होम / करेंट अफेयर्स
आपराधिक कानून
कोई भी विलंब या चूक अंतरिम भरण-पोषण को रोक नहीं सकती
«07-Aug-2025
एक्स बनाम वाई "यद्यपि निष्पक्ष अवसर का अधिकार और प्राकृतिक न्याय का पालन आवश्यक है, यह भी उतना ही सत्य है कि तकनीकी विलंब या प्रक्रियागत त्रुटियाँ प्रावधान के मूल उद्देश्य को विफल नहीं कर सकती।" न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति स्वर्ण कांत शर्मा ने निर्णय दिया कि तकनीकी विलंब या प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 125 के अधीन अंतरिम भरण-पोषण के उद्देश्य को विफल नहीं कर सकती हैं।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक्स बनाम वाई (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
एक्स बनाम वाई (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- सागर फोगट ने 26 मई 2017 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार, रामहेर वाटिका, प्रह्लादपुर बांगर, दिल्ली में प्रियंका से विवाह किया। 23 अगस्त 2019 को उनके विवाह से एक पुत्र का जन्म हुआ। प्रत्यर्थी (प्रियंका) वर्तमान में पुनरीक्षणकर्त्ता (सागर फोगाट) से पृथक् रह रही है और अवयस्क संतान की अभिरक्षा उसके पास है।
- 6 अक्टूबर 2023 को प्रियंका ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के अंतर्गत अपने एवं अपने अवयस्क पुत्र के लिये भरण-पोषण की याचिका कुटुंब न्यायालय में दायर की। याचिका में यह आरोप लगाया गया कि सागर फोगाट एवं उनके पारिवारिक सदस्यों द्वारा मानसिक एवं शारीरिक क्रूरता की गई। साथ ही यह दावा किया गया कि सागर फोगाट ₹4,00,000 प्रति माह से अधिक की किराए की आय प्राप्त कर रहे हैं, तथा उन्हें ₹2,00,000 प्रति माह भरण-पोषण के रूप में आवश्यक हैं।
- कुटुंब न्यायालय ने सागर को निदेश दिया कि वह याचिका दायर करने की तिथि से प्रियंका और अवयस्क संतान को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में प्रति माह ₹50,000 का भुगतान करे । सागर ने इस आदेश को दिल्ली उच्च न्यायालय में एक पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से चुनौती दी।
- सागर ने तर्क दिया कि आदेश तथ्यों की उचित समीक्षा किये बिना पारित किया गया था और यह केवल प्रियंका के अभिवचनों पर आधारित था, तथा उन्हें अपना मामला प्रस्तुत करने का उचित अवसर नहीं दिया गया था।
- उन्होंने दावा किया कि वे बेरोज़गार हैं और अपनी बीमार माँ पर निर्भर हैं, जिन्हें स्टेज-3 ब्रेन ट्यूमर है। उन्होंने तर्क दिया कि भरण-पोषण की राशि उनकी आर्थिक क्षमता से बाहर है और पैतृक संपत्ति से परिवार के सदस्यों के बीच सीमित आय होती है।
- राज्य ने तर्क दिया कि कुटुंब न्यायालय ने रिकार्ड पर उपलब्ध सामग्री पर विचार करने के पश्चात् एक तर्कसंगत आदेश पारित किया।
- प्रियंका और अवयस्क संतान की आवश्यकताओं और उनके जीवन स्तर को देखते हुए भरण-पोषण की राशि न तो अत्यधिक थी और न ही मनमानी थी ।
- राज्य ने तर्क दिया कि सागर के बेरोजगारी के दावे निराधार हैं, क्योंकि उन्होंने पैतृक संपत्ति में अपनी अंशदारी स्वीकार की है, जिससे किराए की आय होती है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के अंतर्गत अंतरिम भरण-पोषण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि निर्भर पत्नी कार्यवाही की लंबित अवधि के दौरान दरिद्रता अथवा उपेक्षा की स्थिति में न छोड़ी जाए। यह उपबंध सामाजिक न्याय का उपाय है, जिसका अभिप्राय उपेक्षित पत्नी एवं संतान को आर्थिक संकट एवं भुखमरी से संरक्षित करना है।
- न्यायालय ने अवलोकन किया कि सागर ने अपनी कम आय के दावे को पुष्ट करने के लिये कोई ठोस दस्तावेज़ी साक्ष्य पेश नहीं किया, जबकि प्रियंका ने अपनी पर्याप्त किराए की आय के अभिकथनों का खंडन किया था। उनके इस सीधे-सादे इंकार को यूँ ही स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि उन्होंने अपने दावे की पुष्टि के लिये आयकर रिटर्न या बैंक स्टेटमेंट दाखिल नहीं किये थे।
- अंतरिम भरण-पोषण के चरण में, वास्तविक आय पर विस्तृत सुनवाई न तो आवश्यक है और न ही संभव है, और प्रथम दृष्टया मूल्यांकन अभिवचनों, शपथपत्रों और उपलब्ध सामग्री के आधार पर किया जाना चाहिये। कुटुंब न्यायालय ने दोनों पक्षकारों की परिस्थितियों पर संतुलित विचार किया और ऐसी राशि का आदेश दिया जो अत्यधिक या अनुपातहीन न लगे।
- अवयस्क संतान की देखरेख व अभिरक्षा प्रियंका के पास है, और भोजन, वस्त्र, शिक्षा, एवं चिकित्सा जैसी सभी दैनिक आवश्यकताओं का वह स्वयं वहन कर रही हैं। नैसर्गिक पिता होने के नाते, सागर फोगाट अपने पुत्र के भरण-पोषण से नैतिक एवं विधिक उत्तरदायित्त्व से विमुख नहीं हो सकते, भले ही प्रियंका की शैक्षिक योग्यता या आय-क्षमता कुछ भी हो।
- संपूर्णतः सक्षम व्यक्ति केवल बेरोजगारी के आधार पर पत्नी एवं बच्चों के भरण-पोषण की विधिक उत्तरदायित्त्व से बच नहीं सकता। सागर ने स्वीकार किया कि उसकी पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी है जिससे उसे ₹73,000 प्रति माह किराया मिलता है और वह संयुक्त परिवार में रहता है, जिससे पता चलता है कि वह पूरी तरह से साधनहीन नहीं है।
- यद्यपि उचित अवसर और प्राकृतिक न्याय आवश्यक हैं, तकनीकी विलंब या प्रक्रियात्मक चूक अंतरिम भरण-पोषण प्रावधान के मूल उद्देश्य को विफल नहीं कर सकती। ₹50,000 प्रति माह की भरण-पोषण राशि पक्षकारों के जीवन स्तर और अवयस्क बालक की आवश्यकताओं के अनुपात में प्रतीत होती है, इसलिये पुनरीक्षण अधिकारिता के अंतर्गत इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144 के अधीन विधिक ढाँचा और न्यायिक निर्वचन क्या हैं?
