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सिविल कानून
‘राष्ट्र के लिये मध्यस्थता’ अभियान
«02-Jul-2025
स्रोत: द हिंदू
परिचय
भारत की न्याय व्यवस्था 5 करोड़ से ज़्यादा लंबित मामलों से जूझ रही है। सुलभ एवं सौहार्दपूर्ण विवाद समाधान की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई एवं न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नेतृत्व में भारत का उच्चतम न्यायालय एक राष्ट्रव्यापी मध्यस्थता पहल आरंभ कर रहा है।
- ‘राष्ट्र के लिये मध्यस्थता’ एक 90-दिवसीय अखिल भारतीय अभियान है जिसका उद्देश्य मध्यस्थता के माध्यम से लंबित मामलों को हल करना है, इसे लोगों के अनुकूल, लागत प्रभावी और संबंधों को बनाए रखने वाले संरक्षण तंत्र के रूप में बढ़ावा देना है।
- यह अभियान 1 जुलाई से 30 सितंबर, 2025 तक चलेगा, जिसमें तालुका न्यायालयों से लेकर उच्च न्यायालयों तक सभी न्यायिक स्तर शामिल होंगे।
इस अभियान की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
अभियान के उद्देश्य:
- उपयुक्त लंबित मामलों को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाना।
- मध्यस्थता को मुख्यधारा के विवाद समाधान उपकरण के रूप में बढ़ावा देना।
- देश के हर कोने तक भौतिक, ऑनलाइन या हाइब्रिड मध्यस्थता के माध्यम से पहुँचना।
- मध्यस्थता की समय, लागत और रिश्तों को बचाने की क्षमता में जनता का विश्वास बढ़ाना।
अभियान की मुख्य विशेषताएँ:
- अवधि: 1 जुलाई, 2025 – 30 सितंबर, 2025 (90 दिन)।
- आरंभकर्त्ता: भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई एवं न्यायमूर्ति सूर्यकांत (कार्यकारी अध्यक्ष, NALSA एवं MCPC)।
- आयोजक निकाय:
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA)
- मध्यस्थता एवं सुलह परियोजना समिति (MCPC)
- पर्यवेक्षण: उच्च न्यायालय मध्यस्थता समितियों द्वारा राज्यवार निगरानी।
- निष्पादन सहायता: तालुका और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA)।
योग्य मामलों की श्रेणियाँ:
- दांपत्य विवाद
- दुर्घटना दावे
- घरेलू हिंसा मामले
- चेक बाउंस मामले
- वाणिज्यिक विवाद
- सेवा मामले
- समझौता योग्य आपराधिक मामले
- उपभोक्ता संरक्षण विवाद
- ऋण वसूली मामले
- विभाजन का वाद
- बेदखली मामले
- भूमि अधिग्रहण मुद्दे
- अन्य उपयुक्त सिविल मामले
निष्पादन समयरेखा:
- 1 जुलाई – 31 जुलाई, 2025:
- न्यायालय योग्य मामलों की पहचान करेंगे तथा उन्हें “विशेष मध्यस्थता अभियान के लिये रेफर करने हेतु” सूचीबद्ध करेंगे।
- उपयुक्त मामलों की सूचना दी जाएगी तथा उन्हें प्रशिक्षित मध्यस्थों के पास भेजा जाएगा।
- साप्ताहिक प्रगति रिपोर्टिंग:
- डेटा जमा करने की तिथियाँ: 4, 11, 18, 25 अगस्त; 1, 8, 15, 22 सितंबर।
- अंतिम संकलन: 6 अक्टूबर, 2025 तक MCPC को प्रस्तुत किया जाना है।
मध्यस्थता की प्रक्रिया:
- मध्यस्थता के तरीके:
- भौतिक
- ऑनलाइन
- हाइब्रिड
- सत्र:
- पक्षों की सुविधा के अनुसार, सप्ताह में 7 दिन आयोजित किया जाता है।
- मध्यस्थ: 40 घंटे के प्रमाणन के साथ नए प्रशिक्षित पेशेवर शामिल करें।
- यदि आवश्यक हो तो मध्यस्थ परामर्शदाताओं या विशेषज्ञों की सहायता ले सकते हैं।
निरीक्षण एवं मूल्यांकन:
- प्रत्येक उच्च न्यायालय की मध्यस्थता निगरानी समिति अभियान की निगरानी करेगी।
- राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल द्वारा चुनिंदा राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव अध्ययन कराया जाएगा।
मध्यस्थता क्या है?
