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पारिवारिक कानून
वैवाहिक घर से अनुपस्थिति क्रूरता के समान है
« »24-Sep-2025
एक्स. बनाम वाई. (दाण्डिक अपील 4523/2022) "यह स्वयंसिद्ध है कि सहवास और वैवाहिक कर्त्तव्यों का निर्वहन विवाह का आधार है; उनका निरंतर इंकार न केवल विवाह के अपूरणीय विघटन को दर्शाता है, अपितु क्रूरता को भी दर्शाता है जिसके लिये न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक है।" न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर ने निर्णय दिया कि पत्नी का ससुराल से बार-बार अनुपस्थित रहना, वैवाहिक संबंधों से इंकार करना और अपने पति और उसके परिवार के विरुद्ध कई परिवाद दर्ज करना क्रूरता के समान है, इस प्रकार हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1) (i-क) के अधीन तलाक के आदेश को बरकरार रखा गया।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक्स.बनाम वाई. (दाण्डिक अपील 4523/2022) (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।
एक्स. बनाम वाई. (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी?
- धनवती और सतीश कुमार का विवाह 3 मार्च 1990 को हिंदू रीति-रिवाजों से हुआ। उनके पुत्र राहुल का जन्म 3 अक्टूबर 1997 को हुआ।
- पति ने अपनी पत्नी पर निरंतर क्रूरता का आरोप लगाते हुए कहा कि वह संयुक्त परिवार में रहने से इंकार करती है और बिना सम्मति के वर्ष में 7-8 महीने अपने मायके में रहती है। उसे वापस लाने के लिये कई पंचायतों का गठन करना पड़ा।
- वर्ष 2008 से, विशेषकर करवा चौथ के बाद, पत्नी ने कथित तौर पर वैवाहिक संबंधों से दूरी बना ली तथा उसे अपमानित करना शुरू कर दिया, जिसमें जूते फेंकना, घर का काम करने के लिये मजबूर करना तथा उसकी माता को थप्पड़ मारना सम्मिलित था।
- पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी ने परिवार पर संपत्ति अपने नाम पर स्थानांतरित करने के लिये दबाव डाला, मना करने पर मिथ्या आपराधिक मामलों में फंसाने की धमकी दी, तथा उसके माता-पिता के प्रति उदासीनता दिखाई।
- 2009 में तलाक की अर्जी देने के बाद पत्नी ने पति और उसके परिवार के विरुद्ध मारपीट, दहेज उत्पीड़न और लैंगिक उत्पीड़न सहित भारतीय दण्ड संहिता की विभिन्न धाराओं के अधीन तीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराईं।
- पत्नी ने दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए दावा किया कि उसे घर बनवाने के लिये 5 लाख रुपए का इंतजाम करने के लिये मजबूर किया गया। उसने पति के परिवार पर आदतन शराब पीने, उसके रूप-रंग पर फब्तियाँ कसने और मारपीट करने का आरोप लगाया।
- कुटुंब न्यायालय ने पति के कथन को स्वीकार कर लिया और क्रूरता के आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-क) के अधीन तलाक दे दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि विवाह के लिये सहवास आवश्यक है और बिना किसी उचित कारण के लैंगिक संबंधों से निरंतर इंकार करना मानसिक क्रूरता माना जाता है। पत्नी द्वारा 2008 से शारीरिक अंतरंगता से दूर रहने और करवा चौथ का पालन न करने की स्वीकृति को मानसिक क्रूरता के रूप में लंबे समय तक इंकार माना गया।
- न्यायालय ने कहा कि तीनों प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) पति की तलाक की अर्जी के पश्चात् ही दर्ज की गईं और उनकी टाइमिंग को संदिग्ध माना। इन परिवादों को वास्तविक परिवादों के बजाय तलाक की कार्यवाही का प्रतिकार माना गया।
- न्यायालय ने पाया कि पत्नी का आचरण - सहवास से इंकार, वैवाहिक संबंधों से इंकार, वैवाहिक घर से बार-बार अनुपस्थित रहना, तथा अनेक परिवाद - मानसिक पीड़ा पहुँचाने वाला जानबूझकर किया गया आचरण है, जो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-क ) के अधीन क्रूरता की आवश्यकताओं को पूरा करता है।
- न्यायालय ने यह अवलोकन किया कि पति को उसके पुत्र से मिलने के अधिकार में व्यवस्थित रूप से बाधा उत्पन्न करना, गंभीर मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। वैवाहिक विवाद में किसी बालक का हथियार के रूप में उपयोग करना न केवल प्रभावित माता-पिता को आहत करता है, अपितु बालक के भावनात्मक कल्याण को भी क्षीण करता है।
- पत्नी की अपनी सास की स्वास्थ्य स्थितियों के बारे में पूर्ण अज्ञानता, जिसमें चलने में असमर्थता और कूल्हे की रिप्लेसमेंट सर्जरी शामिल थी, भारतीय पारिवारिक संदर्भ में आवश्यक वैवाहिक दायित्त्वों के प्रति उपेक्षा को दर्शाती है।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि पत्नी के व्यवहार का संचयी प्रभाव वैवाहिक उत्तरदायित्त्वों की निरंतर उपेक्षा को दर्शाता है, जिससे उसे काफी भावनात्मक पीड़ा हुई, जो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-क) के अधीन विवाह विच्छेद को उचित ठहराने के लिये पर्याप्त है।
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-क) क्रूरता को तलाक के आधार के रूप में कैसे मान्यता देती है?
- विधिक ढाँचा:
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-क) में उपबंध है कि किसी भी विवाह को तलाक की डिक्री द्वारा इस आधार पर भंग किया जा सकता है कि दूसरे पक्षकार ने विवाह संपन्न होने के पश्चात् याचिकाकर्त्ता के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया है।
- आवश्यक तत्त्व:
- क्रूरता विवाह संपन्न होने के पश्चात् ही घटित होनी चाहिये, क्योंकि विवाह-पूर्व आचरण इस उपबंध के अधीन तलाक का आधार नहीं बन सकता।
- प्रत्यर्थी ने याचिकाकर्त्ता के साथ शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया होगा।
- यदि पति-पत्नी में से किसी एक के साथ दूसरे पक्षकार द्वारा क्रूरता की जाती है तो दोनों में से किसी को भी इस आधार पर तलाक के लिये आवेदन करने का अधिकार है।
- शारीरिक क्रूरता घटक:
- शारीरिक क्रूरता में याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध वास्तविक शारीरिक हिंसा या हमला सम्मिलित है।
- इसमें शारीरिक नुकसान पहुँचाने या डराने-धमकाने की धमकियाँ है।
- इस उपबंध के अधीन पति/पत्नी को शारीरिक क्षति कारित करने वाला कोई भी आचरण शारीरिक क्रूरता माना जाएगा।
- मानसिक क्रूरता के मापदंड:
- मानसिक क्रूरता में याचिकाकर्त्ता को मानसिक पीड़ा और कष्ट कारित करने वाला आचरण सम्मिलित है। इसमें ऐसा व्यवहार सम्मिलित है जिससे पीड़ित पक्षकार के लिये दूसरे पति/पत्नी के साथ उचित रूप से रहना असंभव हो जाता है।
- याचिकाकर्त्ता के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला निरंतर आचरण इस श्रेणी में आता है।