बारे में:
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 144 एक सामाजिक न्याय उपबंध है जिसका उद्देश्य उपेक्षित पति/पत्नी और संतान की विपन्नता और आर्थिक तंगी को रोकना है। यह प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को ऐसे व्यक्ति की पत्नी, धर्मज या अधर्मज संतान, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, को मासिक भरण-पोषण, अंतरिम भरण-पोषण और कार्यवाही व्यय प्रदान करने का अधिकार देता है, जिसके पास पर्याप्त साधन होते हुए भी वह ऐसा करने से इंकार करता है या उपेक्षा करता है।
- प्रमुख सांविधिक विशेषताओं में सम्मिलित हैं:
- धारा 144(1): मजिस्ट्रेट को पत्नी और संतान को मासिक भरण-पोषण देने का आदेश देने का अधिकार देता है।
- धारा 144(1) का दूसरा परंतु: मजिस्ट्रेट को कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान अंतरिम भरण-पोषण और व्यय प्रदान करने की अनुमति देता है।
- धारा 144(1) का तीसरा परंतु: निदेश देता है कि अंतरिम भरण-पोषण आवेदनों का निपटारा आदर्श रूप से नोटिस की तामील की तारीख से 60 दिनों के भीतर किया जाना चाहिये।
- धारा 144(2): भरण-पोषण आवेदन या आदेश की तिथि से देय हो सकता है, जैसा मजिस्ट्रेट उचित समझे।
- धारा 144(3): भरण-पोषण का संदाय न करने पर वारण्ट कार्यवाही और एक मास तक कारावास हो सकता है।
- धारा 144(4): जारता, पर्याप्त कारण के बिना पति के साथ रहने से इंकार, या पृथक् रहने की आपसी सहमति के मामलों में पत्नी को भरण-पोषण प्राप्त करने से अयोग्य घोषित करता है।
- धारा 145(2) के अधीन आगे की प्रक्रियागत स्पष्टता प्रदान की गई है, जिसमें यह अनिवार्य किया गया है कि साक्ष्य प्रत्यर्थी या उनके अधिवक्ता की उपस्थिति में दर्ज किया जाना चाहिये, जिसमें एकपक्षीय कार्यवाही का उपबंध है और तीन मास के भीतर पर्याप्त कारण बताने पर ऐसे आदेशों को अपास्त किया जा सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक निर्वचन:
- एक महत्त्वपूर्ण निर्वचन में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने दोहराया कि धारा 144 एक कल्याण-उन्मुख और लिंग-संवेदनशील उपबंध है ।
- अंतरिम भरण-पोषण का उद्देश्य अभाव को रोकना तथा चल रही कार्यवाही के दौरान आर्थिक रूप से आश्रित पत्नी/पत्नी और संतानों की जीविका सुनिश्चित करना है ।
- न्यायालयों को आय पर पूर्ण विचारण में उलझे बिना अंतरिम चरण में पात्रता का आकलन करने के लिये प्रथम दृष्टया दृष्टिकोण अपनाना चाहिये ।
- प्रक्रियागत या तकनीकी विलंब से तत्काल अनुतोष प्रदान करने का उद्देश्य विफल नहीं होना चाहिये।
- निष्पक्ष सुनवाई और प्राकृतिक न्याय के अधिकार को सामाजिक न्याय के व्यापक उद्देश्य के साथ संतुलित किया जाना चाहिये।
- पर्याप्त साधन संपन्न पति, चाहे वह बेरोजगार हो या संदाय करने में असमर्थता जता रहा हो, विश्वसनीय साक्ष्य के बिना उत्तरदायित्त्व से बच नहीं सकता ।
- अंतरिम भरण-पोषण दोनों पक्षकारों के जीवन स्तर के अनुपात में होना चाहिये तथा पत्नी और संतान की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये उचित होना चाहिये।
- परिस्थितियों के संतुलित विचार के आधार पर कुटुंब न्यायालय द्वारा अंतरिम भरण-पोषण का तर्कसंगत निर्णय सामान्यतः पुनरीक्षण अधिकारिता के अंतर्गत हस्तक्षेप का आधार नहीं होगा ।