भारत का विधि आयोग
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भारत का विधि आयोग

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 13-Mar-2024

विधि आयोग क्या है?

भारत का विधि आयोग एक गैर-सांविधिक निकाय है जिसका गठन विधि एवं न्याय मंत्रालय के तहत एक सरकारी अधिसूचना द्वारा किया जाता है।

  • यह भारत सरकार के आदेश द्वारा स्थापित एक कार्यकारी निकाय है। इसका प्रमुख कार्य विधिक सुधारों के लिये कार्य करना है।
  • यह विधिक अनुसंधान करता है और सरकार के लिये सिफारिशों के साथ रिपोर्ट जारी करता है।
  • यह विधिक अधिकारियों द्वारा संदर्भित विषयों को संबोधित करता है और अभी तक 280 से भी अधिक रिपोर्ट्स प्रस्तुत कर चुका है।
  • आयोग भारतीय विधि की आलोचनात्मक और व्यावहारिक समीक्षा प्रस्तुत करता है, जो विधिक चर्चा एवं सुधार में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
  • आयोग एक निश्चित कार्यकाल के लिये स्थापित किया गया है और विधि एवं न्याय मंत्रालय के लिये एक सलाहकार निकाय के रूप में काम करता है।
  • इसकी सदस्यता में मुख्य रूप से विधिक विशेषज्ञ शामिल होते हैं।

भारत में विधि आयोग का इतिहास क्या है?

  • भारत में विधिक सुधार 300 वर्षों से अधिक समय से चल रहा है, जिसकी शुरुआत ब्रिटिश संसद द्वारा चार्टर अधिनियम, 1833 से हुई।
    • चार्टर अधिनियम, 1833 ने परिषद में गवर्नर-जनरल को वर्ष 1834 से 1920 तक विधि निर्माण का अधिकार दिया, जो विधायी अधिकारों में बदलाव का प्रतीक था।
    • भारतीय कानूनों के व्यापक समेकन और संहिताकरण की आवश्यकता पर बल देते हुए विधायी विभाग वर्ष 1869 में स्वतंत्र हो गया।
  • चार्टर अधिनियम ने विधिक मामलों पर सलाह देने के लिये विधि आयोग की शुरुआत करते हुए अखिल भारतीय विधायिका की स्थापना की।
    • विधान परिषद, जिसमें गवर्नर-जनरल और चार सदस्य शामिल थे, के पास विधायी शक्तियाँ थीं।
  • वर्ष 1837 में लॉर्ड मैकाले से प्रारंभ होकर चार विधि आयोगों ने भारतीय दण्ड संहिता और सिविल प्रक्रिया संहिता जैसे सुधारों की सिफारिश की।
    • उनके योगदान ने भारतीय विधि को समृद्ध किया, भारतीय संदर्भों के अनुकूल अंग्रेज़ी विधिक सिद्धांतों के साथ समन्वय स्थापित किया।
    • सिविल प्रक्रिया संहिता, भारतीय संविदा अधिनियम, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, संपत्ति अंतरण अधिनियम आदि पहले चार विधि आयोगों द्वारा निर्मित किये गए हैं।

भारत के विधि आयोग का दूरदर्शिता और मिशन क्या है?

  • दूरदर्शिता:
    • समाज में न्याय को अधिकतम करने और कानून के शासन के तहत सुशासन को बढ़ावा देने के लिये कानूनों में सुधार करना।
  • मिशन:
    • पुराने कानूनों की समीक्षा करना और उन्हें निरस्त करना।
    • आर्थिक रूप से वंचितों लोगों को प्रभावित करने वाले कानूनों की जाँच करना।
    • सामाजिक-आर्थिक कानून पर पोस्ट-ऑडिट आयोजित करना।
    • समसामयिक आवश्यकताओं के प्रति न्यायिक प्रणाली की प्रतिक्रिया की निगरानी करना।
    • वृद्धि और सुधार के लिये राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुरूप कानूनों का मूल्यांकन करना।
    • निदेशक सिद्धांतों और संवैधानिक उद्देश्यों को लागू करने के लिये विधान का प्रस्ताव करना।
    • लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये मौजूदा कानूनों का आकलन करना और उनमें संशोधन का सुझाव देना।
    • विसंगतियों और अन्यायों को दूर करने के लिये केंद्रीय अधिनियमों को सरल बनाना तथा उनमें सुधार करना।
    • खाद्य सुरक्षा और बेरोज़गारी पर वैश्वीकरण के प्रभाव का विश्लेषण करना।
    • हाशिये पर मौजूद समूहों के हितों की रक्षा के लिये उपायों की सिफारिशें करना।

भारत के विधि आयोग का संविधान क्या है?

