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आपराधिक कानून

नियोजन के होते हुए भी पत्नी का भरणपोषण पाने का अधिकार

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 25-Nov-2025

"केवल कमाने की क्षमता या कुछ आय अर्जित करने से पत्नी को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने से वंचित नहीं किया जा सकता है।" 

न्यायमूर्ति डॉ. कौसर एडप्पागथ 

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति डॉ. कौसर एडप्पागथ की पीठ ने राजीवन एम. बनाम जीशा पी. एवं अन्य (2025)के मामले मेंयह निर्णय दिया कि यदि पत्नी कमा रही है या कमाने की क्षमता रखती है, तो भी वह अपने पति से भरणपोषण का दावा करने से वंचित नहीं है, यदि वह दावा करती है कि उसकी आय उसके भरणपोषण के लिये अपर्याप्त है। 

राजीवन एम. बनाम जीशा पी. एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • यह मामला विधिक रूप से विवाहित दंपति - जीशा पी. (पत्नी) और राजीवन एम. (पति) - तथा उनके दो नाबालिग बच्चे थे। 
  • पत्नी और बच्चों ने थालास्सेरी के कुटुंब न्यायालय में भरणपोषण का मामला दायर किया, जिसमें पत्नी के लिये 15,000 रुपए और दोनों बच्चों के लिये 10,000 रुपए की दर से भरणपोषण का दावा किया गया। 
  • कुटुंब न्यायालय ने पत्नी के भरणपोषण के दावे को खारिज कर दिया, किंतु बच्चों को 6,000 रुपए प्रति माह का भरणपोषण देने का आदेश दिया। 
  • पत्नी ने अपने भरण-पोषण के दावे की अस्वीकृति और बच्चों को दी गई राशि को चुनौती देते हुए RP(FC) संख्या 409/2017 दायर की। 
  • पति ने बच्चों को दिए जाने वाले भरणपोषण की राशि को चुनौती देते हुए RP(FC) संख्या 476/2017 दायर की। 
  • कुटुंब न्यायालय ने दो आधारों पर पत्नी को भरणपोषण देने से इंकार कर दिया था: (i) पत्नी पेशे से दर्जी है और उसके पास अपना भरणपोषण करने के लिये पर्याप्त साधन हैं, और (ii) पत्नी ने बिना किसी वैध कारण के पति का साथ छोड़ दिया था। 
  • पत्नी के साक्ष्य के अनुसार, पति ने उस पर क्रूरता बरती, 19.09.2014 को उसे उसके माता-पिता के घर ले गया, और उसे वापस लेने कभी नहीं आया। 
  • पति ने तर्क दिया कि वह एक दर्जी के रूप में कार्यरत है और उसे प्रतिदिन केवल 750 रुपए की आय होती है, जबकि पत्नी ने दावा किया कि वह अपनी स्वयं की दर्जी की दुकान चलाता है, जिससे उसे अच्छी-खासी आय होती है। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) महिलाओं और बालकों की सुरक्षा के लिये लागू सामाजिक न्याय का एक उपाय है, जो अनुच्छेद 39 द्वारा सुदृढ़ किये गए अनुच्छेद 15(3) की सांविधानिक योजना के अंतर्गत आता है, और इसकी व्याख्या उदारतापूर्वक की जानी चाहिये 
  • न्यायालय ने कहा कि "अपना भरणपोषण करने में असमर्थ" का अर्थ यह नहीं है कि पत्नी गरीबी की स्थिति में है, और यदि पत्नी कमा रही है या कमाने में सक्षम है, तो भी यह उसे भरणपोषण का दावा करने से वंचित नहीं करता है। 
  • न्यायालय नेइस सिद्धांत को स्थापित करते हुएरजनेश बनाम नेहा (2021), सुनीता कछवाहा बनाम अनिल कछवाहा (2014), औरशैलजा बनाम खोबन्ना (2018) सहित उच्चतम न्यायालय के प्रमुख पूर्व निर्णयों का हवाला दिया। 
  • न्यायालय ने पाया कि विवाह प्रमाण पत्र में व्यवसाय के रूप में "दर्जी" दर्शाना तथा वास्तविक नियोजन और आय के साक्ष्य के बिना दर्जी संघ की सदस्यता दर्शाना, भरणपोषण के दावों पर रोक नहीं लगाएगा। 
  • न्यायालय ने कहा कि अस्थायी या कभी-कभार कुछ आय प्रदान करने वाला कामपत्नी को भरणपोषण का दावा करने से वंचित नहीं कर सकता, यदि वह दावा करती है कि आय उसकी आवश्यकताओं के लिये अपर्याप्त है। 
  • न्यायालय ने पत्नी द्वारा प्रस्तुत क्रूरता के साक्ष्य का मूल्यांकन किया, जिसमें शारीरिक और मानसिक यातना, फर्श पर सोने के लिये विवश करना, तथा वैवाहिक संबंध समाप्त करना सम्मिलित था, तथा पाया कि ये उदाहरण उसके पति से पृथक् से रहने को उचित ठहराने के लिये पर्याप्त हैं। 
  • न्यायालय ने कहा कि 46 वर्षीय सक्षम व्यक्ति के रूप में पति केवल असत्यापित वेतन प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके अपनी पत्नी और संतानों का भरणपोषण करने में असमर्थता का दावा नहीं कर सकता। 
  • न्यायालय नेपति की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी, पत्नी की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया, संतानों के भरणपोषण के लिये 6,000 रुपए प्रति माह की दर से राशि को बरकरार रखा तथा याचिका की तिथि से पत्नी को 8,000 रुपए प्रति माह देने का आदेश दिया। 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144 क्या है? 

