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आपराधिक कानून

साइबर उत्पीड़न संबंधी जमानत की शर्त

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 22-Sep-2025

आकाश बनाम राजस्थान राज्य 

जमानत मांगते हुए, अभियुक्त की ओर से दलील दी गई कि अब उसे अन्वेषण में सम्मिलित होने की आवश्यकता नहीं है। उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, और उसने ऐसे अपराध दोबारा न करने और किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का प्रयोग न करने का वचन दिया है। 

न्यायमूर्ति अशोक कुमार जैन 

स्रोत: राजस्थान उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति अशोक कुमार जैन ने एक महिला की अश्लील सामग्री सोशल मीडिया पर प्रसारित करने और उसे धमकाने के 19 वर्षीय अभियुक्त को जमानत दे दी, और एक अनोखी शर्त अधिरोपित कि वह तीन वर्ष तक किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का प्रयोग नहीं करेगा। न्यायालय ने पीड़िता की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, याचिकाकर्त्ता की कम आयु और भविष्य की संभावनाओं के साथ अपराध की गंभीरता को संतुलित किया। 

  • राजस्थानउच्च न्यायालय नेआकाश बनाम राजस्थान राज्य (2025)मामले में यह निर्णय दिया 

आकाश बनाम राजस्थान राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • 23 वर्षीय एकविवाहित महिला ने 21 फरवरी 2025 को 19 वर्षीय छात्र आकाश के विरुद्ध गंभीर साइबर अपराध और उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए परिवाद दर्ज कराया । परिवादकर्त्ता ने अभिकथित किया कि अभियुक्त ने उसकी सम्मति के बिना उसकी तस्वीरों और वीडियो को विधिविरुद्ध तरीके से संपादित और प्रकाशित किया और अश्लील सामग्री तैयार की। 
  • पीड़िता ने अभिकथित कि आकाश ने इस मनगढ़ंत सामग्री का प्रयोग करकेउसे व्यवस्थित रूप से शोषण और ब्लैकमेल किया। कथित तौर पर, अभियुक्त ने इन गतिविधियों को अंजाम देने के लिये कई मोबाइल फोन का प्रयोग किया और कई फर्जी इंस्टाग्राम अकाउंट बनाए। इन हरकतों के पीछे मुख्य उद्देश्य पीड़िता की प्रतिष्ठा और समाज में उसकी छवि को नुकसान पहुँचाना था। 
  • परिवादकर्त्ता ने आगे अभिकथित किया कि अभियुक्त ने साशय अश्लील सामग्री साझा करके उसके वैवाहिक संबंधों में दरार डालने की कोशिश की। पीड़िता ने बताया कि अभियुक्त ने इन तरीकों से उसे डराया-धमकाया। 
  • परिवाद के पश्चात्, भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 78(2) के अंतर्गत थाना सदर हिंडौन, जिला करौली में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 83/2025 दर्ज की गई। अन्वेषण के पश्चात्, एक आरोप पत्र दाखिल किया गया, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 और 67क के अधीन भी आरोप सम्मिलित थे। 
  • अभियुक्त ने पहले जमानत याचिका दायर की थी, जिसे 11 अगस्त 2025 को वापस लेते हुए खारिज कर दिया गया था और पीड़िता का कथन दर्ज होने के बाद उसे नई जमानत याचिका दायर करने की छूट दी गई थी। यह अभियुक्त द्वारा दायर की गई द्वितीय जमानत याचिका थी। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि अभिलेख में विद्यमान सामग्री से साफ़ ज़ाहिर होता है कि याचिकाकर्त्ता नेकथित अपराध करने के लिये अत्याधुनिक तरीके अपनाए थे।अभियुक्त ने अलग-अलग मोबाइल फ़ोन प्रयोग किये थे और ख़ास तौर पर पीड़िता के विरुद्ध अश्लील सामग्री प्रकाशित करने के लिये कई फ़र्ज़ी इंस्टाग्राम अकाउंट बनाए थे। 
  • न्यायालय ने पाया कि पीड़िता ने, विचारण न्यायालय के समक्ष PW3 के रूप में दर्ज अपने कथन में, स्पष्ट रूप से बताया था कि कैसे वर्तमान याचिकाकर्त्ता ने उसे इन डिजिटल माध्यमों से धमकाया था। न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि पीड़िता एक विवाहित महिला थी और याचिकाकर्त्ता अभियुक्त ने इन कुख्यात कृत्यों के माध्यम से उसके वैवाहिक संबंधों को कथित रूप से भंग करने का प्रयास किया था। 
  • न्यायालय ने इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान लिया कि जिस अपराध के लिये याचिकाकर्त्ता पर आरोप लगाया गया था, वह प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय था और पीड़िता का कथन पहले ही दर्ज किया जा चुका था। यह भी ध्यान दिया गया कि अभियुक्त 1 मई 2025 से अभिरक्षा में था। 
  • न्यायालय ने अभियुक्त के पक्ष में कई कमज़ोर करने वाले कारक देखे। उसने कहा कि याचिकाकर्त्ता केवल 19 वर्ष का था और अपनी पढ़ाई के द्वितीय वर्ष का छात्र था। गौरतलब है कि याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं थी, जो उसके पक्ष में थी। 
  • इन परिस्थितियों और युवा याचिकाकर्त्ता के भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय नेकड़ी शर्तों के अधीन जमानत देने की इच्छा व्यक्त की।न्यायालय ने बल देकर कहा कि ऐसी शर्तें यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं कि पीड़िता की सुरक्षा और कल्याण, जिसमें उसका वैवाहिक जीवन भी सम्मिलित है, वर्तमान याचिकाकर्त्ता के कुख्यात और मनमौजी कृत्यों के कारण संकट में न पड़े। 
  • न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि याचिकाकर्त्ता किसी ऐसे कार्य में लिप्त होता है जिससे पीड़िता या उसके परिवार के सदस्यों को नुकसान हो सकता है, तो जमानत आदेश तुरंत वापस ले लिया जाएगा। 
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि आवेदक-अभियुक्त की अब अन्वेषण के लिये आवश्यकता नहीं है और वह काफी समय से अभिरक्षा में है। यह देखते हुए कि आगे की कार्यवाही में काफी समय लगेगा, और मामले के सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने पीड़ित के हितों की रक्षा के लिये आवेदक-अभियुक्त को कठोर शर्तों के साथ जमानत देना उचित समझा। 

