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सिविल कानून

माता-पिता की देखरेख करना बालकों का कर्त्तव्य

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 24-Nov-2025

"किसी बालक/बालकों का अपने माता-पिता या वरिष्ठ नागरिक की देखरेख करने का दायित्त्व और कर्त्तव्य, माता-पिता या वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति पर कब्जा करने की शर्त पर आधारित नहीं है। यह दायित्त्व बालक पर जन्म से ही आ जाता है और बिना शर्त होता है।" 

न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और रंजीतसिंह राजा भोंसले 

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति ए.एस.गडकरी और न्यायमूर्ति रंजीतसिंह राजा भोंसले की पीठ नेबांद्रा होली फैमिली हॉस्पिटल सोसायटी एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (2025)के मामले में यह निर्णय दिया कि बालकों का अपने माता-पिता की देखरेख और भरणपोषण करने का दायित्त्व माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 के अधीन एक बिना शर्त सांविधिक कर्त्तव्य है, और यह इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि बालक के पास माता-पिता की संपत्ति है या नहीं, या वह उसे विरासत में प्राप्त करेगा या नहीं। 

बांद्रा होली फैमिली हॉस्पिटल सोसाइटी एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • यह याचिका बांद्रा होली फैमिली हॉस्पिटल सोसाइटी और उसके अस्पताल द्वारा दायर की गई थी, जो 76 वर्षीय महिला श्रीमती मोहिनी पुरी की देखरेख कर रहा था। 
  • श्रीमती पुरी को 24 अगस्त 2025 को तीव्र स्ट्रोक के कारण गंभीर रूप से कुपोषित और अस्थिर स्थिति में भर्ती कराया गया था। 
  • अस्पताल ने लगभग ₹16,00,000 का बकाया संदाय न होने के बावजूद उसका इलाज जारी रखा। 
  • उसके पुत्र (प्रत्यर्थी संख्या 3) नेबकाया चिकित्सा बिलों कासंदाय करने और उपचार के बाद उसे घर ले जाने से इंकार कर दिया। 
  • पुत्र ने अस्पताल पर चिकित्सा उपेक्षा का अभिकथन किया 
  • पुत्र अपनी माता की देखरेख का उत्तरदायित्त्व लेने से निरंतर बचतारहा, यहाँ तक ​​कि न्यायालय द्वारा प्रस्तावित किये जाने पर उसने माता की देखरेख करने का वचन देने से भी इंकार कर दिया। 
  • न्यायालय ने परित्याग के मामले में संबंधित पुलिस अधिकारी और वरिष्ठ नागरिक अधिकरण की निष्क्रियता पर ध्यान दिया। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि बुजुर्ग और चिकित्सकीय रूप से कमजोर माता-पिता का परित्याग या उपेक्षा, वरिष्ठ नागरिकों के लिये गरिमा, स्वास्थ्य और सार्थक जीवन सुनिश्चित करने वाली सांविधानिक और सांविधिक गारंटी के मूल पर आघात है। 
  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि पुत्र के आचरण से प्रथम दृष्टया पूर्ण उपेक्षा और परित्याग का मामला सामने आया। 
  • वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 23 का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा किमाता-पिता की देखरेख और भरणपोषण करने का बालक का कर्त्तव्य "बिना शर्त है और जन्म से उत्पन्न होता है", जबकि नातेदार का कर्त्तव्य संपत्ति के कब्जे या उत्तराधिकार से जुड़ा होता है। 
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया: "किसी बालक/बालकों का अपने माता-पिता या वरिष्ठ नागरिक की देखरेख करने का दायित्त्व और कर्त्तव्य, माता-पिता या वरिष्ठ की संपत्ति पर कब्जा करने की शर्त पर आधारित नहीं है। यह दायित्त्व बालक पर जन्म से ही आ जाता है और बिना शर्त होता है। नैतिक और पवित्र कर्त्तव्य होने के अलावा, यहविधि द्वारा अधिरोपित एक सांविधिक कर्त्तव्य भी है।" 
  • न्यायालय ने पुलिस अधिकारी और वरिष्ठ नागरिक अधिकरण की निष्क्रियता की आलोचना करते हुए कहा कि अधिनियम के अधीन कदम उठाने में उनकी असफलता इसके उद्देश्य और लक्ष्य को असफल करती है। 
  • न्यायालय ने कहा कि पुत्र को अपनी माता के भरणपोषण और देखरेख के अनिवार्य कर्त्तव्य का उल्लंघन करने के बावजूद संपत्ति का उपयोग या उपभोग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये 
  • न्यायालय ने कहा कि भरणपोषण अधिकरण राज्य की देखरेख में रहने की अवधि के दौरान माता की संपत्ति की सुरक्षा के लिये सुरक्षात्मक आदेश पर विचार कर सकता है। 

न्यायालय द्वारा जारी निदेश: 

उच्च न्यायालय ने श्रीमती पुरी की तत्काल चिकित्सा देखरेख के लिये विस्तृत निदेश जारी किये: 

  • उसे चिकित्सीय निगरानी में भाभा अस्पताल में में शिफ्ट करना।  
  • यदि पुत्र ऐसा करने में असफल रहता है तो राज्य को उपचार का खर्च वहन करने का निदेश दिया गया। 
  • भरणपोषण अधिकरण को वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के अंतर्गत आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है। 
  • न्यायालय की अनुमति के बिना पुत्र को उसकी संपत्तियों से लेन-देन करने से रोकना। 
  • पुत्र को उसकी सभी चल और अचल संपत्तियों का प्रकटन करने का निदेश दिया गया। 
  • याचिका को इन शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया गया। 

माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 क्या है? 

