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आपराधिक कानून
पुलिस अधिकारियों के लिये नए प्रावधान
« »10-Jul-2024
स्रोत: द हिंदू
परिचय:
1 जुलाई 2024 को, भारत ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के कार्यान्वयन के साथ आपराधिक न्याय प्रणाली में एक परिवर्तनकारी यात्रा प्रारंभ की। इस व्यापक सुधार का उद्देश्य विधिक प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाना एवं सुव्यवस्थित करना है, जिसमें विधि प्रवर्तन एजेंसियों की दक्षता और उत्तरदायित्व बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया गया है। पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (BPRD) ने इन नए प्रावधानों को लागू करने में पुलिस अधिकारियों का मार्गदर्शन करने के लिये मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की हैं।
FIR पंजीकरण और प्रारंभिक रिपोर्टिंग के लिये नए प्रावधान क्या हैं?
- विधिक प्रावधान:
- BNSS की धारा 173 संज्ञेय मामलों में सूचना से संबंधित है।
- BNSS ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किया है, लंबे समय से लंबित मामलों का समाधान किया है तथा पहुँच एवं पारदर्शिता में सुधार के लिये सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया है।
- ज़ीरो FIR और क्षेत्राधिकार संबंधी अधिदेश:
- BNSS की धारा 173 के अधीन, "ज़ीरो FIR" की अवधारणा अब विधिक रूप से संहिताबद्ध है, पहले इसे CrPC के अंतर्गत संहिताबद्ध नहीं किया गया था।
- पुलिस अधिकारी अब क्षेत्राधिकार का हवाला देकर FIR दर्ज करने से प्रतिषेध नहीं कर सकेंगे।
- इस प्रावधान का उद्देश्य अपराधों की रिपोर्ट करते समय नागरिकों के सामने आने वाली एक सामान्य बाधा को दूर करना है, विशेष रूप से उन मामलों में जहाँ अपराध घटित होने का घटना स्थल स्पष्ट नहीं है या वह किसी भिन्न क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है।
- किसी पुलिस थाने का प्रभारी अधिकारी विधिक रूप से, क्षेत्राधिकार संबंधी चिंताओं की परवाह किये बिना, FIR दर्ज करने तथा फिर मामले को उचित पुलिस थाने में स्थानांतरित करने के लिये बाध्य है।
- यह परिवर्तन यह सुनिश्चित करता है कि अपराध की रिपोर्टिंग और जाँच के प्रारंभिक चरणों में महत्त्वपूर्ण समय बर्बाद न हो।
- BNSS में FIR दर्ज न करने पर दण्डात्मक कार्यवाही का प्रावधान है तथा इस आदेश के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये पुलिस के उत्तरदायित्व का स्तर बढ़ाया गया है।
- BNSS की धारा 173 के अधीन, "ज़ीरो FIR" की अवधारणा अब विधिक रूप से संहिताबद्ध है, पहले इसे CrPC के अंतर्गत संहिताबद्ध नहीं किया गया था।
- इलेक्ट्रॉनिक रिपोर्टिंग और दस्तावेज़ीकरण:
- BNSS ने अपराधों की इलेक्ट्रॉनिक रिपोर्टिंग के लिये प्रावधान शामिल किये हैं।
- यद्यपि मौखिक और लिखित रिपोर्टिंग के पारंपरिक तरीके अभी भी मान्य हैं, पर नागरिक अब इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी सूचना प्रदान कर सकते हैं।
- इसमें ईमेल, ऑनलाइन पोर्टल या विधि प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा नामित अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म शामिल हो सकते हैं।
- धारा 173(1)(ii) के अनुसार, रिपोर्टिंग प्रक्रिया की शुचिता बनाए रखने के लिये, इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रस्तुत सूचना पर तीन दिनों के भीतर सूचक द्वारा हस्ताक्षर किया जाना चाहिये।
- यह प्रावधान पहुँच और उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि डिजिटल रिपोर्टों को भी पारंपरिक रिपोर्टों के समान ही गंभीरता से लिया जाए।
- इलेक्ट्रॉनिक रिपोर्टिंग के कार्यान्वयन के लिये सुदृढ़ डिजिटल बुनियादी ढाँचे का विकास आवश्यक है।
- अपराध एवं अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम (CCTNS) जैसी एजेंसियाँ नागरिकों के लिये अपराधों की रिपोर्ट करने हेतु सुरक्षित, उपयोगकर्त्ता-अनुकूल प्लेटफॉर्म बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
BNSS के अंतर्गत अनिवार्य वीडियोग्राफी पुलिस प्रक्रियाओं में पारदर्शिता कैसे बढ़ाती है?