जमानत क्या है? 

बारे में: 

  • जमानत, विचारण से पहले अभियुक्त की सशर्त रिहाई है, जोमूलतः निर्दोषता की उपधारणा पर आधारित है। यह एक महत्त्वपूर्ण तंत्र के रूप में कार्य करती है जो यह सुनिश्चित करती है कि न्यायिक कार्यवाही की प्रतीक्षा के दौरान व्यक्तियों को अनुचित रूप से अभिरक्षा में न रखा जाए। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अभियुक्त मामले के लंबित रहने के दौरान न्याय से भाग न जाए, साक्ष्यों से छेड़छाड़ न करे, या साक्षियों को प्रभावित न करे। 

विधिक प्रावधान: 

  • भारत में जमानत के लिये विधिक ढाँचा अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के अध्याय 35 द्वारा शासित है, जिसने पूर्ववर्ती दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) 1973 का स्थान लिया है। यह व्यापक विधान जमानत मामलों से संबंधित प्रक्रियात्मक दिशानिर्देश और न्यायिक शक्तियां स्थापित करता है। 
  • राजस्थान राज्य बनाम बालचंद (1977) मामलेमें उच्चतम न्यायालय नेयह मूलभूत सिद्धांत स्थापित किया कि "मूल नियम जमानत है, जेल नहीं," और इस बात पर बल दिया कि जमानत एक अधिकार है और कारावास एक अपवाद है। इस ऐतिहासिक निर्णय ने इस सांविधानिक दर्शन को पुष्ट किया कि स्वतंत्रता आदर्श है और निरोध अपवाद है। 

प्रकार और शक्तियाँ: 

  • जमानत के प्रावधानों को अपराध की प्रकृति के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। जमानतीय अपराधों के लिये पूर्व दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 436 के अधीन जमानत का स्वतः अधिकार सुनिश्चित होता है, जबकि अजमानतीय अपराधों के लिये धारा 437 के अनुसार न्यायलयों और नामित पुलिस अधिकारियों को विवेकाधीन शक्तियां प्राप्त होती हैं। 
  • उच्च न्यायालयों और सेशन न्यायालयों को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 483 के अधीन जमानत देने, उसमें संशोधन करने या उसे रद्द करने के विशेष अधिकार प्राप्त हैं। वे अभिरक्षा में लिये गए किसी भी अभियुक्त को रिहा करने का निदेश दे सकते हैं, विशिष्ट शर्तें अधिरोपित कर सकते हैं या विद्यमान जमानत शर्तों में संशोधन कर सकते हैं।  
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 482 के अंतर्गत अग्रिम जमानत उन व्यक्तियों को अनुमति देती है, जिन्हें अजमानतीय अपराधों के लिये गिरफ्तारी का उचित भय है, वे उच्च न्यायालयों या सेशन न्यायालयों से गिरफ्तारी-पूर्व सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं। 

जमानत की शर्तें: 

  • न्यायालय सामान्यत: जमानत देते समय कई शर्तें अधिरोपित करते हैं। अभियुक्त को विचारण की कार्यवाही के दौरान उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये जमानत के साथ एक निजी बंधपत्र जमा करना होगा। मानक शर्तों में सबूतों से छेड़छाड़, साक्षियों को प्रभावित करने या पीड़ितों से संपर्क करने पर प्रतिबंध सम्मिलित हैं। न्यायालय मामले की परिस्थितियों के अनुसार विशिष्ट प्रतिबंध भी लगा सकती हैं, जैसे पासपोर्ट जमा करना या पुलिस थानों में समय-समय पर रिपोर्ट करना। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 187 के अधीन व्यतिक्रम या अनिवार्य जमानत उपबंध यह सुनिश्चित करते हैं कि यदि अन्वेषण विहित समय सीमा से अधिक हो जाता है तो अभियुक्त व्यक्तियों को जमानत दी जाती है, जिससे न्यायिक हस्तक्षेप विवेकाधीन के बजाय स्वचालित हो जाता है।