एडमिशन ओपन: UP APO प्रिलिम्स + मेंस कोर्स 2025, बैच 6th October से   |   ज्यूडिशियरी फाउंडेशन कोर्स (प्रयागराज)   |   अपनी सीट आज ही कन्फर्म करें - UP APO प्रिलिम्स कोर्स 2025, बैच 6th October से










होम / करेंट अफेयर्स

सांविधानिक विधि

जिला न्यायाधीश पदों में न्यायिक अधिकारियों हेतु किसी भी प्रकार के कोटे का प्रावधान नहीं है

    «    »
 20-Nov-2025

"वार्षिक 4-बिंदु रोस्टर प्रणाली के माध्यम से उच्च न्यायिक सेवा के भीतर अधिकारियों की वरिष्ठता अवधारित करने के लिये अनिवार्य दिशानिर्देश जारी किये गए।" 

भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, के. विनोद चंद्रन और जॉयमाल्या बागची 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता में गठित पाँच-न्यायाधीशीय पीठ, जिसमें माननीय न्यायमूर्ति सूर्यकांत, विक्रम नाथ, के. विनोद चंद्रन तथा जॉयमाल्या बागची सम्मिलित थे, ने अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ एवं अन्य बनाम भारत संघ (2025)में निर्णय दिया, जिसमें जिला न्यायाधीश पदों पर पदोन्नत न्यायाधीशों के लिये किसी विशेष कोटा को खारिज कर दिया गया और उच्च न्यायिक सेवा में वरिष्ठता पर व्यापक दिशानिर्देश जारी किये गए। 

अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ एवं अन्य बनाम भारत संघ (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • पीठ इस बात पर विचार कर रही थी कि क्याकैरियर में ठहराव को दूर करने के लिये प्रवेश स्तर पर सम्मिलित होने वालेन्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति के लिये जिला न्यायाधीश के पदों में कोटा होना चाहिये 
  • न्यायालय का मित्र (amicus curiae) नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर ने एक विषम स्थिति पर प्रकाश डाला था, जहाँ प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में भर्ती किये गए न्यायिक अधिकारी अक्सर प्रधान जिला न्यायाधीश के स्तर तक भी नहीं पहुँच पाते हैं। 
  • न्यायमित्र ने कहा कि इस स्थिति ने प्रतिभाशाली युवाओं को न्यायपालिका में सम्मिलित होने से हतोत्साहित किया है। 
  • प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट (JMFC) कैडर से आरंभ में चयनित न्यायाधीशों की पदोन्नति के लिये प्रधान जिला न्यायाधीश कैडर से कुछ प्रतिशत पद आरक्षित करने के प्रस्ताव पर विचार करने के लिये यह मामला बड़ी पीठ को भेजा गया था। 
  • वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए तर्क दिया कि इससे जिला न्यायाधीश के रूप में सीधी भर्ती की प्रतीक्षा कर रहे मेधावी अभ्यर्थियों को अवसर नहीं मिलेगा।  
  • संदर्भ आदेश में कहा गया है कि प्रारंभ में सिविल न्यायाधीश के रूप में नियुक्त न्यायाधीश दशकों की सेवा के माध्यम से समृद्ध अनुभव प्राप्त करते हैं, और प्रत्येक न्यायिक अधिकारी कम से कम उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद तक पहुँचने की आकांक्षा रखता है। 
  • इस विवाद्यक में तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पारित निर्णयों पर विचार करना शामिल था, जिसके लिये पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की आवश्यकता थी। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • न्यायालय ने जिला न्यायाधीश पदों पर पदोन्नत न्यायाधीशों के लिये विशेष कोटा या वेटेज को खारिज कर दिया, तथा कहा कि उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) में प्रत्यक्ष भर्ती से आए अधिकारियों के अनुपात में किसी भी प्रकार की राष्ट्रव्यापी असमानता का कोई ठोस पैटर्न प्रदर्शित नहीं होता 
  • पीठ ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों में असंतोष की भावना के आधार पर उच्च न्यायिक सेवा संवर्ग में कृत्रिम वर्गीकरण को उचित नहीं ठहराया जा सकता। 
  • विभिन्न स्रोतों से सामान्य कैडर में प्रवेश और वार्षिक रोस्टर के अनुसार वरिष्ठता सौंपे जाने पर, पदधारी उस स्रोत का जन्मचिह्न खो देते हैं जहाँ से उनकी भर्ती हुई है। 
  • उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) के अंतर्गत चयन ग्रेड और सुपर टाइम स्केल में निर्धारण, संवर्ग के भीतर योग्यता-सह-वरिष्ठता पर आधारित है और यहन्यायपालिका के निचले स्तर पर सेवा की अवधि या प्रदर्शन पर निर्भर नहीं हो सकता। 
  • सिविल जज के रूप में कार्यकाल की अवधि और प्रदर्शन, जिला जज के सामान्य कैडर में पदाधिकारियों को वर्गीकृत करने के लिये कोई स्पष्ट अंतर नहीं रखता है। 
  • न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि सेवा में कार्यरत न्यायिक अधिकारियों के पास जिला न्यायाधीश के रूप में उन्नति के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं, विशेष रूप से रेजानिश निर्णय के उपरांत, जिसने उन्हें प्रत्यक्ष भर्ती के जिला न्यायाधीश पद हेतु प्रतियोगिता में भाग लेने का अधिकार प्रदान किया है 
  • सिविल जज सीनियर डिवीजन के रूप में शीघ्र पदोन्नति को सेवा अवधि में कमी की शर्त के साथ सुगम बनाया गया है। 
  • व्यक्तिगत आकांक्षाएं किसी भी सेवा की सामान्य घटना है और वरिष्ठता नियमों का मार्गदर्शन नहीं कर सकतीं। 

