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आपराधिक कानून

UAPA के तहत जेल और ज़मानत

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 14-Feb-2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

परिचय:

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कथित "खालिस्तान मॉड्यूल" के अभियुक्त गुरविंदर सिंह को गुरविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य (2024), मामले में ज़मानत देने से इनकार कर दिया, जिसके कारण विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप निवारण अधिनियम, 1967 (UAPA) के क्रियान्वन के संबंध में सवाल उठाए गए हैं। पूर्व के निर्णय के अनुसार, UAPA के तहत 'ज़मानत नियम है और जेल अपवाद है' किंतु UAPA के कड़े उपबंध उक्त मामले के आलोक में एक भिन्न स्थिति प्रदर्शित करते हैं।  

UAPA की धारा 43D(5) क्या है?

  • UAPA की धारा 43D (5) ज़मानत की कार्यवाही तथा रिहाई के लिये कड़ी शर्तों का प्रावधान करती है।
  • इस प्रावधान के अंतर्गत UAPA के अध्याय IV और VI के तहत दंडनीय आरोपों का सामना करने वाले अभियुक्त को पूर्ण रूप से पुलिस दस्तावेज़ के आधार पर न्यायालय में यह सिद्ध करने की आवश्यकता होती है कि उस पर लगाए गए अभियोग प्रथम दृष्टया सत्य नहीं हैं।
  • यह विधिक ढाँचा प्रभावी ढंग से अभियुक्त द्व्रारा साक्ष्य प्रस्तुत करने के दायित्व का प्रावधान करता है जो निर्दोषता/निर्दोष होने की उपधारणा के विपरीत है।

गुरविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य (2023) मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • तथ्य:
    • CIA को अमृतसर में पिलर कोट मित सिंह फ्लाईओवर के पास कपड़े के बैनर लटकाने वाले दो व्यक्तियों के बारे में जानकारी मिली थी, जिन पर "खालिस्तान ज़िंदाबाद" और "खालिस्तान रेफरेंडम, 2020" लिखा हुआ था।
    • पुलिस ने अभियुक्त को UAPA और भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) के तहत अभियोग में गिरफ्तार कर लिया।
  • NIA को जाँच का अंतरण:
    • आरोपों की गंभीरता के कारण उक्त मामले की जाँच का अंतरण राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) को किया गया, जिसने भारत सरकार, गृह मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार इस मामले की जाँच की कार्यवाही को आगे बढ़ाया।
  • जाँच के निष्कर्ष:
    • जाँच से पता चला कि आरोपी व्यक्तियों को प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन "सिख फॉर जस्टिस" के सदस्यों द्वारा भेजे गए अवैध तरीकों से धन प्राप्त हुआ था।
    • ये धनराशि "हवाला" जैसे अवैध तरीकों के माध्यम से अंतरित की गई थी और इसका उद्देश्य अलगाववादी विचारधारा का समर्थन करना था जो सिखों के लिये एक अलग राज्य की स्थापना का समर्थन करता है जिसे आमतौर पर "खालिस्तान" के रूप में जाना जाता है। धन का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों और अन्य प्रारंभिक कार्रवाइयों के लिये भी किया जाना था, जैसे कि इस अलगाववादी आंदोलन के समर्थन में भारत में आतंक भड़काने के लिये हथियारों की खरीद के प्रयास।
  • ज़मानत की अस्वीकृति:
    • ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय दोनों ने अभियुक्त की ज़मानत अर्जी खारिज़ कर दी।
  • निर्णय:
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन के सदस्यों द्वारा समर्थित आतंकवादी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में अपीलकर्ता की संलिप्तता का संकेत मिलता है, जिसमें विभिन्न चैनलों के माध्यम से बड़ी रकम का आदान-प्रदान शामिल है, जिसे समझने की आवश्यकता है। इसलिये अगर उसे ज़मानत पर रिहा किया गया तो मुख्य गवाहों के प्रभावित होने की संभावना है जिससे न्याय की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
    • अतः गंभीर अपराधों से केवल संबंधित ट्रायल में देरी को तत्काल मामले में शामिल होने के कारण ज़मानत देने के आधार के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

न्यायिक पूर्वनिर्णय के प्रभाव क्या हैं?