परिचय:
- मध्यस्थता एक स्वैच्छिक, गैर-न्यायिक प्रक्रिया है, जिसमें एक तटस्थ तीसरा पक्ष (मध्यस्थ) विवादित पक्षों को पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समझौते तक पहुँचने में सहायता करता है।
- जब तक कोई समझौता नहीं हो जाता और औपचारिक रूप से दर्ज नहीं हो जाता, तब तक यह बाध्यकारी नहीं है।
- मध्यस्थ निर्णय नहीं थोपता - केवल संचार, चर्चा और स्पष्टता के माध्यम से समाधान की सुविधा प्रदान करता है।
लाभ:
- इससे समय, लागत और भावनात्मक तनाव की बचत होती है।
- रिश्तों को बनाए रखने में सहायता मिलती है (विशेषकर पारिवारिक एवं व्यावसायिक मामलों में)।
- लचीला, गोपनीय और गैर-टकरावपूर्ण।
मध्यस्थता के प्रकार:
- न्यायालय द्वारा संदर्भित मध्यस्थता
- निजी मध्यस्थता
- मुकदमेबाजी से पहले की मध्यस्थता
- सामुदायिक मध्यस्थता
मध्यस्थता का समर्थन करने वाला सांविधिक ढाँचा:
- कई भारतीय विधान मध्यस्थता को बढ़ावा देते हैं तथा इसकी अनुमति देते हैं, जिनमें शामिल हैं:
संविधि |
मध्यस्थता का प्रावधान |
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 |
धारा 89 – न्यायालय मध्यस्थता के लिये संदर्भित कर सकता है |
माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम, 1996 |
भाग III – सुलह मध्यस्थता के समान है |
कंपनी अधिनियम, 2013 भाग III |
Section 442 – Establishment of Mediation & Conciliation Panel धारा 442 – मध्यस्थता और सुलह पैनल की स्थापना |
वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 |
धारा 12A – पूर्व संस्थित मध्यस्थता अनिवार्य है |
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 धारा 12A |
अध्याय V – उपभोक्ता विवादों को सुलझाने के लिये मध्यस्थता प्रकोष्ठ |
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 |
DLSA/SLSA के अंतर्गत लोक न्यायालयें और मध्यस्थता केंद्र |
मध्यस्थता अधिनियम, 2023 क्या है: भारत का पहला व्यापक मध्यस्थता कानून?
उद्देश्य:
- संस्थागत मध्यस्थता को बढ़ावा देना, मध्यस्थता प्रक्रियाओं को परिभाषित करना, तथा निपटान हेतु करार को लागू करना।
मुख्य प्रावधान:
- मुकदमा-पूर्व मध्यस्थता:
- न्यायालय/अधिकरणों में मुकदमा या आवेदन संस्थित करने से पहले सभी सिविल एवं वाणिज्यिक विवादों के लिये अनिवार्य।
- यदि मुकदमे-पूर्व मध्यस्थता विफल हो जाती है, तो भी न्यायालय कार्यवाही के दौरान मामले को फिर से संदर्भित कर सकते हैं।
- मध्यस्थता के लिये अनुपयुक्त विवाद:
- गंभीर अपराधों से संबंधित आपराधिक मामले।
- अप्राप्तवयों या चित्त विकृत व्यक्तियों के विरुद्ध दावे।
- तीसरे पक्ष के अधिकारों को प्रभावित करने वाले मामले।
- मध्यस्थता कार्यवाही:
- 180 दिनों के अंदर पूरा किया जाना है (अगले 180 दिनों के लिये बढ़ाया जा सकता है)।
- पक्षकारों को 2 सत्रों के बाद बाहर निकल सकती हैं।
- मध्यस्थ:
- करार द्वारा या मध्यस्थता सेवा प्रदाता के माध्यम से नियुक्त किया जाता है।
- हितों के टकराव का प्रकटन करना चाहिये तथा तटस्थता बनाए रखनी चाहिये।
- भारतीय मध्यस्थता परिषद:
- मध्यस्थता को बढ़ावा देने और विनियमित करने के लिये शीर्ष निकाय।
- संरचना में शामिल हैं:
- अध्यक्ष
- दो पूर्णकालिक मध्यस्थता विशेषज्ञ
- तीन पदेन सरकारी सदस्य
- एक उद्योग निकाय प्रतिनिधि
- जिम्मेदारियाँ:
- मध्यस्थों का पंजीकरण करना
- सेवा प्रदाताओं और संस्थानों को मान्यता देना
- मध्यस्थता निपटान करार:
- अंतिम, बाध्यकारी और न्यायालय के आदेशों के अनुसार लागू करने योग्य।
- चुनौती केवल छल, भ्रष्टाचार, प्रतिरूपण जैसे आधारों पर या यदि मामला मध्यस्थता के लिये उपयुक्त नहीं था, तो दी जा सकती है।
- सामुदायिक मध्यस्थता:
- सार्वजनिक सद्भाव को प्रभावित करने वाले विवादों के लिये।
- समुदाय के तीन मध्यस्थों के एक पैनल द्वारा आयोजित किया जाता है।
निष्कर्ष
‘राष्ट्र के लिये मध्यस्थता’ अभियान भारत के विवाद समाधान दृष्टिकोण में एक ऐतिहासिक बदलाव को दर्शाता है - प्रतिकूल मुकदमेबाजी से लेकर सहयोगात्मक मध्यस्थता तक। इसका उद्देश्य लोगों को सशक्त बनाना, न्यायालयों का बोझ कम करना और संघर्ष समाधान के पसंदीदा तरीके के रूप में मध्यस्थता को संस्थागत बनाना है। एक सशक्त विधिक ढाँचे और माध्यस्थम अधिनियम, 2023 द्वारा समर्थित, इस अभियान में जनता की धारणा को बदलने, न्याय वितरण में विश्वास को सशक्त करने और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने की क्षमता है। यदि इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है, तो यह 21वीं सदी में भारत के विधिक परिदृश्य के लिये एक बड़ा बदलाव हो सकता है।