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सांविधानिक विधि

चुनावों में संपत्ति प्रकटीकरण आवश्यकताएँ

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 20-Aug-2025

अजमेरा श्याम बनाम श्रीमती. कोवा लक्ष्मी एवं अन्य (2025) 

"उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रकटीकरण आवश्यकताओं को अनुचित रूप से इतना नहीं बढ़ाया जाना चाहिये कि वैध रूप से घोषित चुनावों को मामूली तकनीकी गैर-अनुपालनों के आधार पर अमान्य कर दिया जाए, जो पर्याप्त प्रकृति के नहीं हैं।" 

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और एन. कोटिस्वर सिंह 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

अजमेरा श्याम बनाम श्रीमती कोवा लक्ष्मी एवं अन्य (2025)के मामले में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ नेआसिफाबाद निर्वाचन क्षेत्र से बी.आर.एस. विधायक कोवा लक्ष्मी के चुनाव में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और कहा कि यदि संपत्ति का प्रकटीकरण न करना पर्याप्त प्रकृति का नहीं है तो यह भ्रष्ट आचरण नहीं माना जाएगा। 

  • इससेनामांकन की स्वीकृति अनुचित नहीं होगी, जिससे निर्वाचन अमान्य हो जाएगा। 

अजमेरा श्याम बनाम श्रीमती कोवा लक्ष्मी एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • यह मामला तेलंगाना विधानसभा चुनाव, 2023 से उत्पन्न हुआ, जिसमें भारत राष्ट्र समिति (BRS) की प्रत्याशी कोवा लक्ष्मी आसिफाबाद निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित हुईं। 
  • कोवा लक्ष्मी ने अपने चुनावी शपथपत्र मेंअपनीसंपत्ति, देनदारियों, पैन और आय के स्रोतों (जिला परिषद अध्यक्ष के रूप में मानदेय) का प्रकटीकरण किया था। 
  • उन्होंने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए आयकर विवरणी (IT returns) प्रस्तुत की, किंतु वर्ष 2018 से 2022 तक की अवधि हेतु "शून्य" आय अंकित की। 
  • अपीलकर्त्ता अजमेरा श्याम ने उनके निर्वाचन को चुनौती देते हुए आरोप लगाया कि फॉर्म 26 शपथपत्र के अनुसार पूर्ण आय विवरण प्रकट न करना, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 100 के अधीन नामांकन कीअनुचित स्वीकृति और भ्रष्ट आचरण के समान है। 
  • तेलंगाना उच्च न्यायालय ने पहले कोवा लक्ष्मी के निर्वाचन मेंहस्तक्षेप करने से इंकार कर दियाथा, जिसके निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की गई थी। 
  • निर्वाचन संचालन नियम, 1961 के नियम 4क के अनुसार प्रत्याशियों को फॉर्म 26 शपथपत्र दाखिल करना होगा, जिसमें पिछले पाँच वर्षों की संपत्ति, देनदारियों और आयकर रिटर्न का प्रकटीकरण करना होगा। 
  • याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि पूर्ण आय विवरण का प्रकटीकरण न करनाइन आवश्यकताओं का उल्लंघन हैतथा यह चुनाव को रद्द करने का आधार बनता है। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • उच्चतम न्यायालय नेपर्याप्त दोषों और मामूली तकनीकी गैर-अनुपालनों के बीच अंतर करते हुएकहा कि "जहाँ तक परिसंपत्तियों और शैक्षणिक योग्यता का संबंध है, प्रकटन की आवश्यकता को इस प्रकार अत्यधिक रूप से नहीं बढ़ाया जाना चाहिये जिससे कि अन्यथा विधिवत घोषित चुनाव को मात्र किसी मामूली तकनीकी त्रुटि के कारण अमान्य ठहराया जाए, जो कि कोई गंभीर प्रकृति की न हो।" 
  • न्यायालय ने कहा कि "उल्लिखित गैर-प्रकटीकरण का दोष पर्याप्त प्रकृति का नहीं है, इसी कारण से प्रत्यर्थी संख्या 1 को अधिनियम की धारा 123 (2) के अर्थ के भीतर भ्रष्ट आचरण में लिप्त नहीं माना जा सकता है।" 
  • न्यायमूर्ति एन.के. सिंह ने कहा कि नियम 4क के अधीन आयकर रिटर्न का प्रकटन करना आवश्यक है, किंतु प्रकटन न करना भ्रष्ट आचरण के आधार पर चुनाव को अमान्य घोषित करने के लिये कोई बड़ा दोष नहीं होगा।  
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि "केवल इस आधार पर कि एक निर्वाचित प्रत्याशी ने परिसंपत्तियों से संबंधित कुछ जानकारी का प्रकटन नहीं किया है, न्यायालयों को अत्यधिक तंग दृष्टिकोण अपनाकर जल्दबाज़ी में चुनाव को अमान्य नहीं करना चाहिये।"  
  • निर्णय में यह स्थापित किया गया कि वास्तविक परीक्षण यह है कि "किसी भी मामले में परिसंपत्तियों के बारे में जानकारी का प्रकटन न करना परिणामी या अप्रासंगिक है।"  
  • लोक प्रहरी बनाम भारत संघ एवं अन्य (2018)का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने यह कहा कि, यद्यपि परिसंपत्तियों का प्रकटन न करना भ्रष्ट आचरण हो सकता है, तथापि वर्तमान वाद में यह त्रुटि "गंभीर प्रकृति की नहीं" है।" 

चुनावों में संपत्ति प्रकटीकरण की आवश्यकताएँ क्या हैं? 