  • 2019 निर्णय:
    • NIA बनाम ज़हूर अहमद शाह वटाली (2019) मामले, में निर्णय किया गया कि न्यायालय UAPA के तहत ज़मानत कार्यवाही के दौरान अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों की गंभीर जाँच करने के लिये बाध्य हैं।
    • उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया “ज़मानत के लिये प्रार्थना पर विचार करने के चरण में सामग्री को आँकना आवश्यक नहीं है, बल्कि केवल व्यापक संभावनाओं के आधार पर उसके समक्ष मौजूद सामग्री के आधार पर राय बनाना आवश्यक है।
  • 2023 निर्णय:
    • हालाँकि वर्नोन बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2023) मामले में, निर्णय किया गया कि ज़मानत के लिये पात्रता निर्धारित करने से पूर्व साक्ष्य के सतही स्तर के विश्लेषण की आवश्यकता है।
    • किंतु उच्चतम न्यायालय की राय में, “यह प्रथम दृष्ट्या 'ट्रायल' को संतुष्ट नहीं करेगा जब तक कि ज़मानत देने के सवाल की जाँच के चरण में साक्ष्य के संभावित मूल्य का कम से कम सतही विश्लेषण न हो और इसके लायक गुणवत्ता अथवा संभावित मूल्य न्यायालय को संतुष्ट करता हो।"
  • जटिलता:
    • न्यायिक व्याख्या में यह भिन्नता UAPA के तहत ज़मानत के संबंध में निहित जटिलताओं को उजागर करती है।

चिंताएँ और विवाद क्या हैं?

  • UAPA के तहत ज़मानत से इनकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सुरक्षा अनिवार्यताओं तथा संविधानिक अधिकारों के बीच संतुलन के संबंध द्वारा गहन चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • UAPA आतंकवाद की रोकथाम करने और राष्ट्रीय सुरक्षा को संरक्षित करने का प्रयास करता है किंतु यह उचित प्रक्रिया अधिकारों का हनन करता है तथा निर्दोषता की उपधारणा के विपरीत है जो लोकतंत्र के मूल ढाँचे को कमज़ोर करता है।
  • सुरक्षा अनिवार्यताओं और नागरिक स्वतंत्रता के बीच मौजूद अनिश्चित तनाव के आलोक में न्यायपालिका को एक सूक्ष्म एवं संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।

UAPA से संबंधित उच्च न्यायालयों के निर्णय क्या हैं?

  • UAPA द्वारा उत्पन्न विकट बाधाओं के बावजूद, न्यायालयों ने कई बार हाई-प्रोफाइल मामलों में अभियुक्तों को ज़मानत दी है।
  • CAA विरोधी प्रदर्शनों में शामिल छात्र कार्यकर्त्ताओं को ज़मानत देने का दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय और NIA बनाम डॉ. आनंद तेलतुंबडे (2022) में दलित अधिकार कार्यकर्त्ता के पक्ष में बॉम्बे उच्च न्यायालय का निर्णय, न्यायिक विवेक एवं सहानुभूति के लिये न्यायपालिका की क्षमता को रेखांकित करता है।
  • ये निर्णय संबद्ध विषय में विधिक अस्पष्टता और बाधा के मौजूदा परिवेश के बीच एक आशाजनक समाधान की प्रस्तुति करते हैं।

निष्कर्ष:

गुरविंदर सिंह को ज़मानत देने से इनकार UAPA विधिशास्त्र के दायरे में एक सुसंगत तरीका खोजने के लिये न्यायिक आत्मनिरीक्षण तथा सुधार की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। ज़मानत के संबंध में विभिन्न न्यायिक व्याख्याएँ ज़मानती कार्यवाही की रूपरेखा को आकार देती हैं, इसलिये स्पष्टता, स्थिरता और संवैधानिक सिद्धांतों के अनुपालन की अत्यधिक आवश्यकता है।