  • नोट: भारत के विधि आयोग के दो पदेन सदस्य विधिक मामलों के विभाग के सचिव और विधायी विभाग के सचिव होते हैं।

स्वतंत्रता के बाद के क्या विकास हैं?

  • स्वतंत्रता के बाद, संविधान ने अनुच्छेद 372 के तहत संविधान-पूर्व कानूनों को तब तक जारी रखने की शर्त रखी जब तक कि उनमें संशोधन या उसे निरस्त नहीं किया जाता।
  • देश की बदलती आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये विरासत में मिले कानूनों में संशोधन एवं अद्यतन की सिफारिश करने के लिये एक केंद्रीय विधि आयोग की स्थापना की मांग संसद में और संसद के बाहर की गई थी।
  • भारत सरकार ने वर्ष 1955 में स्वतंत्र भारत के पहले विधि आयोग की स्थापना की, जिसके अध्यक्ष भारत के तत्कालीन महान्यायवादी श्री एम. सी. सीतलवाड थे। तब से लेकर विधि आयोग के 21 सदस्य नियुक्त किये गए हैं, सभी का कार्यकाल तीन वर्ष का ही है।

विधि आयोग के कार्य क्या हैं?

  • विधि आयोग, केंद्र सरकार द्वारा दिये गए संदर्भ पर या स्वत: संज्ञान लेकर, कानून में अनुसंधान करता है और भारत में विधिक सुधार करने तथा नयी विधि बनाने के लिये मौजूदा कानूनों की समीक्षा करता है।
  • यह प्रक्रियाओं में विलंब को समाप्त करने, मामलों के त्वरित निपटान, मुकदमेबाज़ी की लागत में कमी आदि के लिये न्याय वितरण प्रणालियों में सुधार लाने के लिये अध्ययन और अनुसंधान भी करता है।
  • विधि आयोग के अन्य कार्यों में शामिल हैं:
    • उन कानूनों की पहचान करना जो अब सुसंगत नहीं हैं और अप्रचलित तथा अनावश्यक अधिनियमों को निरस्त करने की सिफारिश करना।
    • गरीबों को प्रभावित करने वाले कानूनों की जाँच करना और सामाजिक-आर्थिक कानूनों के लिये पोस्ट-ऑडिट करना।
    • निदेशक सिद्धांतों को लागू करने और संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक नए कानून बनाने का सुझाव देना।
    • विधि और न्यायिक प्रशासन से संबंधित किसी भी विषय पर विचार करना तथा सरकार को अपने विचारों से अवगत कराना, जिसे विधि एवं न्याय मंत्रालय (विधि मामलों का विभाग) के माध्यम से सरकार द्वारा विशेष रूप से संदर्भित किया जा सकता है।
    • विधि एवं न्याय मंत्रालय (विधि मामलों के विभाग) के माध्यम से सरकार द्वारा किसी भी विदेशी देश को अनुसंधान प्रदान करने के अनुरोधों पर विचार करना।
    • लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की दृष्टि से मौजूदा कानूनों का परीक्षण करना और उनमें संशोधन का सुझाव देना।
    • खाद्य सुरक्षा, बेरोज़गारी पर वैश्वीकरण के प्रभाव की जाँच करना और हाशिये पर रह रहे लोगों के हितों की सुरक्षा के लिये उपायों की सिफारिश करना।
    • केंद्र सरकार द्वारा किये गए सभी मुद्दों, मामलों, अध्ययनों एवं अनुसंधानों पर समय-समय पर रिपोर्ट तैयार करना और प्रस्तुत करना तथा ऐसी रिपोर्टों में संघ या किसी राज्य द्वारा उठाए जाने वाले प्रभावी उपायों के लिये सिफारिशें करना।
    • केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर सौंपे जाने वाले ऐसे अन्य कार्य करना।
  • अपनी सिफारिशों को मूर्त रूप देने से पहले, आयोग नोडल मंत्रालय/विभागों और ऐसे अन्य हितधारकों से परामर्श करता है जिन्हें आयोग इस उद्देश्य के लिये आवश्यक समझता है।

विधि आयोग की हालिया रिपोर्ट क्या हैं?

  • रिपोर्ट संख्या 287 - अनिवासी भारतीयों और भारत के प्रवासी नागरिकों से संबंधित वैवाहिक मुद्दों पर कानून।
  • रिपोर्ट संख्या 286 - महामारी अधिनियम, 1897 की एक व्यापक समीक्षा।
  • रिपोर्ट संख्या 285 - आपराधिक मानहानि पर कानून।
  • रिपोर्ट संख्या 284 - सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम पर कानून पर दोबारा विचार करना।
  • रिपोर्ट संख्या 283 - लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) के तहत सहमति की आयु।
  • रिपोर्ट संख्या 282 - प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के ऑनलाइन रजिस्ट्रीकरण को सक्षम करने के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 में संशोधन।
  • रिपोर्ट संख्या 281 - भारतीय तार अधिनियम, 1885 और विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत टावरों एवं ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना के कारण क्षति के लिये मुआवज़ा।
  • रिपोर्ट संख्या 280 - प्रतिकूल कब्ज़ा करने पर कानून।
  • रिपोर्ट संख्या 279 - राजद्रोह के कानून का उपयोग।
  • रिपोर्ट संख्या 278 - सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश VII के नियम 14(4) में संशोधन की तत्काल आवश्यकता।

