनौतियों के समाधान हेतु आधुनिक प्रावधानों का समावेश करता हैसाथ ही साथ अप्रचलित एवं औपनिवेशिक संदर्भों का उन्मूलन भी सुनिश्चित करता है।   

प्रमुख परिवर्तन  

1. प्रावधानों कासमेकन:  

  • भारतीय न्याय संहिता ने प्रावधानों को सुव्यवस्थित और समेकित किया हैजिससे भारतीय दण्ड संहिता की धाराओं की संख्या 511 से घटकर 358 रह गई है। 
  • भारतीय न्याय संहिता की धारा 317 भारतीय दण्ड संहिता के अधीन चोरी की गई संपत्ति से संबंधित सभी प्रावधानों को एकीकृत करती हैजो पहले धारा 410 से 414 तक फैले हुए थे।  
  • सभी तीन अपूर्ण अपराधों - "प्रयत्न", "दुष्प्रेरण" और "षड्यंत्र" - को भारतीय न्याय संहिता के अध्याय के अंतर्गत एक साथ लाया गया है। 
  • इससे पहले, "दुष्प्रेरण" और "षड्यंत्र" को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 109-120 और 120क व 120ख के अंतर्गत सम्मिलित किया गया थाजबकि "प्रयत्न" को धारा 511 के अंतर्गत सम्मिलित किया गया था। 

2. आधुनिक भाषा और परिभाषाएँ:

  • भारतीय न्याय संहिता ने पुरानी भाषा और औपनिवेशिक संदर्भों के अवशेषों को हटा दिया है।  
  • "अवयस्क" और "अठारह वर्ष से कम आयु के बालक के स्थान पर समान रूप से "बालक" शब्द का प्रयोग किया गया है। 
  • "उन्मत्त", "विक्षिप्त" और "जड़" जैसे पुराने शब्दों के स्थान पर " विकृतचित्त व्यक्ति" शब्द का प्रयोग किया गया।  

3. विस्तारितअधिकारिता: 

  • भारतीय न्याय संहिता की धारा 48 द्वारा अधिकारिता का विस्तार करते हुए भारत से बाहर किये गए अपराध हेतु दुष्प्रेरण को भी दण्डनीय बनाया गया है 
  • इसके माध्यम से विधिक प्रवर्तन की परिधि को भौगोलिक सीमाओं से परे विस्तृत किया गया है।  

4. संपत्ति के विरुद्ध अपराध:

  • "चोरी" की परिभाषा का विस्तार कर इसमें वाहन की चोरीवाहन से चोरीसरकारी संपत्ति की चोरी तथा पूजा स्थल से मूर्ति या प्रतीक की चोरी को भी सम्मिलित किया गया है। 
  • भारतीय न्याय संहिता की धारा 304 के अंतर्गत " झपटमारी" का नया अपराध सम्मिलित किया गया है 
  • चोरी तभी झपटमारी के समान मानी जाती है जब वह अचानकशीघ्रता से या बलपूर्वक की गई हो।  

5. महिलाओं औरबालक के विरुद्ध अपराध: 

  • महिलाओं और बालक के विरुद्ध सभी अपराधों को भारतीय न्याय संहिता के अध्याय के अंतर्गत समेकित किया गया। 
  • अध्याय के बाद अध्याय में मानव शरीर को प्रभावित करने वाले अपराधों का उल्लेख है। 
  • महिलाओं के विरुद्ध विभिन्न अपराधों में अपराधी के संबंध में लिंग-तटस्थता सुनिश्चित की गई। 
  • अब इन अपराधों के लिये सभी लिंगों को दण्डित किया जा सकता है। 

6. मानव शरीर के विरुद्ध अपराध:

  • आत्महत्या के प्रयत्न के अपराध को भारतीय न्याय संहिता से हटा दिया गया है। 
  • किसी लोक सेवक को वैध शक्ति के प्रयोग के लिये बाध्य करने या रोकने हेतु आत्महत्या के प्रयास को अपराध घोषित करने वाली नई धारा जोड़ी गई। 
  • भीड़ द्वारा हत्या से संबंधित धारा 103 के अंतर्गत आपराधिक मानव वध की उप-श्रेणी शुरू की गई।  
  • पीड़ित का मूलवंशजातिसमुदायलिंगजन्म स्थानभाषाव्यक्तिगत विश्वास या इसी तरह के आधार पर "पाँच या अधिक व्यक्तियों के समूह" द्वारा हत्या और/या घोर उपहति कारित करने को अपराध माना जाता है। 

7. संगठित अपराध और आतंकवादी कृत्य:

  • भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत "संगठित अपराध" और "छोटे संगठित अपराध" के नए अपराध सम्मिलित किये गए। 
  • पहली बार "संगठित अपराध" को केंद्रीय विधि में अपराध के रूप में मान्यता दी गई। 
  • पहले इसे केवल महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 और गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2015 जैसे राज्य विधानों के अधीन विनियमित किया जाता था। 
  • पहली बार "आतंकवादी कृत्य" को सामान्य आपराधिक विधि के अधीन अपराध घोषित किया गया। 
  • पहले इसे केवल विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 जैसी विशेष विधियों के अधीन ही संबोधित किया जाता था। 

8. राज्य के विरुद्ध अपराध:

  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124क (राजद्रोह) हटा दी गई है। 
  • नया अपराध: "भारत की संप्रभुताएकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य"। 
  • इसी प्रकार राजद्रोह के स्थान पर यह विधि लागू होती है। 

9. लोकशांति के विरुद्ध अपराध: 

  • भारतीय न्याय संहिता की धारा 197(1)(मिथ्या या भ्रामक जानकारी देने या प्रकाशित करने को अपराध बनाती है। 
  • विशेष रूप से ऐसी सूचना को लक्षित करता है जो भारत की संप्रभुताएकताअखंडता या सुरक्षा को खतरे में डालती है। 

निष्कर्ष 

भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय आपराधिक विधिशास्त्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का प्रतीक हैजो समकालीन चुनौतियों का समाधान करते हुए विधिक ढाँचे का सफलतापूर्वक आधुनिकीकरण करती है। व्यवस्थित समेकनभाषा आधुनिकीकरण और संगठित अपराधआतंकवाद और भीड़ हिंसा के लिये प्रावधानों की शुरुआत के माध्यम सेभारतीय न्याय संहिता एक अधिक कुशल और व्यापक आपराधिक न्याय प्रणाली का निर्माण करती है।