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सांविधानिक विधि
अधिकरण सुधार अधिनियम 2021 को शून्य घोषित किया गया
« »20-Nov-2025
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"अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 सांविधानिक दोषों को दूर किये बिना बाध्यकारी निर्णयों को विधायी रूप से रद्द करने के समान है।" भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2025) के मामले में अधिकरण सदस्यों की नियुक्तियों, कार्यकाल और सेवा शर्तों से संबंधित अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 को असांविधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया।
मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 को चुनौती देते हुए मद्रास बार एसोसिएशन द्वारा 2021 में याचिका दायर की गई थी।
- 2020 के मद्रास बार एसोसिएशन मामले (MBA 4) में, उच्चतम न्यायालय ने अधिकरण नियम 2020 को रद्द कर दिया था।
- 2021 के मद्रास बार एसोसिएशन मामले (MBA 5) में, न्यायालय ने अधिकरण सुधार अध्यादेश 2021 को रद्द कर दिया।
- इन पूर्व निर्णयों में न्यायालय ने यह आदेश दिया था कि अधिकरण के सदस्यों का कार्यकाल कम से कम 5 वर्ष का होना चाहिये तथा न्यूनतम 10 वर्ष का अनुभव रखने वाले अधिवक्ताओं की नियुक्ति पर विचार किया जाना चाहिये।
- यद्यपि, 2021 अधिनियम में केवल 4 वर्ष का कार्यकाल विहित किया गया है और नियुक्तियों के लिये न्यूनतम आयु सीमा 50 वर्ष निर्धारित की गई है।
- अधिनियम में यह भी निर्धारित किया गया है कि खोज-सह-चयन समिति अध्यक्ष पद के लिये दो व्यक्तियों की सिफारिश करेगी, जो कि पूर्व के निर्णयों से अलग है।
- अधिनियम ने समकक्ष सिविल सेवकों के समान भत्ते और लाभ निर्धारित किये तथा ऊपरी आयु सीमा 70/67 वर्ष अधिरोपित की।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि यह अधिनियम उच्चतम न्यायालय के पूर्ववर्ती निर्णयों के विपरीत है तथा न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
- केंद्र सरकार ने मामले को बड़ी पीठ को सौंपने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया, जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया।
- 11 नवंबर, 2025 को निर्णय सुरक्षित रखा गया और 19 नवंबर, 2025 को सुनाया गया।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि ये प्रावधान शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता के सांविधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, जो संविधान में दृढ़तापूर्वक अंतर्निहित हैं।
- निर्णय में इस बात पर बल दिया गया कि संसद सांविधानिक दोषों को दूर किये बिना उसी उपाय को अलग रूप में पुनः लागू करके न्यायिक निर्णयों को रद्द नहीं कर सकती।
- पीठ ने कहा कि यह अधिनियम "केवल थोड़े से परिवर्तित रूप में उन्हीं प्रावधानों को पुनः प्रस्तुत करता है, जिन्हें पहले निरस्त कर दिया गया था" जो विधायी अधिरोहण के समान है।
- न्यायालय ने संघ के इस तर्क को खारिज कर दिया कि किसी विधि का परीक्षण न्यायिक स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथक्करण जैसे "अमूर्त सिद्धांतों" पर नहीं किया जा सकता।
- पचास वर्ष की न्यूनतम आयु सीमा, ऊपरी आयु सीमा के साथ चार वर्ष का संक्षिप्त कार्यकाल, अध्यक्ष के लिये दो नामों की सिफारिश करने की आवश्यकता, तथा सिविल सेवक समकक्षों के लिये भत्ते तय करने को मनमाना करार देते हुए रद्द कर दिया गया।
- सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने अटॉर्नी जनरल द्वारा बड़ी पीठ को संदर्भ देने और स्थगन की मांग पर नाराजगी व्यक्त की, तथा प्रश्न किया कि क्या यह मुख्य न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति तक सुनवाई में विलंब करने की एक "रणनीति" थी।
- न्यायालय ने निदेश दिया कि जब तक संसद नया अधिनियम पारित नहीं कर देती, तब तक मद्रास बार एसोसिएशन (MBA 4) और मद्रास बार एसोसिएशन (MBA 5) मामलों में दिये गए निदेश लागू रहेंगे।
- न्यायालय ने केंद्र को चार महीने के भीतर राष्ट्रीय अधिकरण आयोग गठित करने का निदेश दिया।
- जिन नियुक्तियों का चयन अधिनियम लागू होने से पूर्व पूरा हो गया था, किंतु जिनकी औपचारिक अधिसूचनाएँ बाद में जारी की गईं, उन्हें मूल संविधि और मद्रास बार एसोसिएशन 4/5 शर्तों द्वारा संरक्षित और शासित किया जाएगा।
अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 क्या है?
