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मध्य प्रदेश
वाणिज्यिक नौसेना (मर्चेंट नेवी) अधिकारी का वेतन
«20-Aug-2025
वंदना एवं अन्य बनाम केशव और अन्य "क्या मर्चेंट नेवी में अधिकारी के रूप में कार्यरत और भारत में रखे गए खातों से वेतन प्राप्त करने वाले व्यक्ति को आयकर के भुगतान से छूट प्राप्त है? यदि उसे कर के भुगतान से छूट प्राप्त है, तो अधिकरण को आयकर के कारण कोई कटौती लागू नहीं करनी चाहिये थी।" न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति पंकज मिथल और प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने यह निर्णय दिया है कि न्यायालय इस बात की जांच करेगा कि क्या मर्चेंट नेवी अधिकारियों की विदेश में अर्जित आय, जो भारतीय बैंक खातों में जमा की जाती है, आयकर अधिनियम, 1961 के अधीन आयकर से मुक्त है।
- उच्चतम न्यायालय ने वंदना एवं अन्य बनाम केशव एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
वंदना एवं अन्य बनाम केशव एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला एक मोटर दुर्घटना प्रतिकर दावे से उत्पन्न हुआ था, जहाँ मृतक ब्रिटिश मरीन पी.एल.सी., लंदन में वाणिज्यिक नौसेना (मर्चेंट नेवी) अधिकारी के रूप में कार्यरत था, तथा 3,200 अमेरिकी डॉलर मासिक वेतन पाता था।
- मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (Motor Accident Claims Tribunal (MACT)) ने शुरू में अपीलकर्त्ता, जो मृतक की पत्नी थी, को अंतिम प्रतिकर के रूप में 36,04,000 रुपए देने का आदेश दिया। यद्यपि, अधिकरण ने प्रतिकर की राशि में से 30% की कटौती कर दी और इसे मृतक की अर्जित आय पर कर देयता मान लिया।
- अपीलकर्त्ता ने इस कटौती को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि उसके पति द्वारा विदेशी संस्था के साथ काम करते हुए अर्जित आय को भारतीय आयकर से छूट दी जानी चाहिये।
- पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने कर कटौती के संबंध में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के निर्णय को बरकरार रखा, किंतु 40% संभावनाओं को जोड़कर समग्र प्रतिकर को 1.01 करोड़ रुपए तक बढ़ा दिया।
- इस वाद का मुख्य प्रश्न यह था कि क्या वाणिज्यिक नौसेना में अधिकारी के रूप में कार्यरत व्यक्ति, जिसकी वेतनराशि भारत स्थित बैंक खातों में जमा की जाती है, को भारतीय विधि के अधीन आयकर से छूट प्राप्त है या नहीं।
- अपीलकर्त्ता ने तर्क दिया कि यदि ऐसी आय कर से मुक्त है, तो प्रतिकर की राशि की गणना करते समय कोई कटौती लागू नहीं की जानी चाहिये थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया कि यह वाद वाणिज्यिक नौसेना सेवाओं में कार्यरत भारतीय निवासियों द्वारा विदेश में अर्जित आय पर कराधान (taxation) संबंधी एक महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न प्रस्तुत करता है।
- न्यायालय ने उल्लेख किया कि मूल विधिक प्रश्न यह है कि क्या वाणिज्यिक नौसेना में अधिकारी के रूप में कार्यरत व्यक्ति, जिसकी वेतनराशि भारत में संचालित खातों में जमा होती है, को आयकर अधिनियम, 1961 के अधीन आयकर भुगतान से छूट प्राप्त है या नहीं।
- न्यायालय ने यह भी अवलोकन किया कि यदि ऐसे व्यक्तियों को वास्तव में कर भुगतान से छूट प्राप्त है, तो दावा अधिकरण को प्रतिकर की गणना करते समय आयकर कटौती लागू नहीं करनी चाहिये थी।
- पीठ ने यह स्वीकार किया कि यह मुद्दा केवल इस वाद तक सीमित नहीं है, अपितु ऐसी ही स्थिति वाले अन्य व्यक्तियों को भी प्रभावित करता है; अतः न्यायालय ने वाद की शीघ्र सुनवाई का निदेश दिया।
- उच्चतम न्यायालय ने मुख्य याचिका और प्रति-याचिका दोनों पर अनुमति प्रदान करते हुए व्यापक निर्णय के लिये उन पर एक साथ विचार करने का निर्णय लिया।
- न्यायालय ने मुख्य प्रश्न यह पूछा कि क्या वाणिज्यिक नौसेना अधिकारियों की विदेश में अर्जित आय भारत में कर योग्य है, और यदि नहीं, तो क्या अधिकरण और उच्च न्यायालय ने मोटर दुर्घटना प्रतिकर की गणना करते समय 30% आयकर की कटौती करने में कोई त्रुटि की है।
- सुनवाई में तेजी लाने का न्यायालय का निर्णय इस कराधान विवाद्यक को सुलझाने के महत्त्व और तात्कालिकता को इंगित करता है, जो न केवल वर्तमान मामले को प्रभावित करता है, अपितु विदेशी संस्थाओं के साथ वाणिज्यिक नौसेना (मर्चेंट नेवी) सेवाओं में कार्यरत संभावित रूप से कई अन्य व्यक्तियों को भी प्रभावित करता है।
विदेश से अर्जित आय पर कर से छूट कैसे मिलती है?