- परिचय:
- BNSS में प्रमुख पुलिस प्रक्रियाओं की वीडियोग्राफी अनिवार्य है।
- इसका उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना, कदाचार की संभावना को कम करना और न्यायालयी कार्यवाही के लिये स्पष्ट साक्ष्य उपलब्ध कराना है।
- तलाशी और ज़ब्ती का दस्तावेज़ीकरण:
- धारा 185 पुलिस अधिकारी द्वारा तलाशी से संबंधित है।
- BNSS की धारा 185 के अनुसार, पुलिस अधिकारियों को अब जाँच के दौरान की गई सभी तलाशियों की वीडियो रिकॉर्डिंग करना आवश्यक है।
- इसमें परिसरों, वाहनों और व्यक्तियों की तलाशी शामिल है।
- इसी प्रकार, धारा 105 में जाँच के दौरान किसी संपत्ति पर कब्ज़ा लेने की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी अनिवार्य की गई है।
- अपराध स्थल का दस्तावेज़ीकरण:
- BNSS की धारा 176 के अनुसार अपराध स्थलों की वीडियोग्राफी अनिवार्य है।
- धारा 176 जाँच की प्रक्रिया से संबंधित है।
- यह प्रावधान भौतिक साक्ष्य की शुचिता को बनाए रखने तथा भविष्य में संदर्भ के लिये अपराध स्थल का व्यापक रिकॉर्ड तैयार करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- कार्यान्वयन चुनौतियाँ और समाधान:
- अनिवार्य वीडियोग्राफी की आवश्यकता पुलिस विभाग के लिये कई चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं, जिनमें उपकरण और प्रशिक्षण आवश्यकताएँ, डेटा भंडारण एवं प्रबंधन संबंधी मुद्दे, तथा गोपनीयता संबंधी चिंताएँ शामिल हैं।
- राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र ने इन चुनौतियों से निपटने के लिये विशेष रूप से विधिक प्रवर्तन एजेंसियों के लिये क्लाउड-आधारित मोबाइल एप्लिकेशन 'ई-सक्षम' विकसित किया है।
- यह एप फोटो एवं वीडियो लेने की सुविधा देता है तथा इनको जियो-टैग और टाइम-स्टैम्प किया जाता है, ताकि डेटा की अखंडता सुनिश्चित हो सके।
BNSS द्वारा गिरफ्तारी प्रक्रियाओं में सुधार से विधिक प्रवर्तन और नागरिक स्वतंत्रता में किस प्रकार संतुलन स्थापित होता है?
- गिरफ्तारी की सूचना का सार्वजनिक प्रदर्शन:
- BNSS की धारा 37 के अनुसार, गिरफ्तार व्यक्तियों के विषय में सूचना पुलिस थानों में प्रमुखता से प्रदर्शित की जानी चाहिये।
- धारा 37 निर्दिष्ट पुलिस अधिकारी से संबंधित है।
- यह उत्तरदायित्व प्रत्येक पुलिस थाने में सहायक उप-निरीक्षक तक के पद वाले एक निर्दिष्ट पुलिस अधिकारी पर आता है।
- प्रदर्शित की जाने वाली सूचना में गिरफ्तार व्यक्तियों के नाम और पते के साथ-साथ उन पर लगाए गए अपराधों की प्रकृति भी शामिल होगी।
- सुभेद्य व्यक्तियों के लिये सुरक्षा:
- BNSS, सामान्य आरोपों का सामना करने वाले वृद्ध, अशक्त या बीमार व्यक्तियों के लिये विशिष्ट सुरक्षा प्रदान करता है।
- धारा 35 इस बात से संबंधित है कि पुलिस कब बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है।
- धारा 35(7) में प्रावधान है कि तीन वर्ष से कम कारावास के दण्ड वाले अपराध के आरोपी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिये पुलिस उपाधीक्षक (DySP) पद के अधिकारी की अनुमति की आवश्यकता होती है, यदि आरोपी अशक्त है या उसकी आयु 60 वर्ष से अधिक है।
- हथकड़ी का विवेकपूर्ण उपयोग:
- यद्यपि BNSS कुछ मामलों में हथकड़ी लगाने का प्रावधान करता है, तथापि यह इस क्रिया के सावधानीपूर्वक प्रयोग पर ज़ोर देता है।
- यह विधान हथकड़ी लगाने के संबंध में उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों की पुष्टि करता है, जिसमें कहा गया है कि हथकड़ी का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिये जब इस बात की उचित आशंका हो कि अभियुक्त अभिरक्षा से भाग सकता है या स्वयं को या दूसरों को हानि पहुँचा सकता है।
BNSS के अधीन जाँच पूरी करने की नई समय-सीमा क्या है?