बारे में: 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 144 एक सामाजिक न्याय उपबंध है जिसका उद्देश्य उपेक्षित पति/पत्नी और संतान की विपन्नता और आर्थिक तंगी को रोकना है। यह प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को ऐसे व्यक्ति की पत्नी, वैध या अवैध संतान, जो अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है, को मासिक भरणपोषण, अंतरिम भरणपोषण और कार्यवाही व्यय प्रदान करने का अधिकार देता है, जिसके पास पर्याप्त साधन होते हुए भी वह ऐसा करने से इंकार करता है या उपेक्षा करता है। 
  • प्रमुख सांविधिक विशेषताओं में सम्मिलित हैं: 
    • धारा 144(1): मजिस्ट्रेट को पत्नी और संतान को मासिक भरणपोषण देने का आदेश देने का अधिकार देता है। 
    • धारा 144(1) का दूसरा परंतुक: मजिस्ट्रेट को कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान अंतरिम भरणपोषण और व्यय प्रदान करने की अनुमति देता है। 
    • धारा 144(1) का तीसरा परंतुक: निदेश देता है कि अंतरिम भरणपोषण आवेदनों का निपटारा आदर्श रूप से नोटिस की तामील की तारीख से 60 दिनों के भीतर किया जाना चाहिये 
    • धारा 144(2): भरणपोषण आवेदन या आदेश की तिथि से देय हो सकता है, जैसा मजिस्ट्रेट उचित समझे। 
    • धारा 144(3): भरणपोषण का संदाय न करने पर वारण्ट कार्यवाही और एक मास तक कारावास हो सकता है। 
    • धारा 144(4): जारता, पर्याप्त कारण के बिना पति के साथ रहने से इंकार, या पृथक् रहने की आपसी सहमति के मामलों में पत्नी को भरणपोषण प्राप्त करने से अयोग्य घोषित करता है। 
    • धारा 145(2) के अधीन आगे की प्रक्रियागत स्पष्टता प्रदान की गई है, जिसमें यह अनिवार्य किया गया है कि साक्ष्य प्रत्यर्थी या उनके अधिवक्ता की उपस्थिति में अभिलिखित किया जाना चाहिये, जिसमें एकपक्षीय कार्यवाही का उपबंध है और तीन मास के भीतर पर्याप्त कारण बताने पर ऐसे आदेशों को अपास्त किया जा सकता है।