- भारत में आयकर अधिनियम, 1961 के अधीन निवास-आधारित नियम लागू है, जिसके अनुसार भारतीय निवासी को उनकी वैश्विक आय पर कर अदा करना होता है, चाहे वह आय भारत में अर्जित की गई हो या भारत के बाहर। विदेशी स्रोत आय (Foreign Source Income) वह आय मानी जाती है जो भारत के बाहर स्रोत से प्राप्त हो, बशर्ते कि अंतिम रूप से वह गतिविधि भारत के बाहर संपन्न हुई हो।
- आय की प्रथम प्राप्ति का स्थान महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि छूट के लिये संभावित रूप से पात्र होने के लिये आय की प्राप्ति प्रारंभ में भारत के बाहर होनी चाहिये। यदि विदेश से अर्जित आय सीधे भारत में प्राप्त होती है, तो वह घरेलू कर विधियों के अधीन कर योग्य हो जाती है, चाहे वह मूल रूप से कहीं भी अर्जित की गई हो।
- विदेशी आय की करदेयता मुख्य रूप से आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 6 के अधीन किसी व्यक्ति की आवासीय स्थिति पर निर्भर करती है, जो लोगों को निवासी और सामान्य निवासी (Resident and Ordinarily Resident – ROR), निवासी लेकिन सामान्य निवासी नहीं (Resident but Not Ordinarily Resident – RNOR), या अनिवासी (Non-Resident – NR) के रूप में वर्गीकृत करती है।
- भारत के सामान्य निवासियों को अपनी वैश्विक आय पर कर का भुगतान करना होगा, जिसका अर्थ है कि सभी आय भारत में कर योग्य है, भले ही उस पर उस विदेशी देश में पहले ही कर लगाया जा चुका हो जहाँ वह अर्जित की गई थी।
- गैर-सामान्य निवासी (RNOR) एवं गैर-निवासी (NR) व्यक्तियों के लिये, आय केवल तभी भारत में करयोग्य होती है जब वह भारत में अर्जित, उत्पन्न (arisen) या प्राप्त (received) हुई हो। तथापि, दोहरे कराधान से राहत धारा 90 एवं 91 के अधीन विदेशी कर क्रेडिट के माध्यम से उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त, दोहरे कराधान परिहार संधियाँ (Double Tax Avoidance Agreements – DTAA) भी इस उद्देश्य से लागू हैं कि एक ही आय पर बहु-देशीय कराधान से बचा जा सके।
- केवल यह तथ्य कि विदेश में अर्जित आय भारतीय बैंक खाते में जमा की जाती है, उसे भारतीय आयकर दायित्त्व से स्वतः छूट नहीं देता है।
- सामान्यतः, भारतीय निवासी के लिये भारतीय बैंक खातों में जमा विदेशी आय, आयकर अधिनियम, 1961 के अधीन करयोग्य होती है। कर-मुक्ति का निर्धारण मुख्यतः निवासीय स्थिति एवं आय की प्रथम प्राप्ति के स्थान पर आधारित होता है, न कि मात्र बैंक खाते के स्थान पर।