वरिष्ठता पर उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश क्या हैं? 

न्यायालय नेभारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 142 के अधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए जिला न्यायाधीश के पदों को भरने के लिये दिशानिर्देश जारी किये 

दिशानिर्देश 1:उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) के भीतर अधिकारियों की वरिष्ठता वार्षिक 4-बिंदु रोस्टर के माध्यम से निर्धारित की जाएगी, जिसे 2 नियमित पदोन्नतियों, 1 सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (Limited Departmental Competitive Examination (LDCE)) और 1 सीधी भर्ती के दोहराव क्रम में विशेष वर्ष में नियुक्त सभी अधिकारियों द्वारा भरा जाएगा। 

दिशानिर्देश 2:केवल तभी जब भर्ती प्रक्रिया उस वर्ष के भीतर पूरी हो जाती है जिसके बाद इसे शुरू किया गया था और उस बाद के वर्ष के लिये किसी भी तीन स्रोतों से कोई अन्य नियुक्तियां पहले से नहीं हुई हैं, तो विलंब से नियुक्त अधिकारी उस वर्ष के रोस्टर के अनुसार वरिष्ठता के हकदार होंगे जिसमें भर्ती शुरू की गई थी। 

दिशानिर्देश 3:यदि किसी वर्ष उत्पन्न हुई रिक्तियों के लिये उसी वर्ष भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की जाती, तो ऐसी रिक्तियों को बाद की भर्ती प्रक्रिया में भरने वाले अभ्यर्थियों को उस वार्षिक रोस्टर वर्ष में वरिष्ठता प्रदान की जाएगी, जिसमें संबंधित भर्ती प्रक्रिया अंततः पूर्ण हुई हो तथा नियुक्ति संपादित की गई हो 

दिशानिर्देश 4:किसी विशेष वर्ष के लिये सीधी भर्ती और सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (LDCE) की भर्ती पूरी हो जाने के बाद, उनके कोटे में आने वाले पद जो उपयुक्त अभ्यर्थियों की कमी के कारण खाली रह जाते हैं, उन्हें नियमित पदोन्नतियों के माध्यम से भरा जाएगा, बशर्ते कि वार्षिक रोस्टर में केवल बाद के नियमित पदोन्नत पदों पर नियुक्ति की जाए, और बाद के वर्ष में रिक्तियों की गणना पूरे कैडर पर 50:25:25 के अनुपात में लागू की जाएगी। 

