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आपराधिक कानून
UAPA के तहत आतंकवादी कृत्य
« »23-Nov-2023
परिचय
हाल ही में जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय (HC) ने पीरज़ादा शाह फहद बनाम केंद्रशासित प्रदेश जम्मू व कश्मीर और अन्य (2023) के मामले में पत्रकार फहद खान को ज़मानत दे दी। इस मामले में HC ने कहा कि सरकार की आलोचना को विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 (UAPA) के तहत आतंकवादी कृत्य नहीं कहा जा सकता है।
गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) क्या है?
- UAPA, भारत में एक आतंकवाद विरोधी कानून है जिसे वर्ष 1967 में लागू किया गया था।
- UAPA का प्राथमिक उद्देश्य उन विधिविरुद्ध क्रिया-कलापों को नियंत्रित करना है जो भारत की संप्रभुता एवं समग्रता के लिये खतरा उत्पन्न करती हैं।
- UAPA के तहत, सरकार के पास किसी संगठन को "आतंकवादी संगठन", व्यक्तियों को "आतंकवादी" और कार्य को "आतंकवादी कृत्य" घोषित करने की शक्ति है।
UAPA के तहत आतंकवादी कृत्य क्या है?
- UAPA, अधिनियम की धारा 15 में "आतंकवादी कृत्य" को परिभाषित करता है।
- इस अधिनियम के अनुसार, आतंकवादी कृत्य में ऐसा कोई भी कृत्य शामिल होता है जो भारत की संप्रभुता, समग्रता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा या रणनीतिक हितों जैसे कई कारकों का उल्लंघन करता है या लोगों अथवा लोगों के किसी भी वर्ग में आतंक फैलाने के इरादे से या आतंक फैलाने की संभावना रखता है।
- इसमें वे कृत्य भी शामिल हैं जिनका उद्देश्य भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना है या होने की संभावना है।
UAPA की धारा 15 क्या है?
- जो कोई, भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा, [आर्थिक सुरक्षा] या प्रभुता को संकट में डालने या संकट में डालने की संभावना के आशय से अथवा भारत में या किसी अन्य देश में जनता अथवा जनता के किसी वर्ग में आतंक फैलाने या आतंक फैलाने की संभावना के आशय से-
- बमों, डाइनामाइ या अन्य विस्फोटक अथवा ज्वलनशील पदार्थों या अग्न्यायुधों अथवा अन्य प्राणहर आयुधों या ज़हरीली अथवा अपायकर गैसों या अन्य रसायनों अथवा परिसंकटमय प्रकृति के किन्हीं अन्य पदार्थों का (चाहे वे जैविक रेडियोधर्मी, न्यूक्लीयर हों या अन्यथा) या किसी भी प्रकृति के किन्हीं अन्य साधनों का उपयोग करके ऐसा कोई कार्य करता है जिससे, -
- किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की मृत्यु होती है या उन्हें क्षति होती है या होने की संभावना है; अथवा
- संपत्ति की हानि या उसका नुकसान या विनाश होता है या होने की संभावना है;
- भारत में या विदेश में समुदाय के जीवन के लिये अनिवार्य किन्हीं प्रदायों या सेवाओं में विघ्न कारित होता है या होने की संभावना है; अथवा
- उच्च गुणवत्ता के कागज़, सिक्के या किसी अन्य सामग्री की कूटकृत भारतीय करेंसी के निर्माण या उसकी तस्करी या परिचालन से भारत की आर्थिक स्थिरता को नुकसान कारित होता है या होने की संभावना है; अथवा
- भारत की प्रतिरक्षा या भारत सरकार, किसी राज्य सरकार या उनके किन्हीं अभिकरणों के किन्हीं अन्य प्रयोजनों के संबंध में उपयोग की जाने वाली या उपयोग किये जाने के लिये आशयित भारत में या विदेश में किसी संपत्ति का नुकसान या विनाश होता है या होने की संभावना है; या
- लोक कृत्यकारियों को आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल का प्रदर्शन करके आतंकित करता है या ऐसा करने का प्रयत्न करता है अथवा किसी लोक कृत्यकारी की मृत्यु का कारण बनता है या किसी लोक कृत्यकारी की मृत्यु कारित करने का प्रयत्न करता है; या
- किसी व्यक्ति को निरुद्ध करता है, उसका व्यपहरण या अपहरण करता है या ऐसे व्यक्ति को मारने या क्षति पहुँचाने की धमकी देता है या भारत सरकार, किसी राज्य सरकार अथवा किसी विदेशी सरकार अथवा किसी अंतर्राष्ट्रीय या अंतर-सरकारी संगठन या किसी अन्य व्यक्ति को कोई कार्य करने अथवा किसी कार्य को करने से प्रविरत रहने के लिये बाध्य करने के लिये कोई अन्य कार्य करता है, तो वह आतंकवादी कृत्य में शामिल है।
UAPA के तहत सरकार की आलोचना को आतंकवादी कृत्य क्यों नहीं माना जा सकता?
- न्यायालय ने कहा कि यदि वह ऐसे कृत्य पर UAPA के तहत विचार करेगा तो केंद्र सरकार की किसी भी आलोचना को आतंकवादी कृत्य बताया जा सकता है क्योंकि भारत का सम्मान उसकी अमूल्य संपत्ति है।
- अमूर्त संपत्ति से तात्पर्य उस संपत्ति से है जिसका कोई भौतिक अस्तित्त्व नहीं है लेकिन वह विधिक या बौद्धिक अधिकारों का प्रतिनिधित्व करती है।
- इस तरह का प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 19 में निहित वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
- अनुच्छेद 19 वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार की पुष्टि करता है तथा इस कारण यदि सरकार के खिलाफ राय को आतंकवादी कृत्य माना जाता है तो यह अनुच्छेद की मूल संरचना में बाधा उत्पन्न करेगा।
निष्कर्ष:
इस मामले में न्यायालय का दृष्टिकोण असहमति को दबाने के लिये UAPA के गलत प्रयोग को नियंत्रित करने में सहायता करता है। यह भारत के लोकतंत्र के मूलभूत मूल्यों की रक्षा करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। इस निर्णय से पता चलता है कि न्यायपालिका राष्ट्रीय सुरक्षा एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता को संतुलित करने में प्रमुख भूमिका निभाती है, यह सुनिश्चित करती है कि एक मज़बूत और लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिये संवैधानिक अधिकारों को स्थिर रखा जाना चाहिये।