बारे में:
- यह अधिनियम कुछ अपीलीय अधिकरणों को भंग करके तथा उनके कार्यों को उच्च न्यायालयों जैसे विद्यमान न्यायिक निकायों को अंतरित करके अधिकरणों के कामकाज को सुव्यवस्थित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- इसे मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2021) के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के जवाब में पेश किया गया था, जिसने अधिकरण सुधार (Rationalisation and Conditions of Service) अध्यादेश, 2021 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था।
प्रमुख प्रावधान:
- अधिकरण का उन्मूलन: यह अधिनियम अनेक अपीलीय अधिकरणों को भंग कर देता है तथा उनके कार्यों को उच्च न्यायालयों और अन्य न्यायिक निकायों को सौंप देता है।
- खोज-सह-चयन समिति: इसकी स्थापना अधिकरण के अध्यक्षों और सदस्यों की नियुक्ति की सिफारिश करने के लिये की गई है।
- केंद्रीय अधिकरणों के लिये:
- अध्यक्ष: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) या CJI द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (निर्वाचन मत)।
- केंद्र सरकार द्वारा नामित दो सचिव।
- अधिकरण के वर्तमान/निवर्तमान अध्यक्ष, अथवा उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, अथवा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश।
- गैर-मतदाता सदस्य: संबंधित केंद्रीय मंत्रालय के सचिव।
- राज्य प्रशासनिक अधिकरणों के लिये:
- अध्यक्ष: संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (मतदान)।
- राज्य सरकार के मुख्य सचिव।
- राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष ।
- अधिकरण के वर्तमान/निवर्तमान अध्यक्ष अथवा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश।
- कार्यकाल और आयु सीमा : अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 4 वर्ष है, न्यूनतम आयु 50 वर्ष है ।
- अधिकरण के सदस्यों के लिये अधिकतम आयु सीमा 67 वर्ष तथा अध्यक्ष के लिये 70 वर्ष अथवा 4 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने तक, जो भी पहले हो, है।
- अधिकरण के अध्यक्ष और सदस्य पुनर्नियुक्ति के पात्र हैं, तथा उनकी पिछली सेवा को वरीयता दी जाएगी।
- अधिकरण के सदस्यों को हटाना: खोज-सह-चयन समिति की सिफारिश पर केंद्र सरकार अध्यक्ष या सदस्य को हटा सकती है।
अधिकरण क्या हैं?
अधिकरण एक अर्ध-न्यायिक संस्था है जिसकी स्थापना प्रशासनिक या कर-संबंधी विवादों जैसे मामलों के समाधान के लिये की जाती है। मूल संविधान में अधिकरणों के संबंध में कोई प्रावधान नहीं था। 1976 के 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में एक नया भाग 14-क जोड़ा गया ।
- भाग 14-क को अधिकरण कहा गया है और इसमें दो अनुच्छेद हैं, अर्थात् अनुच्छेद 323क और 323ख।
- अनुच्छेद 323-क : लोक सेवा मामलों के लिये प्रशासनिक अधिकरणों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 323-ख : विभिन्न मामलों पर अधिकरणों का उपबंध करता है, जिनमें सम्मिलित हैं: कराधान, विदेशी मुद्रा, आयात और निर्यात, औद्योगिक और श्रम विवाद, संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव, खाद्य सुरक्षा।
न्यायालय और अधिकरण के बीच अंतर
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