बारे में: 

  • माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 भारत में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण हेतु अधिक प्रभावी प्रावधान प्रदान करने हेतु अधिनियमित किया गया था। इस अधिनियम के अनुसार, "वरिष्ठ नागरिक" वह व्यक्ति है जो भारत का नागरिक है और 60 वर्ष या उससे अधिक आयु का हो गया है। 

प्रमुख उपबंध: 

  • भरणपोषण दायित्त्व (धारा 4-18): बालकों का अपने माता-पिता का भरणपोषण करना विधिक दायित्त्व है, तथा नातेदारों का निःसंतान वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण करना दायित्त्व है। 
  • अधिकरणों की स्थापना (धारा 7): राज्य सरकारों को भरणपोषण के दावों पर निर्णय लेने के लिये भरणपोषण अधिकरणों की स्थापना करनी होगी। 
  • वृद्धाश्रम (धारा 19): राज्य सरकारों को प्रत्येक जिले में वृद्धाश्रम स्थापित करना आवश्यक है। 
  • चिकित्सा सहायता (धारा 20): वरिष्ठ नागरिकों के लिये चिकित्सा देखरेख का उपबंध 
  • जीवन और संपत्ति की सुरक्षा (धारा 21-23): वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा के उपाय। 

धारा 22: कार्यान्वयन के लिये प्राधिकारी: 

  • धारा 22 अधिनियम के उपबंधों को लागू करने के लिये उत्तरदायी प्राधिकारियों से संबंधित है: 
  • जिला मजिस्ट्रेट की शक्तियां : 
  • राज्य सरकार अधिनियम का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये जिला मजिस्ट्रेटों को शक्तियां और कर्त्तव्य प्रत्यायोजित कर सकते है। 
  • जिला मजिस्ट्रेट इन शक्तियों को निर्दिष्ट स्थानीय सीमाओं के भीतर अधीनस्थ अधिकारियों को प्रत्यायोजित कर सकते हैं।  
  • व्यापक कार्य योजना : 
  • राज्य सरकारों को वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा के लिये विशेष रूप से एक व्यापक कार्य योजना विहित करनी होगी। 
  • यह धारा अनिवार्यतः अधिनियम के प्रवर्तन के लिये प्रशासनिक ढाँचा तैयार करती है, तथा जिला स्तर पर प्राथमिक कार्यान्वयन प्राधिकारी के रूप में जिला मजिस्ट्रेटों पर उत्तरदायित्त्व डालती है। 

धारा 23: संपत्ति अधिकारों का संरक्षण 

  • धारा 23 विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह संपत्ति अंतरण के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे वरिष्ठ नागरिकों को खतरा हो सकता है: 
  • शून्य अंतरण (धारा 23(1)): 
    • यदि कोई वरिष्ठ नागरिक संपत्ति (दान या अन्य रूप से) इस शर्त के साथ अंतरित करता है कि अंतरिती मूल सुविधाएँ और भौतिक आवश्यकताएँ प्रदान करेगा।  
    • और यदि अंतरिती व्यक्ति इन सुविधाओं और आवश्यकताओं को प्रदान करने में असफल रहता है।  
    • तब अधिकरण द्वारा संपत्ति अंतरण को शून्य घोषित किया जा सकता है 
    • ऐसे अंतरण कपट, प्रपीड़न या असम्यक् असर से किये गए माने जाते हैं।  
  • संपत्ति से भरणपोषण का अधिकार (धारा 23(2)): 
    • यदि किसी वरिष्ठ नागरिक को संपत्ति से भरणपोषण प्राप्त करने का अधिकार है 
    • और यदि वह संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित कर दी जाती है 
    • भरणपोषण प्राप्त करने का अधिकार अंतरिती के विरुद्ध लागू किया जा सकता है यदि: 
      • अंतरिती को इस अधिकार की सूचना थी, या 
      • अंतरण निःशुल्क था (बिना किसी प्रतिफल के) 
    • यह अधिकार उस अंतरिती व्यक्ति के विरुद्ध लागू नहीं किया जा सकता जिसने प्रतिफल का संदाय किया हो और उसे अधिकार की कोई सूचना न हो 
    • पर-पक्षकार द्वारा कार्रवाई (धारा 23(3)): 
      • यदि कोई वरिष्ठ नागरिक इन अधिकारों को लागू करने में असमर्थ है 
      • अधिकृत संगठन वरिष्ठ नागरिक की ओर से कार्रवाई कर सकते हैं।  
    • धारा 23 मूलतः संपत्ति अंतरण को अमान्य करने के लिये एक तंत्र प्रदान करती है, जहाँ संपत्ति अंतरण के बाद वरिष्ठ नागरिक को देखरेख के बिना छोड़ दिया जाता है, तथा संपत्ति अंतरण के होते हुए भी भरणपोषण के उनके अधिकार की रक्षा करती है।