आयोग की सिफारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं हैं। उन्हें स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है। उक्त सिफारिशों पर कार्रवाई उन मंत्रालयों/विभागों पर निर्भर करती है, जो सिफारिशों की विषय-वस्तु से संबंधित हैं।

विषय और उनकी प्रमुख रिपोर्टें क्या हैं?

क्र.सं.

विषय और रिपोर्टों की कुल संख्या

महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट

 1.

भारतीय दण्ड संहिता: 19 रिपोर्ट

  • 35वीं रिपोर्ट: मृत्युदण्ड।
  • 172वीं रिपोर्ट: बलात्कार कानूनों की समीक्षा।
  • 226वीं रिपोर्ट: भारतीय दण्ड संहिता में एसिड हमलों को विशिष्ट अपराधों के रूप में शामिल करना और अपराध के पीड़ितों के लिये मुआवज़े का कानून बनाना।
  • 241वीं रिपोर्ट: निष्क्रिय सहजमृत्यु - एक पुनर्विचार।

2. 

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC): 23 रिपोर्ट

  • 78वीं रिपोर्ट: जेलों में विचाराधीन कैदियों की भीड़।
  • 135वीं रिपोर्ट: अभिरक्षा में महिलाएँ।
  • 152वीं रिपोर्ट: हिरासत में अपराध।
  • 177वीं रिपोर्ट: गिरफ्तारी से संबंधित कानून।

3.  

साक्ष्य: 08 रिपोर्ट

  • 185वीं रिपोर्ट: साक्ष्य के कानून की समीक्षा।

4.  

नवीनतम: 09 रिपोर्ट

  • 173वीं रिपोर्ट: आतंकवाद निरोधक विधेयक, 2000।

5.  

विवाह/विवाह-विच्छेद/भरण-पोषण: 23 रिपोर्ट

  • 15वीं रिपोर्ट: भारत में ईसाइयों के बीच विवाह और विवाह-विच्छेद से संबंधित कानून।
  • 73वीं रिपोर्ट: कुछ अधिनियमों या कानून के नियमों के तहत न्यायालय द्वारा पत्नी को दिये गए भरण-पोषण या स्थायी गुज़ारा भत्ते का भुगतान करने में पति द्वारा विफलता के लिये आपराधिक दायित्व।
  • 217वीं रिपोर्ट: विवाह का अपूरणीय विघटन - विवाह-विच्छेद का एक और आधार। 
  • 227वीं रिपोर्ट: इस्लाम में रूपांतरण के माध्यम से द्विविवाह को रोकना - उच्चतम न्यायालय के निर्णयों को वैधानिक प्रभाव देने का प्रस्ताव।

6. 

अभिरक्षा/संरक्षकता/दत्तक ग्रहण: 06 रिपोर्ट

  • 153वीं रिपोर्ट: दत्तक ग्रहण
  • 257वीं रिपोर्ट: भारत में संरक्षकता और अभिरक्षा कानूनों में सुधार।

7. 

उत्तराधिकार: 08 रिपोर्ट

  • 174वीं रिपोर्ट: महिलाओं के संपत्ति अधिकार: हिंदू विधि के तहत प्रस्तावित सुधार।

8.  

सिविल प्रक्रिया संहिता: 12 रिपोर्ट

  • 238वीं रिपोर्ट: सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 89 और संबद्ध प्रावधानों का संशोधन।

9. 

चुनावी सुधार: 03 रिपोर्ट

  • 170वीं रिपोर्ट: चुनावी कानूनों में सुधार।
  • 244वीं रिपोर्ट: चुनावी अयोग्यताएँ।
  • 255वीं रिपोर्ट: चुनावी सुधार।

10. 

रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908: 03 रिपोर्ट

  • 34वीं रिपोर्ट: भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908।

11. 

माध्यस्थम्: 06 रिपोर्ट

  • 76वीं रिपोर्ट: माध्यस्थम् अधिनियम, 1940
  • 176वीं रिपोर्ट: माध्यस्थम् और सुलह (संशोधन) विधेयक, 2002।
  • 246वीं रिपोर्ट: माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 में संशोधन (पूरक रिपोर्ट के साथ)।

12. 

