होम / एडिटोरियल
सांविधानिक विधि
भारत में मीडिया की स्वतंत्रता
« »11-Oct-2023
स्रोत- द हिंदू
परिचय
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक, 2023 में भारत 180 देशों की सूची में से 161वें स्थान पर है, जो पत्रकारिता, सेंसरशिप, मीडिया की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा में विधिक हस्तक्षेप को ध्यान में रखता है।
- विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक को प्रत्येक वर्ष रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा प्रकाशित किया जाता है, वर्ष 2023 के सूचकांक में प्रेस की स्वतंत्रता के स्तर के आधार पर 180 देशों का विश्लेषण किया गया है।
मीडिया की स्वतंत्रता
- मीडिया की स्वतंत्रता इस मूल सिद्धांत को प्रतिपादित करती है कि मुद्रित मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रकाशित सामग्री जैसे विभिन्न मीडिया के माध्यम से संचार और अभिव्यक्ति का स्वतंत्र रूप से प्रयोग किया जाना चाहिये।
- प्रेस की स्वतंत्रता स्पष्ट रूप से किसी भी विधिक प्रणाली के तहत कवर नहीं की गई है, लेकिन यह भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 19(1) (a) के तहत निहित रूप से संरक्षित है।
भारत में मीडिया की स्वतंत्रता क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- मीडिया की स्वतंत्रता विचारों, सूचनाओं और विभिन्न दृष्टिकोणों के मुक्त विनिमय को सक्षम बनाती है, जो लोकतंत्र के सुचारू कामकाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- एक स्वतंत्र प्रेस नागरिकों को सरकारी निकायों और उनके द्वारा किये गए कार्यों के बारे में सूचित कर सकता है। जो सरकार को जवाबदेह बनाता है।
- यह जनता की ज़रूरतों और इच्छाओं को सरकारी निकायों तक पहुँचाता है, जिससे उन्हें सूचित निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
- यह विचारों की खुली परिचर्चा को बढ़ावा देता है, जो व्यक्तियों को राजनैतिक जीवन में पूर्ण रूप से भाग लेने की अनुमति देता है।
- यह जनता को स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति का अधिकार प्रदान करता है।
- यह जनता के उपभोग हेतु जटिल जानकारी को सरल बनाता है।
- इसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, अन्य तीन स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका हैं।
भारत में मीडिया के अधिकार
- भारत में मीडिया द्वारा निम्नलिखित अधिकारों का प्रयोग किया जा सकता है:
- स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति का अधिकार
- जानकारी प्राप्त करने और प्रकाशित करने का अधिकार
- परिचालित एवं प्रसारित करने का अधिकार
- साक्षात्कार आयोजित करने का अधिकार
- आलोचना करने का अधिकार
- न्यायालयी कार्यवाही की रिपोर्ट करने का अधिकार
- विज्ञापन का अधिकार
मीडिया की स्वतंत्रता को क्या खतरा है?
- सोशल मीडिया का प्रभाव और फर्जी खबरों का निरंतर हमला मीडिया की स्वतंत्रता में बाधक का कार्य करता है।
- हत्याएँ और पत्रिकाओं पर हमले बहुत सामान्य हो गए हैं, जो कई सुरक्षा प्रश्न खड़े करते हैं।
- सोशल नेटवर्क पर साझा किये गए और प्रचारित किये गए घृणास्पद भाषण को सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले पत्रकारों के विरुद्ध लक्षित किया जाता है।
- कॉर्पोरेट और राजनैतिक शक्ति ने मीडिया के बड़े भाग, प्रिंट और विज़ुअल दोनों को अभिभूत कर दिया है, जो निहित स्वार्थों को बढ़ावा देता है और स्वतंत्रता को कम करता है।
- गलत सूचना और संदत्त (paid) न्यूज़ एक साथ लाखों लोगों को गुमराह कर सकती है, यह लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों के साथ प्रत्यक्ष विरोधाभास होगा, जो हमारे अस्तित्व का आधार है।
मीडिया की स्वतंत्रता के संबंध में कानूनी प्रावधान
- अनुच्छेद 19(1)(a), भारत के संविधान (COI):
- COI में मीडिया की स्वतंत्रता का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन इसे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक अभिन्न अंग माना जाता है, जो अनुच्छेद 19(1)(a) में निहित है।
- इस अनुच्छेद में कहा गया है, कि सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा।
- यह अधिकार केवल भारत के नागरिक को ही उपलब्ध है, विदेशी नागरिकों को नहीं।
- अनुच्छेद 19(1) (a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में किसी भी माध्यम से किसी भी मुद्दे पर अपने विचार और राय व्यक्त करने का अधिकार शामिल है, जैसे मौखिक शब्द, लेखन, मुद्रण, चित्र, फिल्म, चलचित्र आदि।
- अनुच्छेद 19(2), भारत के संविधान (COI):
- इस अधिकार का प्रयोग अनुच्छेद 19(2) के तहत लागू कुछ विषयों हेतु उचित रूप से प्रतिबंधित है।
- अनुच्छेद 19 (2) के खंड (1) के उप खंड (a) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा प्रदत्त अधिकार के प्रयोग पर [भारत की प्रभुता और अखंडता], राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
मीडिया की स्वतंत्रता के संबंध में ऐतिहासिक निर्णय
- रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (वर्ष 1950) मामले में: उच्चतम न्यायालय (SC) ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता सभी लोकतांत्रिक संगठनों की बुनियाद पर आधारित है।
- इंडियन एक्सप्रेस बनाम भारत संघ (वर्ष 1985) मामले में: उच्चतम न्यायालय ने माना कि प्रेस लोकतांत्रिक तंत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। न्यायालयों का कर्त्तव्य है कि वे प्रेस की स्वतंत्रता को बरकरार रखें और उस स्वतंत्रता को बाधित करने वाले सभी कानूनों और प्रशासनिक कार्रवाइयों को अमान्य करार दें।
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (वर्ष 1978) मामले में: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं है।
- बिजो इमैनुएल बनाम केरल राज्य (वर्ष 1986) में: उच्चतम न्यायालय ने माना कि बोलने के अधिकार में चुप रहने या कोई शब्द नहीं बोलने का अधिकार भी शामिल है।
निष्कर्ष
सरकार तथा अन्य निकाय सख्त कानून बनाकर और आवश्यकता पड़ने पर ज़ुर्माना लगाकर घृणास्पद अपराधों पर अंकुश लगाने और पत्रकारों के जीवन की रक्षा करने का प्रयास कर रहे हैं।
ज़िम्मेदार पत्रकारिता उस इंजन के रूप में कार्य करती है, जो लोकतंत्र को बेहतर भविष्य की ओर ले जाती है। समाचार पत्रों ने ऐतिहासिक रूप से सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तन हेतु उत्प्रेरक के रूप में कार्य किया है, इसलिये यदि किसी देश में लोकतंत्र कायम रखना है तो प्रेस को स्वतंत्र रखना होगा।