होम / एडिटोरियल

सिविल कानून

सिंगल महिला के सरोगेसी अधिकार का मामला

    «
 02-May-2025

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

परिचय

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 21 अप्रैल 2025 को 38 वर्षीय विच्छिन्न विवाह महिला को सरोगेसी के माध्यम से बच्चा पैदा करने के अपने अधिकार के संबंध में उच्चतम न्यायालय जाने का निर्देश दिया। न्यायालय ने अंतरिम राहत देने से अस्वीकार करते हुए कहा कि सिंगल महिलाओं के सरोगेसी अधिकारों का बड़ा मुद्दा पहले से ही उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है। न्यायालय ने सरोगेसी के संभावित "व्यावसायीकरण" और अंतरिम राहत दिये जाने पर व्यापक परिणामों के विषय में चिंता व्यक्त की।

मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

पृष्ठभूमि:

  • यह याचिका 2023 में एक 36 वर्षीय विच्छिन्न विवाह महिला द्वारा दायर की गई थी, जो सरोगेसी के माध्यम से अपने प्रजनन अधिकारों का प्रयोग करना चाहती थी।
  • उसके दो जैविक बच्चे हैं, जो विवाह-विच्छेद की कार्यवाही के बाद उसके पूर्व पति की संरक्षण में हैं।
  • उसने 2012 में हिस्टेरेक्टॉमी करवाई, जिसके परिणामस्वरूप उसका गर्भाशय निकाल दिया गया और परिणामस्वरूप वह स्वाभाविक रूप से बच्चे पैदा करने की क्षमता खो बैठी।
  • उसने 2017 में आपसी सहमति से विवाह-विच्छेद ले लिया, जिसमें संतान के संरक्षण की व्यवस्था पिता के पास थी।
  • उसे वर्ष 2017 से अपने बच्चों से मिलने का अधिकार नहीं मिला है तथा उसने कहा कि उसके और उसके बच्चों के बीच "कोई माँ-बच्चे का रिश्ता नहीं है"।
  • फिर से मातृत्व का अनुभव करने की इच्छा से, उसने चिकित्सा पेशेवरों से परामर्श किया, जिन्होंने उसकी चिकित्सा स्थिति को देखते हुए सरोगेसी को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में सुझाया।
  • याचिकाकर्त्ता ने पुष्टि की कि वह सरोगेसी प्रक्रिया के लिये अपने स्वयं के अंडों का उपयोग करने में सक्षम थी।
  • एक अकेली कामकाजी महिला के रूप में, उसने अपनी वित्तीय स्वतंत्रता एवं बच्चे की देखभाल करने की क्षमता की पुष्टि की।
  • सरोगेसी के लिये 'चिकित्सा संकेत' के प्रमाण पत्र के लिये उनके आवेदन को 11 अप्रैल, 2025 को जिला अस्पताल के सिविल सर्जन द्वारा अस्वीकार कर दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • न्यायमूर्ति गिरीश एस कुलकर्णी एवं न्यायमूर्ति अद्वैत एम. सेठना की पीठ ने याचिकाकर्त्ता के दावों की विस्तार से जाँच की। 
  • उच्च न्यायालय ने सरोगेसी से संबंधित सांविधिक परिभाषाओं के आलोक में सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धारा 4 की प्रथम दृष्टया जाँच की। 
  • न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण विधिक प्रश्न की पहचान की:
    • क्या विधि में परिभाषित 'सरोगेसी' में 'आशयित महिलाएँ' भी शामिल होंगी, जैसा कि याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया है, जबकि सांविधिक परिभाषा में केवल 'आशयित दंपति' का उल्लेख है।
  • न्यायमूर्ति कुलकर्णी ने मौखिक रूप से इस तथ्य की आशंका व्यक्त की कि यदि राहत प्रदान की गई तो "सरोगेसी के व्यावसायीकरण" की संभावना हो सकती है।
  • न्यायालय ने काल्पनिक परिदृश्य प्रस्तुत किये, जिसमें प्रश्न किया गया कि यदि अविवाहित कपल सरोगेसी की मांग करते हैं तथा बाद में अलग हो जाते हैं तो क्या होगा, जिससे माता-पिता के अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों के विषय में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • न्यायालय ने इस तथ्य पर विचार-विमर्श किया कि सिंगल महिलाओं से संबंधित मामलों में बच्चे के पिता के रूप में किसे मान्यता दी जाएगी।
  • यह स्वीकार करते हुए कि वर्तमान मामला 'वास्तविक' हो सकता है, न्यायालय ने कहा कि अंतरिम राहत प्रदान करने से सरोगेसी विधि के निर्वचन पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।
  • न्यायालय ने विशेष रूप से सरोगेसी की मांग करने वाली सिंगल महिला के मामले में सरोगेट बच्चे के निहित अधिकारों पर विचार किया।
  • न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि विधिक विचारों को केवल महिला के प्रजनन अधिकारों तक सीमित नहीं किया जा सकता है, बल्कि विभिन्न प्रतिस्पर्धी हितों को संतुलित करना चाहिये।

इस मामले में कौन से विधिक प्रावधान केन्द्रीय थे?

  • सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धारा 4(iii)(a):
    • इसमें यह प्रावधान है कि "आशयित दंपति" या "आशयित महिला" सरोगेसी के लिये तभी पात्र होगी जब उनका कोई जीवित बच्चा न हो।
  • धारा 2(zd):  
    • 'सरोगेसी' को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, "एक ऐसी प्रथा जिसके अंतर्गत एक महिला किसी आशयित दंपति के लिये बच्चे को जन्म देती है, तथा जन्म के बाद उस बच्चे को आशयित दंपति को सौंपने का आशय रखती है।"
  • धारा 2(r): 
    • "आशयित दंपति" की परिभाषा इस प्रकार है "ऐसा दंपति जिसके पास गर्भावधि सरोगेसी की आवश्यकता वाले चिकित्सीय संकेत हों तथा जो सरोगेसी के माध्यम से माता-पिता बनना चाहते हों।"
  • धारा 2(s):  
    • 'आशयित महिला' की परिभाषा इस प्रकार है, "वह भारतीय महिला जो 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच की विधवा या विच्छिन्न विवाह हो और जो सरोगेसी का लाभ उठाने की आशयित हो।"

 न्यायालय के निर्णय को अन्य किन कारकों ने प्रभावित किया?

  • जिला अस्पताल के सिविल सर्जन ने 11 अप्रैल, 2025 को सरोगेसी प्रमाणपत्र के लिये याचिकाकर्त्ता के आवेदन को औपचारिक रूप से खारिज कर दिया, जिसमें विशेष रूप से सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धारा 4(iii)(a) का उद्धरण दिया गया। 
  • अस्वीकृति आदेश में, सिविल सर्जन ने स्पष्ट रूप से कहा कि याचिकाकर्त्ता के विघटित विवाह से दो जीवित और स्वस्थ जैविक बच्चे हैं, जो उसे विधि के अंतर्गत अयोग्य मानता है। 
  • सिविल सर्जन ने स्पष्ट किया कि उसके मौजूदा बच्चों की संरक्षण की स्थिति का मौजूदा विधिक ढाँचे के अंतर्गत सरोगेसी के लिये उसकी पात्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • चिकित्सा प्राधिकरण ने पाया कि "कोई जीवित बच्चा नहीं" नियम का सांविधिक अपवाद केवल विशिष्ट परिस्थितियों में लागू होता है: यदि मौजूदा बच्चा चिकित्सकीय रूप से प्रलेखित किसी ऐसी जानलेवा बीमारी से पीड़ित है जिसका कोई स्थायी इलाज नहीं है, या यदि बच्चे को किसी उपयुक्त चिकित्सा बोर्ड द्वारा शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग के रूप में प्रमाणित किया गया है।
  • सिविल सर्जन के आदेश ने इस तथ्य पर बल देकर एक महत्त्वपूर्ण विधिक अंतर स्थापित किया कि पात्रता में जीवित बच्चों की उपस्थिति पर विचार किया जाता है, न कि आवेदक की प्रजनन स्थिति या बच्चे पैदा करने की क्षमता पर।
  • उच्च न्यायालय ने 5 दिसंबर, 2023 की तिथि वाली उच्चतम न्यायालय की चल रही कार्यवाही का विशेष संदर्भ दिया, जहाँ न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना एवं न्यायमूर्ति उज्जवल भुइयाँ की पीठ सरोगेसी अधिकारों से संबंधित इसी तरह के मुद्दों की समीक्षा कर रही है।
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि अविवाहित और/या सिंगल महिलाओं के सरोगेसी द्वारा संतानोत्पत्ति प्राप्त करने के अधिकारों से संबंधित "बड़े मुद्दों" को संबोधित करने के लिये उच्चतम न्यायालय बेहतर स्थिति में है।
  • उच्च न्यायालय ने औपचारिक रूप से याचिका को अनिश्चित काल के लिये स्थगित कर दिया तथा याचिकाकर्त्ता को दो विकल्प दिये: या तो लंबित कार्यवाही में शामिल होने के लिये उच्चतम न्यायालय में अपील करें या मामले पर उच्चतम न्यायालय के निर्णायक निर्णय की प्रतीक्षा करें।
  • न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता के लिये सरोगेसी अधिनियम के प्रावधानों के निर्वचन पर उच्चतम न्यायालय द्वारा अपना निर्णय दिये जाने के बाद फिर से आवेदन करने की संभावना को खुला छोड़ दिया।

निष्कर्ष

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इस प्रश्न पर निर्णय उच्चतम न्यायालय को सौंप दिया है कि क्या मौजूदा जैविक बच्चों वाली सिंगल महिला सरोगेसी का लाभ प्राप्त कर सकती है। यह मामला व्यक्तिगत प्रजनन अधिकारों और सरोगेसी अधिनियम द्वारा स्थापित नियामक ढाँचे के बीच तनाव को प्रकटित करता है। उच्चतम न्यायालय द्वारा अंतिम निर्णय भारत में सरोगेसी चाहने वाली सिंगल महिलाओं के लिये महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।