- बलात्कार के मामलों में चिकित्सा परीक्षण:
- BNSS की धारा 184(6) के अनुसार, बलात्कार के मामलों में, पंजीकृत चिकित्सक को सात दिनों के भीतर मेडिकल रिपोर्ट, जाँच अधिकारी (IO) को भेजनी होगी।
- इसके उपरांत जाँच अधिकारी को यह रिपोर्ट संबंधित मजिस्ट्रेट को भेजनी होती है।
- इस प्रावधान का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण चिकित्सा साक्ष्य के संग्रहण और प्रसंस्करण में तेज़ी लाना तथा जाँच प्रक्रिया में होने वाले विलंब को कम करना है।
- BNSS की धारा 184(6) के अनुसार, बलात्कार के मामलों में, पंजीकृत चिकित्सक को सात दिनों के भीतर मेडिकल रिपोर्ट, जाँच अधिकारी (IO) को भेजनी होगी।
- POCSO मामलों के लिये त्वरित समय-सीमा:
- BNSS ने भारतीय दण्ड संहिता के अधीन बलात्कार के मामलों में पहले लागू त्वरित जाँच समय-सीमा को लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के अधीन मामलों तक बढ़ा दिया है।
- अब POCSO मामलों में जाँच, अपराध के विषय में प्रारंभिक सूचना दर्ज होने के दो महीने के भीतर पूरी करनी होगी।
- इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य प्रबंधन:
- BNSS की धारा 193(3)(h) जाँच के दौरान ज़ब्त इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अनुक्रम को बनाए रखने के लिये जाँच अधिकारी हेतु एक नई आवश्यकता प्रस्तुत करती है।
- यह प्रावधान आपराधिक मामलों में डिजिटल साक्ष्य के बढ़ते महत्त्व तथा इससे उत्पन्न अद्वितीय चुनौतियों को मान्यता देता है।
- सूचना प्रदाता/पीड़ितों को प्रक्रिया की अद्यतन सूचना देना:
- इसी उप-धारा में यह भी अनिवार्य किया गया है कि जाँच अधिकारियों को 90 दिनों के भीतर जाँच की प्रगति के विषय में सूचना देने वाले या पीड़ित को सूचित करना होगा।
- इस प्रावधान का उद्देश्य जाँच प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाना तथा पीड़ितों एवं सूचना प्रदाताओं को शामिल और सूचित रखना है।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) आतंकवाद और संबंधित अपराधों को कैसे परिभाषित करती है?
- 'आतंकवादी कृत्य' की परिभाषा:
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 113 में 'आतंकवादी कृत्य' की व्यापक परिभाषा दी गई है।
- यह परिभाषा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह उन मापदण्डों को निर्धारित करती है जिनके आधार पर आतंकवाद विधि के अधीन मामलों की जाँच और वाद संस्थित किया जा सकता है।
- निर्णयदाता अधिकारी:
- BNS की धारा 113 या अधिक कठोर अविधिक गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मामला दर्ज करने का निर्णय लेने का उत्तरदायित्व पुलिस अधीक्षक (SP) के पद से नीचे के अधिकारी पर नहीं डालती है।
- इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आतंकवाद के आरोपों का आवेदन उच्च स्तरीय जाँच और निर्णय के अधीन हो।
निष्कर्ष:
BNSS भारत में अधिक कुशल और निष्पक्ष आपराधिक न्याय प्रणाली की दिशा में एक आशाजनक प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है, इसकी सफलता कठोर कार्यान्वयन तथा निरंतर मूल्यांकन पर निर्भर करती है। सभी हितधारकों की प्रतिबद्धता, व्यावहारिक परिणामों के आधार पर सावधानीपूर्वक निगरानी एवं समायोजन के साथ, पारदर्शिता बढ़ाने, प्रक्रियाओं को सरल बनाने और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के अपने लक्ष्यों को साकार करने में महत्त्वपूर्ण होगी। निरंतर प्रयास और अनुकूलन के साथ, BNSS में भारत के विधिक ढाँचे का उत्थान करने की क्षमता है, इसे समकालीन सामाजिक अपेक्षाओं तथा शासन मानकों की मांगों के साथ बेहतर ढंग से संरेखित करना चाहिये।