अधिकरण: 11 रिपोर्ट

  • 14वीं रिपोर्ट: न्यायिक प्रशासन में सुधार।
  • 215वीं रिपोर्ट: एल. चंद्र कुमार की भारत के उच्चतम न्यायालय की बड़ी पीठ द्वारा दोबारा समीक्षा।
  • 272वीं रिपोर्ट: भारत में अधिकरणों के वैधानिक ढाँचे का आकलन।

13. 

उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय: 36 रिपोर्ट

  • चौथी रिपोर्ट: इस प्रस्ताव पर कि उच्च न्यायालयों को एक राज्य में विभिन्न स्थानों पर पीठों में बैठना चाहिये।
  • 72वीं रिपोर्ट: स्थायी न्यायाधीश होने के बाद अभ्यास पर प्रतिबंध, संविधान का अनुच्छेद 220।
  • 116वीं रिपोर्ट: अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन।
  • 192वीं रिपोर्ट: कष्टप्रद मुकदमेबाज़ी की रोकथाम।
  • 214वीं रिपोर्ट: न्यायाधीशों के मामले I, II और III पर पुनर्विचार का प्रस्ताव - एस. पी. गुप्ता बनाम भारत संघ
  • 239वीं रिपोर्ट: प्रभावशाली लोक हस्तियों के विरुद्ध आपराधिक मामलों की शीघ्र जाँच और सुनवाई।

14. 

संविधान: 06 रिपोर्ट

  • 145वीं रिपोर्ट: संविधान का अनुच्छेद 12 और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम।
  • 180वीं रिपोर्ट: भारत के संविधान का अनुच्छेद 20(3) और मौन रहने का अधिकार।

15.

जनसंपर्क माध्यम: 02 रिपोर्ट

  • 93वीं रिपोर्ट: जनसंपर्क माध्यमों द्वारा सूचना के स्रोतों का खुलासा।
  • 200वीं रिपोर्ट: मीडिया द्वारा विचारण: स्वतंत्र भाषण बनाम आपराधिक प्रक्रिया के तहत निष्पक्ष विचारण (न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 में संशोधन)।

16. 

अप्रचलित कानून: 09 रिपोर्ट

  • 81वीं रिपोर्ट: हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856।

17. 

कानूनी पेशा: 04 रिपोर्ट

  • 266वीं रिपोर्ट: अधिवक्ता अधिनियम, 1961 (कानूनी पेशे का विनियमन)।

18. 

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम: 02 रिपोर्ट

  • 9वीं रिपोर्ट: विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1877।
  • 147वीं रिपोर्ट: विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963।

19. 

संपत्ति अंतरण अधिनियम: 03 रिपोर्ट

  • 70वीं रिपोर्ट: संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882।
  • 157वीं रिपोर्ट: धारा 52: संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 और इसका संशोधन।
  • 181वीं रिपोर्ट: संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 106 में संशोधन।

20.

भूमि अर्जन: 02 रिपोर्ट

  • 10वीं रिपोर्ट: भूमि अर्जन और अधिग्रहण का कानून।

21. 

मोटर वाहन: 04 रिपोर्ट

  • 149वीं रिपोर्ट: मोटर वाहन अधिनियम, 1988 में कुछ कमियों को दूर करना।

22. 

कैदी: 03 रिपोर्ट

  • 78वीं रिपोर्ट: जेलों में विचाराधीन कैदियों की भीड़।

23. 

सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम: 02 रिपोर्ट

  • 145वीं रिपोर्ट: संविधान का अनुच्छेद 12 और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम।

24. 

माल- विक्रय: 02 रिपोर्ट

  • 8वीं रिपोर्ट: माल- विक्रय अधिनियम, 1930।

25. 

स्टाम्प: 02 रिपोर्ट

  • 194वीं रिपोर्ट: स्टाम्प शुल्कों का सत्यापन और माध्यस्थ पंचाटों का रजिस्ट्रीकरण।

26. 

विक्रय कर: 02 रिपोर्ट

  • दूसरी रिपोर्ट: विक्रय कर से संबंधित संसदीय विधान।

27. 

सामान्य खंड अधिनियम: 02 रिपोर्ट

  • 183वीं रिपोर्ट: विधियों की व्याख्या के लिये बाह्य सहायता की स्वीकार्यता और संहिताकरण के विशेष संदर्भ में सामान्य खंड अधिनियम, 1897 पर एक निरंतरता।

28. 

संविदा: 03 रिपोर्ट

  • 13 वीं रिपोर्ट: संविदा अधिनियम, 1872।
  • 103 वीं रिपोर्ट: संविदा में अनुचित शर्तें।

29.

आयकर: 02 रिपोर्ट

  • 49वीं रिपोर्ट: आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर की दर निर्धारित करने के उद्देश्य से कुल आय में कृषि आय को शामिल करने का प्रस्ताव।