बारे में: 

  • चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने और मतदाताओं को सूचित मतदान करने में सक्षम बनाने के लिये संपत्ति प्रकटीकरण आवश्यकताओं को शुरू किया गया था। 
  • निर्वाचन संचालन नियम, 1961 के अंतर्गत फॉर्म 26 में परिसंपत्तियों, देनदारियों, शैक्षिक योग्यताओं और आपराधिक पृष्ठभूमि का प्रकटन अनिवार्य है। 
  • प्रत्याशियों को अपनी चल और अचल संपत्ति, आय के स्रोत और पिछले पाँच वर्षों के आयकर रिटर्न का प्रकटीकरण करते हुए शपथपत्र दाखिल करना होगा। 
  • इसका उद्देश्य आय से अधिक संपत्ति या अघोषित धन रखने वाले व्यक्तियों को निर्वाचन क्षेत्र में प्रवेश करने से रोकना है।  

विधिक ढाँचा: 

  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 के अधीन भ्रष्ट आचरण में अनुचित प्रभाव डालना, रिश्वतखोरी और नामांकन पत्रों में मिथ्या कथन करना सम्मिलित है। 
  • लोक प्रतिनिधि अधिनियम की धारा 100(1)(ख) में उपबंध है कि यदि निर्वाचित प्रत्याशी द्वारा भ्रष्ट आचरण किया जाता है तो निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है। 
  • उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों में यह स्पष्ट किया है यदि शपथपत्र में कोई महत्त्वपूर्ण जानकारी को जानबूझकर छुपाया गया हो या मिथ्या विवरण दिया गया हो, तो वह भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में आएगा। 
  • तथापि, न्यायालयों ने यह निरंतर कहा है कि प्रत्येक तकनीकी त्रुटि को गंभीर दोष मानते हुए चुनाव को निरस्त नहीं किया जा सकता।  

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 क्या है? 

बारे में: 

  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 भारत का एक मूलभूत विधिक अधिनियम है जो देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। यह अधिनियम 1951 में अधिनियमित किया गया था और इसका उद्देश्य स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं पारदर्शी निर्वाचन सुनिश्चित करना है। 

मुख्य बातें: 

प्रमुख धाराएँ 

  • धारा 8: आपराधिक दोषसिद्धि के आधार पर प्रत्याशियों को अयोग्य घोषित करती है, जिसमें विभिन्न अपराधों एवं कारावास की अवधियों के लिये पृथक् प्रावधान हैं।  
  • धारा 29: राजनीतिक दलों के निर्वाचन आयोग में रजिस्ट्रीकरण हेतु प्रक्रिया निर्धारित करती है। 
  • धारा 123: रिश्वतखोरी और अनुचित प्रभाव सहित भ्रष्ट आचरण को परिभाषित करती है।  
  • धारा 126: मतदान से पूर्व 48 घंटे की अवधि में टेलीविज़न पर चुनाव सामग्री के प्रदर्शन को निषिद्ध करती है (यह प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया पर लागू नहीं होती)। 
  • धारा 126: निर्दिष्ट अवधि के दौरान एग्जिट पोल पर प्रतिबंध लगाती है। 
  • धारा 100: कदाचार के कारण चुनाव रद्द करने की शर्तें निर्धारित करती है। 

मुख्य विशेषताएँ: 

अधिनियम में चार मुख्य क्षेत्र सम्मिलित हैं: 

  • निर्वाचन प्रक्रिया: निर्वाचन की प्रक्रिया, मतगणना एवं चुनावी विवादों के समाधान की व्यवस्था करता है। 
  • योग्यता और अयोग्यता: प्रत्‍याशियों के नैतिक आचरण को केंद्र में रखते हुए उनके पात्रता मापदंड निर्धारित करता है।  
  • निर्वाचन अपराध: रिश्वतखोरी और बूथ कैप्चरिंग जैसी निषिद्ध प्रथाओं को परिभाषित करता है।  
  • निर्वाचन आयोग की शक्तियां: निर्वाचन आयोग की नियामक भूमिका एवं अधिकारों को स्पष्ट करता है 

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अधीन निर्वाचन अपराध: 

यह अधिनियम विभिन्न भ्रष्ट आचरणों पर प्रतिबंध लगाता है, जिनमें सम्मिलित हैं: 

  • मतदाताओं या प्रत्याशियों को किसी प्रकार की अनुचित सुविधा या लाभ देना। 
  • मतदान के अधिकार में हस्तक्षेप करना। 
  • धर्म, जाति, मूलवंश या समुदाय के आधार पर मतदाताओं से अपील करना।  
  • विभिन्न समूहों के मध्य द्वेष या वैमनस्य फैलाना। 
  • प्रत्याशियों के विरुद्ध मिथ्या या अपमानजनक वक्तव्य प्रकाशित करना। 
  • मतदान केंद्रों पर जबरन नियंत्रण स्थापित करना (Booth Capturing)।  
  • सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग कर चुनावी लाभ प्राप्त करना।