दिशानिर्देश 5:संबंधित राज्यों में उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) को नियंत्रित करने वाले सांविधिक नियम, उच्च न्यायालयों के परामर्श से, वार्षिक रोस्टर और निर्णय निदेशों के कार्यान्वयन की सटीक रूपरेखा विहित करेंगे। 

अतिरिक्त न्यायालय स्पष्टीकरण: 

  • इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य किसी आपसी विवाद को सुलझाना नहीं है, अपितु ये सामान्य हैं तथा इन्हें उच्चतर न्यायिक सेवाओं की आपसी वरिष्ठता को नियंत्रित करने वाले विनियमों में सम्मिलित करना अनिवार्य है। 
  • ये दिशानिर्देश आपसी वरिष्ठता विवादों से संबंधित किसी भी निर्णीत विवाद्यक को पुनः नहीं खोलेंगे। 
  • वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए दिशानिर्देश जारी किये जा रहे हैं तथा भविष्य में इनमें पुनः संशोधन किया जा सकता है। 

उच्च न्यायिक सेवा क्या है? 

बारे में: 

  • उच्चतर न्यायिक सेवा भारतीय न्यायिक प्रणाली में जिला न्यायाधीशों के संवर्ग को संदर्भित करती है। 
  • उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) में प्रवेश तीन स्रोतों से होता है: सिविल जज संवर्ग से नियमित पदोन्नति, सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा और सीधी भर्ती। 
  • नियमित पदोन्नतियों, सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (LDCE) और सीधी भर्ती के लिये कैडर शक्ति अनुपात क्रमशः 50:25:25 है। 

कैरिअर की प्रगति: 

  • उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) के अधिकारी जिला न्यायाधीश चयन ग्रेड, जिला न्यायाधीश सुपर टाइम स्केल और प्रधान जिला न्यायाधीश जैसे पदों पर आगे बढ़ सकते हैं।  
  • संवर्ग के भीतर पदोन्नति योग्यता-सह-वरिष्ठता सिद्धांत पर आधारित है। 
  • सेवा में कार्यरत न्यायिक अधिकारी जिला न्यायाधीश के रूप में प्रत्यक्ष भर्ती हेतु भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त पदोन्नति अवसर उपलब्ध होते हैं 

वरिष्ठता का अवधारण: 

  • इससे पहले, वरिष्ठता निर्धारण राज्यों में अलग-अलग होता था, जिसके कारण विवाद और कैरियर में ठहराव की चिंताएँ उत्पन्न होती थीं। 
  • नये दिशानिर्देश सुसंगत वरिष्ठता निर्धारण के लिये सभी राज्यों में एक समान वार्षिक रोस्टर प्रणाली स्थापित करते हैं। 
  • वार्षिक रोस्टर उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) संवर्ग में भर्ती के सभी तीन स्रोतों से आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है। 

भारत के संविधान का अनुच्छेद 142 क्या है? 

  • भारत के संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय डिक्रियों और आदेशों का प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश का उपबंध करता है। 
  • अनुच्छेद 142 (1) में यह उपबंध है कि उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश' द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा 
  • अनुच्छेद 142 (2) में यह उपबंध है कि संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र के बारे में किसी व्यक्ति को हाजिर कराने के, किन्हीं दस्तावेज़ों के प्रकटीकरण या पेश कराने के अथवा अपने किसी अवमान का अन्वेषण करने या दण्ड देने के प्रयोजन के लिये कोई आदेश करने की समस्त और प्रत्येक शक्ति होगी 
  • वर्षों से इस उपबंध का उपयोग मुख्यतः दो उद्देश्यों के लिये किया जाता रहा है: पहला, किसी मामले में "पूर्ण न्याय" करना और दूसरा, न्यायालय द्वारा विधायी अंतराल को भरना।